शॉक थेरेपी क्या है? अर्थ तथा परिणाम - Shock therapy

शॉक थेरेपी (shok therepi) 1990 से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण टापिक पर प्रकाश डालेंगे - Shock therapy kya hai Political Science in Hindi

शॉक थेरेपी क्या है? अर्थ तथा परिणाम - Shock therapy

शॉक थेरेपी (shok therepi)

शॉक therapy का तात्पर्य; शॉक थेरेपी का तात्पर्य (अर्थ) आघात या चोट पहुंचाकर उपचार अथवा इलाज करना है। सोवियत संघ के पतन के बाद रूस, पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया के देशों में साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर के लिए एक विशेष मॉडल अपनाया गया विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा। जिसमें राज्य की संपदा का निजीकरण और व्यवसायीकरण स्वामित्व के ढांचे को अपनाया गया। पूंजीकरण पद्धति से कृषि और मुक्त व्यापार को पूरी तरह से अपनाना था। जो कि सामने वादी व्यवस्था पर धीरे-धीरे किया जाना चाहिए था। लेकिन एकदम से ही सभी प्रकार के बदलाव  को लोगों पर लाद कर उन्हें आघात (पहुंचाना) देना उचित नहीं था। 

शॉक थेरेपी क्या है

सोवियत संघ के पतन (1991) के बाद रूस, पूर्वी यूरोप तथा मध्य एशिया के देशों में साम्यवादी से पूंजीवादी की ओर संक्रमण के लिए एक विशेष मोडल अपनाया गया, जिसे शॉक थेरेपी (आघात पहुंचा कर उपचार करना) कहा जाता है। विश्व बैंक (WB) अंतरराष्ट्रीय मुद्रा (IMF) कोष द्वारा इस प्रकार के मॉडल को अपनाया गया।

  साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण (की‌ ओर बढ़ना) के लिए यह बेहतर तरीका नहीं था, क्योंकि पूंजीवाद (एक आर्थिक व्यवस्था है)  सुधार तुरंत किए जाने की अपेक्षा धीरे-धीरे किए जाने थे। एकदम से ही सभी प्रकार के परिवर्तनों को लोगों पर लाद कर उन्हें आघात (पहुचाना) देना उचित नहीं था।

शॉक थेरेपी के परिणाम (shock therapy ke parinam)

(1) वर्गीय अथवा आर्थिक भिन्नता 

रूस में अमीरी और गरीबी की परिस्थिति का उद्भव होना। शॉक थेरेपी से रूस में खेती और उद्योगों में नीजीकरण से आर्थिक विसंपदाए और अधिक बढ़ गई। और नई आर्थिक व्यवस्था ने रूस को अमीरों और गरीबों के बीच बांट दिया। भारत और अन्य दूसरे देशों की तरह रूस ने इतना बड़ा मध्यमवर्ग अभी नहीं था जो वहां की राजनीति को प्रभावित कर सके तो इससे नीचे की व्यवस्था से जो पूंजीवाद से संबंधित थे वो अमीर होते चले गए, और एक तरफ अमीरी और गरीबी की परिस्थिति बन गई। 

(2) सामाजिक सुरक्षा का विखण्डन 

राज्य संपदा के निजी करण के पश्चात महंगाई का बढ़ना और गरीबों की दयनीय दशा। सोवियत संघ पहला ऐसा देश था जो अपने यहां के नागरिकों को काम कार्यकारिणी की राइट्स टू वर्क जिसने दिया था नागरिकों को बुढापे और बीमारी की स्थिति में सरकारी सहायता पाने का अधिकार था। गरीबों को नि:शुल्क या मुफ्त में उनके इलाज के लिए सुविधाएं उपलब्ध थी, लेकिन सामाजिक सुरक्षा का घेरा टूट चुका था, नीजीकरण के कारण। और स्वास्थ्य सेवाएं एकदम ठप या स्थिर हो गई थी। जिनके पास धन  था उन्हें सारी सुविधाएं उपलब्ध थी और सबसे जो खराब स्थिति थी वह निर्धनो की थी। 

