मगध साम्राज्य का उदय (उत्कर्ष) के कारण - letest education

मगध साम्राज्य
Magadha Empire

छठी शताब्दी का पर्व के महाजनपदों में मगध राजनीतिक रूप से एक साधारण जनपद था। इस महाजनपद की अपेक्षा कोशल और काशी सशक्त तथा समृद्धशाली थे, परंतु मगध के सिंहासन पर बिंबिसार के आसीन होते ही मगध का उत्कर्ष प्रारंभ हो गया और शीघ्र ही इसने काशी, कोशल तथा विद्रोह जैसे राजतंत्रों का स्थान ले लिया। इस संबंध में डॉ० हेमचंद राय चौधरी का मत है कि, “बिंबिसार तथा नव जैसे शक्तिशाली शासको के समय भारतीय राजनीति में मगध का वही स्थान था जो पूर्व नॉर्मन इंग्लैंड में हुए वेसेक्स का और जर्मनी में प्रशिया का था।” प्रो० श्री राम गोयल ने सत्य ही कहा था कि “जिस प्रकार किसी शांत सरोवर के मध्य पत्थर फेंकने पर उससे उठने वाली तरंगों के वृत्त धीरे-धीरे फैलने जाते हैं, वैसे ही मगध साम्राज्य की सीमाएं फैलाकर भारत के विभिन्न प्रदेशों को अपने में समिति चली गई।” 

मगध साम्राज्य के उदय या उत्कर्ष के कारण

(1) भौगोलिक कारण 

मगध के उत्कर्ष में भौगोलिक कारण सर्व प्रमुख कारण था। इसके उत्तर में सोन तथा पश्चिम में गंगा नदी बहती थी। दक्षिण की ओर मगध विंध्य पर्वतमालाओं से गिरा था। पूर्व की ओर चंपा नदी प्रभावित होती थी। इसकी राजधानी गिरिराज थी जिसे राजगृह भी कहा जाता था। इस संबंध में डॉ० हेमचंद राय चौधरी का मत है कि “यह राज्य उत्तर भारत के विशाल तात्ववर्ती मैदाने के ऊपरी एवं निचले भागों के मध्य अति सुरक्षित स्थिति में था। पांच पहाड़ियों के मध्य एक दुर्गम स्थान पर स्थित होने के कारण भी यहां शत्रुओं का पहुंचना प्रायः हो संभव था। यह राज्य व्यापार एवं वाणिज्य का केंद्र था। यहां की भूमि अत्यंत उपजाऊ थी।” 

  अपने माल के साथ यहां से सार्थवाह वह दूर-दूर देश की यात्राएं करते थे। प्राकृतिक संपन्नता तथा सुरक्षा के साधनों के साथ-साथ इसके पार्श्व में स्थित सघध अरण्यों में बहुसंख्यक हाथी उपलब्ध थे। जंगलों से प्राप्त लकड़ी से भावना तथा विभिन्न प्रकार की सामग्रियां बनाने में भी सुविधा मिलती थी।

मगध साम्राज्य का उदय (उत्कर्ष) के कारण - letest education

(2) मगध वासियों का मनोबल एवं चरित्र 

मगध के उत्कर्ष का द्वितीय कारण वहां के निवासियों का मनोबल और चरित्र था। डा० हेमचंद्र राय चौधरी ने यह कहा था कि अच्छी सामरिक स्थिति तथा भौतिक समृद्धि ही किसी राष्ट्र को ऊंचा उठने के लिए काफी नहीं है। मगध अनेक जातीय एवं सांस्कृतिक धाराओं का मिलन बिंदु था। जिस प्रकार मध्यकालीन फ्रांस में केल्ट जाती लैटिन और ट्यूटन में समाहित हो गई थी उसी प्रकार प्राचीन भारत के उत्तरी भाग में कीकट जाति तथा अन्य उन्नत सील जातियों में मिल-जुल गई थी। जिस राष्ट्र में बड़े-बड़े लड़ाकूओं और योद्धाओं ने जन्म लिया, जिस राष्ट्र ने जरासंध, अजातशत्रु, महापद्मानंद तथा अशोक जैसी महान विजेताओं को जन्म दिया, उसी रास्ते के राजाओं ने वर्द्धमान महावीर तथा गौतम बुद्ध के उपदेशों को स्वीकार तथा संपूर्ण भारत में अपना साम्राज्य फैलाने के साथ-साथ विश्व धर्म का प्रचार भी किया। 

