पारिस्थितिक तंत्र क्या है? परिभाषा, घटक एवं प्रकार | ecosystem

 पारिस्थितिकी (ecology)

पारिस्थितिकी तंत्र का अर्थ: जैसा कि हम जानते हैं इकोलॉजी (पारिस्थितिकी) जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत जीवों व उनके बाहरी वातावरण के बीच परस्पर संबंधों का अध्ययन किया जाता है। पारिस्थितिक तंत्र शब्द पहली बार टेन्सले द्वारा 1935 में प्रस्तावित किया गया। 

पारिस्थितिकी तंत्र की परिभाषा 

पारिस्थितिकी तंत्र, जिसे अंग्रेजी में "Ecosystem” भी कहा जाता है, वह तकनीकी तंत्रकी की एक शाखा है जो पर्यावरण संरक्षण और प्रबंधन के क्षेत्र में उपयोग होती है। इसका उद्देश्य प्रदूषण नियंत्रण, प्रदूषण की अवरुद्धि, साफ पानी और हवा की आपूर्ति, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का प्रबंधन, अद्यतनित और पर्यावरण के साथ सहयोगी तंत्रों का विकास आदि करना होता है।

पारिस्थितिक तंत्र क्या है?  परिभाषा, घटक एवं प्रकार | ecosystem

पारिस्थितिकी तंत्र के घटकों का वर्णन

एक पारितंत्र (पारिस्थितिक तंत्र ) में मुख्यतः दो घटक शामिल होते हैं-

1. ‌जैविक घटक

2. अजैविक घटक

यही जैविक तथा जैविक घटक आपस में मिलकर एक सुस्पष्ट पारितंत्र का निर्माण करते हैं।

पारितंत्र के जैविक घटक

पोषण के आधार पर पारितंत्र के जैविक घटकों को मुख्यतः तीन भागों में बांटा जाता है—

* उत्पादक

* ‌ उपभोक्ता

1. प्राथमिक उपभोक्ता, ‌‌2. द्वितीयक उपभोक्ता 

3.तृतीयक उपभोक्ता‌, 4. चतुर्थ उपभोक्ता

* अपघटक

(1) उत्पादक 

 उत्पादक मुख्य रूप से हरे पेड़- पौधे होते हैं ,जिनमें क्लोरोफिल पाया जाता है। यह प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड व पानी का उपयोग करके सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अपना भोजन तैयार करते हैं । अर्थात उत्पादक स्वयंपोषी/स्वपोषी होते हैं ,जो अपना भोजन स्वयं तैयार करते हैं । इसके अलावा यह अन्य जीवों के लिए भी भोजन का माध्यम बनते हैं । इसी कारण इन्हें उत्पादक अथवा प्राथमिक उत्पादक कहा जाता है।

(2)  उपभोक्ता 

 उपभोक्ता के अंतर्गत वे जीव-जंतु आते हैं जो अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते हैं ।यह अपने भोजन के लिए प्रत्यक्ष रूप से अन्य जीवों / पौधों पर निर्भर रहते हैं। यह उपभोक्ता शाकाहारी, मांसाहारी व सर्वाहारी भी हो सकते हैं । 

उपभोक्ता को मुख्यतः तीन श्रेणियों में बांटा जाता है— प्राथमिक उपभोक्ता ,द्वितीयक उपभोक्ता‌ तथा तृतीयक उपभोक्ता ।

1- प्राथमिक उपभोक्ता 

वे उपभोक्ता जो अपना भोजन सीधे उत्पादकों (हरे पौधों) को खाकर प्राप्त करते हैं प्राथमिक उपभोक्ता के अंतर्गत आते हैं। यह शाकाहारी होते हैं , इसमें मुख्यतः (गाय, बकरी, भैंस, चूहा ,खरगोश ,हिरण )आदि शामिल होते हैं, जो कि हरे-भरे पौधों को खा कर अपना जीवन यापन करते हैं ।

2 - द्वितीयक उपभोक्ता 

इस श्रेणी में मांसाहारी जीव शामिल होते हैं । जो कि प्राथमिक उपभोक्ताओं को खाकर अपना भोजन ग्रहण करते हैं। जैसे कि मेंढक, टिड्डे, सांप ,चूहा आदि ।

3 - तृतीयक उपभोक्ता 

इस श्रेणी के उपभोक्ता द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ताओं को खाकर अपना भोजन प्राप्त करते हैं । यह उपभोक्ता मांसाहारी और सर्वाहारी भी हो सकते हैं। जैसे— बाज ,मछलियां ,भेड़िया आदि।

कुछ खाद्य श्रृंखला में चतुर्थ श्रेणी के उपभोक्ता भी मौजूद होते हैं । ये जीव तृतीयक उपभोक्ता का शिकार करते हैं ,‌ इसके अतिरिक्त यह खाद्य श्रृंखला में सबसे शीर्ष पर मौजूद होते हैं , क्योंकि उनका शिकार कोई प्राकृतिक रूप से नहीं कर सकता । उदाहरण — मनुष्य, शेर आदि।

