मिल का उपयोगितावादी सिद्धांत,‌‌ अर्थ एवं रचनाएं | मिल और बेन्थम का सिद्धान्त मे अंतर

जे.एस. मिल से संबंधित कुछ मुख्य बिंदुओं पर चर्चा करेंगे - 
मिल का उपयोगितावादी सिद्धांत,‌‌ अर्थ एवं रचनाएं | मिल और बेन्थम का सिद्धान्त मे अंतर

जॉन स्टूवर्ट मिल का जीवन परिचय

जे० एस० मिल का जीवन परिचय; जे० एस०मिल जॉन मिल का पुत्र था। उसका जन्म 20 मई 1806 ई० को लंदन में हुआ था। वह बचपन से ही बड़ी तेज बुद्धि का था। 8 वर्ष की आयु में उसने लैटिन भाषा सीख ली थी वह 12 वर्ष की कमाई में उसने दर्शन शास्त्र का अध्ययन आरंभ कर दिया था। वचन पूरा करने पर ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में चला गया। यहां भी उसने अपना लेखन कार्य जारी रखा। सरकारी पद पर होने के कारण उसे शासन अतिथियों का भी अनुभव था। जॉन स्टुअर्ट मिल का पिता बेंथम के उपयोगितावाद से बड़ा प्रभावित था। उस पर इस सिलसिले में पिता व बेंथम का प्रभाव पड़ा। बेंथम ने मिल को अपना "आध्यात्मिक पोता"कहकर पुकारा। 1866‌ - 1868 तक कुछ नहीं रेडिकल प्रतिनिधि के रूप में वेस्टामिटर का हाउस ऑफ कॉमंस में प्रतिनिधित्व किया। संसद में मुख्यतः तीन विषयों पर बोला-

(1) श्रमिकों के हितों से संबंधित बातों पर,

(2) स्टीम मताधिकार तथा

(3) आयरलैंड में भूमि सुधारों पर। 1873 इस महान विचारक की मृत्यु हो गई। 

   रचनाएं

उसकी प्रमुख रचनाएं हैं-  

(1) ऑन लिबर्टी

(2) द सिस्टम ऑफ लॉजिक

(3) कंसीडरेशन ऑन रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट

(4) प्रिंसिपल ऑफ पॉलीटिकल इकोनामी

(5) यूटिलिटेरियनिज्म 

(6) सन अनसेटिल्ड क्वश्चंस इन पॉलीटिकल इकोनामी

(7) थॉट्स ऑन पार्लियामेंट्री रिफॉर्म्स

(8) एग्जामिनेशन ऑफ सर विलियम हमिलंटस फिलॉसफी 

(9) सब्जेक्शन ऑफ वूमेन

(10) ऑटोबायोग्राफी

(11) थ्री ऐसेज ऑन रिलीजन

(12) लेटर्स। 

मिल का उपयोगितावादी सिद्धांत 

जॉन स्टुअर्ट मिल उपयोगितावाद विचारक बेंथम का शिष्य था। बेंथम के संपर्क में आकर वह कट्टर उपयोगिता वादी बन गया। उनके समय में ही आलोचकों ने बेंथम वाद की कटु आलोचना करनी प्रारंभ कर दी थी। उनकी आलोचनाओं का उत्तर देने और अपने गुरु की महिमा को कायम रखने के लिए मिल ने बेंथम के उपयोगितावाद में अनेक संशोधन किए और उसमें अनेक नए सुखवादी तत्वों का समावेश कर दिया। इस संशोधन से प्रथम कइस संशोधन से प्रथम की उपयोगितावाद का वास्तविक स्वरूप लुप्त हो गया। इतना ही नहीं, मिल ने उपयोगितावाद के स्थान पर व्यक्तिवाद पर अधिक बल दिया। इसीलिए विद्वानों ने उसे अंतिम उपयोगिता वादी विचारक और 'प्रथम व्यक्तिवादी विचारक' की संज्ञा दी है। 

