कुषाणकालीन सभ्यता, कला एवं संस्कृति
कुषाण वंश का इतिहास; अफगानिस्तान तथा पंजाब में यूनानियों का अधिकार था। उनके शासन की समाप्ति शक जाति के भीषण आक्रमण द्वारा कर दी गई थी। शकों के साम्राज्य का विनाश कुशवाहा जाति की यूची शाका द्वारा किया गया। कुषाणों के प्रसिद्ध शासक कडफिसीस प्रथम और द्वितीय हुए। उनके बाद इस वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध सम्राट कनिष्क हुआ। जिसने सन 78 ईसवी से 119 ईसवी तक शासन किया। उसकी राजधानी पेशावर थी। उसने अपने विश्वास साम्राज्य का विस्तार उत्तर में तुर्किस्तान तक दक्षिण पश्चिम में गुजरात और मालवा तक तथा पूर्व में बनारस तक किया था। वह बौद्ध धर्म का अनुयाई था। उसने भी सम्राट अशोक के सम्मानित धर्म का प्रचार और प्रसार किया। इसी कारण से उसे इतिहास में द्वितीय अशोक भी कहा जाता है।
(1) कुषाण कालीन सभ्यता
(1) बौद्ध धर्म की सेवा
कनिष्का प्रथम ने बौद्ध धर्म की महान सेवा की थी, बौद्ध भिक्षु अश्वघोष के उद्देश्यो से प्रभावित होकर उसने बौद्ध धर्म की शिक्षा दीक्षा ली। उस समय बहुत धर्म भीतरी मतभेदों के कारण निर्बल बन रहा था। इन मतभेदों को दूर करने के लिए उसके द्वारा चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया। उसी सम्मेलन में बौद्ध भिक्षु और विद्वान अत्यधिक संख्या में सम्मिलित हुए थे। सभा के विद्वानों द्वारा इस दिशा में भरसक प्रयास किया गया कि धर्म के विनाशकारी मतभेद को दूर किया जाएगा। इस कार्य में संपूर्ण रूप से सम्मेलन को सफलता प्राप्त हो नहीं सकी और बौद्ध धर्म दो प्रधान शाखाओं में विभक्त हो गया। वे शाखा हीनयान और महायान के नाम से प्रसिद्ध हुई।
★ कनिष्क ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए बौद्ध विद्वानों को सुदूरवर्ती प्रदेशों में भेजा। उसके परिजनों के परिणाम स्वरूप बौद्ध धर्म का प्रसार तिब्बत, चीन और जापान में भी हुआ। उसने बहुत दिग्गजों के लिए अनेक मठ और विहारों का निर्माण कराया था। उसके समय में अनेक स्तूप, मठ तथा मूर्तियां तक्षशिला, पाकिस्तान के सीमांत प्रांत तथा अफगानिस्तान में उपलब्ध हैं। बौद्ध धर्म के संरक्षक के रूप में कनिष्क सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।
(2) साहित्य की समृद्धि
कुशल शासक और विशेष रूप से कनिष्का प्रथम कला और साहित्य के संरक्षक थे। इस प्रकार की राजकीय संरक्षण ने संस्कृत साहित्य को अत्यधिक समृद्धि प्रदान की। कनिष्का प्रथम का दरबार अनेक प्रतिभावान और लब्ध प्रतिष्ठित विद्वानों की मंडली तथा बौद्ध नेताओं से सुशोभित था। नागार्जुन, अश्वघोष, वसुमित्र तथा चरक का नाम कुषाण सम्राट कनिष्क प्रथम के नाम के साथ जुड़ा हुआ है। इन विद्वानों को उस महान सम्राट का संरक्षण प्राप्त था।
(1) अश्वघोष साहित्य धर्म-दर्शन संगीत माध्य में निपुण और तर्क वितर्क का पंडित था। ‘बज्रसूचि’, बुद्धचरित और सारिपुत्र प्रकरण’ उसकी रेसिपी प्रसिद्ध ग्रंथ थे। कनिष्क कालीन विद्वानों ने संस्कृत साहित्य की विभिन्न विधाओं के साथ-साथ दर्शनशास्त्र एवं आयुर्वेद को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
(2) कुषाण कालीन कला
(1) कला का विकास
कुषाण काल की कला; कुषाण शासन काल शिल्पकला की विभिन्न शैलियों के विकास के दृष्टिकोण से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। कनिष्क के शासन में जिस कला का विकास हुआ, वह इतिहास में ‘गांधार शैली’ के नाम से प्रसिद्ध है। उसने बौद्ध विहार, स्तूप और प्रतिमाओं का अत्यधिक संख्या में निर्माण करवाया। उसकी समय में मथुरा शैली का भी विकास हुआ। उसने कश्मीर में कनिष्क पुर नाम से एक नगर की स्थापना की। एक अन्य नगर उसके द्वारा तक्षशिला के समीप बचाया गया था। उसने साम्राज्य के विभिन्न भागों में बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए अनेक स्तूपो, जातियों और विहार ओं को निर्मित कराया था।
(3) कुषाण कालीन संस्कृति
(1) संस्कृति का विकास
कुषाण कालीन की संस्कृति ; कुषाण वंश के अंतिम सम्राट वसुदेव थे। उनका शासनकाल 122 ईसवी तक का स्वीकार किया गया है। मौर्य वंश के उपरांत सॉन्ग और सातवाहन शासकों के काल में तथा उसके उपरांत कुषाण सम्राटों के समय में भारतीय संस्कृति का महान विकास हुआ। देश को राजनीतिक एकता के संसद सांस्कृतिक एकता की उपलब्धि हुई। साम्राज्यवादी शासन के अंतर्गत लगभग संपूर्ण भारत में एकता का विस्मय जनक प्रसार हुआ। स्थापत्य कला भी अपने पूर्ण उत्कर्ष तक जा पहुंची तथा बौद्ध धर्म का भारत के बाहर सुदूरवर्ती देशों में भी प्रचार हो गया। जिसके कारण बौद्ध धर्म स्थानीय धर्म से उन्नति करके विश्व धर्म के उच्च पद पर स्थापित हो गया।
★कुषाण काल का समय; इस युग में विदेशी शासकों में संपर्कों की स्थापना की गई। भारतीय राजदूत यूनानी शासकों तथा रोमन सम्राट के दरबार में रहने लगी फल स्वरुप हमारी संस्कृति ने उन देशों की संस्कृतियों को प्रभावित किया तथा उनके भी हमारी संस्कृति पर प्रभाव पड़े। इस प्रकार भारतीय संस्कृति का विकास और अत्यधिक होने लगा।
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