भारत की विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत एवं विशेषताएं
देश की स्वतंत्रता प्राप्ति 1947 ई० से लेकर अब तक भारतीय विदेश नीति के जो प्रमुख सिद्धांत रहे हैं, विदेश नीति के सिद्धांत विवेचना निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत की जा सकती है—
भारतीय विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत
भारत की विदेश नीति की विशेषताएं
(1) असंलग्नता अथवा गुटनिरपेक्षता
भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएं गुटनिरपेक्षता : युद्धोंत्तर अंतरराष्ट्रीय राजनीति का सबसे प्रमुख परिणाम विश्व का दो विरोधी गुटों में विभाजित होना था। स्वतंत्रता प्राप्ति से ही भारत ने निश्चय कर लिया था कि भारत हिंदू विरोधी गुटों में से किसी में भी सम्मिलित नहीं होगा, वरन् सभी देशों के साथ मित्रता पूर्ण संबंध स्थापित करने का प्रयास करेगा। इस नीति के अनुसार भारत की एक स्वतंत्र विदेश नीति का निर्धारण किया गया। भारत की इस विदेश नीति को 'असंलग्नता' का नाम दिया गया है। गुटनिरपेक्षता का अर्थ अंतरराष्ट्रीय राजनीति में दोनों ही गुटों से अलग रहते हुए विश्व शांति, सत्य और न्याय का समर्थन करना है।
(2) साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध
साम्राज्यवादी शोषण से त्रस्त भारत ने अपनी विदेश नीति में साम्राज्यवाद के प्रत्येक रूप का कटु विरोध किया है। भारत जानता है कि इस प्रकार की प्रवृतियां विश्व शांति एवं विश्व व्यवस्था के लिए अत्यंत घातक एवं गंभीर है। इसी आधार पर भारत ने इंडोनेशिया, ट्यूनीशिया, अल्जीरिया, मोरक्को, अंगोला, दक्षिण अफ्रीका, रोड़ेशिया (जिंबाब्वे), साउथ वेस्ट अफ्रीका (नामीबिया) आदि राष्ट्रों के साम्राज्यवाद के विरुद्ध (खिलाफ) चल रहे स्वतंत्रता संग्राम में उनका समर्थन किया था।
(3) सभी राष्ट्र से मित्रता
भारत में विश्व के समस्त राष्ट्र के साथ मिलजुल कर कार्य करने एवं शांति को स्थाई बनाने के लिए असंलग्नता का मार्ग अपनाया। भारत में मित्रता के संबंधों को सुदृढ़ बनाया एवं अन्य राष्ट्र को भी इस आदर्श की ओर चलने के लिए प्रेरित किया। 1984 ईस्वी में इसी उद्देश्य से मित्र अफ्रीकी एशियाई देशों का दिल्ली में सम्मेलन किया गया। इसके उपरांत बेलग्रेड सम्मेलन (1989 ई०),जकार्ता शिखर सम्मेलन (1942ई०) तथा कार्टाजेना शिखर सम्मेलन (1995ई०) में भी सभी राष्ट्रों के मध्य सौहार्दपूर्ण संबंधों को विकसित करने पर बल दिया गया।
सभी राष्ट्रों से मित्रता पर आधारित भारतीय विदेश नीति के इस सिद्धांत का अनुसरण करते हुए वर्ष 1997 में गुजराल सरकार को अनेक महत्वपूर्ण सफलताएं प्राप्त हुई। इसका श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री तथा अनेक बार सफल विदेश मंत्री के रूप में प्रसिद्ध इंद्र कुमार गुजराल को दिया जाना चाहिए । उन्होंने भारत के पड़ोसी देशों—चीन, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश के साथ मधुर संबंध बनाने की दिशा में उल्लेखनीय प्रयास किया। उनके प्रयासों के फलस्वरूप चीन के संबंधों का सुधार होना भारतीय विदेश नीति का सकारात्मक पहलू रहा। अमेरिका द्वारा भारत के प्रति अपनी विदेश नीति में सकारात्मक परिवर्तन करना वर्ष 1997 ई० की उपलब्धि रही। वर्तमान में भी भारत के सभी राष्ट्र से महत्वपूर्ण संबंध है।
(4) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और पंचशील
अपने कूटनीतिक संबंधों के संचालन में भारत ने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को विशेष महत्व दिया। इस परंपरा ने आगे चलकर विश्व राजनीति में 'देतान्त'(तनाव शैथिल्य) की प्रक्रिया का विकास करने में सहायता प्रदान की। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को सामान्य रूप से और भारतीय विदेश नीति को विशेष रूप से नेहरू की मुख्य देन पंचशील के पांच सिद्धांत व के संबंध में थी। इन सिद्धांतों के अंतर्गत यह स्वीकार किया गया कि भारत अपनी विदेश नीति को शांतिपूर्ण सह- अस्तित्व के सिद्धांत पर आधारित करेगा, दूसरे देशों की संप्रभुता का सम्मान करेगा और किसी देश के साथ हुए विवाद दिव्पक्षीय वार्ता के द्वारा शांतिपूर्ण वातावरण में सुलझाने का प्रयास करेगा।
भारत की विदेश नीति का प्रमुख आदर्श पंचशील रहा है। जून 1994 ई० मैं पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। जून 1955 ई० में बाण्डुंग सम्मेलन (इण्डोनेशिया) एशिया और अफ्रीका के 29 देशों ने इसे स्वीकार किया था। पंचशील के पांच सिद्धांत इस प्रकार है—
- सभी (समस्त) राष्ट्र यानि सारे देश एक दूसरे की संप्रभुता तथा अखंडता (खंडित न होनेवाला) का सम्मान करेंगे।
