द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्पष्ट करेंगे जैसे-
द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध; द्वितीय मैसूर युद्ध सन 1780 ई० अंग्रेज और मैसूर के प्रशासन हैदर अली तथा सन 1782 ई० में हैदर अली की मृत्यु हो जाने पर उसके पुत्र टीपू सुल्तान के मध्य 4 वर्षों तक चलता रहा।
द्वितीय मैसूर युद्ध के कारण
(1) 1769 ई० की मद्रास की संधि का उल्लंघन
हैदर अली तथा अंग्रेजों के बीच प्रथम मैसूर युद्ध के उपरांत सन 1769 ई० में संधि हो गई। उस संधि की एक धारा यह थी कि अंग्रेज किसी विदेशी आक्रमण के समय हैदर अली की सहायता करेंगे। सन 1771 ईसवी में मराठों के आक्रमण के समय हैदर अली ने अंग्रेजों से सहायता मांगी, परंतु उन्होंने उसके साथ विश्वासघात करके उसे कोई सहायता नहीं दी। जिस कारण यह भी युद्ध का एक मुख्य कारण है।
(2) विभिन्न स्वार्थों का टकराव
यथार्थ में हैदर अली और अंग्रेजों के स्वार्थ अलग-अलग थे। परिणाम स्वरूप दोनों में एक ना एक दिन संघर्ष होना ही था। जिस कारण दोनों ही एक दूसरे पर संदेह करते थे। और दोनों के मध्य किसने किसी बात को लेकर चर्चाएं चलती रहती थी। हैदर अली का प्रत्येक साहसिक कार्य अंग्रेजों के लिए चिंता का विषय होता था।
(3) मद्रास सरकार की विवेक हिन कार्यवाहियां
मद्रास सरकार अत्यंत भ्रष्ट थी। इसने अपने बुद्धिहीन कार्यों से अंग्रेजों को ऐसे युद्ध में उलझा दिया जिसके लिए हुए तनिक भी तैयार नहीं थे तथा इस समय अंग्रेज मराठों से युद्ध में व्यस्त थे। मद्रास की सरकार ने सर्वप्रथम हैदराबाद के निजाम को उत्तरी सरकार का दिया जाने वाला खिराज, जैसा किशन 1755, उसे देना बंद कर दिया। परिणाम स्वरुप यह हुआ निजाम तथा हैदर अली दोनों ही अंग्रेजों से क्रुद्ध हो गए। हैदर अली को निजाम के भाई के प्रदेश गुंटुर से विशेष प्रेम था, क्योंकि इसी से होकर वह समुद्र तट तक पहुंच सकता था।
(4) माही पर अंग्रेजी आधिपत्य
सन 1775 में अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम आरंभ हो जाने पर हॉलेंड स्पेन और विशेष रूप से फ्रांस ने अमेरिका वासियों का समर्थन किया। फ्रांस सप्त वर्षीय युद्ध में अपनी पराजय का बदला इंग्लैंड से लेना चाहता था। उसने इस अवसर का लाभ उठाकर भारत में अपने खोए हुए गौरव को पुनर्स्थापित करने का प्रयास किया। इन बस्तियों में माही नामक एक बच्ची भी थी जो मैसूर राज्य में थी तथा जिससे हैदर अली को बहुत बड़ा लाभ होता था। हैदर अली ने अंग्रेजों से माही खाली करने को कहा, परंतु उन्होंने अस्वीकार कर दिया। इस पर हैदर अली क्रोधित हो गया तथा वह युद्ध की तैयारी करने लगा।
(5) महान संघ का गठन
हैदराबाद का निजाम तथा हैदर अली दोनों ही अंग्रेजों से रूष्ट थे। इधर मराठे पहले से ही अंग्रेजों से युद्ध कर रहे थे। इन परिस्थितियों से बाध्य होकर तीनो ही भारतीय शक्तियों ने सन 1770 में आपस में सहयोग करके एक संघ का संगठन (निर्माण) किया। इस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो सभी भारतीय शक्तियों ने अंग्रेजों का विरोध करना आरंभ कर दिया हो।
द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध की घटनाएं
(1) हैदर अली का कर्नाटक पर अधिकार
सन 1780 के मध्य में हैदर अली ने एक विशाल सेना तथा 100 तोपें पर लेकर कर्नाटक पर भीषण आक्रमण कर दिया। उसने चारों ओर सत्यानाश कर दिया और अंग्रेज आतंकित होकर भागने लगे। उसका सामना करने वाले अंग्रेजी सेनापतियों में — कर्नल वैली तथा बक्सर विजेता मेजर मुनरो को बुरी तरह पराजित होना पड़ा। हैदर अली ने आगे बढ़कर अर्काट पर अधिकार कर लिया तथा देखते ही देखते संपूर्ण कर्नाटक पर हैदर अली का आधिपत्य (अधिकार) हो गया।
