हीगल के विचार संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्पष्ट करेंगे जैसे-
हीगल के विचार (Hegel's ideas)
हीगल के इतिहास सम्बन्धी विचार
हीगल के इतिहास सम्बन्धी विचार; हीगल के मतानुसार विश्व इतिहास की अभिव्यक्ति की कहानी है। इतिहास में घटने वाली समस्त घटनाएं विश्वात्मा के निरंतर विकास के विभिन्न रूपों का प्रतिनिधित्व करती है। हीगल ने सभ्यता के आदिकाल से विकास की ओर उन्मुख इस विश्वात्मा के अनेक प्रकारों का उल्लेख करते हुए कहा है कि अतीत के उसके सारे रूप अधूरे थे तथा जर्मन राष्ट्र के उत्थान में वह अपना अंतिम रूप प्राप्त कर ईश्वरी इच्छा को पूरा करेगी। इस प्रकार इतिहास विश्वात्मा द्वारा अपना अंतिम स्वरूप प्राप्त करने के उद्देश्य से की जाने वाली महायात्रा है। संपूर्ण संसार विश्व आत्मामय है तथा उसकी शक्ति से प्रेरित एवं संचालित हैं। बताओ यह मानवीय कर्तव्य है कि वह इस रहस्य को जानकर अपनी संकीर्ण इच्छाओं एवं वासनाओं को त्याग कर इस रहस्य के प्रयोजन के अनुरूप कार्य करें क्योंकि सच्चा मनुष्य तथा स्वतंत्रता विश्वात्मा के प्रयोजन के अनुसार कार्य करने में निहित है।
★ हीगल की मान्यता थी, कि विश्वात्मा इतिहास में अपने विकास हेतु विभिन्न स्वरूप धारण करती है, हां जी हो विकास धीरे-धीरे होता है लेकिन परिस्थितियों के अनुरूप इसमें कभी-कभी विस्फोट भी होता दिखाई देता है। उदाहरण के तौर पर— फ्रांस का राज्य क्रांति एक ऐसा ही विस्फोट थी।
★ हीगल ने विश्वात्मा के विकास को तीन स्थितियों में विभक्त किया था। प्रथम स्थिति पूर्वी देशों की, वित्तीय स्थिति यूनानी एवं रोमन राज्यों की तथा तृतीय स्थिति जर्मन राज्य के उत्थान की थी। हीगल के मतानुसार चीन में सभ्यता का जन्म हुआ, भारत में उसका बचपन गुजरा, यूनान और रोम में उसने युवावस्था प्राप्त की तथा जर्मनी में पहुंचते-पहुंचते वह वृद्ध हो गई। यहीं पर उसका पार्थिव शरीर समाप्त हो गया तथा उसकी शारीरिक चेतना के नष्ट होने के साथ ही उसकी आत्मिक चेतना जागृत हुई। उसका स्वरूप स्थूलता से आजाद होकर पूर्ण चैतन्य मई हुआ तथा यही उसका पूर्ण विकसित एवं सही तथा प्रबुद्ध रूप है।
हीगल के कानून सम्बन्धी विचार
हीगल का मत है कि कानून जनता की इच्छा की अभिव्यक्ति नहीं है। अतः राज्य के कानूनों का पालन करना व्यक्ति के लिए अनिवार्य है। वह कानून निर्माण में नागरिकों का कोई योगदान नहीं मानता है और कानूनों को ऐतिहासिक देन बताता है। वह राज्य को समस्त कानूनों से सर्वोच्च समझता है। अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अस्तित्व को भी अस्वीकार करता है।
उसका विचार है कि, …… “राज्य स्वयं में ही पूर्ण स्वतंत्र (आजाद) संपूर्णता है। अतः राज्यों के पारस्परिक संबंध (अच्छे संबंध) व्यक्तिगत अथवा नैतिकता मात्र नहीं है।”
हीगल के संविधान संबंधी विचार
हीगल के संविधान संबंधी विचार कुछ इस प्रकार है—
