अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति, परिणाम तथा उसके आर्थिक सुधार

अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin Khilji)

अलाउद्दीन खिलजी से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्पष्ट करेंगे, जिसमें आपके बहुत से संदेह दूर होंगे, और आपको इनमें आपके कुछ सवालों के जवाब भी अच्छी तरह मिल जाएंगे, आपके जिन-जिन सवालों के जवाब आपको मिलेंगे वे सवाल यह होंगे— 

अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति, परिणाम तथा उसके आर्थिक सुधार

बाजार नियंत्रण नीति की विशेषताएं

बाजार नियंत्रण नीति की विशेषताएं : अलाउद्दीन खिलजी सल्तनत काल के शासको में अपने आर्थिक सुधारो के लिए विख्यात है। अलाउद्दीन खिलजी के बाजार नियंत्रण की प्रमुख विशेषताएं कुछ इस प्रकार थी— 

(1) वस्तुओं के मूल्य को निश्चित करना 

सुल्तान ने दैनिक जीवन की आवश्यक वस्तुओं के मूल्य निश्चित कर दिए थे। छोटी -सी-छोटी दैनिक उपभोग की वस्तुओं जैसे— सब्जी, मांस, मछली, सुई-धागा, रंग-कंघा आदि तक का मूल्य निर्धारण भी उसके द्वारा किया गया था। दुकानदारों के लिए वस्तुओं के मूल्य की सूची टांगना भी अनिवार्य कर दिया गया था, जिससे कि वह किसी भी वस्तु को निश्चित मूल्य से अधिक पर बेचकर जनता एवं सैनिकों को ठग ना सके। प्रमुख खाद्यान्नों जैसे— गेहूं, चावल, दलों आदि के भी मूल्य निश्चित कर दिए गए थे। वस्तुओं के मूल्य में परिवर्तन सुल्तान की आज्ञा के बिना नहीं किया जा सकता था। मुद्रा के रूप में उस समय जीतल का प्रचलन था। उसने गुलामी के मूल्य भी निश्चित कर दिए थे।

(2) वितरण की व्यवस्था

दिल्ली में पृथक पृथक प्रकार के बाजारों की व्यवस्था की गई थी। इन बाजारों में विभिन्न वस्तुएं मिलती थी। सभी व्यापारियों को, जो बाजार में सामान लाते थे, अपने नाम रजिस्टर में लिखवाने पढ़ते थे। बेचने वालों को उसी मात्रा में वस्तुएं दी जाती थी जितनी वस्तुओं का परमिट उन्हें मिला हुआ होता था। आम जनता को सभी वस्तुएं सस्ते मूल्य पर प्राप्त हो जाते थें। इस प्रकार उसके शासनकाल में वस्तुएं सस्ती और सरलता से उपलब्ध होती थी।

(3) वस्तुओं की पूर्ति की व्यवस्था 

वस्तुओं के मूल्य नियंत्रण के बाद उसने यह सोचा कि बाजार में प्रत्येक वस्तु इतनी मात्रा में अवश्य होनी चाहिए कि वह वस्तु लोगों को उनकी आवश्यकता के अनुसार मिल सके। अतः उसने यह आज्ञा प्रसारित कर दिया कि सरकारी व्यापारियों के अतिरिक्त कोई अन्य व्यक्ति किसानों से अनाज नहीं खरीद सकेगा। इस अनाज को नियंत्रित मूल्य पर (राशनिंग पद्धति से) बाजारों में बिकवाया जाता था। इसी प्रकार उसने दैनिक जीवन की सभी आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति करने की समुचित व्यवस्था की थी।

(4) कठोर दंड की व्यवस्था 

सुल्तान ने अपनी बाजार नीति को सफल बनाने के लिए कठोर नियमों का निर्धारण किया था। जियाउद्दीन बरनी ने कहा है, “व्यापारी लोग सर्वाधिक झूठे थे। दलाल, क्रेता और विक्रेता दोनों को ही ठगते थे। ऊंचे मूल्य पर माल बेचना व तौर में कम देना उनकी सामान्य आदत थी। इस चल को समाप्त करवाने और आदेशों का पालन करवाने के लिए सुल्तान ने कठोर दंड देने का आदेश दिया। याकूब (बाजार अधिकारी) की निर्दयता की चर्चा चारों ओर थी। वह व्यापारियों को खुलेआम कूड़े मरता था।” 

(5) योग्य कर्मचारियों की नियुक्ति 

बाजार भाव के नियंत्रण हेतु सुल्तान ने बड़े ही योग्य एवं इमानदार पद अधिकारी को नियुक्त किया। बाजार का सर्वोच्च अधिकारी ‘दीवान-ए-रियासत’ होता था। इसके नीचे विभिन्न प्रकार के बाजारों के लिए ‘शहना-ए-मंडी’ नमक अधिकारियों की नियुक्ति की गई थी। सबसे निम्न पद ‘बरीद’ होता था, जो बाजार का निरीक्षण करता था और निर्धारित मूल्य को लागू करता था।