मिल के उपयोगितावादी का अर्थ एवं परिभाषा 

मिल ने उपयोगितावाद के पूर्णतः भौतिकवादी दर्शन के स्थान पर उसमें कुछ सीमा तक नैतिकता का पुट दिया। उसने अपनी पुस्तक में उपयोगितावाद की परिभाषा देते हुए लिखा है,वह मत , जो कि उपयोगिता अथवा अधिकतम सुख के सिद्धांत को नैतिकता का आधार समझता है, यह मानता है कि प्रत्येक आज उसी के अनुपात में सुख की वृद्धि करता है और जो भी कार्य सुख से विपरीत दिशा में जाता है, वह गलत है। सुख का अर्थ है, आनंद की प्राप्ति और दुख का अभाव। दुख का अर्थ है, किराया कास्ट तथा आनंद का अभाव। इस सिद्धांत द्वारा स्थापित नैतिक मापदंड को अधिक स्पष्ट करने के लिए इससे अधिक कहना आवश्यक है, विशेष रूप से यह कि सुख और दुख की धारणाओं में क्या वस्तुएं सम्मिलित हैं और उनका क्या उद्देश्य है। यह एक खुला प्रश्न है, परंतु ये पूर्ण व्याख्याएं जीवन के उस सिद्धांत को प्रभावित नहीं करती, जिस पर नैतिकता का यह सिद्धान्त आधारित है कि सुख और दुख से मुक्ति ही जीवन का एकमात्र अभीष्ट लक्ष्य है तथा समस्त वांछनीय वस्तुएं, जो उपयोगितावादी योजना में भी उतनी ही है जितनी किसी अन्य योजना में, मानसूनी इसलिए है कि या तो उनमें ही सुख का निवास है अथवा वे सुख वृद्धि द्वारा दुखमोचन की समाधान है।" 

मिल द्वारा उपयोगितावाद में किए गए संशोधन अथवा परिवर्तन—

मिल ने उपयोगितावाद की रक्षा करने में उसमें कुछ ऐसे परिवर्तन किए जिससे उसके मूल रूप में परिवर्तन हो गया। वोपर पर के शब्दों में,"उपयोगितावाद कि इस दृष्टि से की जाने वाली भत्सरना की रक्षा करने की धुन में मिला इतना आगे बढ़ जाता है कि वह संपूर्ण उपयोगितावादी चिंतन को ही उलट देता है।"मिल ने निम्नलिखित संशोधन किए— 

  (1) मिल का गुणात्मक सुख 

बेंथम सुख और दुख में केवल मात्र कहीं अंतर मानता था, गुण का नहीं। परंतु मिल ने और मात्रा दोनों में अंतर को स्वीकार किया। फिर भी उसने गुणात्मक सुख अत्यधिक बल दिया और यह स्पष्ट किया कि, यह माना कि कुछ सुख अन्य सुखों की अपेक्षा अधिक वांछनीय और अधिक महत्वपूर्ण होते हैं, उपयोगिता सिद्धांत से एकदम संगति‌ रखता है। जब हम प्रत्येक वस्तु के मूल्यांकन में गुण और मात्रा दोनों का ध्यान रखते, तो सुख का मूल्यांकन मात्रा के आधार पर ही करना मूर्खता है।" 

       इस प्रकार मिल ने बेंथम की इस धारणा को कि पुष्पिन खेल उतना ही सुखदायक है, जितना कि एक कविता अस्वीकार कर दीया मिल के शब्दों में, एक संतुष्ट सूअर की अपेक्षा एक असंतुष्ट मानव होना कहीं अच्छा है, एक संतुष्ट मुर्ख की अपेक्षा एक असंतुष्ट सुकरात होना कहीं अधिक अच्छा है और यदि मूर्ख तथा सूअर का मत इसके विपरीत है तो कारण यही है कि मैं केवल अपना ही पक्ष जानते हैं। दूसरा पक्ष (सुकरात, मानव) दोनों ही पक्षों को समझता है।