(1) हीगल का कथन है कि, संविधान का किसी समय विशेष पर निर्माण नहीं होता है। वह शताब्दियों के विकास का परिणाम है और वह स्वयं में आत्म केंद्रित देवी और शाश्वत है।
(2) हीगल के अनुसार, संविधान द्वारा ही राज्य की शक्तियों का स्पष्टीकरण होता है।
(3) हीगल अधिकार -पत्र, शक्तियों के पृथक्करण एवं प्रतिबन्धो तथा संतुलन में कोई आस्था नहीं रखता है।
(4) हीगल संवैधानिक राज्य में संप्रभुता का निवास मानता है।
(5) वह कार्यपालिका की अपेक्षा व्यवस्थापिका पर अधिक बल देता है।
इस प्रकार हीगल व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कोई महत्व प्रदान नहीं करता है। इसके विपरीत वह कहता है कि व्यक्ति अपने आप को जितना ही अधिक राज्य की इच्छा में विलीन करेगा उसकी स्वतंत्रता उतनी ही अधिक पूर्ण और वास्तविक होगी। राज्य ‘वास्तविक स्वतंत्रता का मूर्ति रुप' तथा ‘स्वतंत्रता की यथार्थता’ है। राज्य के नियमों के अनुसार जीवन-यापन करना ही वास्तविक स्वतंत्रता है। हीगल ने उदारवादी प्राकृतिक नियम और प्राकृतिक अधिकार का खंडन किया है। अधिकार व स्वतंत्रता राज्य के अंतर्गत है।
हीगल की स्वतंत्रता की उपर्युक्त धारणा प्लेटो और अरस्तू की स्वतंत्रता की धारणा के निकट है, क्योंकि वह भी व्यक्ति के व्यक्तित्व के नैतिक विकास के लिए राज्य को आवश्यक मानते हैं और व्यक्ति को राज्य के निरूपण में रखने की बात कहते हैं।
हीगल के युद्ध संबंधी विचार
हीगल उग्र राष्ट्रीयता का दार्शनिक था। राष्ट्रीय राज्य का भक्त था। वह राष्ट्र राज्य के ऊपर किसी अंतरराष्ट्रीय अथवा विश्वव्यापी संगठन की कल्पना नहीं करता। उसके अनुसार, विश्व राज्य की कल्पना निरर्थक तथा निराधार है। हीगल के मत में युद्ध अनिवार्य है। उसके अनुसार बंदूक और बारूद का आविष्कार संयोगवश नहीं हुआ है, उनका आविष्कार भी विश्वात्मा की अभिव्यक्ति है। जिस प्रकार समुद्र में यदि पानी बहुत समय तक स्थिर रहे तो वह दूषित हो जाता है, ठीक उसी प्रकार यदि राष्ट्रों में बहुत समय तक शांति बनी रहे तो भ्रष्टाचार व अनैतिकता को प्रसन्नता है।
यह स्पष्ट है कि हीगल का शांति और अंतरराष्ट्रीयता में कोई विश्वास नहीं है। उसके अनुसार युद्ध जनकल्याणकारी है, क्योंकि उससे राष्ट्रप्रेम और राष्ट्र निष्ठा की भावना मजबूत होती है। युद्ध जातीय जीवन के लिए वही कार्य करता है जो तूफान समुंद्र के लिए करता है। युद्ध ना केवल राज्य की शक्ति संपन्नता को अभिव्यक्त करता है, बल्कि उससे ग्रह युद्धों की आशंका कम होती है।
निष्कर्ष — हीगल का राज्य की सर्वोपरि में विश्वास है, अंतः अंतर्राष्ट्रीयता का कोई प्रश्न नहीं उठता है। राज्य से अधिक विशिष्ट और व्यापक कोई अन्य संस्था नहीं। राज्य, अंतरराष्ट्रीय कानून को तभी अंगीकार करता है, जब तक कि उसके और अंतरराष्ट्रीय कानून के बीच कोई संघर्ष नहीं है।
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