जर्मनी का एकीकरण (बिस्मार्क की भूमिका तथा परिणाम) | unification of germany

जर्मनी का एकीकरण के बारे में तो जानेंगे ही लेकिन और कुछ भी उसके संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्पष्ट करेंगे जैसे- 
नोट - अगर आपको जर्मनी की एकीकरण के बारे में अच्छे से समझना है तो आपको पॉइंट टू पॉइंट पढ़ना होगा। 
  1. जर्मनी का एकीकरण
  2. बिस्मार्क की ‘रक्त और लौह की नीति
  3. बिस्मार्क द्वारा जर्मनी का एकीकरण
  4. ऑस्ट्रिया-प्रसा का युद्ध (1866 ई०)
  5. फ्रांस और प्रशा का युद्ध (1870-71ई०)
  6. फ्रेंकफर्ट की संधि

जर्मनी का एकीकरण (1871) 

(1) प्रसा की शक्ति का उत्थान 

प्रशा का राजा फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ मस्तिष्क की बीमारी के कारण 2 जनवरी, 1861 ई० को परलोक सुधर गया और उसका भाई विलियम प्रथम, जो 1858 ई० से रीजेण्ट का कार्य कर रहा था, प्रसा का सम्राट बना। विलियम प्रथम के राज्यारोहण से प्रसा में एक नई युग का प्रादुर्भाव हुआ। वह बड़ा साहसी अनुभवी और योग्य सैनिक था। उसने गाड़ी पर बैठते ही प्रसा की सैनिक शक्ति का विस्तार करना आरंभ कर दिया। उसने 1862 में बिस्मार्क को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया।

(2) बिस्मार्क की नीति 

उसने प्रधानमंत्री बनते ही घोषणा की कि — “हमें बहुत जल्द ही अपने अस्तित्व को स्थापित रखने के लिए ऑस्ट्रिया से युद्ध करना पड़ेगा। यह हमारी शक्ति से बाहर है कि हम युद्ध को रोक सके क्योंकि जर्मनी की घटनाओं का प्रवाह इसी और है।” बिस्मार्क उदारवादियों से घृणा करता था। उसने स्पष्ट शब्दों में यह घोषणा कर दी थी कि “महान समस्याओं का निराकरण भाषणों तथा बहुमत द्वारा नहीं हुआ करता, उनका समाधान तो रक्तपात और शास्त्रों की झंकार से ही हो सकेगा।”

बिस्मार्क की ‘रक्त और लौह की नीति’ का अनुगामी था। वह बड़ा साहसी और निर्भीक व्यक्ति था। उसने अपनी योग्यता से विलियम प्रथम और संसद के उच्च सदन का समर्थन प्राप्त कर लिया था। 
  
     बिस्मार्क राज्य की कार्यपालिका और सेना पर उसका पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो चुका था।
जर्मनी का एकीकरण (बिस्मार्क की भूमिका तथा परिणाम)  | unification of germany

बिस्मार्क द्वारा जर्मनी का एकीकरण

   बिस्मार्क एक महान कूटनीतिज्ञ था। उसके मस्तिष्क में जर्मनी का एकीकरण की योजना बिल्कुल स्पष्ट थी और प्रारंभ से ही उसने अपनी योजना अनुसार कार्य करना प्रारंभ किया। उसने प्रसा का सैनिक संगठन करके जर्मनी का एकीकरण करने का निश्चय किया। उसके कार्यों का संक्षिप्त विवरण विवरण इस प्रकार से दिया जा सकता है—

1- श्वेसविग तथा होल्सटीन की समस्या 

श्वेसविग और होल्सटीन की डचियां प्राचीन काल से डेनमार्क तथा जर्मनी के मध्य स्थित थी। इन डचियों को आंतरिक स्वतंत्रता प्राप्ति थी किंतु इन पर डेनमार्क का नियंत्रण स्थापित था। डेनमार्क व जर्मनी दोनों ही डचियों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते थे।

