पुनर्जागरण
पुनर्जागरण साधारणतः आधुनिक युग का प्रारंभ यूरोप के ‘पुनर्जागरण’ से माना जाता है। यह सच है कि 15वीं शताब्दी से यूरोप में जी नई धारा का प्रभाव शुरू हुआ, विशेषकर साहित्य व कला के क्षेत्र में, उस पर प्राचीन यूनान और रोम की सभ्यता की पुनर्प्रतिष्ठा एवं पूनर्मूल्यांकन का बहुत प्रभाव था। परंतु फिर भी बहुत सी बातें बिल्कुल नहीं थी, जिनका प्राचीन यूरोप से कोई सीधा संबंध नहीं था। यही नहीं यूरोप के पुनर्जागरण का संबंध 14 वीं शताब्दी से 16 वीं शताब्दी के मध्य उसे संस्कृत प्रगति से है जो प्राचीन लौकिक यूनानी और रोमन सभ्यता तथा संस्कृति से प्रभावित थी। इस दौरान यूरोप में सभी क्षेत्रों में निरंतर प्रगति हुई। रोमन कैथोलिक चर्च, सामंतवादी व्यवस्था आदि का ढांचा चरमरा गया। इस प्रकार यूरोप ने आधुनिक युग में प्रवेश किया। और इसी कल को पुनर्जागरण (संस्कृत पुनरुत्थान) कहते हैं।
पुनर्जागरण का अर्थ
पुनर्जागरण का अर्थ; पुनर्जागरण शब्द फ्रेंच भाषा के ‘रेनेसा’ शब्द से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है पुनर्जन्म। 1300 ई० के उसे समय को, जब यूरोप में साहित्य, कला तथा विज्ञान को नया स्वरूप प्राप्त हुआ, इतिहास में पुनर्जागरण के नाम से जाना जाता है। पुनर्जागरण आधुनिक युग में प्रारंभ होने वाले बौद्धिक परिवर्तनों को कहा जाता है। इससे अज्ञानता और अंधविश्वास की जंजीरों में झगड़े हुए मानव को छुटकारा प्राप्त हुआ तथा उसमें नए ज्ञान और नवीन चेतना का भी उदय हुआ।
पुनर्जागरण की विशेषताएं
पुनर्जागरण की विशेषताएं
(1) मानवतावाद
पुनर्जागरण की सबसे जो महत्वपूर्ण प्रमुख विशेषता है वह मानवतावाद थी। मानववाद का अर्थ — मानव के जीवन में रुचि लेना, मानव की समस्याओं का अध्ययन करना, मानव का आदर करना, मानव-जीवन के महत्व को स्वीकार करना तथा मानव-जीवन को सुधारने और समृद्ध बनाने का प्रयास करना। प्राचीन यूनानी साहित्य में जीवन के प्रति रुचि झलकती है, क्योंकि यूनानी लोग उसे संसार में पूर्ण दिलचस्पी रखते थे। जिसमें वह रहते थे। और पुनर्जागरण काल में परलोक की अपेक्षा लौकिक संसार को महत्व देने वाली विचारधारा को ही मानवतावाद कहा गया है। मानवतावादी विचारों ने मध्यकालीन सभ्यता एवं संस्कृति को पूर्णतया निरर्थक बताया। उन्होंने जनता को सुसंस्कृत बनाने के लिए प्राचीन यूनानी तथा रोमन साहित्य का ज्ञान आवश्यक बताया।
(2) कला का विकास
14 वीं से 16वीं शताब्दी तक जिस प्रकार साहित्यकारों ने साहित्य के विकास में अपनी रुचि प्रकट की, इस प्रकार विभिन्न कलाकारों तथा शिल्पियों ने प्राचीन काल वह ललित कला से प्रेरणा प्राप्त करके उसे नये स्वरूप में प्रस्तुत करने की ओर ध्यान दिया। कल के हर क्षेत्र जैसे — स्थापत्य कला, मूर्ति कला, चित्रकला, संगीत कला में पुरानी परंपरा को त्याग कर एक नयी और स्वतंत्र शैली का विकास हुआ।
और मध्ययुगीन स्थापत्य कला में भौतिक शैली की प्रधानता थी। परंतु आधुनिक युग के प्रारंभ में यूरोप के कलाकार नवीन आदर्श एवं प्रेरणा के लिए प्राचीन यूनानी स्थापत्य कला शैली की ओर आकर्षित हुए। पुनर्जागरण कालीन स्थापत्य कला शैली का जन्मदाता फिलिप्पो बूनेलेस्की था। फ्लोरेंस का प्रसिद्ध मेडिसिन गिरजाघर तत्कालीन स्थापत्य कला का सर्वोच्च उदाहरण। इसमें प्राचीन एवं आधुनिक कला शैली का सुंदर मिश्रित रूप देखने को मिलता है। और रोम के महान सेनापति द्वारा बनाया गया सेंट पीटर चर्च स्थापत्य कला का सुंदर नमूना है।
