व्यवहारवाद से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डालेंगे —
व्यवहारवाद का अर्थ एवं परिभाषा
व्यवहारवाद का अर्थ : व्यवहारवाद का विशेष मतलब होता है कि ज्ञान, तथ्य या सत्य केवल प्रैक्टिकल या व्यवहारिक अनुभवों तक ही सीमित होता है, और उन्हें अपने सम्मुख्य आध्यात्मिक या तत्त्वशास्त्रिक परिप्रेक्ष्य से बाहर रखना चाहिए। “व्यवहारवाद” एक तत्वावधानी दार्शनिक परिप्रेक्ष्य (philosophical perspective) है जिसका अर्थ होता है - दर्शनिक, धार्मिक या मानसिक तत्त्वों को प्रयोगात्मक जीवन में लागू करने का अनुसरण करना। इस दृष्टिकोण में व्यवहारवाद विचारशीलता की अध्ययन करता है और उसे अच्छी तरीके से practical जीवन में लागू करने के उपायों का पता लगाने की कोशिश करता है।
व्यवहारवाद का अर्थ भिन्न-भिन्न राजनीतिज्ञों का मत कुछ इस प्रकार है —
रॉबर्ट ए डॉल के अनुसार, “व्यवहारवादी क्रांति परंपरागत राजनीति विज्ञान की उपलब्धियां के प्रति असंतोष का परिणाम है, जिसका उद्देश्य राजनीति विज्ञान को अधिक वैज्ञानिक बनना है।” यह एक व्यापक अवधारणा है जो मनोदशा, मनोवृति, सिद्धांत, कार्य-विधि, पद्धति, दृष्टिकोण, अनुसंधान तथा सुधार आंदोलन सभी कुछ है। व्यवहारवाद मानव क्रियो से संबंधित है और समाज में मानव व्यवहार से संबंधित सामान्य नियम प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। व्यवहारवाद राजनीति विज्ञान को अनुभव मुलक विज्ञान बनाता है।
इसी दिशा में जोसेफ डनर के अनुसार, “व्यवहारवाद सामाजिक घटना का पूर्वाभिमुखीकरण है जो प्रमुख रूप से अनुभववाद, तार्किकता, प्रत्यक्षवाद और अनुशासनिक स्वार्थ से संबंध रखता है।”
व्यवहारवाद की परिभाषा : यह अध्ययन का नवीन दृष्टि कौन है। व्यवहारवाद एक ऐसा दृष्टिकोण है जिसका लक्ष्य विश्लेषण की नई इकाइयों, नई पद्धतियों, नई तकनीक, नए तथ्यों तथा एक व्यवस्थित सिद्धांत के विकास को प्राप्त करना है। व्यवहारवाद की आधारभूत मानता है कि प्राकृतिक विज्ञानों तथा समाज विज्ञानों के बीच गुणात्मक निरंतरता है। यह नई प्रवृत्ति इतनी प्रबल है कि इससे राजनीति विज्ञान के विद्वानों ने दो प्रकार के दृष्टिकोण— परंपरावादी तथा व्यवहारवादी दृष्टिकोण का प्रतिपादन किया है।
व्यवहारवाद राजनीति विज्ञान में राजनीतिक तथयों के अध्ययन तथा विश्लेषण की आधुनिक पद्धति या दृष्टिकोण है। इस पद्धति को आधुनिक उपागम भी कहा जाता है।
व्यवहारवाद के उदय के कारण
राजनीतिक चिंतन के क्षेत्र में व्यवहारवादी मान्यताओं की झलक प्लेटो, अरस्तु, मैकियावेली, जॉन लॉक, मोण्टेस्क्यू आदि विद्वानों के दर्शन में भी देखने को मिलती है। परंतु एक सिद्धांत के रूप में व्यवहारवाद 20वीं शताब्दी की देन है। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात व्यवहारवादी अध्ययन पद्धति को अपने पर अत्यधिक बल दिया जाने लगा। व्यवहारवाद के उदय तथा विकास के निम्नलिखित कारण उत्तरदायी रहे हैं—
(1) परंपरागत अध्ययन-पद्धतियों के प्रति असंतोष
व्यवहारवाद के उदय के लिए प्रमुख कारण विद्वानों में परंपरागत अध्ययन -पद्धतियों के प्रयोग के संबंध में संतोष रहा है। उनका यह विचार था कि परंपरागत अध्ययन- पद्धतियां राजनीतिक जीवन की वास्तविकताओं को अभिव्यक्त करने में असफल रही है। विद्वानों में बढ़ते असंतोष के निम्नलिखित कारण थे–
(1) विद्वानों ने यह महसूस किया की नीति निर्माण एवं उसके निर्धारण के संबंध में राजनीतिज्ञों की भूमिका की तो बहुत सराहना की गई, परंतु राजनीति विज्ञान के विद्वानों के ज्ञान, कौशल एवं अनुभव की उपेक्षा की गई थी जिससे उनमें निराशा उत्पन्न हुई।
(2) राजनीतिशास्त्र के विद्वानों को यह ज्ञात हुआ कि राजनीतिशास्त्र के अंतर्गत सैद्धांतिक पक्ष पर बल दिया जा रहा है तथा यथार्थवादी अध्ययन की अपेक्षा की जा रही है।
(3) दो महायुद्धों के मध्यांतर में फासीवादी, नाजीवादी, प्रजातिवादी एवं एकाधिकारवादी और प्रवृत्तियां के उदय, विकास एवं लोकप्रियता के कर्म में विश्वसनीय तर्क तथा निदान परंपरागत प्रवृत्ति में संभव नहीं थे।
(4) राजनीति विज्ञान के विभिन्न पहलुओं के अध्ययन में प्रयुक्त की गई परंपरागत अध्ययन पद्धतियां अधिक प्रभावित नहीं हो रही थी। दार्शनिक, संस्थागत, औपचारिक, कानूनी एवं ऐतिहासिक पद्धतियों के योगदान की सीमाओं के परिणाम स्वरूप उत्पन्न राजनीति शास्त्र की शिथिलताओं के प्रति असंतोष होना स्वाभाविक था।
