मिल के राज्य संबंधी विचार
स्वतंत्रता के संबंध में विचार व्यक्त करने वाले विचारकों में जे० एस० मिल का नाम महत्वपूर्ण है और बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है। जे० एस० मिल लिस्ट सुंदरता पर विचार व्यक्त करने के साथ ही राज्य पर भी अपने महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए हैं। जे० एस० मिल के विचारों पर तत्कालीन इंग्लैंड सरकार के विचारों का भी प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। मिलकर राज्य संबंधी विचारों के अंतर्गत मिलने राज्य शब्द का उल्लेख अपने व्याख्यान में नहीं किया है। उसने अपने लेखों में समाज शब्दों का ही प्रयोग किया है। अतः मिलकर समाज संबंधी विचारों को राज्य संबंधी विचारों के रूप में स्वीकार किया गया है, जिन्हें निम्न प्रकार से वर्णन किया जा सकता है—
जे. एस० मिल के विचार
(1) राज उत्पत्ति का आधार है
जे० एस० मिल ने राज्य की उत्पत्ति का आधार हित की बजाय इच्छा को माना है। जे० एस० मिल ने बेंथम के उपयोगितावाद में यहां संशोधन कर लिया है और सुधार कर राज्य संबंधी अवधारणा को पलट दिया है। उसने राजनीतिक संस्थाएं मानव की कृति मानी है। तथा उनकी उत्पत्ति और अस्तित्व की इच्छा पर आधारित माना है। ऐसा मिल का विचार राज्य की उत्पत्ति के संदर्भ में है।
(2) राज्य एक प्राकृतिक एवं चेतना शील विकास
मिल के काल में दो विचारधाराएं राज्य संबंधी प्रचलित थीं —
1. राज्य को प्रकृति की देन
2. राज्य को एक कृतिम संस्था
जे० एस० मिल ने इन दोनों विचारधाराओं का अध्ययन किया और एक नया विचार प्रदान किया। उसने राज्य एक को प्राकृतिक विकास माना है। साथ ही इसे एक विकासशील चेतना भी स्वीकार किया है। दूसरे शब्दों में राज्य का विकास मानव इच्छा और जरूरतों के अनुसार अथवा उनसे प्रभावित है। जे० एस० मिल स्वयं राजनीतिक संस्थाओं के जीवन के पीछे मानव इच्छा की क्रियात्मक को भी स्वीकार करता है।
(3) व्यक्तिवाद का समर्थन करता
जे० एस० मिल व्यक्तिवाद का समर्थक है। हालांकि वह प्रतियोगिता को अच्छा मानता है क्योंकि सफल व्यापार और एकाधिकार के विरुद्ध एक सुरक्षा है। वह निजी उद्यम को नैतिक विकास के लिए अनिवार्य मानता है। लेकिन मिल स्वतंत्र उद्योग में भी विश्वास करता है। अतः सहयोग को उत्तम मानकर कार्य करने पर बल देता है।
(4) संपत्ति के क्षेत्र में राज्य
जे० एस० मिल व्यक्तिवादी विचारक है। वह राज्य के हस्तक्षेप का विरोधी भी है फिर भी संपत्ति के संदर्भ में उसने मध्यम मार्ग अपनाया है। वह मजदूरी प्रथा को समाप्त करने की चर्चा करता है। सहकारी संगठनों की स्थापना की बात कहता है। मिल वंशानुगत संपत्ति को गलत मानता है तथा प्रतिबंध की बात कहता है। पूजी की असमानता को दूर करने के लिए भूमि पर करो द्वारा किराए का सामाजिकरण जैसी व्यवस्था का समर्थन करता है। राज्य द्वारा उपयुक्त कार्य करने को मिल प्रतिबंध नहीं कहता।
(5) राज्य का सकारात्मक कार्य क्षेत्र
जे० एस० मिल राज्य के सकारात्मक स्वरूप को मान्यता देते हैं। जे० एस० मिल अपनी स्वतंत्रता की धारणा को छोड़ता भी नहीं है। राज्य का हस्तक्षेप व्यक्ति की स्वतंत्रता पर नियंत्रण है। जे० एस० मिल मानते हैं कि व्यक्तियों को अपने व्यक्तित्व के विकास में सहायता के लिए कुछ स्थितियों में राज्य का हस्तक्षेप अथवा नियंत्रण जरूरी भी होता है। जे० एस० मिल ने लिखा है कि किसी एक व्यक्ति का सुख स्वाभाविक रूप से सार्वजनिक सुख को नहीं बढ़ाता है क्योंकि व्यक्ति अपने जीवन संघर्ष को समान परिस्थितियों से शुरू नहीं करता है। उनकी स्थितियां अलग-अलग होती हैं। इसी कारण मिल का बल इस बात पर होता है कि राज्य को इन असमानता को दूर करना चाहिए ताकि उनका जीवन असहाय नहीं हो। अतः जे० एस० मिल समाज के आर्थिक जीवन में भी राज्य को स्वीकार करता है।
(6) कल्याणकारी हस्तक्षेप का समर्थन
जे० एस० मिल यद्यपि अहस्तक्षेप की नीति में विश्वास करता है फिर भी लोग कल्याण हेतु आवश्यक हादसे से पूर्व व नियंत्रण को स्वीकार करता है। साथ ही यदि व्यक्ति स्वतंत्रता का अनुचित प्रयोग करता है तो भी वह राज्य हस्तक्षेप को स्वीकार करता है। कर्तव्य का पालन न करने पर व्यक्ति पर राज्य नियंत्रण को मिल बुरा नहीं मानता है, साथ ही आपातकाल में लोक हित के लिए राज्य के हस्तक्षेप का भी मिल समर्थन करता है। यद्यपि व्यक्ति स्वतंत्रता को भूलता नहीं है।
निष्कर्ष — इस प्रकार जे० एस० मिल ने राज्य संबंधी अपने विचारों का उल्लेख किया है। जिसकी संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि मिल व्यक्ति स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए लोकहित में राज्य के नियंत्रण को समाज पर स्वीकार करता है।
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