पुनर्जागरण काल में संगीत के क्षेत्र में भी अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। मध्ययुगीन वाद्य यंत्रों को नवीन आकृति व सुमधुर आवाज प्रदान की गई। इसके अतिरिक्त पुनर्जागरण काल में अनेक वाद्य यंत्रों का आविष्कार हुआ जिनमें वायलिन तथा पियानो प्रमुख है। अन्य कलाओं की भांति संगीत भी यूनानी रोमन तथा हिबू आदर्शों से प्रभावित हुआ। इंग्लैंड में जॉन बुक और विलियम्स उल्लेखनीय संगीतज्ञ हुए।
(3) राष्ट्रीय साहित्य का विकास
मध्य युग में जहां यूरोप में लोकभाषाओं का विकास आरंभ हुआ, वही इटली में कई महत्वपूर्ण साहित्यों की रचना हो चुकी थी। परंतु 15 वीं शताब्दी में इटली के विद्वानों द्वारा लैटिन एवं यूनानी साहित्य के प्रति अत्यधिक रुचि प्रदर्शित करने के लिए इटैलियन लोकभाषा का विकास अवरुद्ध हो गया। 16वीं शताब्दी में लोकभाषाओं मैं रचित राष्ट्रीय साहित्य की मांग उत्तरोत्तर बढ़ती गई, क्योंकि जनसाधारण वर्ग क्लिष्ट लैटिन वह यूनानी भाषाओं की अपेक्षा लोकभाषाओं में रचित साहित्य को अत्यधिक पसंद करता था। छापेखाने के आविष्कार के बाद राष्ट्रीय एवं लोक भाषाओं में रचित साहित्य, शब्दकोश एवं पत्रिकाएं प्रकाशित होने लगी। इस क्षेत्र में इटली ने समस्त यूरोप का पथ– प्रदर्शन किया। दाँते द्वारा लिखित 'Divine comedy 'राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत है। इसके अतिरिक्त बोकासियो ने भी इटैलियन साहित्य को अमरता प्रदान की । इसी प्रकार इंग्लैंड, जर्मनी, स्पेन तथा फ्रांस में भी राष्ट्रीय साहित्य का विकास होने लगा। इंग्लैंड में महाकवि चौसर, शेक्सपियर, मिल्टन, थॉमम मूर , स्पेंसर आदि विद्वानों ने राष्ट्रीय साहित्य का सृजन कर राष्ट्र की अतुलनीय सेवा की। जर्मनी में जानर यूक्लिन और मार्टिन लूथर ने लोकभाषाओं मैं साहित्य सृजन कर महत्वपूर्ण योगदान दिया। स्पेन में सर्वेंट्स ने तथा फ्रांस ने रैबेल , माउंटेजन ,रेसिन , मोलायर आदि फ्रांसीसी साहित्यकारों ने लोकभाषा में रचनाओं की और राष्ट्रीय साहित्य के विकास में अतुलनीय योगदान दिया।
(4) वैज्ञानिक अन्वेषण (scientific research)
मध्य युग में जनसाधारण वर्ग अज्ञानता और अंधविश्वास की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। परंतु पुनर्जागरणकालीन वैज्ञानिकों ने अपने अन्वेषणों द्वारा समस्त विज्ञान जगत में क्रांति उत्पन्न कर दी। मध्ययुगीन यूरोप के लोग यूनानी विद्वान टॉलेमी के खगोल विद्या संबंधी सिद्धांतों में अडिग विश्वास रखते थे। टॉलेमी का यह सिद्धांत था कि समस्त विश्व का केंद्र पृथ्वी है तथा सूर्य एवं अन्य ग्रह उसके चारों ओर परिक्रमा करते हैं। परंतु पोलैंड निवासी कॉपरनिकस ने यह सिद्ध कर दिया कि पृथ्वी एक ग्रह है, जो सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है तथा अपनी धूरी पर घूमती है। कैपलर तथा गैलीलियो ने भी कॉपरनिकस द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत का प्रबल समर्थन किया। इंग्लैंड के प्रसिद्ध विद्वान न्यूटन ने पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण शक्ति का सिद्धांत प्रतिपादित किया। जर्मनी के गुटेनबर्ग ने छापेखाने का आविष्कार किया। इसने शिक्षा के प्रसार में सहयोग दिया, जिससे जनता का बौद्धिक विकास हुआ। रोजर बेकन ने सूक्ष्मदर्शी का आविष्कार किया, जिसने अन्य वैज्ञानिक अविष्कार में सहायता की। इटली के गैलीलियो ने दूरबीन बनाई, जिससे खगोलशास्त्र के अध्ययन में सहायता मिली। पुनर्जागरण काल में चिकित्साशास्त्र के क्षेत्र में भी पर्याप्त विकास हुआ। नीदरलैंड निवासी बैलोसियस ने शरीर रचना विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया। विलियम हार्वे द्वारा प्रतिपादित रक्त प्रवाह सिद्धांत चिकित्साशास्त्र के विकास में महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। गणित के क्षेत्र में भी नवीन सिद्धांत प्रतिपादित किए गए। बंदूक के आविष्कार तथा बारूद की खोज ने अाग्नेय शस्त्रों के क्षेत्र में क्रांति ला दी।