प्रथम चरण - सन् 1848 ई० की क्रांति के उपरांत होल्सटीन में विद्रोह होने के कारण डेनमार्क के राजा ने दोनों डचियों को अपने राज्य में मिलने का प्रयत्न किया। किंतु प्रसा और ड्यूक ऑफ आगस्टनबर्ग ने इसका विरोध किया, जिससे युद्ध की संभावना बढ़ गई। प्रसा ने डेनमार्क के विश्व युद्ध की घोषणा भी कर दी। लेकिन इंग्लैंड तथा फ्रांस ने हस्तक्षेप करके 1852 ई० में लंदन की संधि द्वारा दोनों पक्षों में समझौता कर दिया। यह संधि अधिक समय तक स्थाई न रह सकी। सन 1863 ई० में यह संधि भंग हो गई क्योंकि डेनमार्क के शासक फ्रेडरिक सप्तम ने यूरोपीय शक्तियों को पोलैंड के विद्रोह में व्यस्त देखकर श्लेसविग को डेनमार्क के साथ मिले जाने की घोषणा कर रही। यद्यपि फ्रेडरिक कि अगले ही दिन मृत्यु हो गई परंतु उसके उत्तराधिकारी क्रिश्चियन नवम ने नवीन संविधान को स्वीकार करके डचियों को डेनमार्क राज्य में मिलने की घोषणा कर दी।

 द्वितीय चरण-  
बिस्मार्क इन डचियों को प्रसा में मिलना चाहता था। अतः उसके इस विवाद का लाभ उठाकर जर्मनी का नेतृत्व छीन लिया। वह इन डचियों की प्रश्न में हस्तक्षेप करके एक तीर से दो शिकार करना चाह रहा था। डेनमार्क को हराने के साथ-साथ वह ऑस्ट्रिया से युद्ध का बहाना भी ढूंढना चाह रहा था। इसलिए उसने ऑस्ट्रिया के साथ मिलकर डेनमार्क पर आक्रमण करने की योजना बनाई और 1864 ई० में डेनमार्क पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में प्रसाद और ऑस्ट्रिया की संयुक्त सेनन ने डेनमार्क को बुरी तरह पराजित कर दिया और उसे वियना की संधि करने के लिए विवश किया। इस संधि के अनुसार श्लेष स्विंग और होल्सटीन पर प्रसाद और ऑस्ट्रिया का संयुक्त नियंत्रण स्थापित हो गया।

(2) ऑस्ट्रिया-प्रसा का युद्ध (1866 ई०)

प्रथम चरण - बिस्मार्क का विचार था कि ऑस्ट्रिया को पराजित किए बिना जर्मनी का एकीकरण पूरा नहीं किया जा सकता। बिस्मार्क ने गेस्टीन की संधि से एक ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी थी कि ऑस्ट्रिया और प्रसा के मध्य युद्ध होना अनिवार्य हो गया। उसने जर्मन बहु संख्या वाला प्रदेश होल्सटीन ऑस्ट्रिया को दे दिया और श्लेविग स्वयं ले लिया। होल्सटीन जाने के लिए प्रशास से होकर गुजरना पड़ता था, इसलिए उसे पर अधिकार बनाए रखने अथवा शांतिपूर्वक शासन चलाना संभव नहीं था। ऑस्ट्रिया को शीघ्र ही अपनी भूल समझ में आ गई।

द्वितीय चरण -
बिस्मार्क ने फ्रांस और इटली की मित्रता प्राप्त करके 30 जून 1866 को ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस युद्ध में ऑस्ट्रिया को किसी यूरोपीय राष्ट्र का सहयोग न मिल सका, लेकिन हेनोवर, बवेरिया तथा वर्टमबर्ग जैसे कुछ जर्मन राज्यों ने ऑस्ट्रिया का साथ दिया। यह युद्ध अल्पकाल में ही समाप्त हो गया। 3 जुलाई 1866 को सड़ोवा हुआ के मैदान में प्रसा और ऑस्ट्रिया की सेनन के मध्य एक निर्णायक युद्ध हुआ। इस युद्ध में ऑस्ट्रिया की सेना पूरी तरह पराजित हुई। अंत में दोनों पक्षों के मध्य 23 अगस्त 1866 ई० को पराग की संधि हो गई। इस संधि के अनुसार जर्मन परिसंघ भंग कर दिया गया और जर्मन राज्यों को ऑस्ट्रिया के प्रभाव से मुक्त कर दिया गया। श्वेसविग और होलस्टीन की डचियों पर प्रसा का अधिकार हो गया। वेनेशिया पीडमाण्ट के शासकों से मिल गया। ऑस्ट्रिया को युद्ध के हरजाने के रूप में देने पड़े।

