मौर्य प्रशासन (शासन व्यवस्था) की 14 मुख्य विशेषताएं

 मौर्य प्रशासन की विशेषताएं

मौर्य प्रशासन की शासन व्यवस्था बहुत ही सुव्यवस्थित तथा सुदृढ़ थी। क्योंकि मौर्य शासन में चाणक्य जैसे महान ज्ञानी व सेनापति थे।  

मौर्य प्रशासन की मुख्य विशेषताएं

(1) साम्राज्य विस्तार 

मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य की साम्राज्य की सीमाओं का जितना विस्तार था उतना भारत के इससे पहले किसी सम्राट का नहीं रहा। सम्राट अशोक ने इन सीमाओं का और भी अधिक विस्तार किया। कलिंग विजय के पश्चात ही अशोक ने अपने साम्राज्य का विस्तार रोका था। 

(2) शासन प्रबंधन 

मौर्य वंश का संस्थापक चंद्रगुप्त मोदी ने अपने प्रधानमंत्री और चाणक्य की सहायता से एक सुव्यवस्थित एवं संगठित शासन तंत्र का विकास किया था। उसकी इन प्रशासन व्यवस्था को केवल उसकी मौर्य उच्च अधिकारियों ने ही बल्कि बाद के अन्य वंश के सम्राट तथा राजाओं ने भी अपनाया।

(3) शासन व्यवस्था   

 मौर्य वंश में दोहे ऐसी प्रमुख शासक हुए हैं जिनका मौर्यकालीन शासन व्यवस्था के निर्माण में योगदान कहा जा सकता है। मौर्यवंशी की शासन व्यवस्था की आधारशिला बड़ी कठिन परिस्थितियों में मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य ने ही लिखी थी, और यही शासन व्यवस्था मौर्य वंश के सभी सम्राटों ने बनाए रखें साधारण रूप से सम्राट अशोक की शासन व्यवस्था मूल रूप में उसके दादा चंद्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था के अनुरूप थी।

(4) केंद्रीय शासन 

चंद्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था निरंकुश राजतंत्र आत्मक शासन प्रणाली पर आधारित थी। साम्राज्य की व्यवस्थापिका कार्यपालिका और न्यायपालिका संबंधित सर्वोच्च शक्तियां सम्राट में नहीं थी। तीनों ही क्षेत्रों में सम्राट का निर्णय अंतिम होता था। इस प्रकार सम्राट ही शासन का सर्वोच्च अधिकारी था सम्राट की शक्तियों तथा अधिकारियों को रखकर कोई भी कह सकता था कि सम्राट से जारी एवं निरंकुश था परंतु वास्तव में मौर्य सम्राट निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी था मंत्रिपरिषद लेने के बाद ही बनाता था एवं कार्य करता था। सम्राट अशोक प्रशासन का स्वरूप भी है, तथा व्यवस्था भी चंद्रगुप्त मौर्य के शासन का सर्वोच्च अधिकारी होते हुए कार्यों को प्रमुखता देते थे।

(5) मंत्री परिषद  

चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में सम्राट को सहयोग तथा परामर्श देने के लिए एक मंत्री परिषद परिषद थी सम्राट अशोक भी सम्राज्य का सर्वोपरि था। परंतु फिर भी सम्राट को प्रशासनिक कार्यों में सहयोग देने के लिए मंत्रिपरिषद थी। चंद्रगुप्त की मंत्रिपरिषद की कार्यवाही गुप्त रखी थी चंद्र पुत्र मंत्रिपरिषद के निर्णय को मारने के लिए बाद नहीं था।

(6) केंद्रीय शासन के विभाग   

चंद्रगुप्त ने शासन की सुविधा के लिए केंद्रीय शासन को कई भागों में बांट दिया था व्यक्तिगत कहलाते थे।कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार इन तीर्थों की संख्या 18 थी।

(7) विभाग

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में 26 विभागों का उल्लेख किया गया है प्रत्येक विभाग का एक प्रमुख विधा धक से होता था। यह विभागाध्यक्ष एवं मंत्री के अधीन कार्य करते थे मंत्री के पास एक से अधिक विभाग हो सकते थे।