(5) भौगोलिक खोजें (geographic searches)
पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप यूरोप के नाविकों द्वारा अनेक समुद्री यात्राएं की गई, हेलो स्वरूप अनेक नवीन मार्गों का पता चला तथा नई स्थानों की खोज हुई। आधुनिक युग की आगमन के साथ ही 'क़ुतुबनुमा' का आविष्कार हुआ, जिसने समुद्री यात्राओं को सुगम बना दिया।
इसे भी जरूर से जाने — पुनर्जागरण के कारण एवं परिणाम
मध्य युग में सामुद्रिक व्यापार पर अरबवासियों का प्रभुत्व था। अरबवासी भारत, पूर्वी द्वीपसमूह व यूरोप से व्यापार करते थे। यूरोप के लोग भी पूर्वी देशों के साथ व्यापार करना चाहते थे, किंतु 1453 ईस्वी में कुस्तुनतुनिया पर अरबों का अधिकार हो जाने के कारण यूरोप व पूर्वी देशों के मध्य स्थल मार्ग बंद हो गया। अतः पूर्वी देशों से व्यापार करने के लिए उन्हें नवीन जलमार्गों की खोज करना आवश्यक हो गया इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यूरोप के देशों के अनेक नविको ने साहसिक समुद्री यात्राएं की। इस क्षेत्र में पहला यात्री वेनिस का मार्कोपोलो था। जिसे चीन, जापान तथा पूर्वी द्वीपसमूहों की यात्रा की। पुर्तगाल के राजकुमार हेनरी ने अजोरस वह मदीरा द्वीपों की खोज और उन्हें पुर्तगाल का उपनिवेश बनाया। 1498 ई० में पुर्तगाल के नाविक बार्थलोम्यू डेज ने उत्तमाशा अन्तरीप की खोज की। 1498 ई० में पुर्तगाल के ही वास्कोडिगामा ने उत्तमाशा अन्तरीप का चक्कर काटकर भारत के कालीकट बंदरगाह में प्रवेश किया। 1492 ईस्वी में स्पेन के साहसी नाविक कोलंबस ने अमेरिका महाद्वीप की खोज की। 1519 ईस्वी में मैगलेन ने पश्चिमी यूरोप के देश की यात्रा करते हुए संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा की। 1577 ई में इंग्लैंड के नाविक फ्रांसीसी ड्रेक ने अपनी समुद्री यात्रा प्रारंभ की और वह संपूर्ण विश्व का चक्कर लगाते हुए 1580 ईस्वी में वापस इंग्लैंड पहुंचा। इंग्लैंड के ही नाविक जॉन कैबट ने न्यूफाउंडलैंड की खोज की।
इस प्रकार यूरोप में पुनर्जागरण के फलस्वरूप अनेक भौगोलिक अन्वेषण व समुद्री यात्राएं हुई। समुद्री यात्राओं के द्वारा नवीन भूभागों की खोज हुई और उन पर अधिकार करने के लिए यूरोपीय देशों में प्रतिस्पर्धा प्रारंभ हो गई, जिसने उपनिवेशवाद को जन्म दिया। उपनिवेशों की खोज एवं उन पर आधिपत्य स्थापित करने के पीछे मुख्य उद्देश्य आर्थिक था, किंतु परोक्ष रूप से धर्म प्रसार एवं राष्ट्रीय गौरव की भावना का भी महत्व था।
निष्कर्ष
इस प्रकार पुनर्जागरण के परिणाम स्वरुप यूरोप में अनेक महत्वपूर्ण तथा क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। वैज्ञानिक आविष्कारों तथा भौगोलिक खोजो के परिणाम स्वरूप यूरोपीय लोगों की ज्ञान परिधि विस्तृत हो गई मध्ययुगीन रूढ़िवादिता, अंधविश्वास, कैथोलिक, चर्च के विस्तृत अधिकार आदि का क्रमशः ह्रास होता गया। व्यापार एवं वाणिज्य की अपूर्व उन्नति हुई, आयात एवं निर्यात में उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई तथा बैंकों की स्थापना हुई इस प्रकार यूरोप के देशों ने विभिन्न क्षेत्रों में असाधारण प्रगति की और आधुनिक यूरोप का निर्माण हुआ।
एक टिप्पणी भेजें