नेहरू रिपोर्ट (The Nehru Report)
- नेहरू रिपोर्ट क्या थी?
- नेहरू रिपोर्ट 1928 में क्या था?
- नेहरू रिपोर्ट के प्रावधान
- नेहरू रिपोर्ट की सिफारिशें
- नेहरू रिपोर्ट के महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्न
नेहरू रिपोर्ट : साइमन कमीशन का समस्त भारत में बहिष्कार किया गया। ऐसी स्थिति में भारत-मंत्री लॉर्ड बकनहेड ने भारत वासियों को ऐसा संविधान बनाने की चुनौती दी जो सब भारतीयों को स्वीकार हो। उनका कहना था कि कमीशन कब बहिष्कार करके भारतीय बुद्धिमता का प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं। और अंग्रेजों को भारतीयों की योग्यता और क्षमता में बिल्कुल भी विश्वास नहीं था, दूसरे उसे समय भारतीय राजनीति में सांप्रदायिकता का इतना अधिक जोर था कि सभी संप्रदायों के लिए एक संविधान बनाना दुष्कर कार्य था। फिर भी कांग्रेस ने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। 28 फरवरी, 1928 ई० के दिल्ली में एक सर्वदल सम्मेलन बुलाया। जिसमें लगभग 28 संगठनों ने भाग लिया था। कुछ मौलिक बातों को निश्चित करने के बाद इसकी बैठक स्थगित हो गई और 10 मई, 1928 को बम्बई में इसकी पुनः बैठक हुई। भारत का संविधान का मसविदा (Draft) तैयार करने के लिए एक 8 व्यक्तियों की कमेटी नियुक्ति की गई। पंडित मोतीलाल नेहरू इस समिति के अध्यक्ष थे, इसलिए इसमें जो रिपोर्ट तैयार की वह नेहरू रिपोर्ट कहलाई। सुभाष चंद्र बोस, सर तेज बहादुर सप्रू, सरदार मंगल सिंह, श्री एस० अणे, सर अलमा इमाम, श्री जी० अवार प्रधान सदस्य थे।
रिपोर्ट के मुख्य प्रावधान
साइमन कमीशन ने रिपोर्ट तैयार करने में 2 वर्ष लगाए जबकि नेहरू समिति ने कुछ महीनो में ही संविधान की व्यापक रूपरेखा तैयार कर दी। इसका कारण था कमिश्नर का उद्देश्य साम्राज्यवाद के हितों का संरक्षण करना अतः तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर रखने में समय लगना स्वाभाविक था। दूसरे कमीशन के सभी सदस्य भी अंग्रेज थे जिनको भारत की स्थिति का वास्तविक ज्ञान नहीं हो सकता था। इसके विपरीत नेहरू समिति को अपने देशवासियों के लिए संविधान तैयार करना था, जिनको भारतवासियों की समस्याओं और कठिनाइयों का पूरा-पूरा ज्ञान था। नेहरू रिपोर्ट के मुख्य सिफारिश कुछ इस प्रकार थी—
नेहरू रिपोर्ट की सिफारिशें
(1) औपनिवेशिक स्वराज्य तथा पूर्ण उत्तरदाई शासन
समिति का बहुमत औपनिवेशिक स्वराज्य के पक्ष में था, परंतु कुछ लोग पूर्ण स्वतंत्रता के पक्ष में भी थे। नहीं रिपोर्ट में इन दोनों पशुओं में समझौता करने के लिए बीच का रास्ता अपनाया। अतः औपनिवेशिक स्वराज्य अंतिम लक्ष्य के रूप में नहीं बल्कि तत्कालीन लक्ष्य के रूप में स्वीकार किया गया। इसने यह भी सिफारिश की कि केंद्र प्रति में पूर्ण उत्तरदाई शासन स्थापित किया जाए तथा कार्यकारिणी को व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदाई बनाई जाए।
(2) संघीय व्यवस्था
समिति ने भारत के लिए भविष्य में संघ की संभावना पर जोर दिया। प्रति और केदो के मध्य संघीय आधार पर शक्तियों का बंटवारा किया जाए तथा प्रान्तों को स्वायत्तता प्रदान की जाए। अवशिष्ट शक्तियां केंद्र को प्रदान करके शक्तिशाली बनाई जाए। इसके लिए कनाडा के संविधान को आदर्श माना गया। प्रति में एक सदनीय व्यवस्थापिका का निर्माण किया जाए।
(3) सांप्रदायिक चुनाव-पद्धति की समाप्ति
नेहरू रिपोर्ट में सांप्रदायिक चुनाव पद्धति को अस्वीकार किया गया। उसमें यह कहा गया कि हम एक संप्रदाय का दूसरे संप्रदाय पर पार्वती स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। सांप्रदायिक चुनाव पद्धति तथा गुरु भार (आबादी से अधिक भार) से सांप्रदायिकता की समस्या समाप्त नहीं होती बल्कि और अधिक बढ़ती है। इसके स्थान पर रिपोर्ट में संयुक्त चुनाव पद्धति की सिफारिश की गई जिसमें अल्पमतों के हितों की रक्षा के लिए स्थान को सुरक्षित रखा जाएगा।