    और इसी युग में अजातशत्रु का जन्म हुआ और महात्मा बुद्ध को बुद्धत्व प्राप्त हुआ। राजगृह में अजातशत्रु और महात्मा बुद्ध की भेंट जैसी रही, जैसे कि वाम्र्स में चार्ल्स पंचम और मार्टिन लूथर की। इस देश और इसी युग में आक्रामक और साम्राज्यवादी लिप्सा तथा नैतिकता और उदारता के प्रतिकों का‌ आविर्भाव हुआ। फिर दोनों विचारधारा ही अधिक समय तक अलग-अलग न रह सकी। दोनों में समन्वय हुआ और मौर्य सम्राट अशोक ने दोनों प्रवृत्तियों को अपने में समा लिया। एक और अपने पूर्वजों की भांति साम्राज्य की परंपरा अक्षुण्ण की तो दूसरी और सनी सन्यासी की अध्यात्म-भावना को भारत ही नहीं, अपितु भारत के बाहर प्रचारित और प्रसारित करने में सक्रिय भूमिका निभाई। 

(3) आर्य-अनार्य संस्कृतियों का समन्वय 

मगध के उदय में आर्य-अनार्य संस्कृतियों का समन्वय तीसरा कारण था तथा यह मगध वीडियो के व्यवहार का लचीला होना था। यह गुण सरस्वती व दृषवती के तटवर्ती प्रदेशों के लोगों में नहीं था। इन प्रति में ब्राह्मण लोग व्रात्य-वर्ग का संपर्क स्वीकार कर लेते थे तथा राजा लोग अपने महलों में शुद्ध कन्याओं को भी स्थान दे देते थे। वैश्यों वह यवनों को भी शासकीय पदों पर नियुक्त किया जाता था। यही नहीं, कभी-कभी नगर शोभिनी की संतान के कारण ऊंचे घराने का पैतृक राजवंशों के शासको को भी राज्य से निकाल दिया जाता था। राजा का सिंहासन एक साधारण नाई की भी पहुंच के अंदर होता था। अर्थात नगर-शोभिनी के पुत्र एवं नापित पुत्र का राज्याभिषेक भी होने लगा। डा० आर० के० मुखर्जी के अनुसार, “परंपरावादी ब्राह्मण संस्कृति द्वारा लगाए गए तथा बौद्ध एवं जैन धर्म के सार्वभौमिक दृष्टिकोण को विस्तृत किया गया तथा इसे एक शक्तिशाली साम्राज्य का केंद्र बिंदु बना दिया।” 

(4) कुशल मंत्रियों और योग्य शासको की परंपरा 

मगध की उत्कर्ष में कुशल मंत्रियों एवं योगी शासको का भी योगदान था। डा० राय चौधरी के अनुसार, “मगथ के वस्सकार (अर्थात वर्षकार) जैसे राजा तथा कौटिल्य जैसी मंत्री अपने कार्यों में बहुत अधिक अनैतिक किया मिथ्यवादी नहीं होते थे। वे किसी राज्य को विनष्ट करने या उसे चिन्ह भिन्न करने में पाश्चात्य दार्शनिक मैकियावेली के समान नीतियों का अनुसरण करते थे। हुए राजा तथा मंत्री एक ऐसी व्यावहारिक प्रशासन पद्धति निकाल लिया करते थे, जिसमें राजा, मंत्री वह गांव के मुखिया का समान रूप से हिस्सा होता था।” 

   चतुर्थ शताब्दी ईसा पूर्व से भारत में आए विदेशी राजदूत तथा यात्रियों ने तत्कालीन राजाओं की न्याय बुद्धि, आतिथ्य-भावना तथा जनहित की चिंता का उल्लेख और उनकी प्रशंसा की है। तत्कालीन राजा एक सुसंगठित जम्मू द्वीप (वृहत्तर भारत) की कल्पना को साकार करने के लिए अनवरत प्रयास करते रहते थे। वह समोसे भारत का राजनीतिक तथा भावनात्मक धागे में बांध देना चाहते थे। मगध के राज दरबार में गिरिराज के शासको के पास तथा पाटलिपुत्र के भी ऐसे वफादार लोग थे जो देशभर में अपनी इच्छा के अनुकूल जनमत तैयार कर सकते थे। इन बंदी जनों या दरबारी प्रशंसकों की कहानी आज भी भारत के इतिहास के लिए विशेष सामग्री प्रस्तुत करती हैं।

