असहयोग आन्दोलन का वर्णन (1920) अथवा निबंध | non cooperation movement

असहयोग आंदोलन से संबंधित कुछ मुख्य बिंदुओं पर प्रकाश डालेंगे — 

असहयोग आन्दोलन  का वर्णन (1920) अथवा निबंध | non cooperation movement

असहयोग आंदोलन 

asahyog andolan; non cooperation movement प्रथम विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्र द्वारा लोकतांत्रिक मूल्यों की शिक्षार्थी युद्ध में भाग लेने के दावे और विश्व युद्ध में भारत के सक्रिय सहयोग के वातावरण में ब्रिटिश सरकार से भारतीयों की स्वशासन और अथवा होमरूल दिए जाने की आशा थी और होमरूल आंदोलन के बाद 1917 की मोंटेग्यू की घोषणा से इसकी आशा भी की जा रही थी किंतु युद्ध में जीत हासिल करने के बाद इंग्लैंड की और ब्रिटिश भारत की सरकार अपने वादों से पलट गई और भारत में राजनीतिक दमन का एक नया दौर प्रारंभ हो गया रौलट एक्ट तथा जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद भारत में राजनीतिक असंतोष चरम सीमा पर पहुंच गया था।

  भारत के अधिकांश मुसलमान तुर्की के सुल्तान को अपना खलीफा मानते थे विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद उसको अपदस्थ किए जाने की योजना के विरुद्ध भारत में खिलाफत आंदोलन प्रारंभ हुआ गांधी जी ने मुसलमानों को मुख्य राष्ट्रीय धारा में जोड़ने के उद्देश्य से खिलाफत आंदोलन के समर्थन में अगस्त 1920 में असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया।

असहयोग आंदोलन की गणना विश्व इतिहास के सबसे बड़े जन आंदोलनों में की जाती है इसका अहिंसक और शांतिपर्ण स्वरूप इसे और भी अधिक महत्वपूर्ण प्रदान करता है इस आंदोलन में स्वदेशी आंदोलनों की बहिष्कार की रणनीति अपनाते हुए उसके लक्ष्य स्वराज आर्थिक व शैक्षणिक आत्मनिर्भरता प्राप्त करने और राष्ट्रीय एकता स्थापित करने का प्रयास किया गया था साथ ही साथ इसमें अस्पृश्यता निवारण मध्य निषेध ग्राम स्वराज और नारी उत्थान के लक्ष्यों को भी जुड़ा दिया गया था।

जैन प्रतिक्रिया (public response)

आंदोलन में समाज के प्रत्येक वर्ग ने भाग लिया था—

(1) मध्यवर्ग (the middle class)

मध्य वर्ग के लोगों ने आंदोलन के प्रारंभ में इस                            आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया लेकिन गांधीजी के कार्यक्रम को लेकर भी अधिक स्पष्ट नहीं थे कोलकाता मुंबई मद्रास जो सुप्रभात राजनीतिज्ञों के केंद्र से जैसे स्थानों पर गांधीजी की आशंका प्रत्युत्तर बेहद सीमित था सरकारी सेवाओं से त्यागपत्र देने उपाधियों को लौटाने इत्यादि जैसे उनके आहार को अधिक महत्व नहीं दिया था भारतीय राजनीति में अपेक्षाकृत नवाबों ने आंदोलनों में अपने हितों एवं मनुकाक्षांओ को अभिव्यक्ति दी। बिहार में राजेंद्र प्रसाद और गुजरात में वल्लभभाई पटेल ने आंदोलन को समर्थन प्रदान किया और वस्तु तो उनके जैसे नेताओं ने अपनी वैश्विक सरकार के विरुद्ध लड़ाई में सहयोग को उग्रवाद के समर्थ राजनीति विक्रम के रूम में देखा।

(2)‌‌ व्यवसायिक वर्ग (business class)

आर्थिक बहिष्कार को भारतीय व्यवसायिक वर्ग से समर्थन प्राप्त हुआ क्योंकि उन्हें राष्ट्रीय वादियों द्वारा स्वदेशी के उपयोग पर बल देने से लाभ हुआ था लेकिन बड़े उद्योगपतियों का एक वर्ग इस आंदोलन के प्रति सत्यवादी बना रहा उन्हें अपने कारखानों में श्रमिक असंतोष विद्रोह का भाई था।

(3) किसान (Farmer)

  इस आंदोलन में किसानों की सहभागिता व्यापक थी यद्यपि कांग्रेश वर्ग संघर्ष के खिलाफ थी लोगों ने इस बाधा को हटा दिया बिहार में निर्णय उच्च जाति के बीच का चलचित्र का मामला सेव आंदोलन में लुप्त हो गया सम्मानित किसान भूमि पतियों एवं व्यापारियों के विरुद्ध हो गई इस आंदोलन में परेशान जनता को ब्रिटिश शासन और साथ ही साथ भारतीय स्वामियों भूपति हुए व्यापारियों के खिलाफ अपनी भावना व्यक्त करने का अवसर प्रदान किया।

(4) विद्यार्थी‌ (student)

विद्यार्थियों ने आंदोलन मैं सक्रिय एवं स्वैच्छिक भूमिका निभाई और उनमें से अधिकतर ने सरकारी विद्यालय कॉलेजों को छोड़कर राष्ट्रीय स्कूलों एवं कॉलेजों में प्रवेश लिया काशी विद्यापीठ गुजरात विद्यापीठ जामिया मिलिया इस्लामिया जैसे अन्य नवीन स्थापित संस्थाओं में कई विद्यार्थियों को प्रवेश दिया।

