अशोक भारत का महान राष्ट्रीय सम्राट - ashok ek mahan samrat tha

 अशोक से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्पष्ट करेंगे जैस -

अशोक भारत का राष्ट्रीय सम्राट 
अशोक भारत का महान सम्राट

 ashok ek mahan samrat tha;  अशोक की गणना संसार के महानतम शासकों में की जाती है। इसका मूल कारण यह है कि उसने अपने उच्च आदर्शों एवं आध्यात्मिक चिंतन तथा त्याग के द्वारा भारतीय राजनीति में अपना एक पृथक स्थान स्थापित किया तथा एक विशाल साम्राज्य में एक संगठित शासन प्रबंध की स्थापना करके जनता की उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर दिया। एच० जी० वेल्स ने उसकी तुलना अनेक राजाओं तथा संतों से करते हुए लिखा है कि “इतिहास के स्तंभों को भरने वाले राजाओं, धर्म अधिकारियों, संतो, महात्माओं आदि के मध्य अशोक का नाम आज भी 2000 वर्षों के उपरांत ठीक उसी प्रकार उज्जवल है जितना कि उस युग में था और आशा है कि भविष्य में भी आकाश में प्रायः एकाकी नक्षत्र की भांति ही देदीप्यमान रहेगा।”  

अशोक भारत का महान सम्राट 

अशोक के चरित्र में निम्नलिखित गुण थे जिनके कारण ही वह विश्व का महानतम सम्राट माना जाता है —

(1) महान विजेता के रूप में अशोक 

यद्यपि इतिहास में अशोक का नाम एक विजेता के रूप में लिया जा सकता है,‌‌ तथापि  इसके साथ-साथ उसे धर्म -विजेता की कोटि में रखना भी अनुचित नहीं होगा। कलिंग विजय उसकी अंतिम विजय थी, उसके उपरांत उसने कभी भी युद्ध ना करने की शपथ लेकर अहिंसा का जीवन पर्यंत पालन किया। अतः यह कहा जा सकता है कि उसकी विजय सैन्य बलिया बाहुबल की विजय नहीं बल्कि आत्मबल वह प्रेम बल्कि विजय थी। उसने धर्म प्रचारकों की सहायता से तथा उन्हें सत्य, सद्भावना वह सत्कर्म आदि का पाठ पढ़ा कर भरत में तथा विदेशों में धर्म- पताका फहराने का दृढ़ संकल्प किया। 

(2) महान शासक के रूप में अशोक

अशोक ने अपने विशाल साम्राज्य का शासन प्रबंध अत्यधिक ही उचित ढंग से किया था। उसने जनता की आध्यात्मिक उन्नति तथा भौतिक सुखों का सदैव ध्यान रखा था। इसलिए उसके शासन को ‘प्रबुद्ध राजतंत्र’ कहा जाता है। उस के शासनकाल में प्रजा बहुत सुखी और संपन्न थी। उसने प्रजा की आचरण का निरीक्षण करने के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति की थी। अशोक का दृष्टिकोण अत्यधिक व्यापक था। उसने अपनी प्रजा को संतानतुल्य समझकर ऐसे कार्यो को बंद करा दिया था जिनसे प्रजा का अहित होता हो। डॉ० स्मिथ ने अशोक के विजय में यह लिखा है, “यदि अशोक योग्य न होता तो वह अपने विशाल साम्राज्य पर 40 वर्ष तक सफलतापूर्वक शासन ना कर सका होता और अपना ऐसा नाम ना छोड़ गया होता जिससे कि लोग 2000 वर्षों के उपरांत भी नहीं भूले हैं।”

(3) महान धर्म प्रचारक के रूप में अशोक

अशोक ने कलिंग युद्ध के उपरांत बौद्ध धर्म का प्रचार करने का निश्चय कर लिया था। यद्यपि वह बौद्ध धर्म का समर्थक था किंतु उसका दृष्टिकोण संकीर्ण नहीं था। उसका धर्म-कर्म कांडों से रहित था, तथा धर्म का मूल आधार ईश्वर का पितृत्व मानव का भ्रातृत्व था। वास्तव में जिन धार्मिक नियमों का पालन करने के लिए उसने जनता को प्रसारित किया था वह सार्वकालिक व सार्वभौमिक थे। उसके धर्म का वास्तविक लक्ष्य लोक कल्याण की भावना था।

