अधिकार और कर्त्तव्य में 7 मुख्य सम्बन्ध

 अधिकार और कर्त्तव्य में सम्बन्ध

प्रत्येक सभ्य समाज में व्यक्ति को राज्य द्वारा कुछ अधिकार प्रदान किए जाते हैं। अधिकार उसे समाज और राज्य द्वारा दी गई वे सुविधाएं होती हैं, जिनके अभाव में वह अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकता। अधिकारों के साथ ही राज्य और समाज व्यक्ति पर कुछ कर्तव्यों की पूर्ति का दायित्व भी डालते हैं। व्यक्ति के समाज व राज्य के हित के लिए जो कुछ भी करने के दायित्व होते हैं, वह उसके कर्तव्य कहलाते हैं। इस प्रकार जहां अधिकारों से व्यक्ति को कुछ प्राप्त होता है, वही कर्तव्यों के द्वारा उसे पर कुछ प्रतिबंध भी लगाए जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानव अधिकार और कर्तव्य एक-दूसरे के विरोधी हों, परंतु यह सत्य नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। इनका अस्तित्व एक दूसरे पर निर्भर है। अधिकार के अभाव में कर्तव्यों की और कर्तव्यों के अभाव में अधिकारों की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। यही कारण है कि वाइल्ड (wilde) की मान्यता है कि “कर्तव्यों के अभाव में यह जगत अधूरा है, क्योंकि व्यक्ति के अधिकारों से अपने कर्तव्यों के पालन की योग्य में आते हैं तो दूसरी ओर वह अपने कर्तव्यों का पालन कर दूसरों के अधिकार प्राप्ति को सुनिश्चित करता है।”

अधिकार और कर्त्तव्य में सम्बन्ध

(1) एक व्यक्ति का अधिकार दूसरे व्यक्तियों का कर्तव्य होता है

समाज में किसी व्यक्ति के अधिकार की प्राप्ति केवल तब हो सकती है, जबकि समाज के अन्य व्यक्ति अपने कर्तव्यों को पूरा करें। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति को अपने जीवन रक्षा का अधिकार केवल तब प्राप्त हो सकता है जब समाज के अन्य सदस्य किसी जीवन को न छीनने के अपने कर्तव्य को पूरा करें। यदि समाज के अन्य व्यक्ति किसी के स्वतंत्रता के उपयोग में बाधक न बनने के अपने कर्तव्य का पालन न करें तो किसी व्यक्ति को स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त नहीं हो सकता। इस प्रकार किसी व्यक्ति को अधिकार केवल तब प्राप्त हो सकते हैं,जब दूसरे व्यक्ति भी अपने कर्तव्यों को पूरा करें।

(2) व्यक्ति का अधिकार समाज और राज्य का कर्तव्य होता है

व्यक्ति को अधिकार समाज की स्वीकृति से प्राप्त होते हैं तथा वह उनका उपभोग राज्य द्वारा संरक्षण प्रदान किए जाने पर ही कर पाता है। इस स्वीकृति और संरक्षण के अभाव में व्यक्ति के अधिकार अर्थहीन हो जाते हैं। अतः व्यक्ति को अधिकार प्रदान करने के लिए यह आवश्यक है कि समाज और राज्य उसके अधिकारों को मान्यता और संरक्षण देने के अपने कर्तव्य को पूरा करें।

(3) एक व्यक्ति का अधिकार स्वयं उसका कर्तव्य होता है

समाज के प्रत्येक व्यक्ति के अधिकार स्वयं उन्हीं के कर्तव्य होते हैं। यदि व्यक्ति अधिकार प्राप्त करना चाहता है तो यह जरूरी है कि समाज के अन्य सदस्य उसके प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करें। यह तभी संभव है जब वह दूसरों के प्रति अपने कर्तव्य को पूरा करें। उदाहरणार्थ, यदि व्यक्ति विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता चाहता है तो उसे अपने इस कर्तव्य का पालन करना होगा कि वह दूसरों के किसी सी अधिकार के प्रयोग में बाधा ना डालें, अन्यथा दूसरे व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करेंगे। अतः अधिकार प्राप्त करने के लिए व्यक्ति का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह दूसरों के अधिकारों को मान्यता दें और उनके मार्ग में बाधक न बने।इस प्रकार एक व्यक्ति का अधिकार उसका स्वयं का ही कर्तव्य बन जाता है।

