उत्तर-व्यवहारवाद (post-pragmatism)
उत्तर-व्यवहारवाद (post pragmatism) एक मनोविज्ञानिक दृष्टिकोण है, जो मानव व्यवहार और अनुभव का अध्ययन करता है। यह दृष्टिकोण मन और आत्मा की वर्तमान को नकारता है और भविष्यवादी या मानसिक प्रक्रियाओं की जगह व्यवहार के परिणामों और अनुभव को महत्व देता है। यह चिंतन का मुख्य लक्ष्य है कि मनुष्य का व्यवहार उसके पास के पर्याप्त प्रोत्साहन से प्रभावित होता है।
डेविड ईस्टन ने उत्तर - व्यवहारवाद के लक्षणो पर प्रकाश डाला है — शोध की सार्थकता अथवा प्रासंगिकता तथा क्रियानिष्ठता अथवा कर्म। डेविड ईस्टन ने उत्तर व्यवहारवाद की साथ मान्यताओं अथवा विशेषताओं की विवेचना की है, जिन्हें उसने ‘प्रासंगिकता के सिद्धांत’ की संख्या प्रदान की है। उत्तर व्यवहारवाद की प्रमुख मान्यताएं अथवा लक्षण या फिर विशेषताएं भी कह सकते हैं वह यह है—
(1) सामाजिक परिवर्तन पर बल
उत्तर-व्यवहारवादी व्यापक मूल्यों के संदर्भ में सामाजिक परिवर्तन का समर्थन करते हैं। उत्तर व्यवहारवाद इयों का मत है कि उत्तर व्यवहारवादी परिवर्तन का विरोध करते हैं क्योंकि परिवर्तन का विरोध करना व्यवहारवाद के प्राणि शास्त्र तथा तकनीक में निहित होता है। व्यवहारवादी सामाजिक प्रासंगिकता कुछ भी समझने का प्रयास नहीं करता है। उत्तर व्यवहारवादियों का यह विचार है कि व्यवहारवादी पद्धति ने एक ऐसी सामाजिक रूढ़िवादिता की विचारधारा का रूप धारण कर लिया जिसमें केवल धीमी गति से होने वाले परिवर्तन के लिए ही स्थान था।
(2) तकनीक के स्थान पर तथ्यों पर अधिक बल देना
व्यवहार वादियो ने तथ्यों अथवा समस्याओं की उपेक्षा करके तकनीकों के प्रयोग पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित किया। व्यवहार वादियों तथ्यों की बलि चढ़ा कर तकनीकों के पीछे भागते रहे। जबकि उत्तर -व्यवहारवाद इयों का यह मत है कि तथ्य तथा तकनीक दोनों का साथ-साथ उचित प्रयोग किया जाना चाहिए तथा ऐसा संभव भी है। शोध के लिए परिष्कृत उपकरणों का विकास करना अति आवश्यक है, परंतु उसी से भी महत्वपूर्ण वह है जिसके लिए इन उपकरणों को प्रयोग में लाया जा रहा है। उत्तर-व्यवहारवादयों की यह मांग है कि व्यवहारवादी समसामयिक सामाजिक समस्याओं (तथ्यों) के साथ परियोजनात्मक रूप से अपने शोध कार्य की प्रासंगिकता स्थापित करें। उत्तर- व्यवहारवाद यों का यह मत है कि शोध तकनीकों की तुलना में प्रासंगिकता की वरीयता अथवा महत्व प्रदान किया जाना चाहिए।
(3) कार्यात्मक विज्ञान
उत्तर-व्यवहारवादी इस बात पर विशेष बल देते हैं कि ज्ञान का क्रियात्मक होना अति आवश्यक है। उत्तर-व्यवहारवादी कर मिनिस्टर को विषयों के अध्ययन का आधार बनाना चाहते हैं। उत्तर-व्यवहार वादियों का ध्येय सामाजिक पुनर्निर्माण होना चाहिए तथा ज्ञान व्यवहारिक रूप से पूर्ण सार्थक होना चाहिए। जब व्यवहारवादी शोध सामाजिक समस्याओं के समाधान करने में व्यर्थ हो जाता है, तो समाज के लिए उसकी सार्थकता समाप्त हो जाती है। उत्तर-व्यवहार वादियों का मत है कि चिंतन मुख ज्ञान के स्थान पर प्रत्येक शोधकर्ता को ऐसा शोध करना चाहिए, जिसकी समसामयिक समस्याओं के समाधान करने में महत्वपूर्ण भूमिका हो।
(4) समस्या के समाधान के प्रति रुचि