{ नोट — अलग-अलग खाद्य श्रृंखला के उत्पादक , उपभोक्ताओं में अंतर आ सकता है।}  जैसे कि किसी श्रृंखला में बाघ द्वितीयक , तृतीयक उपभोक्ता होता है तथा किसी श्रृंखला में बाघ चतुर्थ उपभोक्ता के रूप में आ जाता है । इसलिए यह उदाहरण खाद्य श्रृंखला के अनुसार बदलते रहते हैं।

1 - घास (उत्पादक) —बकरी (प्राथमिक‌ उपभोक्ता)—बाघ (द्वितीयक उपभोक्ता)

2‌ -‌ घास (उत्पादक) — चूहा (प्राथमिक उपभोक्ता) —लोमड़ी ( द्वितीयक उपभोक्ता) — बाघ (तृतीय उपभोक्ता)

अतः इस प्रकार स्पष्ट है कि पहले उदाहरण में बाघ द्वितीयक उपभोक्ता है परंतु दूसरे उदाहरण में बाघ तृतीयक उपभोक्ता है।

(3) अपघटक 

 इसमें मुख्य रूप से जीवाणु व कवक जैसे सूक्ष्म जीव शामिल होते हैं । जो मृत उत्पाद व उपभोक्ता पर निर्भर रहते हैं। यह मृत तथा सडें- गले पदार्थो पर पाए जाते हैं तथा मृत शरीर से जटिल कार्बनिक पदार्थ को अपघटित करके उन्हें सरल पदार्थ में तोड़ देते हैं जिनका उपयोग हरे पेड़- पौधें अपने भोजन निर्माण के लिए करते हैं।

परितंत्र के अजैविक घटक

हमारे चारों ओर पर्यावरण में मौजूद सभी निर्जीव कारक अजैविक घटक में शामिल होते हैं इसमें निम्नलिखित कारक शामिल है — हवा, खनिज ,पोषक तत्व, पानी, सूरज की रोशनी, मिट्टी, तापमान आदि। 

अजैविक घटकों को निम्नलिखित रूपों में बांटा जाता है— 

1- जलवायवीय घटक — जल,ताप, प्रकाश, वर्षा आदि ।

2-अकार्बनिक घटक — कार्बन ,नाइट्रोजन ,ऑक्सीजन आदि यह सभी अकार्बनिक पदार्थ विभिन्न चक्र के माध्यम से जैव जगत में पुनः प्रवेश कर जाते हैं।

3— कार्बनिक घटक— प्रोटीन ,वसा ,कार्बोहाइड्रेट आदि।

4— ऊर्जा — विभिन्न प्रकार की ऊर्जा, ताप- ऊर्जा, सौर- ऊर्जा, रासायनिक- ऊर्जा आदि ।

5—पदार्थ — वायु, गैस ,जल ,ऑक्सीजन ,नाइट्रोजन ,लवण, मृदा आदि शामिल है ।

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पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकार

पारितंत्र छोटे से लेकर कई गुना बढ़ा भी हो सकता है । पारितंत्र को मुख्यतः दो भाग में बांटा जाता है— (1) जलीय पारितंत्र (2) स्थलीय पारितंत्र 

1- जलीय पारितंत्र 

जलीय पारितंत्र पानी से संबंधित पारितंत्र है। इसे आगे दो भाग में विभाजित किया जाता है— समुद्री पारितंत्र तथा मीठे पानी का पारितंत्र तंत्र।
समुद्री पारितंत्र — समुद्री पारितंत्र मुख्यतः समुद्र और महासागर से संबंधित होते हैं । इनमें नमक की मात्रा अधिक होती है तथा वे अधिक जैव विविधता वाले होते हैं क्योंकि समुद्र में मीठे पानी की तुलना में अधिक जीव जंतु पाए जाते हैं तथा अलग-अलग प्रकार की प्रजातियां विकसित होती है।
‌मीठे पानी का पारितंत्र — यह भी एक प्रकार का जलीय पारितंत्र है, जिसमें मीठे पानी की तुलना में नमक की मात्रा कम होती है। इस प्रकार का पारितंत्र नदी ,झरनों, झीलों, तालाबों आदि जैसे छोटे समुद्री स्रोतों में पाया जाता है।

2- स्थलीय पारितंत्र 

स्थलीय पारितंत्र मुख्यतः भूमि से संबंधित पारितंत्र होता है इसे मुख्यतः निम्नलिखित भागों में बांटा जाता है—
1- घास के मैदान का पारिस्थितिक तंत्र
2- वृक्ष / वन‌ का पारितंत्र
3-‌‌ रेगिस्तानी पारितंत्र 
4- तथा टुंडा प्रदेशों के पारितंत्र

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