धर्म सुधार आंदोलन से जुड़े हुए कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्पष्ट करेंगे -
धर्म सुधार आंदोलन Religious reform movement
यह एक धार्मिक आंदोलन था, यूरोप का मानव समाज सोलहवीं शताब्दी के प्रारंभ तक पर्याप्त रूप से शिक्षित हो गया था वह वह वह उसकी अधीनस्थ धर्म अधिकारियों का जीवन विलासिता में व्यतीत होता देखने को मदत नहीं थे अथवा वे चर्च की बुराइयों को दूर करने हेतु तैयार थे वे नहीं चाहते थे कि धर्माधिकारी चरित्रहीन एवं भ्रष्ट जीवन व्यतीत करें धर्म अधिकारियों की उन चरित्र चरित्र बुराइयों को दूर करने हेतु कुछ प्रतिभा सम्मान एवं अध्यात्मिक पुरुषों के नेतृत्व में यूरोप के जैन समाज में जो सामूहिक आंदोलन किया यही इतिहास में धर्म सुधार आंदोलन के नाम से जाना जाता है धर्म सुधार आंदोलन जागरण की भारतीय विश्व का एक महान क्रांतिकारी आंदोलन था।
गवर्नर व मार्टिन इन की परिभाषा के अनुसार — धर्म सुधार आंदोलन भूपत किसान सहकारिता व भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक नैतिक विद्रोह था इस आंदोलन से केवल कैथोलिक धर्म ही नहीं प्रभावित हुआ वर्णन मानव जीवन के अन्य पहलू भी प्रभावित हुई तो स्पष्ट है कि धर्म सुधार आंदोलन पूर्व और उसकी अधिनियम अधिकारियों की चारित्रिक बुराइयों के विरुद्ध एक आंदोलन था वह आंदोलन धर्म अधिकारियों की आलोचना कर उन्हें धर्म सुधार करने हेतु बात करना चाहता था।
धर्म सुधार आंदोलन के कारण
धर्म सुधार आंदोलन पुनर्जागरण की भांति एक आकस्मिक घटना नहीं कही जा सकती है इसके अलावा इस आंदोलन का क्षेत्र व्यापक था। अतः इसके कारण भी केवल धर्म क्षेत्र तक ही सीमित ना रहे इस आंदोलन को बौद्धिक जागृति नवीन दूसरे खेल विज्ञान के प्रसार में प्रेरणा मिली इसके कारणों का उल्लेख किया था कया जा सकता है-
(1) पोप का स्वरूप विकृत होना
पोप कैथोलिक चर्च का सर्वोच्च एवं सर्व संपन्न अधिकारियों तथा ईश्वर का प्रतिनिधि समझा था परंतु उत्तर मध्यकाल में बौद्ध धर्म के क्षेत्र में रुचि ना लेकर राजनीति में रुचि देने लगा वह भव्य प्रश्नों में निवास करता था वह सांसारिक सुखों का आनंद लेता था परिणाम स्वरूप जनसाधारण भी धर्म से आस्था उठने लगी और वे उसमें सुधार चाहने लगे।
(2) पोप का दरबार भ्रष्ट होना
बौद्ध धर्म का मार्ग परिषद मान्या तथा उस के दरबार में अच्छी धर्म चारकों का जन्म घर जाना चाहिए था पर धर्म चारकोप का स्थान उसके अभिलाषी साथियों ने ले लिया था वह चरित्र से गिरते जा रहे थे पूर्व के दरबार में चाटुकार वह व्यर्थ के दरबारी का जमघट हो रहा था इससे जनसाधारण को जलन होने लगी थी वह उनके कटु आलोचना भी करते थें।
(3) धर्म अधिकारियों का विलासी जीवन
पोके अधीनस्थ धर्माधिकारी रिपोर्ट की शांति सामाजिक सुखों का आनंद लेने लगे पैसे की उनसे पास कोई कमी नहीं थी तथा उनका कहना था कि भगवान ने उनको नाना प्रकार के सुख प्रदान किए हैं हम उनका उपयोग क्यों ना करें अथवा विलासिता उनकी संगति बनने लगी नैतिकता क्या है इसका उनके जीवन में कोई प्रश्न ही नहीं उठता था।
(4) छोटे पद अधिकारियों में असंतोष व्याप्त होना
