लोकतंत्र के गुण एवं दोष - democracy gun aur dosh

 लोकतंत्र के गुण एवं दोष  

लोकतंत्र एक प्रशासनिक और राजनीतिक प्रणाली है जिसमें सत्ता और प्राधिकरण लोगों के हाथ में होते हैं। लोकतंत्र में लोगों को स्वतंत्रता, समानता और भागीदारी का अधिकार होता है और उन्हें सरकार और नेता का चयन करने की स्वतंत्रता मिलती है। लोकतंत्र में लोगों को स्वतंत्रता, समानता और भागीदारी का अधिकार होता है और उन्हें सरकार और नेता का चयन करने की स्वतंत्रता मिलती है।जनता द्वारा चयनित नेतृत्व के अनुसार चलाया जाता है। यह एक आधारभूत संरचना पर आधारित तंत्र होता है जिसमें सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और भागीदारी का अधिकार होता है। लोकतंत्र में नागरिकों को सरकार और नेता का चयन करने की स्वतंत्रता मिलती है, जो सरकार के निर्णयों और नीतियों पर प्रभाव डालते हैं। 
लोकतंत्र के गुण एवं दोष - democracy gun aur dosh

लोकतंत्र के गुण (qualities of democracy)

लोकतंत्र एक प्रशासनिक और राजनीतिक प्रणाली है जिसमें शक्ति और प्राधिकरण लोगों के हाथ में होता है। इसे विकास, स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय और भागीदारी के संरक्षण के लिए एक उच्चतम सार्वजनिक प्रणाली के रूप में जाना जाता है। लोकतंत्र के कुछ महत्वपूर्ण गुण कुछ इस प्रकार है —

‌(1) व्यक्ति के विकास में सहायक 

लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली में प्रत्येक नागरिक को उसकी योग्यता एवं क्षमता के अनुसार कार्य करने का अवसर प्राप्त होता है। अतएव इस शासन प्रणाली में नागरिकों को अपने व्यक्तित्व का विकास करने का अच्छा एवं सुलभ अवसर प्राप्त होता है। ‌‌

(‌2) क्रांति से सुरक्षा

लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली में शासन का समस्त कार्य जनता के हाथों में होता है। अतएव जनता में असंतोष उत्पन्न होने की संभावना कम होती है,इसीलिए लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली में क्रांति का कोई भय नहीं होता है। इस संबंध में गिलक्रिस्ट का मत है "लोकप्रिय शासन सार्वजनिक सहमति का शासन है। अतः स्वभाव से ही वह क्रांतिकारी नहीं हो सकता है।

(‌3) राजनीतिक शिक्षा की व्यवस्था

लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली में नागरिकों को शासन के कार्यों में भाग लेने की स्वतंत्रता होती है। अतएव इस शासन प्रणाली में सभी नागरिकों को राजनीतिक कार्यों का प्रशिक्षण मिल जाता है। इस संबंध में बर्न का कथन है “सभी शासन शिक्षा के साधन होते हैं और सबसे अच्छी शिक्षा स्वशिक्षा है, इसीलिए सबसे अच्छा शासन स्वशासन है जिसे लोकतंत्र कहते हैं।”गैटिल ने लोकतंत्र को 'नागरिकता की शिक्षा प्रदान करने वाला स्कूल' की संज्ञा दी है।

(‌4) समानता की पोषक शासन प्रणाली

प्रजातंत्रात्मक शासन प्रणाली में सभी नागरिकों को समान समझा जाता है तथा सभी के साथ समान व्यवहार किया जाता है। रंग, जाति, धर्म तथा लिंग आदि को ध्यान में रखकर कोई भी काम नहीं किया जाता है।इस व्यवस्था में वर्ग विशेषाधिकार का अंत कर के अवसर की समानता के सिद्धांत का परिपालन किया जाता है। इसीलिए लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली में ही नागरिकों का बौद्धिक विकास संभव है। इस संबंध में लार्ड ब्राइस का मत है, “राजनीतिक अधिकारों के प्रति द्वारा मनुष्य के व्यक्तित्व का मान बढ़ता है और कर्तव्य की भावना के उच्च स्तर पर पहुंच जाता है जिसका पालन उसको राजनीतिक अधिकारों की प्राप्ति के कारण करना पड़ता है।”

(5) सामान्य इच्छा पर आधारित

लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली जनता की इच्छा पर विशेष बल देती है।इस शासन प्रणाली में सामान्य इच्छा के अनुसार ही शासन कार्य चलाया जाता है। इसलिएलोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली में किसी वर्ग विशेष के हितों का ध्यान में रखकर समस्त जनता के हितों की रक्षा की जाती है।

