गुटनिरपेक्षता (non-alignment)
गुटनिरपेक्षता की नीति का उद्भव 1961 ई० के बेलग्रेड सम्मेलन में हुआ था। इस सम्मेलन में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, मिस्र के राष्ट्रपति गामेल अब्दुल नासिर तथा युगोस्लाविया के राष्ट्रपति मार्शल टीटो ने सम्मानित रूप से गुटनिरपेक्षता की नियति का सूत्रपात किया और इस नीति में अपनी आस्था प्रकट की। इस नीति से आशय; विभिन्न देशों के गुटों को तथास्तु रहते हुए अपनी स्वतंत्र नीति को अपनाना तथा समस्त देशों की अखंडता में विश्वास प्रकट करना है। इस नीति के अंतर्गत किसी भी प्रकार के शोषण, साम्राज्यवाद, रंगभेद, युद्ध अथवा सैनिक गुरबंदी का कोई स्थान नहीं है।
गुटनिरपेक्षता नीति की असफलता के कारण
(1) सिद्धांतहीन नीति
पश्चिमी आलोचकों का कहना है कि गुटनिरपेक्षता की नीति अवसरवादी तथा सिद्धांत हीन है। यह देश आने वाली तथा पूंजीवादी देशों के साथ अवसर अनुकूल कार्य संपन्न करने में निपुण हैं। अतः यह देश दोहरी चाल चलते रहते हैं। इनका कोई निश्चित ध्येय नहीं है। यह देश अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने की गतिविधियों से नहीं चूकते हैं।
(2) गुटनिरपेक्षता की नीति में सुरक्षा का अभाव पाया जाता है
आलोचकों ने इस बात पर भी टिप्पणी की है कि गुटनरपेक्ष देश आर्थिक स्थिति सुधारने की ओर संलग्न रहते हैं। ये देश सुरक्षा को पर्याप्त नहीं मानते हैं। ऐसी दशा में यदि वे बाहरी सैनिक सहायता स्वीकार करते हैं तो उनकी गुटनिरपेक्षता धरी की धरी रह जाती है। सन 1962 में चीन से आक्रमण के समय भारत को यह विदित हो गया कि बाहरी शक्ति के समक्ष गुटनिरपेक्ष राष्ट्र मुंह ताकते रह जाती हैं। इस प्रकार बाहरी शक्ति का सामना करने के लिए बाहर से सैनिक सहायता पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। चीनी आक्रमण के समय भारत की जनता के मन में गुटनिरपेक्ष देशों के प्रति घृणा की भावना क्योंकि गुटनिरपेक्ष देश भारत की कोई सहायता नहीं कर सके। इससे यह सिद्ध होता है कि गुटनिरपेक्षता के पास सुरक्षा के संसाधनों की कमी है।
(3) अव्यावहारिक सिद्धांतों की नीति
आलोचकों के कथा अनुसार गुटनिरपेक्षता की सिद्धांत अव्यवहारिक हैं। ये व्यवहार में विफल हुए हैं। सिद्धांतों के अनुसार गुटनिरपेक्ष देशों को स्वतंत्रता की नीतियों को सुदृढ़ करना था, परंतु वे अपने दायित्व को निभाने में असफल रहे। पश्चिमी राष्ट्रों का तो यहां तक कहना है कि गुटनिरपेक्षता साम्यवाद के प्रति सहानुभूति रखती है परंतु विश्व राजनीति में उसे गुप्त रखना चाहती है।
(4) संकुचित नीति का पोशाक
विदेश नीति का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत है। इस संबंध में आलोचकों का कहना है कि गुटनिरपेक्षता का सीमित वृद्धि इतने व्यापक वृद्ध को कैसे अपने में समेट सकता है। अतः गुटनिरपेक्ष आंदोलन एक प्रकार से असफल है। घुटनों से बाहर रहकर विश्व राजनीति में क्रियाशीलता का प्रदर्शन करना अत्यधिक कठिन है। विश्व की संपूर्ण नीति गुटों के चतुर्दिक घूमती है। अतः गुटों से पृथक रहकर कोई भी राष्ट्र विकास के पक्ष पर नहीं पहुंच सकता।
(5) गुटनिरपेक्षता की नीति से अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं
आलोचकों का कहना है कि गुटनिरपेक्षता की नीति ने अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था में अभी तक कोई ठोस परिवर्तन नहीं किया है। शीत युद्ध के समय में सारा विश्व प्रमुख शिविरों में विभक्त रहा। इन शिविरों में गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेताओं के कहने में अपनी नीति में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं किया। भारत के विरोध करने के पश्चात भी अमेरिका ने कोरिया में अभियान चलाया, चीन ने तिब्बत पर अधिकार कर लिया तथा लेबनान में अमेरिकी सेनाएं प्रविष्ट हो गई। पश्चिमी एशिया में और अरब इजरायल युद्ध हुए। इस प्रकार गुटनिरपेक्षता की नीति निरर्थक सिद्ध हुई।
(6) गुटनिरपेक्ष देशों में मौलिक एकता का अभाव है
आलोचकों का कहना यह भी है कि गुटनिरपेक्ष देशों में मौलिक एकता देखने को नहीं मिलती है। क्योंकि यह राष्ट्र एक दूसरे की सहायता करने में भी असमर्थ रहे हैं। गुटनिरपेक्ष देशों में शोषण को भी बंद नहीं किया जा सकता है।
(7) बाहरी आर्थिक तथा रक्षा सहायता पर निर्भरता
गुटनिरपेक्ष देशों पर विफलता का यह भी आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने बाहरी सहायता का आवरण पूर्ण से ग्रहण कर लिया है क्योंकि वह हर प्रकार की सहायता चाहते थे, इसलिए उन्होंने एक मार्च निकालकर अपना कार्य सिद्ध करने की नीति अपना ली है।
(8) गुटनिरपेक्षता में कोई सिद्धांत नहीं है
आलोचकों का कथन है कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन कि ना तो कोई विचारधारा है और ना ही कोई सिद्धांत है। सभी सदस्य देश एक दूसरे को शंका तथा भाई की दृष्टि से देखते हैं। युद्ध या आपत्ति के साथ गुटनिरपेक्ष देश की सहायता करने से सदस्य राष्ट्रीय बचना चाहते हैं।
(9) गुटनिरपेक्षता एक दिशाहीन आन्दोलन
कुछ आलोचकों का मानना है कि विश्व के नवीन मुक्त व्यापार की नीति के अंतर्गत गुटनिरपेक्षता का आंदोलन निरर्थक सिद्ध हो रहा है। आज अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच पर सद्भावना की आवश्यकता है, अलगाववाद की नहीं। गुटनिरपेक्षता का आंदोलन इस दृष्टि से दिशाहीनता का प्रदर्शन मात्र बनकर रह गया है।
(10) राष्ट्रीय हित के स्थान पर नेतागिरी की नीति
कुछ आलोचकों का मानना है कि गुटनरपेक्षता की भावना उध्वर्गामी है, जबकि विश्व राजनीति की जड़ें अधोगामी है। ऐसी स्थिति में इस नीति के केंद्र में राष्ट्रीय हित की भावना नहीं दिखाई देती है।
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