सुल्तान की राजभवन में कुछ दास बालक होते थे, जो वैसे बदलकर बाजार में वस्तुएं खरीदने जाया करते थे। इनकी सूचनाओं बड़ी विश्वसनीय होती थी।

बाजार नियंत्रण नीति का परिणाम 

अलाउद्दीन की बाजार व्यवस्था से सुल्तान और प्रजा दोनों को ही व्यावहारिक दृष्टि से अनेक लाभ हुए। एक ओर, प्रजा अपनी आवश्यकता की वस्तुएं खरीद कर सुखपूर्वक रहने लगी। और सुल्तान के निरंकुश होते हुए भी उसकी प्रशंसा करने लगी। दूसरी और, राजकोष में धान की वृद्धि होने लगी जिसके परिणाम स्वरुप अलाउद्दीन खिलजी अपनी स्थायी एवं विशाल सेवा का समुचित प्रबंध करने में सफल हो चुका।

     लेकिन इस व्यवस्था से व्यापारी एवं दलाल असंतुष्ट रहने लगे और वह सक्रिय व्यापार के प्रति उदासीन हो गए जिससे व्यापार एवं कृषि की अवनति प्रारंभ हो गई। वास्तव में अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार लोकहित के प्रयोजन का परिणाम नहीं थे। उसका बाजार नियंत्रण केवल दिल्ली तक ही सीमित था, अन्य भागों में वस्तुएं चौगुनी भाव में बिकती थी।

अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार

अलाउद्दीन दिल्ली के सुल्तानों में सबसे अधिक योग्य शासक था। उसने राज्य की आर्थिक स्थिति सुधारने तथा व्यय की पूर्ति हेतु राजकोष में आधिकाधिक धन का एकत्र करना आवश्यक समझा, अतः उसने इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित आर्थिक सुधार किए —

(1) संपत्ति को जब्त करना

सुल्तान ने सोचा कि जिस उपाय से भी संभव हो, अमीरों, जागीरदारों, हिंदू जमीदारों, कर वसूल करने वाले अधिकारियों एवं व्यापारियों आदि से उनकी एकत्र की गई धन संपत्ति को छीनकर उसे राज्य की संपत्ति बना दिया जाए। अतः उसने आदेश दिया कि सभी अमीर व्यक्तियों से उनकी भूमि तथा दान में दी गई समस्त भूमि जप्त कर ली जाए। फलस्वरुप संपूर्ण भूमि जप्त कर ली गई, इसे लगाना मिलने पर राज्य को जो हानि होती थी, वह समाप्त हो गई। साथ ही राजकोष में नया लगान आने से धन की वृद्धि होने लगी। इस संदर्भ में यह बात स्मरणीय है कि सामान्य किसानों से भूमि नहीं ली गई थी।

(2) करों में वृद्धि 

सुल्तान ने कर वसूल करने वालों को आजा अच्छी वे अधिक सजकता से कर वसूल करें। परिणाम स्वरुप राजकोष धन से भर गया। जियाउद्दीन बरनी के अनुसार, “प्रचुर मात्रा में धन संपत्ति अधिकतर लोगों के पास शेष न रही, केवल कुछ बड़े-बड़े पदाधिकारीयों, मुल्तानियों (व्यापारियों) तथा साहूओं के पास कुछ हजार टंके रहे गए। समस्त प्रजा विद्रोह को भूलकर पेट की चिंता में लग गई।” अलाउद्दीन ने गृह-कर, खिराज, चराई-कर, करही-कर, जजिया कर, कम्स, जकात व आयात-निर्यात कर लगाकर जनसाधारण को निधन बना दिया और हिंदुओं की दशा तो बहुत ही दायनीय हो गई। 

(3) कर अधिकारियों पर नियंत्रण 

अलाउद्दीन खिलजी ने लगान और राजस्व वसूल करने के लिए नवीन अधिकारियों की नियुक्ति की। कर विभाग का प्रमुख अधिकारी ‘दीवान-ए-मुस्तखराज’ कहलाता था। इसकी अधीनता में खुत, मुकद्दम, चौधरी, कार्टुन तथा आमिल आदि कर्मचारी कर वसूल किया करते थे। कर अधिकारियों की रिश्वत और बेईमानी को रोकने के लिए उसने कठोर कर वसूल करने वाले अधिकारियों के वेतन में वृद्धि की और बेईमानी करने वाले अधिकारियों को कठोर दंड देने की व्यवस्था की।

निष्कर्ष

अलाउद्दीन खिलजी की कठोर आर्थिक व्यवस्था का दुष्परिणाम यह हुआ था कि उसके द्वारा लगाए गए भारी कारों से किसानों और निर्धन वर्ग की स्थिति अत्यंत दाहिनी हो गई। फिर भी अलाउद्दीन खिलजी ने कर अधिकारियों की बेईमानी और दुष्टताओं से जनता को राहत पहुंचाई थी।

Post a Comment

और नया पुराने
Join WhatsApp