उत्तर-व्यवहारवादी मानवीय समस्याओं तथा संकटों के समुचित ने निराकरण में भी रुचि प्रदर्शित करते हैं। वे नई तकनीकों तथा नए उपकरणों, मॉडल एवं विशिष्ट शब्दावली के विकास की ओर विशेष ध्यान नहीं देते हैं। व्यवहार वादियों ने जीवन की वास्तविकताओं अथवा यथार्थता से अपना संबंध विच्छेद कर लिया था। व्यवहारवाद के अमूर्त प्रत्यय तथा अवधारणाएं मानवीय समस्याओं का समाधान करने में अपने को असहाय महसूस कर रहे थे। उत्तर-व्यवहारवादी के मतानुसार राजनीति विज्ञान का औचित्य उसी स्थिति में मान्य होगा, जबकि समाज में व्याप्त विषमताओं संघर्षों एवं संकटों का समुचित समाधान किया जाए।
(5) मूल्यों की भूमिका को स्वीकार करना
व्यवहारवादी मूल्य निरपेक्ष दृष्टिकोण को अपनाने पर बल देते हैं, उत्तर-व्यवहारवादी के अनुसार कोई भी सामाजिक विज्ञान मूल्यांकन की दृष्टि से ना तो तथ्यों एवं प्रासंगिक यथार्थताओ से तटस्थ रहा है और ना रह सकता है। व्यवहार वादियों के मूल्य का बहुत अधिक महत्व है तथा वैज्ञानिकता के नाम पर राजनीति के अध्ययन से मूल्यों का निकालना अथवा दूर करना नहीं किया जा सकता है। उत्तर-व्यवहारवादी ने मूल्यों की निर्णायक भूमिका को स्वीकार किया है।
(6) बुद्धिजीवियों की सकारात्मक भूमिका
उत्तर-व्यवहारवादी कई हो विचार है कि बुद्धिजीवियों को अपनी सकारात्मक भूमिका के प्रति सजग रहना चाहिए। उनका यह दायित्व है कि वह सभ्यता के मानव मूल्यों के संरक्षण का प्रयास करें। व्यवहार वादियों का यह भी मत है कि बुद्धिजीवियों को वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण को अपनाने की चाह में सामाजिक समस्याओं की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण समाज वैज्ञानिकों को यंत्र वादी स्थिति में लाकर खड़ा कर देगा। यदि वे सामाजिक दायित्वों से उन्मुख हो जाएंगे तो समाज भी उन्हें संपूर्ण सुविधाएं प्रदान करने से इंकार कर देगा जो समाज ने उन्हें प्रदान की है, जैसे— शोध की स्वतंत्रता।
(7) व्यवसाय का राजनीतिकरण
उत्तर-व्यवहारवादीयों भी मत है कि राजनीति वैज्ञानिकों को समाज में सकारात्मक भूमिका का निर्वाह करना चाहती जिससे समाज के उद्देश्यों को एक सुव्यवस्थित दिशा प्रदान की जा सके। बताओ बुद्धिजीवियों की समुदायों शिक्षण संस्थाओं आदि को भी मानव मूल्यों की रक्षा का दायित्व निभाना चाहिए। उनके व्यवसाय के राजनीतिकरण की आवश्यकता है।
(8) अनुशासनवाद
उत्तर-व्यवहारवाद अनुशासनवादी है, जो यह सिद्ध करता है कि व्यक्ति के व्यवहार को सीखने और सुधारने के लिए सख्त नियम और शिक्षा की आवश्यकता होती है। व्यक्ति को उच्च मानको और आदर्शों के अनुसार व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
निष्कर्ष (conclusion)
स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है कि उत्तर-व्यवहारवादी ने व्यवहार वादियों की अनेक कमियों को दूर करने का प्रयास किया है। बुद्धिजीवियों से यह अपेक्षा की गई है कि वे अपने व्यवहारवादी ज्ञान के आधार पर सामाजिक समस्याओं का निराकरण करने का प्रयास करेंगे। उनकी समाज में सकारात्मक भूमिका होगी। वे सामाजिक मूल्यों को स्थापित करने का प्रयास करेंगे।
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