दलित पैंथर्स (1972) से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डालेंगे —
(1) दलित पैंथर्स की स्थापना
(2) दलित पैंथर्स की गतिविधियां
(3) दलित पैंथर संगठन के उद्देश्य
दलित पैंथर्स (1972)
भारतीय समाज दीर्घकाल से जाति प्रथा से ग्रसित हो गई। धर्म सुधार आंदोलन के सभी संतो और समाज सुधार को ने जातीय भेदभाव का खंडन किया था। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को दलितों का मसीहा कहा जाता है उन्होंने दलितों के द्वार के लिए कई कल्याणकारी कदम उठाए थे। भारतीय संविधान ने अस्पृश्यता को अवैध घोषित किया, दलितों के लिए संसद तथा विधानसभाओं में, सरकारी नौकरियों में, शिक्षा संस्थानों में उनके लिए आरक्षण तथा विशेष सुविधाएं की व्यवस्था की गई।
परंतु इतना करने पर भी दलितों का उद्धार नहीं हुआ। नेताओं तथा स्वयंसेवी संस्थाओं ने उनके द्वार के लिए विशेष प्रयत्न किए और आंदोलन भी चलाएं।
दलित पैंथर्स की स्थापना
दलित पैंथर से महाराष्ट्र में दलितों की दशा में सुधार करवाने के लिए चलाया गया एक सामाजिक आंदोलन था। इसका प्रारंभ 1972 में दलितों के युवा वर्ग ने किया था। इसका आरोप था कि स्वतंत्रता के पश्चात संवैधानिक व्यवस्थाएं होने और उनकी कल्याण की गारंटी दिए जाने के बाद भी उन पर अत्याचार हो रहे हैं, उनका शोषण हो रहा है। उनकी मांग थी कि सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने वाले, आरक्षण व्यवस्था करने वाले, उनके साथ समानता का व्यवहार किए जाने की व्यवस्था करने वाले कानूनों का प्रभाव कार्य रूप से कार्यान्वयन किया जाना चाहिए। उन्होंने कुछ तथ्यों को सामने रखते हुए जन आंदोलन चलाए—
- स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद भी दलितों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।
- दलित महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार होता था।
- आज भी व्यवहारिक रूप से अस्पृश्यता को अपनाया जाता है और उन्हें निकृष्ट कार्य को ही करने पड़ते हैं।
- आज भी गांव में दलितों की अलग बस्ती होती है।
- उनका यह भी आरोप है कि कांग्रेस ने स्वतंत्रता के पश्चात उनके कल्याण हेतु कदम न उठा कर उन्हें अपने वोट बैंक के रूप में प्रयुक्त किया है।
- उनका यह भी आरोप है कि चुनावी राजनीति में उनके दलों जैसे रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया को महत्व नहीं दिया जाता है तथा उन्हें किसी बड़े दल की शरण लेकर चुनाव लड़ना होता है।
दलित पैंथर्स की गतिविधियां
(1) महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में दलितों पर बढ़ रहे अत्याचार से लड़ना दलित पैंथर्स से की एक मुख्य गतिविधि थी। दलित पैंथर्स तथा इसके समधर्मा संगठनों ने दलितों पर हो रहे अत्याचार के मुद्दे पर लगातार विरोध कर आंदोलन चलाया। इसके परिणाम स्वरूप सरकार ने 1989 में एक व्यापक कानून बनाया। इस कानून के अंतर्गत दलितों पर अत्याचार करने वाले के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया गया। दलित पैंथर से का वृहत्तर विचारधारा आत्मक एजेंडा जाति प्रथा को समाप्त करना तथा भूमिहीन गरीब किसान शहरी औद्योगिक मजदूर और दलित सहित सारे वंचित वर्गों का एक संगठन खड़ा करना था।
(2) इस आंदोलन से पढ़े-लिखे दलित युवकों को एक मंच मिला जहां वे अपनी सृजनशीलता का उपयोग प्रतिरोध की आवाज बनाकर कर सकते थे। इस दौर में अनेक आत्मकथाएं तथा अन्य साहित्य रचनाएं प्रकाशित हुई। इन रचनाओं में दलित लेखकों ने जाति प्रथा की क्रूरता को दर्शाया।