(5) राजनीति शास्त्र के विद्वानों ने यह भी महसूस किया कि अन्य सामाजिक विषय प्राकृतिक विज्ञानों की अध्ययन पद्धतियां तथा तकनीको को अपनाकर नए-नए सिद्धांतों का निर्माण कर रहे हैं जबकि राजनीतिक विज्ञान इस ज्ञान से अभी तक अछूता है। अतः व्यवहारवाद के उदय तथा विकास में इस प्रकार की सोच (चिंतन) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(6) विद्वानों को यह भी अहसास हुआ कि विकसित राष्ट्रों की समस्याओं के लिए प्रयोग किए गए अध्ययन पद्धतियां तथा शोध के निष्कर्ष एशिया तथा अफ्रीका के नवोदित राष्ट्रों पर समुचित रूप से लागू नहीं किया जा सकते हैं क्योंकि उनकी समस्याएं विभिन्न प्रकार की है। इस संबंध में राजशास्त्रियों की यह धारणा रही थी कि पश्चिमी संदर्भ में निर्धारित अवधारणाओं को नवोदित राजनीतिक व्यवस्थाओं पर आरोपित किया गया तो उसके निष्कर्ष विश्वसनीय नहीं होंगे।
(2) अन्य सामाजिक विज्ञानों से प्रेरणा
जब अन्य सामाजिक विज्ञानों ने नवीन पद्धतियों, तकनीकों तथा उपकरणों का प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया तो राजनीति शास्त्र का इससे अछूता रहना संभव नहीं था। रॉबर्ट डहल ने यह विचार व्यक्त किया है कि व्यवहारवाद एक ऐसा आंदोलन है जिसका उद्देश्य राजनीतिक अध्ययन को आधुनिक मनोविज्ञान, समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में विकसित सिद्धांतों, पद्धतियों, खोजो तथा दृष्टिकोण के निकट संपर्क में लाना है।
(3)द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव
द्वितीय विश्वयुद्ध ने व्यवहारवाद को गति प्रदान की। युद्ध कालीन घटनाओं ने राजनीतिक वैज्ञानिकों के मस्तिष्क में यह विचार उत्पन्न कर दिया कि राजनीतिक जीवन की जटिलताओं को पूर्ण रूप से समझने के लिए संस्थाओं तथा उसकी संरचनाओं के अध्ययन से आगे बढ़कर इन संस्थाओं में कार्य करने वाले व्यक्तियों में व्यवहार का अध्ययन करना होगा।
(4) नवीन अध्ययन–पद्धतियों का प्रयोग
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात राजनीति के वैज्ञानिकों में परंपरागत अध्ययन पद्धतियों के विरुद्ध असंतोष ने उग्र रूप धारण कर लिया। अतः उन्होंने यह विचार बना लिया कि राजनीति शास्त्र में भी नई पद्धतियों एवं तकनीक के द्वारा मानव की राजनीतिक क्रियो का अध्ययन किया जाएगा। परीक्षण उपकरणों, सर्वेक्षण पद्धतियों, सांख्यिकीय विश्लेषणों, गणितीय प्रारूपों, निर्देशन सर्वेक्षण जैसी प्रविधियों के बढ़ते हुए प्रयोग ने राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन को वस्तुनिष्ठ बनाकर व्यवहारवाद का पोषण आसान कर दिया।
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व्यवहारवाद का अर्थ क्या है?
व्यवहारवाद का अर्थ : व्यवहारवाद का विशेष मतलब होता है कि ज्ञान, तथ्य या सत्य केवल प्रैक्टिकल या व्यवहारिक अनुभवों तक ही सीमित होता है, और उन्हें अपने सम्मुख्य आध्यात्मिक या तत्त्वशास्त्रिक परिप्रेक्ष्य से बाहर रखना चाहिए।
व्यवहारवाद की परिभाषा?
यह अध्ययन का नवीन दृष्टि कौन है। व्यवहारवाद एक ऐसा दृष्टिकोण है जिसका लक्ष्य विश्लेषण की नई इकाइयों, नई पद्धतियों, नई तकनीक, नए तथ्यों तथा एक व्यवस्थित सिद्धांत के विकास को प्राप्त करना है। व्यवहारवाद की आधारभूत मानता है कि प्राकृतिक विज्ञानों तथा समाज विज्ञानों के बीच गुणात्मक निरंतरता है।
व्यवहारवाद के उदय के कारण?
व्यवहारवाद के उदय के कारण - राजनीतिक चिंतन के क्षेत्र में व्यवहारवादी मान्यताओं की झलक प्लेटो, अरस्तु, मैकियावेली, जॉन लॉक, मोण्टेस्क्यू आदि विद्वानों के दर्शन में भी देखने को मिलती है। (1) परंपरागत अध्ययन-पद्धतियों के प्रति असंतोष (2) अन्य सामाजिक विज्ञानों से प्रेरणा (3)द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव (4) नवीन अध्ययन–पद्धतियों का प्रयोग
व्यवहारवाद के संस्थापक कौन थे?
व्यवहारवाद के संस्थापक जे० बी० वाटसन थे।
व्यवहारवाद की शुरुआत कब हुई थी?
20 वीं सदी के पहले दशक में (1913) हुईं थीं।
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