प्रत्यक्ष निर्वाचन क्या हैं? तथा गुण एवं दोष | direct election

निर्वाचन प्रणाली

 सामान्यतया निर्वाचन की दो प्रणालियां होती हैं— प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष। जब मतदाता मतदान कर के प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं, उसे प्रत्यक्ष निर्वाचन कहते हैं। भारत में लोकसभा, विधानसभाओं के सदस्यों का इंग्लैंड की कामन सभा अमेरिका की प्रतिनिधि सभा एवं सीनेट आदि के सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष होता है। 

प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली जब प्रतिनिधि सीधे मतदान द्वारा निर्वाचित ना होकर मतदाताओं द्वारा निर्वाचित निर्वाचक मंडल द्वारा चुने जाते हो, तब इस प्रकार के निर्वाचन को अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली कहा जाता है। भारत के राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन और पत्यक्ष ढंग से ही होता है। 

सभी देशों में किसी न किसी रूप में दोनों प्रणाली विद्यमान रहती हैं। और उनके गुण दोषों का विवरण निम्न प्रकार है— 

प्रत्यक्ष निर्वाचन क्या हैं? तथा गुण एवं दोष | direct election

प्रत्यक्ष निर्वाचन के गुण एवं दोष 

प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली के गुण 

प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली के गुण कुछ इस प्रकार है —

(1) लोगों में राजनीतिक जागृति 

प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली राजनीतिक परीक्षण तथा राजनीतिक जागृति उत्पन्न करती है। लोग अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होते हैं। प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली में लोग अपने अधिकार के प्रति जागरूक होते हैं क्योंकि उनको यह पता चल जाता है कि उनका अधिकार है कि वह अपना प्रत्याशी या प्रतिनिधि स्वयं चुने जिससे उन्हें भविष्य में उसका फल मिल सके।

(2) मतदाता और प्रतिनिधियों के बीच संपर्क

प्रत्यक्ष प्रणाली के अंतर्गत मतदाता और प्रतिनिधि में सीधा संपर्क स्थापित होता है। प्रत्येक प्रत्याशी अधिक से अधिक मतदाताओं से संपर्क करते हैं और उन्हें अपने दल के कार्यक्रमों और नीतियों के विषय में अवगत कराते हैं। प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली में मतदाता और प्रत्याशी के बीच सीधा संपर्क होता है क्योंकि जनता स्वयं अपना प्रतिनिधि देखकर चुनती है। जिस कारण अगर आगे कुछ दिक्कत हुई तो लोग अपने चुने गई प्रत्याशी से सीधा संपर्क कर सकते हैं।

(3) उत्तरदायित्व की भावना

इस प्रणाली का सबसे बड़ा लाभ यह है कि प्रतिनिधि सीधे जनता के प्रति उत्तरदाई होते हैं। वह जनमत के विरुद्ध कोई कार्य नहीं कर सकते। वह हमेशा इस बात का ध्यान रखते हैं कि उन्हें फिर भी जनता के पास जाना पड़ेगा, इसलिए जनता की भलाई के लिए अधिक से अधिक प्रयत्नशील रहा जाए। यही उनकी धारणा होती है।

(4) गौरव की भावना

प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली में लोगों को यह अनुभव होता है कि राष्ट्रीय राजनीति में उनका भी हाथ होता है। चुनाव करते समय उनके अंदर गौरव की भावना जागृत होती है कि अंतिम सत्ता उन्हीं में निवास करती है।

(5) भ्रष्टाचार का अभाव

इस प्रणाली में भ्रष्टाचार का दायरा काम रहता है, यानी भ्रष्टाचार का अभाव पाया जाता है। मतदाताओं की संख्या बहुत बड़ी होने के कारण उन्हें प्रलोभन से अथवा बल से प्रभावित करना नहीं है। इस निर्वाचन प्रणाली में भ्रष्टाचार का अभाव इस कारण भी होता है क्योंकि इसमें प्रत्यक्षी अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है। जनता स्वयं अपना प्रतिनिधि चुनती है।