(4) व्यक्ति के अधिकारों से राज्य के प्रति उसके कर्तव्य निर्धारित होते हैं 

व्यक्ति को अपने अधिकार राज्य से प्राप्त होते हैं। राज्य व्यक्ति को अनेक प्रकार के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक अधिकार प्रदान करता है, जिससे व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सके। बदले में राज्य की व्यक्ति से कुछ आकांक्षाएँ होती है, जैसे —राज्य के प्रति भक्ति भाव रखना, राज्य के कानूनों का पालन करना, राज्य द्वारा लगाए गए करों का समय पर भुगतान करना, संकट के समय राज्य की सहायता आदि। यह आकांक्षाएं ही राज्य के प्रति कर्तव्य है। राज्य नागरिकों को उनके अधिकतम विकास के लिए अधिकतम सुविधाएं और अधिकार केवल तभी प्रदान कर पता है, जब नागरिक अपने राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करें।

(5) अधिकार प्राप्त होने पर ही कर्तव्य पालन संभव

कुछ राजनीतिक विचारक मानते हैं कि व्यक्ति के राज्य के प्रति केवल कर्तव्य होने चाहिए, उसे अधिकारों की आवश्यकता नहीं, परंतु यह विचार स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि यह व्यक्ति को राज्य की दया पर निर्भर बना देता है। ऐसा होने पर व्यक्ति कर्तव्य पालन करेगा भी तो केवल दंड के भय से। आधा व्यक्ति राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन खुशी और स्वेच्छा से करें, इसके लिए यह जरूरी है कि उसे राज्य से अधिकार प्राप्त हो। 

(6) संतुलित समाज के निर्माण में संबंध

एक संतुलित समाज में अधिकार और कर्तव्य एक-दूसरे के साथ समान रूप से जुड़े होते हैं। जब लोग अपने अधिकारों का सही तरीके से उपयोग करते हैं और उनके साथ ही अपने कर्तव्यों का भी पालन करते हैं, तो समाज में न्याय, समानता और सामर्थ्य का माहौल निर्मित होता है।

(7) समाज में सहयोग का संबंध

अधिकार और कर्तव्य का संतुलन बनाना समाज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। अधिकारों का उपयोग समाज में समानता और न्याय की स्थापना करने के लिए होना चाहिए, जबकि कर्तव्यों का पालन समाज में संघर्षों की दिशा में सहायक हो सकता है।

निष्कर्ष 

निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सामाजिक जीवन को सुव्यवस्थित रूप प्रदान करने के लिए अधिकार तथा कर्तव्य दोनों की आवश्यकता होती है। प्रो० लास्की के अनुसार इनमें चार संबंध है—प्रथम, "मेरा अधिकार तुम्हारा कर्तव्य है" द्वितीय, "मेरे अधिकार में यह कर्तव्य निहित है कि मैं तुम्हारा समान अधिकार को स्वीकार करू। तृतीय, "मुझे अपने अधिकारों का प्रयोग सामाजिक हित में वृद्धि करने की दृष्टि से करना चाहिए। "चतुर्थ, "क्योंकि राज्य मेरे अधिकारों को सुरक्षित रखता है तथा उनकी व्यवस्था करता है। अतः राज्य की सहायता करना मेरा कर्तव्य है।"महात्मा गांधी के शब्दों में,"कर्तव्य पालन कीजिए और अधिकार स्वत: ही आपको मिल जाएंगे।" प्रो० गोल्ड के शब्दों में,"हमारा एक भाग अधिकार अपने कर्तव्यों का पालन है।"

इस प्रकार स्पष्ट है कि अधिकार तथा कर्तव्य दोनों में घनिष्ठ संबंध है।

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