बेन्थम के उपयोगितावादी सिद्धांत की आलोचना तथा महत्व
बेंथम की उपयोगितावादी सिद्धांत की आलोचना अनेक विद्वानों ने की है। इन लोगों ने अपने मत के समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिए हैं जो कुछ इस प्रकार है—
उपयोगितावादी सिद्धांत की आलोचना
(1) सिद्धांत को अव्यावहारिकता प्रदान किया
बेन्थम को व्यवहारिक दर्शन का प्रतिपादक मानते हैं, परंतु उसका सिद्धांत अव्यवहारिक ही सिद्ध हुआ है। आनंद यदि मिठाई खाने में है तो क्या अधिक से अधिक मिठाई खाई जाए, बिना इस बात का ध्यान रखते हुए कि अंत में इसका परिणाम अपच रोग की उत्पत्ति होगा। इसी प्रकार अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख राज्य का लक्ष्य होना चाहिए, यह बात भी बेंथम की व्यवहारिक नहीं लगती है। उसने गणित का प्रयोग करके मानसिक सुखों की गणना की है, जो पूर्णता अव्यावहारिक है। मानव की प्रवृतियां एक दूसरे से भिन्न होती हैं। एक वस्तु से ही व्यक्ति को अत्यधिक सुख मिलता है, परंतु दूसरा उस वस्तु से घृणा करता है। एक ही वस्तु के प्रति एक व्यक्ति का अनुभव सब पर नहीं लादा जा सकता है। मैक्कून का मत है कि, “राजनीति में अंकगणित वैसे ही सहायक नहीं हो सकती है जैसे अंकगणित में राजनीति का सहयोग नहीं दे सकती है।”
(2) सुख-दुख के आधार पर जीवन के कार्यों का मूल्यांकन उचित ठहराना सही नहीं
बेंथम ने सुख को ही जीवन का परम लक्ष्य बताया है। वह उन सभी कार्यों को त्याज्य मानता है, जो सुख के स्थान पर दुख देने वाले हैं। प्रत्येक कार्य की उपयोगिता और अनुपयोगिता की कसौटी सुख दुख का वह पैमाना (मापदंड) ही है, जिससे वह किसी कार्य को करने या ना करने का व्यक्ति को परामर्श देता है। उसके विचार से नैतिकता का भी यही पैमाना है। सुख देने वाला कार्य नैतिक और दुख देने वाला कार्य अनैतिक है। झूठ बोलकर भी यदि सुख पाता है तो उसे ही उपयोगिता मानता है और सत्य बोल कर यदि दुख पाता है तो उसे त्याज्य समझता है। यह बात नैतिकता से घिरी हुई है। यदि बेंथम की बात कुल लोग मान ले तो सभी लोग भौतिक सुखों में ही मस्त हो जाएं और कोई भी व्यक्ति परोपकार तथा समाज सेवा आदि के लिए कष्ट उठाने को तत्पर नहीं होगा। इसीलिए कारलाइल बेंथम के दर्शन को शूकर दर्शन की संज्ञा दी है।आर० ए० मरे के शब्दों में,"यदि हम अंतरात्मा को तिलांजलि दे दे जैसा कि बेंथम ने किया है तो फिर नैतिक अनैतिक कार्य नाम की चीज शेष नही रहती।"
(3) मात्रा की अपेक्षा गुण को महत्वहीन मानना अनुचित है
बेन्थम ने पुष्पिन खेल को उतना ही सुंदर माना है, जितना कि एक कविता को, परंतु इन दोनों में जमीन आसमान का अंतर है। स्वयं बेंथम के शिष्य जे एस मिल ने इसकी आलोचना करते हुए लिखा है कि, “सूअर भाव से संतुष्ट रहने की अपेक्षा मानव से असंतुष्ट रहना कहीं अच्छा है। एक संतुष्ट मुर्ख की तुलना में असंतुष्ट सुकरात होना कहीं अधिक अच्छा है। यदि मूर्ख और सूअर विभिन्न मत रखते हैं तो इसका कारण यह है कि वह प्रश्न को केवल अपने से ही संबंधित रूप देखते हैं।” जोन्स का मत है कि “बेन्थम सुख को हलवा या केक की तरह ऐसा भौतिक पदार्थ समझता है जिसे विभिन्न खंडों में विभाजित किया जा सकता है।”