(2) हेस्टिंग्स के प्रभावशाली कार्य
यदि इस समय वारेन हेस्टिंग्स के स्थान पर कोई अन्य व्यक्ति गवर्नर जनरल होता तो नि: संदेश हताश हो जाता, परंतु हेस्टिंग्स ने साहस नहीं छोड़ा। उसने सेनापति आयरकूट को सेनापतित्व का नेतृत्व करने के लिए दक्षिण भेज दिया। इसके साथ ही उसने कूटनीति का भी सहारा लिया।
(3) हैदर अली का वीरता परिचय
हैदर अली अत्यंत वीर एवं साहसी था। साथियों द्वारा साथ छोड़ देने पर भी उसने साहस नहीं छोड़ा और अकेला ही वह अत्यंत वीरता से लड़ता रहा। जुलाई 1781 से तथा सितंबर 1782 के मध्य 3 महीनों में से अनेक स्थानों पर पराजित होना पड़ा। परंतु फरवरी 1782 में उसने तंजौर के समय कर्नल ब्रेथवेट पर विजय प्राप्त करके अपनी कोई सम्मान को पुनः स्थापित कर लिया। जिससे यह साफ पता चलता है कि हैदर अली कितना वीर एवं साहसी योद्धा था।
(4) फ्रांसीसी का आगमन (1782 ई०)
सन 1782 ई० का आरंभ होते होते एडमिरल सैफरन की अध्यक्षता में एक जंगी बेड़ा तथा डूचीमन के सेनापति त्व में लगभग 2000 सैनिक हैदर अली की सहायता के लिए फ्रांस से भारत पहुंच गए। इस संयुक्त सेना ने अनेक स्थानों पर विजय प्राप्त करने के उपरांत आयरकूट के प्रयासों को असफल किया। एक अन्य अंग्रेज सेनापति अबर स्टोन ने मालाबार पर अधिकार करने का प्रयास किया, परंतु उसे हैदर अली के पुत्र टीपू सुल्तान के हाथों पराजित होना पड़ा।
इस समय युद्ध चल ही रहा था कि 7 दिसंबर 1782 को हैदर अली का देहांत हो गया।
(5) टीपू सुल्तान द्वारा युद्ध जारी रखना (1782 ई०)
हैदर अली की मृत्यु से युद्ध की समाप्ति नहीं हुई बल्कि उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने युद्ध जारी रखा। उसने मुंबई की ओर से आगे बढ़ने वाले ब्रिगेडियर मैथ्यू पर विजय प्राप्त करके उसे उसके अनेक साथियों के साथ बंदी बना लिया। यह युद्ध कुछ समय तक और निरंतर चलता रहा। अंत में दोनों ही पक्षी जूते से थक गई और मार्च 1782 में दोनों पक्षों में मंगलौर की संधि करके इस युद्ध को समाप्त कर दिया।
द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध के परिणाम
★ मंगलौर की संधि
मंगलौर की संधि के अनुसार दोनों पक्षों ने विजित (विजय किए हुए प्रदेश) प्रदेशों तथा युद्ध बंदियों को वापस कर दिया। वारेन हेस्टिंग्स ने इस युद्ध में भी अंग्रेजों के सम्मान की रक्षा कर ली।
★ असफल संधि
सन 1784 की मंगलूर की संधि अस्थाई सिद्ध हुई।
impo-Short questions and answers
द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध किसके बीच हुआ?
द्वितीय मैसूर युद्ध सन 1780 ई० अंग्रेज और मैसूर के प्रशासन हैदर अली तथा सन 1782 ई० में हैदर अली की मृत्यु हो जाने पर उसके पुत्र टीपू सुल्तान के मध्य 4 वर्षों तक चलता रहा।
द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध के कारण?
द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध के कारण - (1) 1769 ई० की मद्रास की संधि का उल्लंघन (2) विभिन्न स्वार्थों का टकराव (3) मद्रास सरकार की विवेक हिन कार्यवाहियां (4) माही पर अंग्रेजी आधिपत्य (5) महान संघ का गठन
द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध के परिणाम?
द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध के परिणाम - मंगलौर की संधि मंगलौर की संधि के अनुसार दोनों पक्षों ने विजित (विजय किए हुए प्रदेश) प्रदेशों तथा युद्ध बंदियों को वापस कर दिया। सन 1784 की मंगलूर की संधि अस्थाई सिद्ध हुई।
आंग्ल-मैसूर युद्ध कितने हुए?
आंग्ल-मैसूर युद्ध 4 हुए थे।
द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध किस समय हुआ?
1780-84 ई०
एक टिप्पणी भेजें