जर्मनी में लूथरवाद की सफलता के कारण | luthervad ki safalta ke karan

जर्मनी में लूथरवाद की सफलता के कारण

वैसे तो लूथर से पूर्व भी जॉन विकलिफ आदि अनेक व्यक्तियों ने पोप के व्यभिचार एवं भ्रष्टाचार का विरोध किया था, किंतु उन्होंने पूर्व के विरुद्ध कोई नया धर्म प्रचलित करने का प्रयास नहीं किया था। लूथर प्रथम व्यक्ति था, जिसने रोमन कैथोलिक धर्म की समांतर एक नवीन धर्म स्थापित किया। लूथर जर्मन का निवासी था तथा उसके धर्म प्रचार आरंभ करने का श्रेय जर्मनी को ही है। जर्मनी में ही नवयुग के आगमन के साथ-साथ छापेखाने का आविष्कार हुआ, जिससे ‘बाइबिल’ का जर्मन भाषा में अनुवाद किया गया। लूथर ने अपने मत के समर्थन में अनेक पुस्तकें प्रकाशित की। इन पुस्तकों में चर्च की बुराइयां बताई गई और पूर्व के सिद्धांतों तथा आदर्शों का तर्क के द्वारा खंडन किया गया। यह पुस्तक ही भारी संख्या में छापी गई थी। जनता ने पुस्तकों को बड़ी दिलचस्पी के साथ पड़ा। जिस कारण जर्मनी में लूथरवाद को अधिक प्रोत्साहन मिला। 

जर्मनी में लूथरवाद की सफलता के कारण | luthervad ki safalta ke karan

लूथरवाद की सफलता के कारण

(1) वमर्स की परीषद् 

मार्टिन लूथर के बढ़ते हुए प्रभाव को समाप्त करने के लिए सम्राट चार्ल्स पंचम ने वमर्स नगर में परिषद की बैठक बुलाई। सम्राट ने अपनी जिम्मेदारी पर लूथर को भी आमंत्रित किया। बैठक में लूथर से अपने विचारों को त्याग देने के लिए कहा गया, लेकिन उसने ऐसे करने से इंकार कर दिया। बैठक में उसे न्याय विरुद्ध आचरण करने वाला ठहराया गया। मार्टिन लूथर की जिंदगी जब्त घोषित की गई और उसकी पुस्तक नष्ट करने की आज्ञा दे दी गई। लूथर के मित्र उसे छुपाकर विटन वर्ग दुर्ग में ले गए। वमर्स कि परिषद का निर्णय कागज पर ही रह गया, क्योंकि सम्राट  चार्ल्स पंचम फ्रांसीसीयों से युद्ध करने में व्यस्त थे। 

(2) लूथरवाद का अर्थ

लूथरवाद का अर्थ; लूथर ने पोप पादरियों के भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ दिया तथा तथा तत्कालीन ईसाई धर्म के दोषों से जनता को परिचित करा कर उन्हें एक नवीन मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। इस प्रकार लूथर ने एक नवीन धर्म का प्रतिपादन किया जो ‘प्रोटेस्टेंट' (Protestant Religious) धर्म के नाम से विख्यात हुआ। इस धर्म के द्वारा प्रचलित धर्म के दोषों का निराकरण करने का लूथर ने प्रयास किया। बहुत धार्मिक आडंबर का विरोधी था। उपवास, प्रायश्चित एवं तीर्थ यात्रा में उसका विश्वास नहीं था। मार्टिन लूथर का कथन था कि सत्कर्म द्वारा ही मनुष्य स्वर्ग प्राप्त कर सकता है तथा उसके कर्मों का फल उसे अवश्य मिलता है। पोप के क्षमा- पत्र उचित दंड को कम नहीं कर सकते। अपने पापों को क्षमा कराने के लिए मनुष्य को ईश्वर में विश्वास रखना चाहिए तथा अच्छे कर्म करने चाहिए, अन्यथा धन के द्वारा क्षमा पत्र खरीदने से उसके पाप नष्ट नहीं हो सकते।  

(3) लूथरवाद सिद्धांत का प्रचार  

 इन सिद्धांतों का प्रचार मार्टिन लूथर ने शांतिपूर्ण ढंग से किया। वह निरर्थक रक्तपात का विरोधी था तथा धर्म प्रसार के लिए रक्तपात की मार्ग का आश्रय लेना उचित नहीं समझता था, तथापि उसके द्वारा प्रचलित धर्म ने संपूर्ण यूरोप में खलबली मचा दी तथा रोमन कैथोलिक ने उसके धर्म को नष्ट करने के लिए भाषण युद्धों का सहारा भी लिया। फल स्वरूप लगभग 100 वर्षों से भी अधिक समय तक यूरोप इन धार्मिक युद्ध में फंसा रहा। यह धार्मिक युद्ध युद्ध के जीवनकल में ही आरंभ हो चुके थे तथा 1546 ईसवी में, जिस समय लूथर की मृत्यु हुई, यूरोप धार्मिक संघर्षों में संलग्न था।

(4) लूथर वाद का जर्मनी में प्रसार

लूथर का जन्म कृषक वर्ग में हुआ था। तथा कृषकों के समान ही वह भी सरल हृदय एवं शुद्ध चरित्र वाले व्यक्ति था। उनके विचार भी सरल एवं शुद्ध थे, जिस कारण जर्मनी में उसका अपार स्वागत हुआ तथा अपनी सत्यता इमानदारी एवं दृढ़ संकल्प के कारण ही वह यूरोप के धार्मिक नेता पोप की शक्ति को शेयर करने में सफलता प्राप्त कर सका। उसके विचारों ने उत्तरी जर्मनी की जनता को तो उसका अनुयाई बना दिया, परंतु दक्षिणी जर्मनी में लूथर को इतनी सफलता प्राप्त न हो सकी। दक्षिणी जर्मनी में कृषकों ने धर्म सुधार आंदोलन से उत्साहित होकर अपनी भूमि पतियों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। शासकों ने इस विद्रोह को कठोरता से कुचल दिया। लगभग एक लाख बीस हजार कृषक तबाह हो गए। इस संघर्ष में लूथर ने सामंतों का पक्ष लिया जिसके कारण कृषक वर्ग लूथर से अप्रश्न हो गए। इस स्थिति को समाप्त करने के लिए 1566 ई० में स्पीयर कि एक परिषद ने निर्णय लिया कि जब तक आम सभा की बैठक ना हो जाए तब तक हर रियासत धर्म के मामलों में अपना निर्णय ले सकती है। इस प्रकार यह सिद्धांत स्वीकार कर लिया गया कि हर शासक अपनी रियासत का धर्म निश्चित कर सकता है। 

महत्वपूर्ण बिंदु — जर्मन संघ का सम्राट चार्ल्स पंचम रोमन कैथोलिक था तथा प्रोटेस्टेंट धर्म के विरुद्ध था। अतः वह सेक्सन्नी, हेस, ब्रैंडम वर्ग आदि प्रोटो स्टैंड राज्यों के संघ का विनाश करना चाहता था, परंतु आरंभ में इटली के युद्ध में संलग्न रहने के कारण वह इस ओर पूर्ण ध्यान नहीं दे सका। इसी समय 1546 में लूथर की मृत्यु हो गई। मृत्यु के उपरांत लूथर का नाम और अधिक श्रद्धापूर्वक लिया जाने लगा तथा उसके अनुयायियों ने उसके धर्म के सरल सिद्धांतों का उत्साह पूर्वक प्रसार करना आरंभ कर दिया।

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