कानून (Law)
कानून एक संबंधित विधि और नियमों का समूह होता है, जो समाज या संस्थाओं द्वारा निर्धारित किए जाते हैं और जिनका पालन समाज के सभी सदस्यों के लिए करना अनिवार्य होता है। ये नियम और विधि लोगों के बीच शांति, व्यवस्था और संस्थागत व्यवस्था बनाने में मदद करता है। कानून समाज के नियमित और अनुशासित चाल-ढाल की रक्षा करने में मदद करता है और साथ ही इसका उद्देश्य विविध समस्याओं का समाधान करना है।
कानून अथवा विधि के प्रमुख स्रोत
(1) रीति रिवाज अथवा परंपराएं
रीति रिवाज कानून के अत्यंत प्राचीन स्रोतों में से एक हैं। प्राचीन काल में रीति रिवाज ही कानून के स्रोत के रूप में मान्य थे। सभी इनका पालन करते थे। इनका इतना सम्मान था कि शासक भी इनकी अवहेलना नहीं कर सकता था। रीति रिवाज जब राज्य द्वारा स्वीकृत कर दिए जाते हैं तो वे कानून का रूप धारण कर लेते हैं। कॉमन लॉ रीति रिवाज पर ही आधारित है, जिसे न्यायालय भी स्वीकार करते हैं। राज्य की वैधानिक व्यवस्था में रीति-रिवाजों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मैकाइवर का कथन है,"कानून के विशाल ग्रंथ मैं राज्य केवल कुछ ही नहीं बाकी लिखता है और कहीं-कहीं एक आध पुराना वाक्य काट देता है। इस ग्रंथ के अधिकांश भागों की रचना में राज्य कभी कोई हाथ नहीं रहा है, परंतु राज्य स्वयं इस संपूर्ण ग्रंथ से मर्यादित होता है।" ब्रिटेन की तो संपूर्ण संवैधानिक व्यवस्था इन्हीं रीति-रिवाजों अथवा परंपरागत नियमों पर ही आधारित है। इसके अतिरिक्त जिन देशों में लिखित संविधान है वहां पर भी इनके चारों और अनेक प्रकार की परंपराएं उत्पन्न हो जाती हैं जो कालांतर में अभी समय अथवा कानूनों का रूप धारण कर लेती है, परंतु इस संबंध में एक उल्लेखनीय तथ्य है कि किसी भी परंपरा को कानून का स्रोत स्वीकार करने के लिए उसमें निम्नलिखित तीन बातों का होना अति आवश्यक है—
- उस प्रथा का अनुसरण समाज में पर्याप्त संख्या के लोगों द्वारा किया जाता है,
- वह प्रथा बहुत दीर्घकाल से प्रचलित रही है तथा
- वह विवेक संगत है।
इनके अभाव में कोई भी प्रथम कानून का समुचित स्रोत हो सकने की क्षमता नहीं रख सकती। कभी-कभी कोई परंपरा काफी समय से चली आ रही होती है तथा समाज का ऑडिशन जकबर उसे स्वीकार भी करता है परंतु यदि माना विवेक एवं तर्क की दृष्टि से वह अनैतिक अथवा अवांछनीय प्रतीत होने लगती है तो उसे राज्य का कानून अवैध करार कर देता है, जैसा भारत में छुआछूत तथा बाल विवाह के संबंध में हुआ। ऐसी प्रचलित राज्य के लिखित कानून द्वारा निषिद्ध हो जाने पर कानून का स्रोत नहीं बन सकती।
(2) व्यवस्थापिका
कानून का एक अन्य महत्वपूर्ण स्रोत व्यवस्थापिका है। सबसे अधिक कानून व्यवस्थापिका द्वारा ही बनाए जाते हैं। व्यवस्थापिकाओं का सबसे महत्वपूर्ण कार्य कानून निर्माण ही है। वर्तमान युग में व्यवस्थापिकाएँ मानव जीवन के सभी पक्षों से संबंधित कानूनों का निर्माण करती है। गिलक्राइस्ट ने इस संबंध में लिखा है,"व्यवस्थापन कानून का मुख्य स्रोत है और यह अन्य स्रोतों पर प्रभुसत्ता प्राप्त करता जा रहा है।
(3) धर्म तथा धार्मिक सिद्धांत
धर्म तथा धार्मिक सिद्धांत भी कानून के महत्वपूर्ण स्रोत है। प्राचीन काल में धर्म का मानव जीवन पर बहुत प्रभाव था तथा जीवन को संचालित करने के सभी नियमों के पीछे धार्मिक मान्यता का बल पाया जाता था। विल्सन के शब्दों में,"रोम का प्रारंभिक कानून शास्त्रगत धार्मिक नियमों के एक संग्रह के अतिरिक्त और कुछ नहीं था।" रीति रिवाज भी धर्म पर आधारित थे। परिणाम स्वरूप सभ्यता की उन्नति के साथ-साथ जीवन के हितकारी धार्मिक सिद्धांतों को राज्य ने कानून का रूप प्रदान कर दिया। वर्तमान समय में भी अनेक जातियों के कानून उनके धर्म के नियमों पर आधारित है। मुस्लिम कानून धार्मिक कानून ही है। मुस्लिमों के शरीयत के नियम राज्य के कानून से ऊपर होते हैं। मुसलमान उन कानून का पालन नहीं करते जो शरीयत के विरुद्ध होते हैं। इस्लामिक राष्ट्र में धार्मिक नियमों को राज्य के द्वारा लागू किया जाता है। आधुनिक समय में जो राष्ट्र धर्म सापेक्ष हैं उनके धार्मिक कानूनों को राज्य का संरक्षण प्राप्त होता है। इनका उल्लंघन करने पर अपराधियों को राज्य के कानूनों के समान ही दंड दिया जाता है। हिंदू धर्म शास्त्रों, स्मृतियों, उपनिषदों, पुराना आदि हिंदू कानून को बहुत अधिक प्रभावित किया है।