प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली के दोष 

प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली के दोष लिखिए, दोष कुछ इस प्रकार है —

(1) खर्चीली व्यवस्था

यह पद्धति अत्यंत खर्चीली है। व्यापक पैमाने पर चुनाव व्यवस्था करने में बहुत व्यय होता है। व्यय इतना हो जाता है कि इसका कुप्रभाव देश की आर्थिक व्यवस्था पर पढ बिना नहीं रहता। प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली को आयोजित करने के लिए बहुत साधन का उपयोग होता है क्योंकि हर क्षेत्र में मतदान केंद्र बनाना पड़ता है और वहां पर पुलिस व अन्य प्रशासन को भेजना पड़ता है और साथ में ही आधुनिक मशीनों का भी उपयोग होता है, जिस कारण प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली में बहुत साधन का व्यय होता है। जिसका असर राष्ट्र की आय पर पड़ता है।

(2) मूर्खों के हाथ में निर्णय

इस प्रणाली का सबसे बड़ा दोषी हो है कि इसमें मूर्खों और ज्ञानियों के हाथ में बहुमत रहता है और उन्हीं के निर्णय ऊपर प्रतिनिधियों का निर्वाचन होता है। क्योंकि मूर्ख लोग पैसों के लालच में आकर या अन्य किसी वस्तु के लालच में आकर अपना बहुमूल्य मत किसी भ्रष्ट प्रतिनिधि को दे देता है। इस प्रणाली में आम जनता अपना मत का प्रयोग करके अपना प्रतिनिधि चुनती है जिस कारण कुछ मूर व्यक्तियों के चलते शासन मूर्ख ही व्यक्तियों के हाथ में चला जाता है, क्योंकि कुछ मूर्ख जनता कुछ चंद रुपयों या अन्य वस्तुओं के लालच में आकर अपना मत किसी ऐसे व्यक्ति या प्रतिनिधि को दे देते हैं जो अयोग्य या मूर्ख हो।

(3) प्रत्याशियों के व्यक्तित्व का सही मूल्यांकन नहीं 

इस पद्धति में प्रत्याशी के गुणों का सही सही मूल्यांकन नहीं हो पाता है। जबरदस्त प्रचार के प्रभाव में आकर मतदाता प्रत्याशी के व्यक्तित्व कार्यक्रम पर विचार करके मतदान नहीं कर पाते। प्रत्याशी अपना प्रचार प्रसार के बलबूते पर और अन्य किसी माध्यम से अपने मतों को बटोरता है। इस पद्धति में प्रत्याशी सही मूल्यांकन इसलिए भी नहीं हो पाता क्योंकि लोग अपना मत बिना सोचे समझे दे देते हैं कुछ ही 10, 20 % होंगे जो अपना मत सोच समझकर किसी योग्य प्रत्याशी को देते होंगे। 

(4) पेशेवर राजनीतिज्ञों को प्रधानता 

इस प्रणाली के अंतर्गत पेशेवर रजनीतिज्ञों की प्रधानता रहती है। यह लोग भोली भाली जनता को अपने स्वास्थ्य के अनुसार मोड़ने तथा प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। और जो पेशेवर राजनीतिज्ञ होते हैं वह लोग भली-भांति जानते हैं कि जनता को कैसे और किस प्रकार अपनी और झुकाना है जिस कारण ही पेशेवर राजनीतिज्ञ अपनी सरकार बनाने में सफल हो जाते हैं। जिस कारण एक कुशल प्रतिनिधि का चुनाव करना रह जाता है। फलत: अच्छे प्रत्याशियों का चयन नहीं हो पाता है।

1 टिप्पणियाँ

  1. हमारा उद्देश्य यह है उपयोगकर्ता को सरल एवं संपूर्ण ज्ञान मिल सके। धन्यवाद 🙏

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