मुगलों की भू-राजस्व व्यवस्था
मुगलों की भू-राजस्व व्यवस्था; अफ़गानों के शासनकाल में भारत वर्ष में जागीरदारी प्रथा थी। इसके पश्चात मुगल वंश के बाबर हुमायूं को भूमि राज व्यवस्था की ओर ध्यान देने का समय नहीं मिला, हुमायूं का प्रतिद्वंदी शेर शाह प्रथम राज्य की आय के साधन की व्यवस्था करने की दिशा में अग्रसर हुआ। उसने लगान की दर निश्चित की तथा भूमि की पैमाइश कराई। उसने भूमि पर कृषकों का अधिकार स्वीकार किया तथा उन्हें पट्टे प्रदान किए। हुमायूं ने लौटकर पुन: हो जागीरदारी प्रथा प्रारंभ की। हुमायूं के पश्चात सर्वप्रथम अकबर का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ। उसने भूमि सुधार के लिए नवीन प्रयोग करने आरंभ कर दिए। यद्यपि आरंभ में इन प्रयोगों में उसे विशेष सफलता नहीं मिली परंतु उसकी अथक प्रयास तथा उसके पदाधिकारियों के कठोर परिश्रम का परिणाम अत्यंत लाभकारी निकला।
अकबर के भूमि सुधार (भू-राजस्व व्यवस्था)
(1) भूमि की पैमाइश (मापने की क्रिया)
इस नवीन व्यवस्था के अनुसार सर्वप्रथम अकबर ने समस्त कृषि योग्य भूमि की पैमाइश करवाई। अकबर से पूर्व शेरशाह ने भी भूमि की पैमाइश करवाई थी। परंतु तब पैमाइश के लिए रस्सी का प्रयोग किया गया था। रस्सी बरसात में शुकुल कर छुट्टी हो जाती थी तथा अन्य समय में वह बढ़ जाती थी, अतः पैमाइश का उचित तरीका नहीं था। अकबर ने वासियों को लोहे के छल्ले से जुड़वा कर भूमि नापने के उपकरण निर्मित करवाएं तथा उसने सिकंदर लोदी के गज को प्रमाणिक माना, जिसकी लंबाई 32 इंच के लगभग होती थी। संपूर्ण राज्य में सीकर के द्वारा भूमि नापी गई।
(2) भूमि का वर्गीकरण
पैमाइश के पश्चात समस्त कृषि योग्य भूमि को चार भागों में विभाजित किया जाता था— (1) भूमि की उपज के अनुसार सर्वश्रेष्ठ भूमि, जिस पर प्रत्येक वर्ष कृषि की जाती थी तथा जिसे कभी परती नहीं छोड़ना पड़ता था, पोलज (वह भूमि जिसमें लगातार खेती की जाती है और कभी खाली नहीं छोड़ी जाती) भूमि कहलाती थी।
(2) परौती भूमि (वह भूमि जिसे कुछ समय के लिए खाली छोड़ा जाता है), जिस पर 1 वर्ष कृषि करके उपजाऊ बनाने हेतु 1 वर्ष के लिए छोड़ दिया जाता था।
(3) चांचर, यह भूमि थी जिसको दो-तीन वर्ष तक परती छोड़ने के उपरांत कृषि योग्य बनाया जाता था।
(4) बंजर (वह भूमि जिसमें लवणों के अधिकता होती है) को 5 अथवा उससे अधिक वर्ष तक परती छोड़ना पड़ता था, जिससे वह कृषि योग्य बन सके।
(3) नकद राशि में कर को संग्रह करना
अकबर अनाज से अधिक नगद कर वसूल करना चाहता था। अतः विभिन्न प्रदेशों में अनाज की दर प्रत्येक वर्ष में पिछले 10 वर्षों के अनुपात से निर्धारित की जाती थी। गेहूं कपास तेल आदि 95 वस्तुओं की दर की सूची प्रत्येक प्रदेश के लिए तैयार की जाती थी। कार सर्वप्रथम अनाज और उत्पादित की जाने वाली वस्तुओं के रूप में निश्चित किया जाता था, तत्पश्चात उस प्रदेश की दर के हिसाब से उसका मूल्य निर्धारित करके उसे वसूल किया जाता था।