(4) वैधानिक वाद-विवाद अथवा वैज्ञानिक टीकाएँ
कानून के विकास में वैधानिक वाद विवाद तथा न्याय की पुस्तकों और टिकाओ का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। न्याय विशारदों के विचारों का कानून के निर्माण पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। कानून की व्याख्या, समालोचना, संग्रह तथा टिकाएं न्यायालयों तथा वकीलों को सहायता पहुंचाती है। मनु, याज्ञवल्क्य, लॉक, ब्लैकस्टोन आदि की रचनाएं, कानून का ही रूप रखती हैं। ये टिकाएं स्वयं कानून तो नहीं है परंतु ये किसी विशेष प्रकार के विवाद को सुलझाने हेतु निर्देशन के लिए मूलभूत सिद्धांतों का आधार प्रस्तुत करती है क्योंकि ये परम्पराओं, कानून के सिद्धांतों, धर्म, न्यायिक निर्णयों आदि के संबंध में तर्कसंगत दृष्टि से प्रस्तुत किए गए विचारों पर आधारित होती है। इन्हें न्यायिक निर्णयों अधिक प्रमाणिक एवं प्रभावशाली माना जाता है। हिंदू कानून के अंतर्गत मिताक्षरा तथा दायभाग कानून इसी कोटि में आते हैं। इंग्लैंड में कोक, ब्लेेैकस्टोन, लॉर्ड ब्राइस आदि की टिकाओ ने भी वहां के कानून को बहुत अधिक प्रभावित किया है। ये टिकाएं स्वयं नए कानून के निर्माण हेतु आधार प्रस्तुत करती है।
(5) न्यायिक निर्णय
कानूनों का एक महत्वपूर्ण स्रोत न्यायालय के निर्णय है। न्यायाधीश मुकदमों का निर्णय कानून के अनुसार करता है परंतु जब कानून स्पष्ट नहीं होता है तब न्यायाधीश उसकी व्याख्या अपने विवेक से करता है। इस व्याख्या से न्यायाधीश नए कानून का निर्माण करता है। सर्वोच्च न्यायालय के ये निर्णय भविष्य के लिए मान्य नजीर (Case Law) बन जाते हैं । सर्वोच्च न्यायालय के ये निर्णय निचले न्यायालयों के लिए मान्य होते हैं। अमेरिका के न्यायाधीश होम्स कहा था, “न्यायाधीश कानून का निर्माण करते हैं और उन्हें ऐसा करना चाहिए।” न्यायाधीशों के द्वारा संवैधानिक कानूनों की व्याख्या की जाती है। व्याख्या करते समय न्यायाधीश अर्थ विभिन्न परिस्थितियों के अनुरूप भिन्न-भिन्न निकालते हैं जिससे कानून का अर्थ एवं स्वरूप निरंतर परिवर्तित होता रहता है। इस प्रकार जहां पर किसी विवाद विशेष के संबंध में कोई निश्चित लिखित विधि नहीं होती वहां पर उसका निर्वाचन परंपरागत तथा धार्मिक प्रथाओं के अनुसार किया जाता है तथा ऐसा निर्णय भविष्य के लिए न्यायिक पूर्वानुवर्ती नियम बन जाता है।यह भी कानून का एक स्रोत है।
(6) न्याय-भावना अथवा औचित्य
जब न्यायालय के समक्ष ऐसे मामले आते हैं जिन्हें तात्कालिक कानून से सुलझाया न जा सके, तब न्यायाधीश ‘न्याय भावना’ तर्क तथा नैतिकता से निर्णय देते हैं। इस न्याय भावना से नए कानूनों का निर्माण हो जाता है। न्यायाधीशों के निर्णय तथा न्याय भावना में यह अंतर होता है कि न्यायिक निर्माण पहले से विद्यमान कानून के अनुसार दिए जाते हैं जबकि न्याय भावना में न्यायाधीश परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए स्वविवेक से निष्पक्षता के आधार पर निर्णय देता है।सर हेनरीमैन ने न्याय भावना को परिभाषित करते हुए लिखा है," यह उन नियमों का रूप है जो नागरिक कानून के साथ साथ अपना अस्तित्व रखते हैं तथा जिसकी स्थापना विशेष सिद्धांतों के आधार पर हुई है जो प्रसंगवश नागरिक कानून से श्रेष्ठतर होने का दावा रखते हैं क्योंकि इसमें निहित सिद्धांत पवित्र एवं सम्मान पूर्ण है।" न्यायाधीशों द्वारा दिए गए ऐसे निर्णय लिखित कानून के निर्माण के स्रोत बन जाते हैं।कभी- कभी ये पूर्वोदाहरण के रूप में भी विकसित होते हैं।
निष्कर्ष (conclusion)
कानून के स्रोतों की विवेचना से स्पष्ट होता है कि रीति रिवाज, धर्म, कानूनी टिकाएं, न्यायिक निर्णय, न्याय भावना एवं व्यवस्थापिका कानून के प्रमुख स्रोत है। एचपी आधुनिक काल में अधिकांश कानूनों का निर्माण व्यवस्थापिका द्वारा ही होता है, तथापि कानून के प्रारंभिक स्रोत वर्तमान में भी कानून के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं।
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