धर्म अधिकारियों की नियुक्ति के समय उनकी कुछ योग्यताओं पर अवश्य विचार होना चाहिए था पर उनके पद तो अब व्यवसायिक होते जा रहे थे धनी पुरुष अपने पैसे के सारे धर्म अधिकारी के पद प्राप्त कर रहे थे क्योंकि धर्म अधिकारियों को पैसे के अलावा भी कई अन्य विशेष अधिकार प्राप्त होते थे।
(5) धर्म यात्रा का प्रारंभ
जिस प्रकार हमारे भारत में हिंदू लोग अपनी तीर्थ स्थानों की यात्रा करते हैं उसी प्रकार से लोग जेरूसलम की यात्रा कई करने लगेगा धर्म युद्ध इसलिए लड़े गए कि वहां ईसाइयों के आने पर तुर्कों ने प्रतिबंध लगा दिए थे धीरे-धीरे फ्रांस व जर्मनी में भी कई तीर्थ स्थान बन गए इन तीर्थयात्रियों को प्रसाद देने का धर्म अधिकारियों का मुख्य उद्देश्य धन अर्जित करना था इस प्रकार इन यात्राओं से धर्माधिकारी धन अर्जित कर अपने विलास में व्यक्त करते थे इस प्रकार की तीर्थ यात्रा भी जनसाधारण में आलोचना का विषय बन गई।
(6) धार्मिक सम्मेलन
15 वीं सदी में यूरोप के विभिन्न स्थानों पर अनेक धार्मिक सम्मेलन का आयोजन किया गया इन सम्मेलनों का उद्देश्य तो सही जगत में एकता उत्पन्न करना था पर इसके परिणाम इसके विपरीत हुए इन सम्मेलनों का परिणाम यह निकला कि धर्म में सुधार करने का जनमत उत्तर उत्तर बढ़ने लगा।
(7) शासकों में निरंकुशता की भावना
शासक वर्ग नहीं चाहता था कि धर्म अधिकारी अपने यहां न्यायालय की स्थापना कर न्याय प्रदान करने का अधिकार रखें यही नहीं चाहते थे कि धर्माधिकारी किसानों से कर वसूली गई होगी नहीं चाहते थे कि पादरी लोग विशाल भूभाग के समीप बने रहे परंतु शासक इन उद्देश्यों की प्राप्ति तभी कर सकते थे जबकि वह मुकेश अपना संबंध विच्छेद कर उसकी प्रभुता को नकार दें अर्थपूर्ण की प्रवक्ता से मुक्त होकर होने के लिए धर्म सुधार आंदोलन प्रारंभ हुआ।
(8) राष्ट्रीय राज्यों का उदय
15 वीं सदी में यूरोप में अब शक्तिशाली राज्यों का उदय होने लगा शासक राजनीतिक कार्यों में पूर्व उसके अधीनस्थ धर्म अधिकारियों का शास्त्र सेव सहन करने को उधर नहीं थे जनता में व्यापारी वर्ग में राष्ट्रीय राज्यों का हसीन होता जा रहा था क्योंकि वह जानता था कि उसका व्यापार शक्तिशाली राज्यों के आश्रय में ही फलीभूत हो सकता है।
(9) रोम का वैभव
कैथोलिक धर्म के सर्वोच्च धर्माधिकारी पॉप का निवास स्थान रूम था अथवा पुतली में रूम का अपना स्वतंत्र एवं सदस्य राज्य की स्थापना का प्रयास कर रहा था एवं वैभवशाली नगर बन रहा था इसके लिए पैसा यूरोप के निवासी विभिन्न रूप से दिया करते थे पर अब अपना पैसा भेजने को तैयार नहीं थे वे चाहते थे कि उनका पैसा उनके देश में ही रहे और उनके देश के निवास का साधन बने कारण रूम का वैभव हीरो वासियों की आंखों में खटक ने लगा और पूर्व की प्रवक्ता का विरोध करने लगे ।
(10) पुनर्जागरण
पुनर्जागरण को धर्म सुधार आंदोलन को एक दूसरे का पूरक माना जाता है पुनर्जागरण ने समाज में स्वतंत्र चिंतन व धार्मिक विषयों के अध्ययन की भावना उत्पन्न का धर्म सुधार आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार कर दी इस प्रकार धर्म सुधार आंदोलन नहीं होता तो पुनर्जागरण का कार्य संपूर्ण नहीं होता है।
इसके विपरीत इसे भी जरूर से जाने — click here प्रति धर्म सुधार आंदोलन क्या है, कारण और परिणाम
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