फासीवाद से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्पष्ट करेंगे जैसे- 1) फासीवाद के दोषों की आलोचनात्मक समीक्षा।2) फांसिज्म लोकतंत्र का विरोधी है।
फासीवाद की आलोचना
फ़ासिज़्म लोकतंत्र का विरोध है
प्रस्तावना — फासीवाद की विशेषताओं से यह स्पष्ट है कि फासीवाद राष्ट्रवाद का कट्टर समर्थक है। वह हिंसा और क्रांति में अस्थिर रखता है और शांति वाद का विरोधी है। वह बुद्धि विरोधावाद सर्वाधिकार वाद का समर्थक है और समस्त वस्तुएं राष्ट्र के अंदर ही मानता है। फांसी वादियों के लिए ना तो मानवता तथा ना आध्यात्मिकता ही राज्य से बाहर है और इस सिद्धांत के अनुसार राज्य से बाहर कोई भी वस्तु महत्वपूर्ण नहीं है। इस प्रकार फासीवाद एक ऐसी विचारधारा है जो नागरिक स्वतंत्रता तथा जनतंत्र का विरोध करती है।
आलोचनात्मक व्याख्या
(1) सिद्धांत की अस्पष्टता
आलोचकों का मतलब है कि फासीवादी विचारधारा किसी सिद्धांत पर आधारित नहीं होती है। इसका कोई विशिष्ट दर्शन नहीं है। दर्शन की अस्पष्टता फासीवादी विचारधारा का एक महत्वपूर्ण अवगुण है। इसी संबंध में महान प्रोफेसर सेवाइन का कथन है कि, “इस विचारधारा में कई स्रोतों से विचारों को एकत्र करके अपनी स्थिति की आवश्यकताओं के अनुसार उसको नया रूप दे दिया गया है।”
(2) समानता का विरोधी
फासीवाद सामान बौद्धिक तथा शारीरिक शक्ति में विश्वास नहीं करता है। उसका मत है कि समाज में केवल कुछ ही लोग नेता होते हैं, दूसरे लोग आज्ञा पालन करने मात्र ही होते हैं। उसके अनुसार कुछ लोग शासक बनने की योग्य होते हैं तथा अधिकांश व्यक्ति शासित रहने योग्य हैं। इसलिए समानता का सिद्धांत फासीवाद को मान्य नहीं है। इस दृष्टि से फासीवाद लोकतंत्रात्मक सिद्धांत का घोर विरोधी है।
(3) जनतंत्र तथा उदारवाद की अपेक्षा करता है
आलोचकों का मत यह भी है कि फासीवाद जनतंत्र वाद तथा उदारवाद का विरोधी है। इस विचारधारा में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का कोई भी स्थान नहीं है। इसलिए यह विचारधारा आधुनिक युग के अनुकूल नहीं है।
(4) लोकतंत्र का विरोध
फासीवादी लोकतंत्र को अप्राकृतिक और भ्रान्ति पूर्ण कह कर उसकी आलोचना करते हैं। उनके अनुसार लोकतंत्र “मूर्खतापूर्ण, भ्रष्ट, धीमी, काल्पनिक तथा व्यवहारिक प्रणाली है।” वे दल प्रणाली के दोषों के कारण इसकी विशेष रूप से आलोचना करते हैं। फासीवाद के विचारों के अनुसार लोकतंत्र दुर्लभता का सूचक है। लोकतंत्र में किसी विषय पर सहायता से निर्णय नहीं लिया जाता है। इसलिए फासीवादी विचारक लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली का खंडन करते हैं। लोकतंत्र विरोधी भावना होने के कारण फासीवादी विचारधारा आधुनिक युग के लिए मान्य नहीं होता है।
(5) बहुमत की उपेक्षा
फासीवाद लोकतंत्र प्रणाली को अयोग्य व्यक्तियों का शासन मानता है। फासीवादी विचारधारा के अनुसार बहुमत एक प्रकार की भीड़ है, जिसमें शासन करने की कोई भी योग्यता नहीं होती है।