(5) आर्थिक कारण 

मगध के उत्कर्ष का एक प्रधान कारण आर्थिक भी था। उसे समय मगध अपनी खनिज धातुओं के लिए प्रसिद्ध था— कोशिश कर लो धातु में और इस धातु पर मगध का एकाधिकार उसकी उत्कर्ष का प्रमुख कारण माना जा सकता है। लोहा गलाने की कला में मगध के लोग निपुण थे। इन धातुओं की सहायता से मगध वासियों ने कृषि कार्य में विशेष प्रकृति की, जंगलों को साफ कर अधिकतम भूमि को कृषि जोगी बनाया और साथ ही साथ व्यापारिक प्रगति के द्वारा मगध राज्य का आर्थिक स्थिति को मजबूत किया। व्यापारिक आदान-प्रदान चलता रहता था। मिथिलता से तक्षशिला तक की ओर फिर वहां से मध्य एशिया सार्थवाहो का तांता लगा रहता था। मगध में नमक का अभाव था, अतः इस खोज के लिए उन्हें दूर-दूर तक जाना होता था। नगर अब भी छोटे-छोटे थे इसलिए शिल्पकार अपने माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने का प्रबंध करते रहते थे। ऐसी स्थिति में सूर्य अवस्थित राज्य की आवश्यकता होती थी और वह लोग उसे आवश्यकता को पूरी करने के लिए तैयार थे। मगध के कूटनीतिक वर्षकार, कौटिल्य और अन्य चिंतकों ने इस पृष्ठाधार को सैद्धांतिक रूप से प्रतिपादन किया और उन लोगों ने उत्खनन और धातुओं पर राज्य के एकाधिकार का समर्थन किया। 

    छठी शताब्दी ईसा पूर्व के राज्यों के अध्ययन से यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि उसे समय विभिन्न राज्यों के बीच आधिपत्य के लिए जो संघर्ष चल रहा था उसका मूल कारण आर्थिक था, क्योंकि प्रत्येक राज्य अपनी सत्ता, बढ़कर एक छात्र राज्य का स्वप्न देख रहा, परंतु इस संघर्ष में अंततोगत्वा मगध की विजय हुई, क्योंकि उसका धातु के सबसे समृद्ध भंडार और दो मुख्य व्यापारिक मार्गों पर नियंत्रण था। उसका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं बचा था और उसके यहां निरंकुश राजतंत्र तथा संगठित सेना थी। मगध का वास्तविक उत्कर्षित तो मौर्य युग में आकर हुआ। 

निष्कर्ष (conclusion)

इन उपर्युक्त विवरण से हम इस निष्कर्ष तक पहुंचते हैं कि मगध की उत्कर्ष में एक नहीं अनेक कर्ण ने एवं भूमिका निभाई जिसका परिणाम यह हुआ कि मगध को सर्वाधिक ख्याति मिली और अंतत: यह भारत के एक अति विशाल साम्राज्य के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।

impo-Short questions and answers 

मगध साम्राज्य का पहला राजा कौन?

मगध साम्राज्य का पहला राजा बिंबिसार था।

मगध साम्राज्य की राजधानी?

मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र जो कि वर्तमान में पटना में स्थित है।

मगध साम्राज्य की स्थापना किसने की?

मगध साम्राज्य का संस्थापक बिंबिसार को माना जाता है।

मगध साम्राज्य का अंतिम शासक?

मगध साम्राज्य का अंतिम शासक नागदथक या नागानंद था।

मगध साम्राज्य के उदय के कारण?

मगध साम्राज्य के उदय अथवा उत्कर्ष के कारण - (1) भौगोलिक कारण (2) मगध वासियों का मनोबल एवं चरित्र (3) आर्य-अनार्य संस्कृतियों का समन्वय (4) कुशल मंत्रियों और योग्य शासको की परंपरा (5) आर्थिक कारण ।

मगध साम्राज्य का उदय कैसे हुआ?

छठी शताब्दी का पर्व के महाजनपदों में मगध राजनीतिक रूप से एक साधारण जनपद था। इस महाजनपद की अपेक्षा कोशल और काशी सशक्त तथा समृद्धशाली थे, परंतु मगध के सिंहासन पर बिंबिसार के आसीन होते ही मगध का उत्कर्ष प्रारंभ हो गया और शीघ्र ही इसने काशी, कोशल तथा विद्रोह जैसे राजतंत्रों का स्थान ले लिया।

मगध साम्राज्य की स्थापना कब हुई?

मगध साम्राज्य की स्थापना 675 ईसा पूर्व में हुई।

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