(4) व्यावहारिक जन सेवक के रूप में अशोक

अशोक ने सदैव अपने आदर्शों को व्यवहारिक रूप प्रदान करने का प्रयास किया तथा अपने सिद्धांतों को शिलाओं, स्तूपो व स्तंभों पर खुदवा कर संसार में मानवता के प्रेम का संदेश दिया। यही कारण है कि आज भी उसके इन कार्यों के फल स्वरुप संसार में उसका नाम अमर है। अशोक का व्यक्तित्व उदारता, प्रेम तथा दया का सम्मिश्रण था। वह अपनी को प्रजा का सेवक मानता था तथा प्रजा के हित के लिए उसने अनेक कार्य किए थे। इतना ही नहीं, उसका यह आदेश था कि उसकी प्रजा किसी भी समय, किसी भी स्थान पर उसे अपने कष्टों से अवगत करा सकती है। इस प्रकार वह पूर्ण रुप से जन कल्याण के लिए समर्पित था। 

(5) महान राष्ट्र निर्माता के रूप में अशोक

अशोक ने सदैव राष्ट्र के संगठन एवं उसको एकात्मक रूप देने का प्रयत्न किया। उसने अपने जितने भी धर्म उपदेशों को स्तंभों एवं शिलाओ पर उत्तीर्ण कराया, उनकी भाषा जनसाधारण की भाषा पालि‌ थी। इस भाषा एवं लिपि की एकता के फल स्वरुप उसने राजनीतिक एकता को बल दिया। वास्तव में वह सांस्कृतिक चेतना के द्वारा अपने राज्य को उन्नत बनाना चाहता था। उसने अपने साम्राज्य में एक ही न्याय व्यवस्था को लागू किया था, जिससे उसकी साम्राज्य में एकता एवं समानता को दृढ़ता प्राप्त हुई। अशोक ने स्थापत्य तथा शिल्प कला को भी प्रोत्साहित किया। उसके काल के स्तंभ में इस बात के स्पष्ट उदाहरण है। अतः हम महान राष्ट्र निर्माता भी था। 

(6) महान आदर्शवादी के रूप में अशोक

अशोक ने राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक समस्त क्षेत्रों में महान आदर्शों का पालन किया। उसका लोकतंत्र बाद में दृढ़ विश्वास था तथा ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के सिद्धांत में वह विश्वास करता था। अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार करके सामाजिक समानता व स्वतंत्रता का पोषण किया तथा धार्मिक क्षेत्र में सहिष्णुता का आश्रय लिया। अशोक अपने धर्म के साथ -साथ ही अन्य धर्मों का भी आदर किया करता था।

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(7) चरित्र की उज्जवल

यद्यपि अशोक का प्रारंभिक जीवन अधिक उज्जवल नहीं माना जा सकता तथापि कालांतर में कलिंग युद्ध के उपरांत उसके चरित्र में महान परिवर्तन हुए, उसे हत्याकांड एवं रक्त पात्र से घृणा हो गई। बौद्ध धर्म ग्रहण करने के उपरांत उसमें सरलता, पवित्रता व आदर्श का विश्व विकास हुआ और उसका उद्देश्य विश्व शांति एवं जनकल्याण के लिए कार्य करना ही रह गया था। 

निष्कर्ष — इन सभी विवेचना के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अशोक का चरित्र महान व्यक्तित्व वाला था। उसने अपने साम्राज्य के समस्त साधनों का उपयोग प्रजा हित तथा धर्म प्रचार के लिए किया था। डॉ० राधा कुमुद मुकर्जी ने कहा है, “प्रत्येक युग व प्रत्येक देश में अशोक जैसा सम्राट पैदा नहीं होता। अशोक आज भी संसार के इतिहास में अपनी क्षमता नहीं रखता है।” 


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impo-Short questions and answers 

सम्राट अशोक के गुरु का नाम?

सम्राट अशोक के गुरु का नाम चाणक्य था।

अशोक के कितने भाई थे?

अशोक के अशोक को मिलाकर 100 भाई थे।

अशोक के कितने पुत्र थे?

अशोक के 3 पुत्र थे। 1. महेंद्र, 2. तिलावा, 3. कुणाला।

अशोक भारत का महान राष्ट्रीय सम्राट?

(1) महान विजेता के रूप में अशोक (2) महान शासक के रूप में अशोक (3) महान धर्म प्रचारक के रूप में अशोक (4) व्यावहारिक जन सेवक के रूप में अशोक (5) महान राष्ट्र निर्माता के रूप में अशोक (6) महान आदर्शवादी के रूप में अशोक (7) चरित्र की उज्जवल

सम्राट अशोक के पत्नी का नाम क्या था?

सम्राट अशोक के 3 पत्नी थी, जिनका नाम - 1. महारानी देवी, 2. तिष्यरक्षा, 3. असंधिमित्र। ,

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