तृतीय चरण - उत्तरी जर्मनी के 20 राज्यों को मिलाकर एक उत्तरी जर्मन संघ का निर्माण किया गया, जिसका अध्यक्ष प्रसा का सम्राट बना। संघ की एक दो सदन वाली व्यवस्थापिका बनाई गई, जिसका एक सदन बुण्डेसराट और दूसरा सदन रीशेस्टाग कहलाता था। प्रसा ने कुछ उत्तरी राज्यों को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया, जिससे ऑस्ट्रिया की 27000 वर्ग मील भूमि और 50 लाख जनता पर प्रसा का अधिकार हो गया। इस प्रकार इस संधि ने आस्ट्रिया के महत्व का अंत कर दिया और प्रसा को सैनिक दृष्टि से यूरोप का एक शक्तिशाली राज्य बना दिया। परंतु फिर भी उसने ऑस्ट्रिया के साथ उदारता का ही व्यवहार रखा जिससे भविष्य में फ्रांस के विरुद्ध होने वाले युद्ध में उसे मित्र के रूप में प्रयोग किया जा सके।

(3) फ्रांस प्रसा का युद्ध (1870-71ई०)

फ्रांस व प्रसा के मध्य युद्ध जर्मन एकीकरण का अंतिम सोपान था। बिस्मार्क ने कूटनीति से कम लेकर अंतरराष्ट्रीय स्थिति को अपने अनुकूल बना दिया था। उसने ऑस्ट्रिया तथा फ्रांस को अन्य यूरोपीय देशों से पृथक रखने में सफलता प्राप्त कर ली थी। दूसरी ओर नेपोलियन तृतीय भी फ्रांस के लिए गौरव व प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए लालायित था। इन परिस्थितियों में 19 जून, 1870 ई० को प्रशा और फ्रांस के मध्य युद्ध प्रारंभ हो गया।

  इस युद्ध में प्रशा की सेना 350000 और फ्रांस की सेना 81000 थी। 1 सितंबर, 1870 ई० को सीडान के युद्ध में प्रशा की सेना ने फ्रांसीसी सेना को पराजित करके नेपोलियन तृतीय को बंदी बना लिया। सीडान की पराजय का समाचार सुनकर फ्रांस की जनता ने देश में गणतंत्र की घोषणा कर दी और गृहमंत्री गेम्बेटा ने प्रशा के साथ युद्ध जारी रखा। थिस मार्केट ने कुछ शर्तों के साथ फ्रांस की समक्ष संधि का प्रस्ताव रखा किंतु फ्रांसीसियों ने एक इंच भूमि देने को भी तैयार न हुए। फल स्वरुप युद्ध चला रहा। 27 सितंबर को प्रशा की सेनाओ ने स्टासबर्ग के दुर्ग को जीत लिया और पेरिस को चारों ओर से घेर लिया। अंत में 24 जनवरी, 1871 ई को फ्रांसीसी सेनाओ ने हत्यार डाल दिए और प्रशा के साथ संधि करना स्वीकार कर लिया। 10 में 1871 ई को प्रसव फ्रांस में फ्रेंकफर्ट की संधि हो गई।

फ्रेंकफर्ट की संधि

इस संधि के अनुसार प्रशा ने फ्रांस पर 20 करोड़ पाउंड युद्ध का हर्जाना ठोक दिया और यह शर्त लगा दी कि जब तक फ्रांस हर जाने की रकम अदा नहीं कर देगा प्रसा की सेनाएं फ्रांस की मार्गों पर अधिकार बनाए रखेगी। इस संधि के अनुसार आल्सेस तथा लॉरेन प्रदेशों पर भी प्रशा का अधिकार हो गया।

