लोकतंत्र के आधारभूत सिद्धांत
लोकतंत्र के आधारभूत सिद्धांत; लोकतंत्र के आधारभूत सिद्धांतों (लोकतंत्र के सिद्धांत) को किसी दार्शनिक अथवा राजनीतिक विचारक अथवा राजनीतिज्ञ ने किसी निश्चित समय पर निर्धारित और निश्चित नहीं किया है। बल्कि इनका क्रमिक विकास हुआ है। लोकतंत्र के प्रमुख आधारभूत सिद्धांत निम्नलिखित हैं—
लोकतंत्र के सिद्धांत
(1) व्यक्ति साध्य तथा अन्य सभी तत्व साधन मात्र
loktantra ke siddhant; लोकतंत्र का आधारभूत सिद्धांत ही है कि व्यक्ति साध्य है तथा अन्य सभी तत्व उसकी सुख और समृद्धि के लिए साधन मात्र है। प्राकृतिक साधनों का प्रयोग तो मनुष्य अपने सुख के लिए करता ही है। इसके अतिरिक्त मनुष्य द्वारा निर्मित सभी वस्तुएं उसके सुख के लिए साधन स्वरूप है, उनका स्वयं कोई महत्व नहीं है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि राज्य को भी एक साधन माना गया है।
(2) व्यक्ति की गरिमा
लोकतंत्र का यह माननीय सिद्धांत है कि मनुष्य का व्यक्तित्व पवित्र और सम्मानीय है। लोकतंत्र के समर्थकों का विचार है कि मनुष्य प्रकृति से अच्छा है और उसमें पूर्ण होने की सामर्थ्य विद्यमान है। इस प्रकार यह व्यक्ति की गरिमा पर विशेष बल देता है।
(3) सुख का सिद्धांत
लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि मनुष्य के जीवन का उद्देश्य सुखी जीवन व्यतीत करना है। सुख जीवन का अंतिम उद्देश्य है और यह मनुष्य की मूल प्रकृति में ही निहित होती है। सुख के संबंध में विचारकों में वैचारिक विभिन्नता तो हो सकती हैं परंतु जहां तक जीवन के अंतिम साध्य का संबंध है, लोकतंत्र के सभी समर्थक स्वीकार करते हैं कि सुख को छोड़कर जीवन गाने कोई प्रयोजन नहीं हो सकता है। उपयोगितावाद तो सुखवाद पर ही आधारित है। वस्तुतः लोकतंत्र की कल्याणकारी राज्य होता है तथा इसमें किसी विशेष वर्ग के नहीं बल्कि समस्त जनता के हितों और सिखों की ओर ध्यान दिया जाता है।
(4) स्वतंत्रता का सिद्धांत
स्वतंत्रता का सिद्धांत भी लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। लोकतंत्र में जितनी स्वतंत्रता जनता को प्राप्त होती है उतनी स्वतंत्रता किसी अन्य शासन व्यवस्था में प्राप्त नहीं होती हैं। इस शासन प्रणाली में आलोचना को केवल सहन ही नहीं किया जाता है, बल्कि इसका सम्मान भी किया जाता है। व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए समुचित सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक परिस्थितियों के उपयोग की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
(5) समानता का सिद्धांत
लोकतंत्र में समानता पर विशेष बल दिया जाता है। लोकतंत्र का दर्शन जन्म, जाति, धर्म, नस्लें तथा लिंग के आधार पर भेदभाव करने के सिद्धांत को स्वीकार नहीं करता है इस सिद्धांत के अनुसार सभी व्यक्ति कानून के समक्ष समान है और कोई व्यक्ति अथवा वर्ग विशेष अधिकारों का प्रयोग नहीं कर सकता है।
(6) स्वतंत्र न्यायपालिका
लोकतंत्र में न्यायपालिका को व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका से स्वतंत्र रखा जाता है। न्यायपालिका ही नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है।
(7) मौलिक अधिकार सिद्धांत
लोकतंत्र में जनता को मौलिक अधिकार प्रदान किए जाते हैं। मौलिक अधिकारों के अभाव में व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास संभव नहीं है। अतः मलिक अधिकारों को प्रदान करना लोकतंत्र का महत्वपूर्ण सिद्धांत है।
(8) लोक संप्रभुता का सिद्धांत
लोकतंत्र का सिद्धांत है कि समाज की सर्वोच्च शक्ति संपूर्ण समाज में ही निहित होनी चाहिए, किसी एक व्यक्ति या व्यक्ति- समूह में नहीं। इसी को लोक संप्रभुता का सिद्धांत कहा जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जनता ही राज शक्ति का अंतिम स्रोत है और सरकार अपनी समस्त शक्तियां जनता से ग्रहण करती है।
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भारत में लोकतंत्र की स्थिति
(1) भारत में लोकतंत्र की स्थिति ; भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है परंतु भारत में लोकतंत्र की सफलता के लिए आदर्श दशाएं विद्यमान नहीं है। भारत की जनता पूर्ण रूप से शिक्षित एवं राजनीतिक रूप से जागरूक नहीं है। यहां जनसंख्या का अधिकांश भाग अशिक्षित एवं अंधविश्वासी है। जनता का नैतिक स्तर भी निरंतर गिरता जा रहा है। परिणाम स्वरूप सामाजिक तथा शासन में भ्रष्टाचार में भी दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है। राजनीतिक दलों की संख्या में अवैध रूप से वृद्धि हो रही है। अधिकांश राजनीतिक दलों का आधार राजनीतिक एवं आर्थिक ना होकर धर्म, जाति, संप्रदाय एवं क्षेत्र से है। निर्वाचित हो जाने के उपरांत अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए दल बदल की प्रवृत्ति जोरों पर चल रही है।
(2) निर्वाचन निष्पक्ष नहीं हो पाते हैं तथा निर्वाचन में व्यापक रूप से अनियमितताएं होती हैं, जिनमें मतपत्रों को बलपूर्वक छीनना मुख्य है। सभी राजनीतिक दल पूर्ण रूप से भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। शासन में घोटालों की भरमार है और राजनीतिक नेताओं का चरित्र भी संदिग्ध है। भारत में आर्थिक समानता का भी अभाव है तथा राजनीतिक पर असामाजिक एवं आपराधिक तत्वों का प्रभाव है। भारत में लोकतंत्र की सफलता के लिए नेताओं का चरित्र उच्च होना आवश्यक है तथा आर्थिक समानता भी अपरिहार्य है।
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