मार्क्स की ऐतिहासिक मार्क्सवादी व्याख्या से संबंधित कुछ बिंदुओं को स्पष्ट करेंगे जैसे-
1) इतिहास की मार्क्सवादी व्याख्या
2) मार्क्स की इतिहास की भौतिकवाद व्याख्या
3) ऐतिहासिक युगों का विभाजन
इतिहास की मार्क्सवादी व्याख्या
इतिहास की मार्क्सवादी व्याख्या; मार्क्स का यह मत रहा है कि हमारी राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक सभी प्रकार की संस्थाओं पर आर्थिक परिस्थितियों का प्रभाव पड़ता है। मार्क्स का मत है कि समाज का जो कुछ भी विकास हुआ है उन सब पर आर्थिक परिस्थितियों का मुख्य रूप से प्रभाव पड़ा है। उन्ही के शब्दों में, “सभी सामाजिक, राजनीतिक तथा बौद्धिक संबंध सभी धार्मिक तथा कानूनी पद्धतियां सभी बौद्धक दृष्टिकोण जो इतिहास के विकास क्रम में जन्म लेते हैं, वे सब जीवन की भौतिक अवस्था से उत्पन्न होते हैं।” आर्थिक परिस्थितियों द्वारा सामाजिक ढांचे का निर्माण मानते हुए मार्क्स ने जिस सिद्धांत का प्रतिपादन किया है, वह इतिहास की आर्थिक व्याख्या का भौतिक वादी सिद्धांत कहलाता है।
मार्क्स की इतिहास की भौतिकवाद व्याख्या
मार्क्स ने मानव इतिहास को समझने के लिए भौतिकवाद प्रमुख आधार बताया है। उनके सिद्धांत की मुख्य बातें निम्न प्रकार हैं—
(1) वातावरण का प्रभाव
मार्क्स का मत है कि ऐतिहासिक घटनाओं का निर्धारक तत्व विचार को नहीं मानना चाहिए। विचार किसी भी रूप में वातावरण को प्रभावित नहीं करते हैं। मार्क्स का कथन है कि विचार स्वत: ही वातावरण से उत्पन्न होते हैं। इस संबंध में उसका मत है— “सभी सामाजिक, राजनीतिक तथा बौद्धिक संबंध समस्त धार्मिक दृष्टिकोण जो इतिहास के विकास क्रम में जन्म लेते हैं,
वह सब जीवन की भौतिक अवस्था में ही उत्पन्न होते हैं।”
(2) संस्कृति और सभ्यता पर आर्थिक तत्वों का प्रभाव
मोक्ष का यह भी विचार है कि किसी देश की सभ्यता और संस्कृति पर उस देश की आर्थिक दशा का गहरा प्रभाव पड़ता है। मार्क्स अपनी सिद्धांत में इस बात का उल्लेख करता है की संस्कृति और सभ्यता का मूल्यांकन आर्थिक दशाओं के आधार पर ही किया जा सकता है। यदि आर्थिक स्थिति में किसी प्रकार का कोई प्रतिरोध उत्पन्न हो जाता है, तो समाज के संरचना पर भी विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
(3) साधनों का प्रभाव
मार्क्स का विचार है कि भौतिकवाद इतिहास का आधार है। भौतिकवाद से मार्क्स का तात्पर्य उन साधनों से है जो जीवन यापन करने में सहायक होते हैं। मार्क्स का मत है कि जीवन यापन करने के साधन समय अनुसार परिवर्तित होते रहते हैं, इसलिए साधनों का सामाजिक संस्थाओं पर तथा इतिहास पर विशेष रूप से प्रभाव पड़ता है। यह साधन प्राकृतिक साधन;— भूमि, जलवायु, खनिज संपदा आदि, यांत्रिक साधनों; — मशीन यंत्र आदि हो सकते हैं।
(4) ऐतिहासिक घटनाओं की अनिवार्यता
मार्क्स का मत है कि इतिहास का निर्माण मानवी पर्यटकों द्वारा नहीं होता है, बल्कि इतिहास का निर्माण स्वतंत्र रूप से होता है। मनुष्य इतिहास से संबंधित घटनाओं पर रोक नहीं लगाया सकता है। ऐतिहासिक घटना अपनी अनिवार्यता रहती हैं और आर्थिक शक्तियों के अनुसार ही ऐतिहासिक घटनाएं प्रभावित होती हैं।
(5) सामाजिक संबंधों का निर्माण
मार्क्स आर्थिक दिशाओं को पारस्परिक संबंधों को निश्चित एवं नियंत्रित करने वाले एकमात्र तत्व मानता है। उसका विचार है कि यदि समाज में सु संपन्नता पाई जाती है तो सामाजिक संबंधों में घनिष्ठता देखने को मिलेगी और यदि समाज में आर्थिक विषमता देखने को मिलती है तो समाज में उच्च और निम्न वर्ग स्थापित होंगे तथा वर्गों के पारस्परिक संघर्षों के कारण समाज में विघटन की स्थिति बनी रहेगी।
(6) वर्ग संघर्ष का महत्व
मार्क्स का मत है कि प्रत्येक युग में परस्पर विरोधी हित रखने वाले 2 वर्ग अनिवार्य रूप से पाए जाते हैं। इन वर्गों के बीच जो संघर्ष होता है, उसी संघर्ष के परिणाम स्वरूप समाज में नवीन सामाजिक ढांचे का निर्माण होता है और यह वर्ग संघर्ष आर्थिक आधार पर ही होता है, इसलिए आर्थिक दिशाएं ही इतिहास का निर्माण करते हैं।
(7) उत्पादन के साधनों में स्नै: स्नै: परिवर्तन
मार्क्स का मत है कि उत्पादन की शक्तियों में परिवर्तन होने के साथ-साथ उत्पादन के साधनों में धीरे-धीरे परिवर्तन होता है। मार्क्स का विचार है कि किसी प्रकार का परिवर्तन लाने के लिए संघर्ष का होना अनिवार्य है क्योंकि शक्ति से ही प्राचीन व्यवस्था के स्थान पर नवीन व्यवस्था संभव हुई है।
(8) साम्यवाद की आविर्भाव की संभावना
मार्क्स इतिहास की व्यवस्था के आधार पर पूंजीवाद के अंत और साम्यवाद के आविर्भाव की संभावना में विश्वास व्यक्त करता है। उसके अनुसार साम्यवाद का आगमन अवश्यंभावी है।
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