हम आज भारत विभाजन से संबंधित कुछ ऐसे महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्पष्ट करेंगे जिनकी जरूरत हर किसी को होती है, जैसे —
★ क्या भारत विभाजन अनिवार्य था?
★ was the partition of india inevitable in hindi
★ क्या विभाजन को टाला जा सकता था?
★ was the partition of india inevitable upsc
★ भारत विभाजन के उत्तरदाई कारक
क्या भारत विभाजन अनिवार्य था
(Was the Partition of 1947 inevitable)
क्या भारत विभाजन अनिवार्य था? भारतीय राजनीति में यह प्रश्न भी बड़ा महत्वपूर्ण था। कांग्रेस के साथ-साथ अन्य अल्पसंख्यक वर्ग मुस्लिम लीग के अतिरिक्त नहीं चाहते थे कि भारत का विभाजन हो। केवल मुस्लिम लीग ही भारत का विभाजन चाहती थी और उसको अपने उद्देश्य में पूर्ण सफलता प्राप्त हुई, यद्यपि उसको उसे प्रकार का पाकिस्तान तो प्राप्त नहीं हुआ जैसा कि वह चाहती थी। उसको लंगड़ा पाकिस्तान (Truncated pakistan) प्राप्त हुआ।
क्या विभाजन को टाला जा सकता था?
क्या भारत का विभाजन अनिवार्य था? क्या विभाजन को टाला जा सकता था? यह एक विवादित विषय है और इसके विभिन्न दृष्टिकोण हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषा भिन्नताओं के कारण विभाजन आवश्यक था, ताकि अलग-अलग समुदायों की आवश्यकताओं को समर्थन दिया जा सके। दूसरे हाथ, कुछ लोग मानते हैं कि विभाजन को रोका जा सकता था और विभाजन के परिणाम स्वरुप हुए संघर्षो से बचा जा सकता था। लेकिन यह सब कहने की बातें हैं उस समय जो परिस्थिति थी वे परिस्थितियों वही लोग समझ सकते हैं जो उसे समय वहां उपस्थित थे।
★ इस प्रश्न का भी उत्तर आपको इसी लेख में मिल जाएगा अगर आप से ध्यान से पढ़ते हैं तो आपको इसका उत्तर इसी के बीच में मिल जाएगा लेकिन ध्यान से पढ़ना।
उत्तरदाई कारक (responsible factors)
विभाजन के लिए कांग्रेस, मुस्लिम लीग तथा ब्रिटिश सरकार तीनों ही उत्तरदाई है। निम्न पंक्तियों से इन तीनों के उत्तरदायित्वों का वर्णन करेंगे —
(1) कांग्रेस का उत्तरदायित्व responsibility of the Congress
कांग्रेस अखंड भारत में विश्वास करती थी। वह द्विराष्ट्र को नहीं मानती थी। उसने मुस्लिम लीग कि पाकिस्तान संबंधी मांग की सदा आलोचना की और उसको कभी भी प्रश्रय प्रधान नहीं किया, किंतु कांग्रेस की इस घोषणा से कि वह देश के किसी भी भाग को भारतीय संघ में रहने के लिए बात नहीं करेगी, पाकिस्तान की मांग को प्रश्रय प्रदान किया। यदि कांग्रेस इस प्रकार की घोषणा न करती और अखंड भारत की मांग पर डटी रहती तो पाकिस्तान का बनना असंभव था। कांग्रेस के नेता गृह-युद्ध की भयनकर्ता तथा अंतरकालीन सरकार में सम्मिलित मुस्लिम नेता के प्रतिनिधियों के कार्य से घबरा गए और उन्होंने पाकिस्तान की स्थापना को स्वीकार कर लिया। मुस्लिम लीग ने तो इस घोषणा से ही अंतर कालीन सरकार में प्रवेश किया था। यदि इस समय कांग्रेस द्वारा भी जरा सी दृढ़ता का प्रदर्शन होता तो जनता इसका पूर्ण समर्थन करती और मुस्लिम लीग की सीधी कार्यवाही का तो उत्तर दिया जाता। कांग्रेस के सिद्धांत व आदर्श के वेग में बह गई। वह अपने राष्ट्रीय आदर्श से बहुत अधिक प्रभावित थी जिसका लाभ मुस्लिम लीग ने उठकर पंजाब, उत्तर-पश्चिमी सीमा-प्रांत, तथा बंगाल के हिंदुओं के साथ मानसिक व्यवहार किया और जब हिंदुओं ने मुसलमान के साथ ऐसा किया तो कांग्रेस के नेताओं ने उसको रोकने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी थी। सरदार वल्लभभाई पटेल पर भी यह आरोप लगाया जाता है कि दिल्ली के सांप्रदायिक झगड़ों में उनका ही हाथ था।
(2) अंग्रेजों का उत्तरदायित्व responsibilities of the britisher
सांप्रदायिकता का बीज बोने का पूर्ण उत्तरदायित्व अंग्रेजों पर था, जिन्होंने सदा से विभेद की नीति अपनाई। प्रारंभ में उन्होंने हिंदुओं को अपनी ओर मिलकर मुसलमान को पुगं बनाया। जब हिंदुओं ने पर्याप्त उन्नति की और उन में राष्ट्रीयता की भावना का उदय हो गया तो उन्होंने मुसलमान को अपनी ओर मिलाया। मुस्लिम लीग की स्थापना, सर सैयद के विचारों में परिवर्तन करना तथा सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व की स्थापना करना अंग्रेजों द्वारा कांग्रेस का एक प्रतिद्वंद्वी बनाने के लिए हुई। सन 1916 ई० मैं कांग्रेस और मुस्लिम लीग में जब समझौता हो गया तो अंग्रेज बड़े चिंतित हुए उन्होंने मुसलमान को अपनी ओर मिलकर सांप्रदायिक दंगे करवाए। अंत में 20 फरवरी, 1947 ई० के श्री एटली के भाषण में मुस्लिम लीग को बड़ा प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। मुस्लिम लीग अपनी मांग पर डट गई। इससे यह स्पष्ट था कि अंग्रेज और मुस्लिम लीग में गठबंधन था। अंग्रेजों की कूटनीति से तंग आकर ही कांग्रेस को पाकिस्तान की मांगस्वीकार करनी पड़ी।
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निष्कर्ष (conclusion)
इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है की परिस्थितियों से बातें होकर ही कांग्रेस ने भारत- विभाजन को स्वीकार किया था। आता ही हो स्वीकार करना होगा कि विभाजन अनिवार्य था। यदि कांग्रेस माउंटबेटन योजना द्वारा प्रस्तावित पाकिस्तान को स्वीकार नहीं करती तो भारत विभिन्न भागों में बढ़ जाता। विदेशी शासन का अंत करने के लिए यह आवश्यक था। महात्मा गांधी जी ने परिस्थितियों से वशीभूत होकर भारत विभाजन स्वीकार किया था, यद्यपि यह स्वीकार करते हुए उनकी आत्मा को बड़ी ठेस पहुंची होगी लेकिन फिर भी उन्होंने भारत - विभाजन को स्वीकार किया और एक अच्छी नीति अपनाई।
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