(4) राज्य कर संग्रह करने की पद्धति
राजस्व कर वर्ष में दो बार वसूल किया जाता था रवि की फसल से तथा खरीफ की फसल से। गांव के मुखिया भूमि कर वसूल करने में आमिर गुजार पोद्दार आदि की सहायता करते थे तथा इस सहायता के लिए उन्हें 2 से ढाई प्रतिशत कमीशन मिलता था। सम्राट का आदेश था कि कर वसूल करने वाले कर्मचारी पहले कृषकों से बकाया कर वसूल करें, तत्पश्चात उस वर्ष की उपज का कर संग्रह करें। कृषकों को कर्मचारियों के अत्याचारों से बचाने के लिए प्रत्येक कृषक को पट्टा प्रदान किया जाता है। जिसमें उसके द्वारा प्रयोग की जाने वाली भूमि की पैमाइश स्थान निश्चित कर अंकित रहता था।
(5) भूमि पर कर पद्धति का व्यावहारिक (व्यवहार योग्य) रूप
भूमि सुधारों के द्वारा अकबर ने भारत में रजत वाली प्रथा प्रचलित की तथा कृषि को का सरकार से सीधा संपर्क स्थापित किया और उन दोनों के बीच के वर्ग का उसने अंत कर दिया। अकबर ने किसी को की सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा। भूमि पर उनका अधिकार स्वीकृत करके उन्हें पट्टे दिए गए तथा उनके कबूलियत पर हस्ताक्षर करवाए गए। बंजर भूमि के लिए आर्थिक सहायता प्रदान कर के कृषकों को खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
अकबर के भूमि सुधार के परिणाम (प्रभाव)
(1) कृषकों को नवीन व्यवस्था के द्वारा काफी सुरक्षा प्राप्त हुई। 22 प्रकार के अन्य करों को सम्राट अकबर ने समाप्त कर दिया। पदों के द्वारा सम्राट ने भूमि पर किसको का अधिकार सूचित किया तथा उनसे निश्चित कर के अतिरिक्त अन्य कुछ ना देने की प्रतिज्ञा की। दुर्भिक्ष के समय राज्य उनका क्रमांक करके उनकी प्रत्येक प्रकार की सहायता करता था तथा समय पड़ने पर उन्हें ऋण प्रदान करता था, जिससे महाजन के ब्याज और शोषण से उनकी रक्षा होती थी।
(2) सम्राट अकबर के समय कृषकों का विशेष ध्यान दिया तथा तथा युद्ध के लिए प्रस्थान करती हुई सेना के द्वारा यदि संकीर्ण मार्ग के होने के कारण फसल की क्षति हो जाती थी तो उसकी क्षति पूर्ति राज्य द्वारा की जाती थी। सैनिकों को सम्राट का आदेश था कि वह कृषकों को किसी भी प्रकार की हानि ना पहुंचाएं। इस प्रकार मुगलों की भूमि व्यवस्था कृषकों के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हुई।
(3) ब्रिटिश काल में भी सरकार को चाहे कृषि को से उतना धन प्राप्त नहीं हो सका हो परंतु उनके द्वारा स्थापित जमीदारों को लगान का दोगुना धन शिक्षक से वसूल करने का पूर्ण अधिकार था। तथा वह इससे भी अधिक ही वसूल करते थे। अतः किसी को ऊपर करो का भार कम नहीं था यद्यपि कृषि को तथा सरकार के मध्य संबंध रखने वाले वर्ग को इस व्यवस्था से लाभ होता था। अकबर की भूमि व्यवस्था से राज्य कृषक वर्ग दोनों को ही लाभ पहुंचा था।
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