(3) आर्थिक संकट

रूस का राज्य नियंत्रित औद्योगिक ढांचा पूरी तरह से कमजोर हो गया था। जिससे अर्थव्यवस्था में गिरावट आ गई। 90% उद्योगों को निजी हाथों अथवा कंपनियों को बेच दिया गया जिससे इतिहास की सबसे बड़ी ‘गैराज सेल’ के नाम से जाना जाता है। और इस तरह से टिकट सामूहिक जो कृषि फार्म थे उनको नीचे फॉर्म में बदला गया और सरकारी जो कल कारखाने थे उनको भी निजी क्षेत्र में लाया गया और इस तरह से कोई आसान काम नहीं था इसीलिए ‘वोरिस ऐल्तसिल’ का कार्यकाल बहुत ही संकट पूर्ण का बना रहा राष्ट्रपति वोरिस ऐल्तसिल और अन्य अधिकारी थे। उनके संबंध थे सरकारी कल कारखानों को सस्ते दाम पर खरीद लिया और इस तरह से कल घर पर है, जो कल कारखाने थे इनकी बिक्री कीमती समय बहुत कम थी इसीलिए इस इतिहास में सबसे बड़ी गैराज सैल का नाम दिया गया। क्योंकि जो सस्ते दामों पर संपत्ति थी उस को बेचा दिया गया, इसलिए इसको इतिहास में सबसे बड़े गैराज सेल के नाम से जाना जाता है। 

(4) रूसी मुद्रा में गिरावट 

रूस की मुद्रा रूबल के मूल्य में भारी गिरावट आई, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ गई। रूस में ऐसे लोगों की कमी थी जो निजी कंपनियों को बेहतर तरीके से चला सके और उनके पास उस तरह की कोई प्रबंध किए निपूर्णता जिस कारण नतीजा यह निकला कि मुद्रास्फीति इतनी बड़ी कि रूसी मुद्रा रूबल का मूल्य काफी नीचे आ गया और सन् 1992 से लेकर सन् 2000 तक रूस पर 160 अरब का विदेशी खर्च कर गया। राष्ट्रपति वोरिस ऐल्तसिल बार-बार अपने प्रधानमंत्री बदलते रहे परंतु अर्थव्यवस्था सुधरी नहीं, पुराना औद्योगिक ढांच पुट चुका था। पर उसके स्थान पर एक नया अर्थव्यवस्था प्रकट नहीं हुई। मजदूरों और सरकारी कर्मचारियों को समय पर तनख्वाह या वेतन ना मिलने के कारण इन लोगों का प्रदर्शन जारी हो गया। “मुद्रास्फीति - मुद्रास्फीति उसे कहते हैं, जब मूल्य बढ़ जाए मांग बढ़ जाए परंतु उसकी पूर्ति ना हो।”

(5) संसद का कमजोर पड़ जाना 

लोकतांत्रिक संस्थाओं के निर्माण सही तरीके से नहीं किया गया। संविधान हड़बड़ी से तैयार किया गया था। राष्ट्रीय पति को कार्यपालिका प्रमुख बनाया गया और उसके में लगभग हर संभव शक्ति थमा दी गई। फल स्वरुप संसद कमजोर पड़ गई। 

(6) ज्यादातर देशों की अर्थव्यवस्था का बिगड़ना 

अधिकांश देशों की आर्थिक व्यवस्था लगभग 10 साल बाद यानी सन् 2000 से खड़ी होना शुरू हुई। अर्थव्यवस्था का पुनर्जीवन करने का कारण था खनिज तेल, प्राकृतिक गैस, और धातु जैसी प्राकृतिक संसाधनों का निर्यात। और इस देश की अर्थव्यवस्था इस वजह से खड़ी हो पाई क्योंकि यहां लोग प्राकृतिक धातुओं का निर्यात करते थे। 

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शॉक थेरेपी क्या है? Shock therapy kya hai Political Science in Hindi.

शॉक थेरेपी का तात्पर्य (अर्थ) आघात या चोट पहुंचाकर उपचार अथवा इलाज करना है। सोवियत संघ के पतन के बाद रूस, पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया के देशों में साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर के लिए एक विशेष मॉडल अपनाया गया विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा।

गराज सेल क्या है?

रूस का राज्य नियंत्रित औद्योगिक ढांचा पूरी तरह से कमजोर हो गया था। जिससे अर्थव्यवस्था में गिरावट आ गई। 90% उद्योगों को निजी हाथों अथवा कंपनियों को बेच दिया गया जिससे इतिहास की सबसे बड़ी ‘गैराज सेल’ के नाम से जाना जाता है।

शॉक थेरेपी के परिणाम क्या हैं?

शॉक थेरेपी के परिणाम (Consequences of shock therapy) (1) वर्गीय अथवा आर्थिक भिन्नता (2) सामाजिक सुरक्षा का विखण्डन (3) आर्थिक संकट (4) रूसी मुद्रा में गिरावट (5) संसद का कमजोर पड़ जाना (6) ज्यादातर देशों की अर्थव्यवस्था का बिगड़ना

शॉक थेरेपी कब अपनाई गई?

शॉक थेरेपी 1990 ई० में अपनाई गई।

शॉक थेरेपी मॉडल किसके द्वारा निर्देशित था?

पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया के देशों में साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर के लिए एक विशेष मॉडल अपनाया गया विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा।

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