(4) मौलिक अधिकार
नेहरू रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया कि सरकार ने सारी शक्ति जनता से ग्रहण की है, अतः इसका प्रयोग लोगों की संस्थाओं के द्वारा इस संविधान के अनुसार किया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में राज्यसभा जनता के पास रहेगी। भारत में राजधर्म नहीं होगा। स्त्रियों तथा पुरुषों को समान अधिकार प्रदान किए जाएंगे।
(5) केंद्रीय कार्यपालिका
भारत की कार्यकारिणी शक्ति सम्राट में निहित होगी, जिसका प्रयोग गवर्नर जनरल सम्राट के प्रतिनिधि के रूप में करेगा। लेकिन इस शक्ति का प्रयोग स्वेच्छा पूरक नहीं बल्कि कानून और संविधान के अनुसार किया जाएगा। गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद में एक प्रधानमंत्री तथा छह: अन्य मंत्री होंगे। प्रधानमंत्री की नियुक्ति गवर्नर जनरल के द्वारा और प्रधानमंत्री की सलाह से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति की जाएगी। केंद्रीय कार्यपालिका अपने सभी कार्यों के लिए सामूहिक रूप से संसद के प्रति उत्तरदाई होगी।
(6) नए प्रति का निर्माण करना
मुसलमान बहुत दिनों से यह मांग कर रहे थे कि सिंध को मुंबई प्रांत से अलग किया जाए और उत्तरी पश्चिमी सीमा प्रांत के समान दर्जा दिया जाए, ताकि पंजाब, बंगाल, सिंध और उत्तरी पश्चिमी सीमा प्रांत में उनका बहुमत हो जाए। रिपोर्ट में मुसलमान की इस मांग को स्वीकार कर लिया गया।
(7) उच्चतम न्यायालय
अभी तक अंतिम अपील प्रीवि कौंसिल में की जाती थी। इस रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में अंतिम न्यायालय के रूप में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की जाए। जिसको संविधान की व्याख्या करने तथा प्रति के मध्य झगड़ों का निर्णय करने का अधिकार होगा।
(8) प्रतिरक्षा
प्रतिरक्षा के संबंध में नेहरू रिपोर्ट में यह सिफारिश की गई की प्रधानमंत्री, प्रति रक्षा मंत्री, प्रधान सेनापति, वायु, जल, दल सेना के अध्यक्ष तथा दो अन्य सैनिक विशेषज्ञों को मिलाकर एक प्रतिरक्षा समिति की स्थापना की जाए। इस समिति को भारतीय सेना के संबंध में सभी नियम विनिमय के निर्माण में सिफारिशें देने का अधिकार होगा। प्रतीक्षा पर होने वाले खर्च की स्वीकृति प्रतिनिधि सभा अर्थात संसद के निम्न सदन से लेनी पड़ेगी। परंतु भारत पर विदेशी आक्रमण या उसकी संभावना होने पर केंद्रीय कार्यपालिका को किसी भी धनराशि के खर्चे करने का अधिकार होगा।
impo-Short questions and answers
नेहरू रिपोर्ट 1928 क्या है?
नेहरू रिपोर्ट भारतीय देशवासियों के लिए संविधान की रुपरेखा तैयार करना था। पंडित मोतीलाल नेहरू इस समिति के अध्यक्ष थे, इसलिए इसमें जो रिपोर्ट तैयार की वह नेहरू रिपोर्ट कहलाई।
नेहरू रिपोर्ट किसने तैयार की थी?
नेहरू रिपोर्ट 10 मई, 1928 में मोतीलाल नेहरू जी ने तैयार की।
नेहरू रिपोर्ट के सदस्य?
नेहरू रिपोर्ट के सदस्य - सुभाष चंद्र बोस, सर तेज बहादुर सप्रू, सरदार मंगल सिंह, श्री एस० अणे, सर अलमा इमाम, श्री जी० अवार प्रधान सदस्य थे।
नेहरू रिपोर्ट कब व किसने प्रस्तुत की?
नेहरू रिपोर्ट 10 मई, 1928 में व मोतीलाल नेहरू जी ने प्रस्तुत की।
नेहरू रिपोर्ट की सिफारिशें?
नेहरू रिपोर्ट की सिफारिशें - (1) औपनिवेशिक स्वराज्य तथा पूर्ण उत्तरदाई शासन (2) संघीय व्यवस्था (3) सांप्रदायिक चुनाव-पद्धति की समाप्ति (4) मौलिक अधिकार (5) केंद्रीय कार्यपालिका (6) नए प्रति का निर्माण करना (7) उच्चतम न्यायालय (8) प्रतिरक्षा
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