बेंथम का उपयोगितावाद सिद्धांत
bentham ka upyogitavad; अपने मौलिक रूप में उपयोगितावाद ब्रिटिश राजनीतिक दर्शनता की उपज है। इसके सभी मूल विचारक इंग्लैंड के विचारक थे। बेंथम से पूर्व उपयोगितावाद एक नैतिक सिद्धांत था और इस का प्रतिपादन सर्वप्रथम डेविड ह्यूम ने किया। प्रथम ने सर्वप्रथम किस सिद्धांत का वैज्ञानिक ढंग से प्रतिपादन कर इसका राजनीति में प्रयोग किया। इसलिए बेंथम को उपयोगितावाद का जनक माना जाता है।
उपयोगितावाद की व्याख्या
उपयोगितावाद में सार्वजनिक कल्याण की भावना निहित है। यह कोई दार्शनिक सिद्धांत नहीं है, बल्कि अपने समय का एक प्रकार का व्यावहारिक आंदोलन था जिसमें समाज और राज्य की परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर संशोधन होते रहे हैं। उपयोगितावाद का आधार यह है कि “मानव तत्व एक इंद्रिय प्रधान प्राणी है। वह भावना की दृष्टि है। वह एक ऐसा प्राणी है जो सदैव सुख की खोज करता रहता है तथा दुख से बचता रहता है।"
महत्वपूर्ण बिंदु — बेन्थम ने अपने शब्दों में इस सिद्धांत को कुछ इस प्रकार व्यक्त किया है कि “प्रकृति ने मानव जाति को दो सर्वोच्च स्वामियों सुख और दुख की अधीनता में रखा छोड़ा है। यह बताना कि हमें क्या करना चाहिए और क्या निश्चित करना कि हम क्या करेंगे, उन्हीं का काम है।" बेंथम का यह मानना है कि सुख की प्राप्ति ही मानव को किसी कार्य को करने की प्रेरणा देती है, एक बड़ी सीमा तक सत्य है। सुख और उपयोगिता में बड़ा गहरा संबंध है। इसी आधार पर बेंथम ने उपयोगितावाद की परिभाषा देते हुए लिखा है कि उपयोगितावाद के सिद्धांत से हमारा अभिप्राय उस सिद्धांत से है, जिससे संबंधित व्यक्ति की प्रसन्नता में वृद्धि होती है, अथवा कमी होती है और जिसके आधार पर वह प्रत्येक कार्य को या तो उचित ठहरा था है या अनुचित।
दूसरे शब्दों में, जिससे सुख मिलता है या दुख नष्ट होता है। मैं यह बात प्रत्येक कार्य के लिए कहता हूं और इसीलिए मेरी यह बात किसी एक व्यक्ति पर नहीं बल्कि प्रत्येक सरकारी कार्य के संबंध में लागू होती है।" इस प्रकार उपयोगितावाद की धारणा सुख की प्राप्ति और दुखों से मुक्ति की धारणा है।
सुख- दु:ख प्राप्ति के उपाय
बेन्थम ने उपयोगितावाद का सिद्धांत ही नहीं बनाया, वरन उस सिद्धांत की सत्यता परखने के लिए उपाय भी बताएं। उसके अनुसार कोई वस्तु उपयोगी है अथवा नहीं, उसका प्रयोग करके ही अनुभव किया जा सकता है। यदि वह सुख प्रदान करती है तो उपयोगी है और यदि दुख अथवा कष्ट देती है तो अनुपयोगी है।
बेंथम ने सुख-दुख प्राप्ति के 5 उपाय बताए हैं—
1. धर्म— बेन्थम का विश्वास है कि जिन लोगों की धर्म में आस्था है, वेद धर्म के माध्यम से सुख की प्राप्ति कर सकते हैं।
2. राजनीति— यदि प्रशासन या राज्य द्वारा किसी को सुख मिलता है तो वह राजनीति द्वारा प्राप्त सुख कहलाएगा।
3. नैतिक— यदि कोई अच्छा कार्य करके मनुष्य सुख की प्राप्ति करता है, तो उसे नैतिक सुख कहा जाता है।
4. प्राकृतिक— यदि कोई व्यक्ति आंधी वर्षा आदि छुपाता है तो उसे प्राकृतिक सुख कहेंगे।