(2) सुखो की मापन प्रणाली में परिवर्तन

मिल ने बेंथम के सुखवादी मापदंड का भी खंडन किया। बेंथम सुखों की मात्रा को सुखवादी मापन प्रणाली द्वारा मापना चाहता था, जबकि मिल ने यह घोषणा की कि विद्वानों के प्रमाण ही सिखों की जांच अथवा निर्णय के उचित आधार है। मिल के शब्दों में,"दो सुख प्रदान करने वाली अनुभूतियों की घनिष्ठता का निर्णय उन्हीं व्यक्ति द्वारा हो सकता है, जी जैन दोनों अनुभूतियों का ज्ञान हो।"

(3) अंतःकरण पर बल

बेंथम उपयोगितावाद के भौतिक पक्ष का पोषक था, जबकि मिल ने उसकी आंतरिक पक्ष पर विशेष बल दिया। उसने मानव अंतः करण के संबंध में लिखा है, हमारा अतः करण सुख दुख का अनुभव करता है। नैतिक तथा शुभ कार्यों से हमारे अंत:करण को शांति और सुख प्राप्त होता है, जबकि निकृष्ट और पापोन कार्यों से उसे पश्चाताप की आग में जलना पड़ता है। सुख एवं सामाजिक राजनीतिक ,धार्मिक और शारीरिक ही नहीं वरन मानसिक आत्मिक और आध्यात्मिक भी हो सकता है।"

(4) नैतिकता का समर्थन

बेंथम का अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख नामक सिद्धांत राजनीति से प्रेरित था, जबकि मिल ने उपयोगितावाद को नैतिकता पर आधारित किया। उसने सुख और दुखों की व्याख्या करते समय नैतिकता पर विशेष बल दिया है। बहुत से लिखता है,"जहां तक व्यक्तियों के अपने और दूसरों के आनंद की तुलना का प्रश्न है, उपयोगितावाद की मांग है कि व्यक्तियों को पूर्ण रूप से उसी प्रकार निष्पक्ष रहना चाहिए, जैसे कि एक निष्काम करुणाशील दर्शकों यीशु मसीह के स्वर्णिक पत्र नियम में उपयोगितावादी आचार शास्त्र की आत्मा के दर्शन होते हैं। जैसा आचरण आप दूसरों से अपने साथ कराना चाहते हैं, मैं सही आंसर दूसरों के साथ करना अपने आप में उपयोगितावादी नैतिकता का सर्वोत्कृष्ट आदर्श है।

(5) इतिहास तथा परंपराओं के महत्व को स्वीकार करना

मिल अपने उपयोगितावादी सिद्धांत में इतिहास तथा परंपराओं के महत्व को स्वीकार करता है।

(6) स्वतंत्रता उपयोगिता से अधिक महत्वपूर्ण

मिल स्वतंत्रता को प्राथमिक महत्व की वस्तु मानता है। मिल की स्वतंत्रता संबंधी यह धारणा मूल उपयोगिता वादी धारणा के विरुद्ध है।

(7) राज्य का हस्तक्षेप

बेंथम आर्थिक क्षेत्र में अहस्तक्षेप किन नीति का समर्थन करता है, परंतु मिल अहस्तक्षेप की नीति को नियंत्रित करना चाहता है।

(8) बेंथम और मिल में अन्य अंतर—

(१) बेंथम व्यक्ति को प्रधान और समाज को गौण मानता है और समाज का अस्तित्व व्यक्ति के लिए बताता है। इसके विपरीत मिल कहता है कि कर्तव्यों से ही सुख और आनंद की अनुभूति होती है।

 (२) बेंथम सार्वजनिक मतदान का समर्थन करके सभी को मताधिकार दिए जाने के पक्ष में है। इसके विपरीत मिल सीमित मतदान समर्थन करता है और केवल शिक्षा तथा संपत्ति वान लोगों को ही मताधिकार देने की बात करता है।

 (३) बेंथम संसद के दूसरे सदन के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता है, परंतु मिल ने दिसंदात्मक संसद का समर्थन किया है।

(४) बेंथम सामूहिक स्वतंत्र पर बल देता है, जबकि मिल्स व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन करता है ।

(५) बेंथम सुख अथवा के केवल बाह्य स्रोतों में ही विश्वास करता था, परंतु मिल आंतरिक स्रोतों में विश्वास करता है।

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