(4) अन्य दोष (उपयोगितावाद सिद्धांत)
बेंथम का सिद्धांत विरोधाभास एवं संगठनों से भरा है। उसके सिद्धांत से पूंजीपति भी लाभ उठा सकते हैं और श्रमिक भी, वह लोकतंत्र में भी है और निरंकुशता के बीच भी उस में मिलते हैं। इस संबंध में मरे का मत है कि, "बेंथम ने मानव के अंतः करण की पूर्ण अवहेलना की है, इसलिए उनके सिद्धांत में अनैतिकता या नैतिकता जैसी कोई वस्तु नहीं पाई जाती है।" हेैलोवेल का मत है कि, "बेंथम वाद एक ऐसा उदाहरण है जो निरंकुशता के बहुत ही अनुरूप है।"उसका सार्वजनिक सुख का सिद्धांत भी दोषपूर्ण है। बेंथम व्यक्ति और समाज के हितों के बीच समन्वय करने में भी असफल रहा। उसने भौतिकवाद पर अधिक बल दिया है। उसके सिद्धांत का सबसे बड़ा दोष अल्पसंख्यकों के हितों पर आघात करना है। उसके सिद्धांतों में मौलिकता का अभाव है तथा उसकी मानव प्रकृति की धारणा भी त्रुटिपूर्ण है।
महत्व
अनेक त्रुटियों के बावजूद भी बेन्थम की उपयोगिता सिद्धांत की महत्ता कम नहीं है। उपयोगितावाद के प्रवर्तक के रूप में वह राजदर्शन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है । राजदर्शन को सर्वाधिक महत्वपूर्ण देनी है कि उसने उपयोगितावाद को वैज्ञानिक तथा व्यवहारिक रूप प्रदान किया है। हालवी के अनुसार, “बेंथम ने उपयोगितावाद के सिद्धांत द्वारा एक वैज्ञानिक नियम , एक क्रियाशील प्रशासन, वास्तविकता और औचित्य की खोज की।"बेंथम की राज दर्शन को यह महत्वपूर्ण देन है। उसे ब्रिटेन ही नहीं, राष्ट्रीय क्षेत्र में भी अत्यधिक सम्मान मिला।” एक महान विद्वान का विचार है कि, “उसका नाम ब्रिटेन में ही नहीं अपितु पूरे यूरोप के अत्यधिक देशों में ख्याति (प्रसिद्धि) प्राप्त है। उसने नवीन विश्व (एक नया विश्व) को संविधान तथा भविष्य के लिए एक अच्छा और सुलभ कानून प्रदान किए।” बेंथम के विचारों से विश्व उसका सदैव ऋणी रहेगा। मिल का मत है कि, “उसने मानव को शाश्वत मूल्य के विचार प्रदान किए।”
बेंथम के राज दर्शन का महत्व
बेन्थम के उपयोगितावादी सिद्धांत का महत्व; बेंथम के राजनीतिक विचारों की आलोचना अवश्य की गई है परंतु उसके विचारों का अपना अलग ही महत्व है। —
(1) बेंथम ने सुखवा दौर उपयोगितावाद का आश्रय लेकर एक यथार्थवादी दर्शन प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। यह एक यथार्थवादी और व्यावहारिक राजनीतिक के रूप में हमारे सम्मुख आता है। आई वर ब्राउन ने बेंथम के यथार्थवादी और व्यवहारिक रूप को दर्शाते हुए यह कहा है, “बेंथम ने इंग्लैंड को सुख किस प्रकार मिले, इसके लिए केवल बातें ही नहीं बल्कि बातें बनाने के साथ इंग्लैंड को सुखी बनाने के लिए परिश्रम भी किया।
(2) बेंथम को लाइसेज फेयर के सिद्धांत का वास्तविक परिवर्तन नहीं माना जाता है, क्योंकि वह अर्थशास्त्री नहीं, राजनीति शास्त्री है। परंतु उसके विचारों और सिद्धांतों ने इसका एक तार्किक आधार प्रस्तुत किया इस में किंचित मात्र भी संदेह नहीं है। मानव स्वभाव और प्रकृति का जो चित्रण उसने प्रस्तुत किया है वह अर्थशास्त्रियों के लिए लाभदायक सिद्ध हुए हैं।
एक टिप्पणी भेजें