भारतीय इतिहास के स्वर्ण युग गुप्त काल
भारतीय इतिहास के स्वर्ण युग के रूप में गुप्त काल; इतिहासकारों ने गुप्त काल को भारतीय इतिहास के स्वर्ण युग के नाम से संबोधित किया है। वास्तव में गुप्त काल में भारतीय संस्कृति का चहुंमुखी विकास हुआ। जैसी सर्वांगीण उन्नति एवं प्रगति गुप्त काल में परिलक्षित होती है वैसी प्रगति कदाचित दोबारा भारतीय इतिहास के किसी युग में परिलक्षित नहीं हुई है। इस काल की कुछ विशेष उपलब्धियां ऐसी थी जिनके कारण गुप्त काल को भारतीय संस्कृति का स्वर्ण युग कहा गया है। —
उपलब्धियां अथवा कारण
(1) महान सम्राटों का युग
गुप्त काल में समुद्रगुप्त चंद्रगुप्त द्वितीय कुमार गुप्ता तथा स्कंद गुप्त जैसे महान सम्राट पैदा हुए जिन्होंने अपने सैन्य पराक्रम एवं कौशल तथा कूटनीति के बल पर उत्तर एवं दक्षिण भारत के अनेक शासकों को परास्त करके उन्हें अपने अधीन किया। इतिहासकारों ने समुद्रगुप्त को 100 युद्धों का विजेता कहा है। चंद्रगुप्त द्वितीय ने शकों को पराजित कर ‘शकारि’ की उपाधि धारण की थी। बैक्टीरिया को परदेश पर अपना अधिकार जमा लेने के उपरांत उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। कुमार गुप्ता तथा स्कंद गुप्त ने हूणों के आक्रमण का सफलतापूर्वक सामना किया था। प्रशासन की दृष्टि से गुप्त सम्राट कुशल एवं सफल राजनीतिज्ञ तथा प्रजा हितकारी थे। गुप्तकालीन सम्राट साहित्य संगीत में निपुण तथा विद्वानों के आश्रय दाता थे।
(2) श्रेष्ठ शासन व्यवस्था का युग
गुप्त सम्राटों की शासन व्यवस्था सुदृढ़ तथा संगठित थी। उन्होंने नागरिक तथा सैनिक सेवाओं का पुनर्गठन किया तथा कर्मचारियों को उनके कार्यों एवं उत्तरदायित्व से परिचित कराया। वास्तव में गुप्त शासकों की इस स्वतंत्रता तथा समानता के सिद्धांतों पर आधारित शासन व्यवस्था में न्याय का स्वरूप निष्पक्ष था। इस काल में सार्वजनिक व जनहितकारी कार्यों को प्रोत्साहन दिया गया, जिसका परिणाम यह हुआ कि प्रजा सर्व सुख संपन्न एवं समृद्धि रही। इस प्रकार शासन व्यवस्था के गुण एवं परिणाम की फल स्वरुप ही गुप्त काल को स्वर्ण युग की संज्ञा दी गई है।
(3) धार्मिक सहिष्णुता का युग
गुप्त सम्राटों ने साम्राज्य की शांति, सुरक्षा व प्रगति के लिए धार्मिक सहिष्णुता से पूर्ण नीति को अपनाया। यद्यपि सभी गुप्त सम्राट वैष्णव धर्म में विश्वास करते थे, किंतु उन्होंने सभी धर्मों का समान रूप से आदर किया था। इस काल में हिंदू धर्म के साथ -साथ बौद्ध एवं जैन धर्म का भी विकास हुआ। हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों के साथ-साथ अन्य प्रचलित धर्मों की उपासना विभूतियों की मूर्तियों का भी निर्माण हुआ। धार्मिक सहिष्णुता, उदारता तथा स्वतंत्रता के कारण गुप्त काल को स्वर्ण युग कहा जाता है।
(4) सामाजिक उपलब्धियों का युग
गुप्त काल में प्रजा की सामाजिक समस्याओं का निराकरण उदारता पूर्वक किया गया था। वास्तविक दृष्टि से देखा जाए तो गुप्तकाल ब्राह्मणवाद के पुनरुत्थान का युग था। इस समय तक ब्राह्मण वर्ग इस बात से भली-भाति परिचित हो गए थे कि अब तक चले आ रहे हिंदू धर्म के दोषों एवं असंगतियो का निराकरण करके ही सामाजिक व्यवस्था को स्थापित किया जा सकता है। अतः अब उन्होंने प्राचीन मान्यताओं तथा नवीन आवश्यकताओं का समन्वय करके समाज को एक नई दिशा प्रदान की।
(5) सांस्कृतिक एकता का युग
गुप्त सम्राट आर्य संस्कृति के पोषक थे। आर्य संस्कृति के तीन मूल तत्वों — देश, धर्म तथा भाषा की एकता ने इस काल की संस्कृति को एकता प्रदान की। इस काल में संस्कृत को भारत की राजभाषा घोषित किया गया था। किस भाषा गत एकता के कारण ही सांस्कृतिक एकता को बल मिला तथा उपनिवेश स्थापना के कार्यों को प्रोत्साहन मिला, जिसका परिणाम यह हुआ कि जावा, सुमात्रा, बाली, बोर्नियो एवं चीन में भारतीय संस्कृति का प्रवेश हुआ।
(6) राजनीतिक एकता का युग