(8) पुलिस एवं गुप्तचर विभाग

राज्य में शांति बनाए रखने के लिए पुलिस थी पुलिस का काम यह देखना था कि लोग राज्य के कानून व नियमों को भंग नहीं करें और जो लोग नियमों का कानूनों के अनुसार कार्य नहीं करें या उनको थोड़ी तो उनको पकड़ कर उन्हें दंड किराए चंद्रगुप्त मौर्य के शासन में पुलिस का आदमी रक्षण कहलाता था। अशोक मौर्य शासकों के शासन में भी पुलिस की व्यवस्था थी इनके अतिरिक्त गुप्त रीति से किए गए अपराधों का पता लगाने के लिए गुप्तचर थे।

(9) सेना का प्रबंधन

चंद्रगुप्त अपने साम्राज्य के विस्तार को देखते हुए उनकी सुरक्षा के लिए एक विशाल सुख संगठित सेना की आवश्यकता को समझा समझता था। उसकी चतुर गिरी सेना में पैदल रात घोड़े हाथी से सम्राट सेमी सेना का प्रधान होता था तथा युद्ध के समय अवश्य में सेना का संचालन कर था।

(10) न्याय का प्रबंध

अपराधियों को दंड देने के लिए तथा लोगों के मध्य झगड़ों को सुलझाने के लिए चंद्रगुप्त ने अपने प्रधानमंत्री चाणक्य की सहायता से ऐसी उत्तम न्याय व्यवस्था का प्रबंधन किया था इसका काम आज भी संसार के सभी देशों में अनुकरण किया जाता है। आजकल की भांति उसे मैं भी दीवानी और फौजदारी मामलों को निपटाने के लिए अलग-अलग या नहीं थे शामलाजी का सर्वोच्च न्यायाधीश सम्राट है तथा प्रसिद्ध त्योहार धर्म शास्त्र और राज्य के नियम न्याय का आधार होते थे।

(11) लोक कल्याणकारी कार्य

चंद्रगुप्त मौर्य नहीं लोक कल्याणकारी कार्यों के लिए एक अलग विभाग स्थापित किया था उसने सड़कों और सर आयो का निर्माण कराए हुए। तालाब झीलें तथा नेहरे बनवा कर किसानों को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराई विद्यालयों से मुक्त औषधि वितरण की व्यवस्था कराई अकाल की स्थिति से निपटने के लिए अन्य भंडार कराएं सम्राट अशोक ने तो लोग रहित किन कार्यों का और भी अधिक विस्तार किया उसने केवल मनुष्य के लिए ही नहीं पशु पक्षियों की देखभाल की व्यवस्था की अशोक ने सड़के बनवाई सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष दीन दुखियों में भोजन तथा वस्त्र वितरण वितरण किए जाते थे प्रजा पालन तथा उसकी हित चिंतन को ही अशोक ने अपने शासन का आधार बनाया था।

(12) प्रांतीय प्रशासन

चंद्रगुप्त का एक विशाल साम्राज्य था इतने बड़े विशाल साम्राज्य का शासन एक ही केंद्र से चलाना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव था। अतः शासन की सुविधा के लिए चंद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य को कई प्रांतों में बांट दिया था प्रांतों को मंडल कहा जाता था। यह मंडल छोटी-छोटी जनपदों में बैठे हुए थे। प्रांत युद्ध के समय सम्राट को सैनिक सहायता पहुंचाते थे। सम्राट प्रांतों के मुख्य अधिकारियों पर पूरी नजर आता था। सम्राट अशोक का सुविधा की दृष्टि से चार प्रांतों विभक्त था।

(13) अशोक का धर्मप्रधान शासन

कलिंग की विजय के पश्चात अशोक की धार्मिक रूचि बहुत अधिक बढ़ गई थी। अशोक ने स्वयं को बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था। तथापि उसने उस समय के सभी वर्गों के प्रति समभाव बनाए रखा।

(14) स्थानीय शासन

 ग्राम मौर्य साम्राज्य सभी छोटी काली थी चंद्रगुप्त मौर्य ने ग्रामोत्थान नगरों का शासन वही के लोगों को सौंप दिया था ग्रामों तथा नगरों में संस्थाएं संगठित करके उन्हें पर्याप्त स्वतंत्रता देख रखी थी। इस प्रकार आजकल की ग्राम पंचायतों और नगर पालिकाओं का बीजारोपण चंद्रगुप्त मौर्य शासन प्रणाली में ही हो चुका था। मौर्य शासन में कई बड़े नगर से और नगर का प्रशासन जाने के लिए आज कल की नगर पालिका ने जैसी व्यवस्थाएं थी नगर के प्रबंध के लिए 6 समितियां होती थी।प्रत्येक समितियां में 5 सदस्य होते थे।


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