(3) भारतीय समाज में जो अत्यधिक दबे कुचले अर्थात समाज द्वारा उपेक्षित वर्ग के लोगों का जीवन के अनुभव इन रचनाओं में पाए जाते थे। इन रचनाओं से मराठी भाषा के साहित्य में खतरनाक हिलोर उठी। साहित्य का क्षेत्र अब ज्यादा विस्तृत हुआ। उसमें समाज के विभिन्न वर्गों की नुमाइंदगी हुई और संस्कृति के धरातल पर एक टकरा हट की शुरुआत हुई। आपातकाल के बाद के दौर में दलित पैंथर्स ने चुनावी समझौते किए। उसमें कई विभाजन भी हुए और यह संगठन राजनीतिक पतन का शिकार हुआ। बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी एम्पलाइज फेडरेशन (BAMSEF) ने दलित पैंथर्स से झुकाव या गिरावट से जो हुए उत्पन्न खाली स्थान की पूर्ति की।
दलित पैंथर संगठन के उद्देश्य
देश में दलित समाज दीर्घकाल से उपेक्षित रहा है। स्वतंत्रता के बाद भी इस स्थिति में तीव्र परिवर्तन दिखाई नहीं देता है। यद्यपि संविधान में दलितों के सामाजिक आर्थिक विकास के अनेक प्रावधान किए गए हैं। पॉर्न हब महात्मा गांधी एवं डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने दलितों में चेतना जागृत करने का एक सफल प्रयास किया था। इससे प्रेरित होकर देश के युवा दलित समूह ने दलित पैंथर्स नामक एक संगठन बनाया। इस संगठन का उद्भव महाराष्ट्र में हुआ। इस दलित पैंथर्स के उद्देश्य कुछ इस प्रकार थे—
(1) दलितों की सामाजिक व आर्थिक दशा को सुधारना।
(2) जाति के आधार पर पक्षपात व अन्याय को समाप्त करना।
(3) संविधान में दलितों के विकास संबंधी प्रावधानों को लागू कराना।
(4) दलितों में अपने अधिकारों वह सम्मान के प्रति जागरूकता का विकास करना।
(5) दलितों के लिए सरकारी नौकरियां शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की व्यवस्था करना भी इनका मुख्य उद्देश्य था।
(6) दलितों में शिक्षा का प्रचार प्रसार करना।
(7) दलित पैंथर संगठन जातिवाद, भेदभाव और जातिगत उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई लड़ना। इसका मकसद है समाज में सभी लोगों के बीच समानता की स्थापना करना।
(8) दलित पैंथर संगठन का एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य दलित समाज के लोगों को शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा देना।
(9) दलित पैंथर संगठन का मुख्य उद्देश्य दलित समाज के लोगों के अधिकारों की मांग करना था। ताकि इसके तहत वे न्यायपूर्वक अधिकारों को मांगते हैं और उन्हें समर्थन करते हैं ताकि उन्हें समाज में सम्मानपूर्वक जीने में मदद मिल सके।
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दलित पैंथर संगठन का उदय किस राज्य में हुआ?
महाराष्ट्र, दलित पैंथर से महाराष्ट्र में दलितों की दशा में सुधार करवाने के लिए चलाया गया एक सामाजिक आंदोलन था।
दलित पैंथर की स्थापना कब हुई?
दलित पैंथर्स का प्रारंभ 1972 में दलितों के युवा वर्ग ने किया था।
दलित पैंथर आंदोलन का संस्थापक कौन था?
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को दलितों का मसीहा कहा जाता है उन्होंने दलितों के द्वार के लिए कई कल्याणकारी कदम उठाए थे। और इसके संस्थापक जे० वी० पवार तथा नामदेव ढसाल को भी कहा जाता है।
दलित पैंथर के उद्देश्य क्या है?
(1) दलितों की सामाजिक व आर्थिक दशा को सुधारना। (2) जाति के आधार पर पक्षपात व अन्याय को समाप्त करना। (3) दलितों में शिक्षा का प्रचार प्रसार करना। (4) संविधान में दलितों के विकास संबंधी प्रावधानों को लागू कराना।
दलित पैंथर आंदोलन क्या है?
दलित पैंथर्स (1972) भारतीय समाज दीर्घकाल से जाति प्रथा से ग्रसित हो गई। धर्म सुधार आंदोलन के सभी संतो और समाज सुधार को ने जातीय भेदभाव का खंडन किया था।परंतु इतना करने पर भी दलितों का उद्धार नहीं हुआ। नेताओं तथा स्वयंसेवी संस्थाओं ने उनके द्वार के लिए विशेष प्रयत्न किए और आंदोलन भी चलाएं।
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