मौर्य साम्राज्य के पतन के पश्चात भारत में शक, पहृव, इण्डो- यूनानी तथा कुषाण जातियों ने भारत को अपना प्रभाव क्षेत्र बना लिया था। इसके साथ-साथ यहां अनेक छोटे-छोटे राज्य भी थे। किंतु गुप्तकालीन सम्राटों ने इन विदेशी आक्रमणकारियों तथा छोटे-छोटे देशी राज्यों की प्रभुसत्ता को समाप्त करके भारत में एक संयुक्त एवं सशक्त शासन प्रणाली की व्यवस्था की, जिसके परिणाम स्वरूप भारत में राष्ट्रीयता की भावना का उदय हुआ।
(7) साहित्य के उत्कर्ष का युग
गुप्त काल में भी रचनाओं की सर्वोत्कृष्टता इस बात की धोतक है कि प्राचीन भारतीय इतिहास के किसी काल में इतनी अधिक श्रेष्ठ रचनाएं नहीं रची गई। कालिदास हरिषेण, शुद्रक, विशाखदत्त, वात्स्यायन, सुबंधु, वत्सभट्टी, अमर सिंह, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, नागार्जुन, कामन्दक, याज्ञवल्क्य, आचार्य मैत्रेय, बुद्धघोष, असंग आदि साहित्यकारों ने साहित्य के क्षेत्र में अपना योगदान दिया। गुप्त काल में धार्मिक विषय, विधि, न्याय, दर्शन, ज्योतिष, व्याकरण, गणित, विज्ञान, शिक्षा, शास्त्र, नाटक आदि की रचना की गई।
(8) वैज्ञानिक प्रगति का युग
गुप्त काल में साहित्य एवं विभिन्न कलाओं के साथ-साथ वैज्ञानिक क्षेत्र में भी पर्याप्त प्रगति हुई। आर्यभट्ट इस का प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोल शास्त्री था। वराहमिहिर इस युग का प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य, ब्रह्मा गुप्ता प्रसिद्ध ज्योतिष और बाणभट्ट औषधी शास्त्र का प्रमुख विद्वान था। इन आचार्यों ने विभिन्न प्रकार के ग्रंथ लिखे और अपने अपने क्षेत्र में नए-नए सिद्धांतों का प्रतिपादन किया।
(9) कला के विकास का युग
गुप्त काल को ललितकलाओं का स्वर्ण युग माना जाता है। इस काल में भवन निर्माण कला, मूर्तिकला, चित्रकला, संगीत कला, नृत्य कला, आदि के क्षेत्र में अभूतपूर्व उन्नति हुई। भवन निर्माण कला के साथ-साथ तक्षण कला के क्षेत्र में भी उन्नति हुई। अजंता की गुफाओं के भित्ति चित्र गुप्त कला के अद्भुत उदाहरण है। अजंता की चित्रकला के विषय में ग्रेबोस्का ने लिखा है, “अजंता की कला भारत की शास्त्रीय कला है। चित्रों का सौंदर्य आह्लादकारी है और यह चित्र भारतीय चित्रकला की सर्वोच्चता सिद्ध करते हैं।
(10) आर्य संस्कृति के प्रसार का युग
गुप्त काल वास्तव में आर्य संस्कृति के प्रसार का युग था। इस काल में आर्य संस्कृति का प्रचार विदेशों में भी हुआ। लंका, वर्मा, इंडोनेशिया, कंबोडिया, चीन, कोरिया, जापान, थाईलैंड जैसे देशों में धर्म प्रचारकों एवं व्यापारियों के माध्यम से भारतीय संस्कृति प्रसारित हुई। आज भी इन देशों में भारतीय संस्कृति के अवशेष मिलते हैं।
निष्कर्ष — उपयुक्त विवरणों से यह स्पष्ट होता है कि गुप्त काल में राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में गहन उन्नति हुई। ऐसी उन्नति ना तो कभी पहले हुई थी और ना कभी गुप्त काल के बाद हुई। गुप्त काल की महत्वता पर प्रकाश डालते हुए श्री अरविंद जी ने कहा है कि, “भारत ने अपने इतिहास में कभी भी अपनी शक्ति को अनेक दिशाओं में इस प्रकार प्रफुल्लित होते नहीं देखा, जिस प्रकार कि गुप्त काल में देखा था।”
impo-Short questions and answers
गुप्त काल को स्वर्ण युग किसने कहा?
गुप्त काल को इतिहासकारों ने गुप्त काल को भारतीय इतिहास के स्वर्ण युग के नाम से संबोधित किया है। लेकिन डॉ० स्मिथ को भी कहा जा सकता है।
भारत का स्वर्ण युग किस काल को कहा जाता है?
गुप्त काल को भारत का स्वर्ण युग काल कहा जाता है।
गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है?
गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है - (1) महान सम्राटों का युद्ध (2) श्रेष्ठ शासन व्यवस्था का युग (3) धार्मिक सहिष्णुता का युग (4) सामाजिक उपलब्धियों का युग (5) सांस्कृतिक एकता का युग (6) राजनीतिक एकता का युग (7) साहित्य के उत्कर्ष का युग (8) वैज्ञानिक प्रगति का युग
गुप्त वंश के संस्थापक कौन था?
गुप्त वंश के संस्थापक श्री गुप्त (चंद्रगुप्त प्रथम)।
गुप्त वंश की राजधानी?
गुप्त वंश की राजधानी पाटलिपुत्र थी।
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