(6) योग्य एवं कुशल व्यक्ति का शासन

लोकतंत्र योग्य तथा कार्य कुशल व्यक्तियों की प्रतिभाओं तथा योग्यताओं का भरपूर उपयोग किया जाता है। शासन सत्ता में भाग लेने की सभी को स्वतंत्रता प्राप्त होती है परन्तु शासन व्यवस्था के लिए केवल उन्हीं व्यक्तियों का निर्वाचन होता है जो इसके योग्य होते है।

लोकतंत्र एक सर्वोत्तम शासन व्यवस्था है।

लोकतंत्र के दोष (defects of democracy)

लोकतंत्र एक महत्वपूर्ण और सर्वाधिक विकसित प्रशासनिक और राजनीतिक प्रणाली है, लेकिन इसमें कु दोष भी इसमें मौजूद हैं —

(1) समय एवं व्ययशील शासन प्रणाली

प्रजातंत्र आत्मक शासन प्रणाली अधिकांश पदों पर निर्वाचन द्वारा ही नियुक्तियां होती हैं। निर्वाचन कार्यों में धन का अत्यधिक अपव्यय होता है। अतएव प्रजातंत्रात्मक शासन प्रणाली एक व्ययशील प्रणाली है।

(2) मतों का दुरुपयोग

प्रजातंत्र आत्मक शासन प्रणाली में अल्पसंख्यकों के मत व्यर्थ हो जाते हैं और मतों का दुरुपयोग होता है।केवल एक मत अधिक प्राप्त करने वाले व्यक्ति विजई घोषित हो जाता है और शेष विपक्षी मतों का कोई भी मूल्य नहीं होता है। प्रोफेसर बार्कर ने लिखा है कि,"प्रजातंत्र मैं कार्य की बड़ी क्षति होती है और इसमें थोड़े से चतुर व्यक्ति अपने पक्ष में मतों का संग्रह बड़ी सरलता से कर लेते हैं तथा शासन करते हैं।"

(3) शासन की भ्रष्टता

लोकतंत्र के शासन का एक अन्य दोषियों होता है कि उसमें शासन भ्रष्ट हो जाता है। वस्तुत:यह स्वतंत्र शासक की इच्छा और सिफारिश के बल पर चलता है ,सार्वजनिक हित या कल्याण की दृष्टि से नहीं।

(4) लोकतंत्र केवल एक कल्पना

लोकतंत्र को केवल एक कल्पना अथवा मृग-मरीचिका की संज्ञा दी जा सकती है।यह कहना कि लोकतंत्र में जनता का शासन होता है वास्तविकता से परे की चीज है। क्योंकि साधारण जनता तो मतदाता की मात्र भूमिका निभाती रहती है जबकि सत्ता पर आधिपत्य केवल उन्हीं व्यक्तियों का होता है जिनके पास धन, बाहुबल एवं अपराधियों से सांठ-गांठ की शक्ति होती है।पैकेटों, मोस्का तथा शिल्स इस वर्ग को अभिजन वर्ग के नाम से पुकारते हैं। लोकतंत्र में तो जनता को केवल यह भ्रम रहता है कि वह ही वास्तविक शासन है। 

(5) राजनीतिक दलों की प्रतिस्पर्धा

प्रजातंत्र आत्मक शासन प्रणाली में विभिन्न राजनीतिक उद्देश्यों को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों का निर्माण किया जाता है। अतएवप्रजातंत्र में राजनीतिक दल अपने-अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए संघर्ष करते रहते हैं और लोग हितों की उपेक्षा करते हैं।

(6) अयोग्य व्यक्तियों को मान्यता

प्रजातंत्रात्मक शासन प्रणाली में योग्य योग्य सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्रदान किए जाते हैं। अतएव इसका विधान में अयोग्य व्यक्तियों को भी राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने का पूर्ण अधिकार प्राप्त हो जाता है। कुछ विद्वानों ने प्रजातंत्रात्मक शासन प्रणाली को 'अयोग्य अथवा मूर्ख व्यक्तियों का शासन कहा है। लैकी के अनुसार,“यह निर्धनतम, अनभिज्ञतम और अयोग्यता लोगों की सरकार है।”लोकतंत्र जब अपनी विकृत अवस्था में पहुंच जाता है तो यह भीड़ तंत्र में परिणत हो जाता है।इस शासन प्रणाली में योग्यता के स्थान पर संस्था को महत्व प्रदान किया जाता है। इस ओर संकेत करते हैं कि समाज में योग्य मनुष्य की तुलना में अयोग्य अथवा मूर्ख व्यक्तियों की संख्या अधिक होती है। धीरे-धीरे निर्वाचन प्रक्रिया सिद्धांतों से हटकर जाति, धर्म, सम्प्रदाय, भाषाआदि अनेक तत्वों के आधारों पर होने लगती है तथा व्यवस्था भ्रष्ट शासन तंत्र का प्रतिरूप बन जाती है।

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