(6) राज्य संबंधी अनुचित अवधारणा
फासीवाद राज्य की सर्वोच्च सत्ता में अंधविश्वास रखता है। यह विचारधारा राज्य को साध्य और व्यक्ति को साधन मानती है। यह राज्य को ही स्वतंत्रता की रक्षक मानती है और राज्य की आज्ञा का पालन करना ही स्वतंत्रता समझती है। यह विचारधारा राज्य के ऊपर किसी के भी अधिकार को स्वीकार नहीं करती है। यहां तक कि यह विचारधारा राज्य के बाहर किसी भी वस्तु का महत्व नहीं मानती। इसलिए यह विचारधारा लोकतंत्र विरोधी है और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अपहरण करती है। हिंसा तथा उग्र राष्ट्रीयता का समर्थन करने के कारण फासीवादी विचारधारा लोकप्रिय नहीं हो सकी।
(7) साम्राज्यवादी विचारधारा
फासीवाद एक साम्राज्यवाद विचारधारा है। साम्राज्य के विस्तार में विश्वास करती है तथा यह युद्ध में भी विश्वास करती है। फासीवाद हिंसा में विश्वास करती है। और साम्राज्य के विस्तार में अगर हिंसात्मक रूप लेना पड़ा तो वह पीछे नहीं हटेंगे।
(8) शक्ति राज्य का आधार नहीं है
फासीवादी राज्य का आधार शक्ति को मानते हैं, परंतु यह सत्य नहीं है। यदि राज्य का आधार शक्ति होता तो शक्ति समाप्त होते ही राज्य भी समाप्त हो जाता। इसी दिशा में रूसो के अनुसार, “शक्ति आवश्यकता का कार्य अथवा दूरदर्शिता का कार्य तो कर सकती है, परंतु बहुत राज्य का स्थाई आधार कभी नहीं हो सकती।” वस्तुत: इस प्रकार शक्ति राज्य का आधार नहीं हो सकती, बल्कि इच्छा है।
(9) स्वतंत्रता की धारणा असत्य है
फासीवाद की स्वतंत्रता संबंधी अवधारणा भी त्रुटिपूर्ण है। उसका यह विचार असत्य है कि स्वतंत्रता एक अधिकार ना होकर कर्तव्य मात्र है और एक शक्तिशाली राज्य की आज्ञा पालन में ही व्यक्ति की स्वतंत्रता निहित है। फासीवादी विचारधारा स्वतंत्रता को एक अधिकार नहीं मानते हैं उन्हें लगता है यह राज्य की आज्ञा पालन का एक स्रोत मात्र है।
(10) फासीवाद का केन्द्रित राज्य कला की प्रगति में बाधक
फासीवाद के सर्वाधिकार वादी राज्य में कला और विज्ञान की उन्नति संभव नहीं है। वस्तुत ऐसा राज्य कला और विज्ञान की प्रगति में बाधक होता है।
(11) सामान्य इच्छा की अव्यावहारिकता
फासीवाद सामान्य इच्छा की सिद्धांत का विरोधी है। फांसी वादियों का भी हो कथन है कि एक योग्य व्यक्ति की भी कुशल इच्छा होती है और समाधि साहब व्यक्ति की इच्छा सदैव एक सी नहीं रह पाती है। अतः सामान्य इच्छा की व्यवहारिकता में विश्वास नहीं किया जा सकता है। इस दृष्टि से भी फासीवाद लोकतंत्र वाद का विरोधी है।
निष्कर्ष — इन सभी विवरण से यह विदित होता है कि फांसीवाद एक सर्वाधिकारवादी विचारधारा है, जो लोकतंत्रवादी विचारों का खंडन करती है। फ़ासिज़्म लोकतंत्र का विरोध है। फासीवाद लोकतंत्र का विरोधी है।
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