(5) महिलाएं 

 महिलाओं ने पर्दा प्रथा का त्याग कर तिलक फंड में अपने आभूषण दान दिए उन्होंने बड़ी संख्या में आंदोलन में भाग लिया और विदेशी कपड़े एवं शराब बेचने वाली दुकानों के आगे धरना दिया।

(6) हिंदू मुस्लिम एकता

 मोपला विद्रोह जैसी घटनाओं के बावजूद मुसलमानों की आंदोलन में व्यापक सहभागिता और सांप्रदायिक एकता का प्रदर्शन एवं बड़ी उपलब्धि थी कई स्थानों पर गिरफ्तार लोगों में दो तिहाई मुसलमान थे तथा इस प्रकार की सहभागिता ना तो अतीत में और ना ही भविष्य में देखने को मिली आंदोलन में गांधीजी एवं अन्य नेताओं ने मस्जिद सी मुसलमान संप्रदाय को संबोधित किया और यहां तक कि गांधीजी एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्हें आंखों पर पट्टी बांधे बिना मुस्लिम महिलाओं की जनसभा को संबोधित करने की अनुमति दी गई।

  आंदोलन का अंतिम चरण

उधर गांधीजी पर राष्ट्रीय स्तर पर सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ने के लिए दबाव पढ़ने लगे दिसंबर 1921 में कांग्रेस का अधिवेशन अहमदाबाद में आयोजित किया गया। हालांकि इस अधिवेशन के अध्यक्ष सी आर दास थे किंतु उनके जेल में होने के कारण हकीम अजमल खान को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। इस अधिवेशन में कांग्रेस ने गांधीजी को अवज्ञा का लक्ष्य समय तथा भावी राजनीति रणनीति तय करने का पूर्ण अधिकार दिया उधर सरकार के रूप में कोई परिवर्तन नजर नहीं आ रहा था जनवरी 1922 में सर्वदलीय सम्मेलन की अपील तथा गांधी जी द्वारा वॉइस राय को लिखे गए पत्र का भी सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

★1 फरवरी 1921 को गांधी जी ने घोषणा की कि यदि सरकार राजनीतिक बंदियों को रिहा कर नागरिक स्वतंत्रता बहाल नहीं करेगी तथा प्रेस से नियंत्रण नहीं हटेगी तो वे देशव्यापी सविनय अवज्ञा आंदोलन ( गांधी जी के नेतृत्व में लड़ा गया आंदोलन) छेड़ने के लिए बाध्य हो जाएंगे।

★यह आंदोलन सूरत के बारदोली टाकुला से प्रारंभ होने वाला था किंतु इस आंदोलन के प्रारंभ होने के पूर्व ही चोरा चोरी की घटना हो गई तथा संपूर्ण परिदृश्य ही बदल गया ।

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य—

  1.  ★रोलेट एक्ट पंजाब में मार्शल लॉ का आरोपण तथा जलियांवाला बाग हत्याकांड जैसी घटनाओं ने विदेशी विदेशी शासकों के क्रूर एवं भी रवैया को उजागर कर दिया।
  2.  ★1919 के मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों का वास्तविक मकसद भी द्वैध शासन प्रणाली लागू करना था ना कि जनता को राहत पहुंचाना इस उदाहरण से स्वशासन की मांग कर रहे राष्ट्रीय वादियों को अत्यंत निराशा हुई।
  3. ★ पंजाब में जातियों के संबंध में हंटर कमीशन की सिफारिशों ने सबकी आंखें खोल दी उधर ब्रिटिश संसद विशेषकर हाउस ऑफ लॉर्ड्स में जनरल डायर की कृतियों को उचित ठहराया गया तथा मॉर्निंग पोस्ट डिजायर के लिए 30000 पाउंड की धनराशि एकत्र की यह सारी गतिविधियां अंग्रेजी शासन का पर्दाफाश करने के लिए पर्याप्त थी।
impo-Short questions and answers 

असहयोग आंदोलन कहाँ से शुरू हुआ?

असहयोग आंदोलन की नींव कोलकाता में कांग्रेस अधिवेशन में रखी गई थी। और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा शुरू की गई।

असहयोग आंदोलन कब हुआ?

असहयोग आंदोलन सितंबर 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के द्वारा शुरू की गई।

असहयोग आंदोलन कब समाप्त हुआ?

असहयोग आंदोलन फरवरी, 1922 को गांधी जी द्वारा समाप्त हुआ।

असहयोग आंदोलन क्या था?

असहयोग आंदोलन (1920) की गणना विश्व इतिहास के सबसे बड़े जन आंदोलनों में की जाती है इसका अहिंसक और शांतिपर्ण स्वरूप इसे और भी अधिक महत्वपूर्ण प्रदान करता है। और असहयोग आंदोलन की शुरुआत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा की गई थी।

असहयोग आंदोलन में किन किन लोगो ने भाग अथवा हिस्सा लिया?

असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने वाले लोगों में शामिल थे — (1) मध्यवर्ग (the middle class) (2)‌‌ व्यवसायिक वर्ग (business class) (3) किसान (Farmer) (4) विद्यार्थी‌ (student) (5) महिलाएं (6) हिंदू मुस्लिम एकता

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