- कोई भी राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण ना करें तथा शांतिपूर्ण तरीकों से पारस्परिक विवादों का समाधान करें।
- कोई भी राष्ट्र एक-दूसरे राष्ट्र के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करें। अर्थात किसी के भी घरेलू मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना।
- सभी राष्ट्र पारस्परिक समानता तथा पारस्परिक हितों में अभिवृद्धि के लिए प्रयत्नशील रहे।
- सभी राष्ट्र शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की भावना के साथ अर्थात् मिलजुल कर शांति पूर्वक और परस्पर महत्वपूर्ण संबंध कायम रखें।
(5) विश्व शांति और नि: शस्त्रीकरण का समर्थन
भारत निरंतर विश्व शांति का समर्थन करता रहा है। इस कारण भारत ने हमेशा से ही नि: शस्त्रीकरण की प्रक्रिया का समर्थन किया है। भारत का विचार रहा है कि विश्व शांति तब ही स्थापित की जा सकती है और आतंक का वातावरण उत्पन्न करने वाली शास्त्रों की दौड़ से दूर रह जाए और सभी राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र के प्रतिज्ञा पत्र का पूर्ण ईमानदारी एवं सच्चाई से पालन करें। भारत में अनेक बार अपने यहां नि: शस्त्रीकरण सम्मेलन आयोजित किए हैं।
(6) संयुक्त राष्ट्र के साथ सहयोग
प्रारंभ से ही भारत ने संयुक्त राष्ट्र के साथ सहयोग किया है। इसके महत्व के विषय में पंडित नेहरू ने कहा था,"हम संयुक्त राष्ट्र के बिना आधुनिक विश्व की कल्पना नहीं कर सकते।"भारत में सदैव ही विश्व हितों को प्रमुखता दी है। कोरिया, हिंदचीन, साइप्रस एवं कांगो की समस्याओं के समाधान में भारत ने अपनी रूचि दिखाई थी और संयुक्त राष्ट्र के आदेश पर भारत ने यहां अपनी सीमाएं भेजकर शांति स्थापना में सहयोग दिया था।
(7) जातीय भेदभाव का विरोध
भारत ही एक ऐसा राष्ट्र है, जिसने संयुक्त राष्ट्र में जातीयता एवं रंगभेद की नीति का सबसे प्रबल विरोध किया है। जातीय भेदभाव के औचित्य पर भारत के द्वारा इतनी दृढ़ एवं शक्तिशाली प्रतिक्रिया भारत की गुटनिरपेक्षता (राज्यो का समूह जो औपचारिक रूप से किसी के विरुद्ध नहीं हो) की नीति के कारण सफल हो सकी है।
(8) विदेशियों से बिना किसी शर्त के आर्थिक सहायता प्राप्त करना
भारत में अपने आर्थिक तथा औद्योगिक विकास के लिए पर्याप्त मात्रा में विदेशी पूंजी प्राप्त की है। इस संबंध में विशेष बात यह है कि भारत ने विदेशियों से बिना किसी शर्त के विश्व के दोनों गुटों से आर्थिक सहायता प्राप्त।
महत्वपूर्ण अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर
भारतीय विदेश नीति का अर्थ क्या है?
भारतीय विदेश नीति का अर्थ यह है कि भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति, अंतर्राष्ट्रीय शांति, उद्देश्य और व्यवस्थाओं को समय-समय पर उनका मूल्यांकन करने के तरीके और उन्नति की दिशाएं को आगे बढ़ाना। यह नीति भारत की विदेश परिस्थितियों एवं विदेशी शास्त्रों के साथ संबंधों और अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रबंधन के लिए निर्धारित दिशाएं एवं लक्ष्यों को संचालित करती है।
भारतीय विदेश नीति क्या है?
भारत को एक ऐसे राष्ट्र बनाना, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय शांति, साम्राज्यवाद विरोधी, रंगभेद का विरोधी जैसे तत्व शामिल हो।
भारतीय विदेश नीति कब लागू की गई?
भारतीय विदेश नीति वर्ष 1947 में लागू की गई थी। यह नीति भारत के विदेशी संबंधों और राष्ट्रीय सुरक्षा को मार्गदर्शित करने के लिए तैयार की गई थी।
भारतीय विदेश नीति की विशेषताएं?
भारतीय विदेश नीति की विशेषताएं या सिद्धांत - (1) असंलग्नता अथवा गुटनिरपेक्षता (2) साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध (3) सभी राष्ट्र से मित्रता (4) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और पंचशील (5) विश्व शांति और नि: शस्त्रीकरण का समर्थन (6) संयुक्त राष्ट्र के साथ सहयोग (7) जातीय भेदभाव का विरोध (8) विदेशियों से बिना किसी शर्त के आर्थिक सहायता प्राप्त करना।
भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएं गुटनिरपेक्षता है क्या?
भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएं गुटनिरपेक्षता : युद्धोंत्तर अंतरराष्ट्रीय राजनीति का सबसे प्रमुख परिणाम विश्व का दो विरोधी गुटों में विभाजित होना था। स्वतंत्रता प्राप्ति से ही भारत ने निश्चय कर लिया था कि भारत हिंदू विरोधी गुटों में से किसी में भी सम्मिलित नहीं होगा, वरन् सभी देशों के साथ मित्रता पूर्ण संबंध स्थापित करने का प्रयास करेगा।
भारतीय विदेश नीति के कोई 2 सिद्धांत बताइए?
(1) असंलग्नता अथवा गुटनिरपेक्षता, (4) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और पंचशील
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