इस युद्ध के परिणाम

  1. इस युद्ध में फ्रांस की प्राचीन ने इटली के एकीकरण को पूर्ण कर दिया।
  2. इस युद्ध के परिणाम स्वरुप नेपोलियन तृतीय के साम्राज्य का पतन हो गया और फ्रांस में तृतीय गणतंत्र की स्थापना हुई।
  3. इस युद्ध का लाभ उठाकर रूस के जार ने काला सागर पर अपना प्रभु स्थापित कर लिया।
  4. प्रशा ने नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण पूरा हो गया और जर्मन साम्राज्य का सम्राट कैसर विलियम प्रथम बनाया गया।
  5. इस युद्ध ने यूरोप की दीर्घकालिक शांति को भंग कर दिया और इसी युद्ध के कारण भविष्य में एक युद्ध की भूमिका तैयार हो गई।

निष्कर्ष 

फ्रांस को पराजित करके बिस्मार्क ने जर्मनी का एकीकरण पूर्ण कर लिया। 18 जनवरी 1871 ई को वर्साय के शीश महल में प्रशा के सम्राट विलियम प्रथम को महान जर्मन साम्राज्य का सम्राट घोषित किया गया। बिस्मार्क ने घोषणा करते हुए कहा—"जर्मनी का राज्य संघ अब जर्मन साम्राज्य के नाम से पुकारा जाएगा। जर्मन साम्राज्य का संविधान पहले वाला संविधान रहेगा। राजा विलियम प्रथम जर्मनी का सम्राट कहलाएगा और उसे केसर विलियम प्रथम की उपाधि प्राप्त होगी।" इस प्रकार बिस्मार्क ने जर्मनी का एकीकरण पूरा करके यूरोप के इतिहास में एक नवीन युग का सूत्रपात किया।

impo-Short questions and answers 

जर्मनी का एकीकरण कब हुआ था?

जर्मनी का एकीकरण 18 जनवरी, 1871 ई ० में हुआ था।

जर्मनी का एकीकरण किसने किया?

जर्मनी का एकीकरण बिस्मार्क के नेतृत्व में हुआ था।

जर्मनी का एकीकरण कब हुआ कैसे हुआ?

जर्मनी का एकीकरण 1871 ई० में हुआ और मुख्य इन दो कारणों से हुआ (1) प्रसा की शक्ति का उत्थान(2) बिस्मार्क की नीतइ हुआ।

बिस्मार्क द्वारा जर्मनी का एकीकरण?

बिस्मार्क द्वारा जर्मनी का एकीकरण - बिस्मार्क एक महान कूटनीतिज्ञ था। उसके मस्तिष्क में जर्मनी का एकीकरण की योजना बिल्कुल स्पष्ट थी और प्रारंभ से ही उसने अपनी योजना अनुसार कार्य करना प्रारंभ किया। 1- श्वेसविग तथा होल्सटीन की समस्या (2) ऑस्ट्रिया-प्रसा का युद्ध (1866 ई०) (3) फ्रांस प्रसा का युद्ध (1870-71ई०)

बिस्मार्क जर्मनी का चांसलर कब बना?

बिस्मार्क जर्मनी का चांसलर 1862 में बिस्मार्क को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया या बना।

जर्मनी का एकीकरण के परिणाम बताइए?

जर्मनी का एकीकरण के परिणाम - (1) इस युद्ध में फ्रांस की प्राचीन ने इटली के एकीकरण को पूर्ण कर दिया। (2) इस युद्ध के परिणाम स्वरुप नेपोलियन तृतीय के साम्राज्य का पतन हो गया और फ्रांस में तृतीय गणतंत्र की स्थापना हुई। (3) इस युद्ध का लाभ उठाकर रूस के जार ने काला सागर पर अपना प्रभु स्थापित कर लिया।

Post a Comment

और नया पुराने
Join WhatsApp