5. सामाजिक— जब किसी कार्य को करने पर समाज में पुरुष कार्य दंड देता है तो यह सामाजिक सुख या दुख होता है।
सुख के भेद
बेंथम ने सामान्य सुख के 14 भेद बताए हैं—
1. भार से मुक्ति संबंधी सुख 8. धर्म से उत्पन्न सुख
2. संगत संबंधी सुख 9. शक्ति का सुख
3. आशाजन्य सुख 10. यश का सुख
4. काल्पनिक सुख। 11. मित्रता का सुख
5. स्मरण सुख। 12. संपत्ति जन्य सुख
6. निर्दयता का सुख। 13. ऐच्छिक सुख
7. दया संबंधी सुख। 14. दक्षता या कुशलता का सुख
दु:ख के भेद
बेंथम दुख के भी 12 भेद बताता है—
1. संपर्क 4. स्मरण। 7. धार्मिकता। 10. परेशानी
2. आशा। 5. निर्दयता। 8. कुयश। 11. दुर्भावनाएं
3. कल्पना 6. दया। 9. शत्रुता। 12. दरिद्रता
बेंथम सुख और दुख के संबंध में एक अन्य बात होगी बताता है कि परिस्थितियों, लिंग और शारीरिक बनावट का भी सुख या दुख की अनुभूति पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
सुख एवं दु:ख का मापदंड
बेंथम सुख और दुख को मापने के लिए एक पैमाना (मापदंड) भी बताता है। उसने इनके मापदंड का आधार निम्नलिखित बातों को बताया है-(1) तीव्रता, (2) अवधि, (3) निश्चितता (4) समय की निकटता तथा दूरी (5) जनन शक्ति (जन्म देने की शक्ति) (6) विशुद्धता (खरा या शुद्ध) (7) विस्तार
सुख-दुख मापक यंत्र
सुख और दुख को बेंथम विशुद्ध मानसिक अनुभूतियां मानता है। इन्हें कैसे मापा जाए? यह एक महत्वपूर्ण कठिन प्रश्न है। मानसिक अनुभूति को मेट्रो में नहीं मापा जा सकता है और ना ही सुख की मात्रा को पोंड किलोग्राम में डाला जा सकता है। इसकी मात्रा को निर्धारित करने के लिए बेंथम ने एक नवीन पद्धति को जन्म दिया। इस पद्धति में सुकून और दुखों को तुलनात्मक रूप से कुछ कसौटी ऊपर कसा जाता है और उनका मूल्य मापा जाता है। बेन्थम का कथन यह भी है कि “समस्त सुखों के समस्त मूल्यों को एक और एकत्रित कर लिया जाए और समस्त दुखों को दूसरी ओर। दोनों पैरों में देखा जाए कि कौन पलड़ा भारी है। जो पलड़ भारी हो, उसी को महत्व दिया जाए, अर्थात यदि सुखों का पलड़ा भारी है तो वह प्रवर्ती उत्तम है और यदि दुखों का पलड़ा भारी है तो वह प्रवृत्ति अनुपयोगी है।”
उपयुक्त आधारों का प्रयोग करके हम ना केवल सुख-दुख की माप तोल कर सकते हैं बल्कि इनके द्वारा धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक राजनीतिक एवं नैतिक आस्थाओं तथा मूल्य का निर्धारण भी कर सकते हैं। इस यंत्र को बेंथम ने ‘हिडोनिस्टिक कैलकुलस’ या सुख-दुख मापक यंत्र का नाम दिया है।
उपयोगितावाद का महत्व
अनेक त्रुटियों के बावजूद भी बेंथम के उपयोगितावाद सिद्धांत की महत्वता कम नहीं है। उपयोगितावाद के प्रवर्तक के रूप में वह राज दर्शन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। राज दर्शन को सर्वाधिक महत्वपूर्ण दिन यही है कि उसने उपयोगितावाद को वैज्ञानिक तथा व्यवहारिक रूप प्रदान किया है।
हालवी के अनुसार, “बेंथम ने उपयोगितावाद का सिद्धांत द्वारा एक वैज्ञानिक नियम, एक क्रियाशील प्रशासन, वास्तविकता और औचित्य की खोज की।” बेंथम कि राज दर्शन को एक यह महत्वपूर्ण दिन है।
मिल के अनुसार, “उसे मानव जाति के सर्वाधिक बुद्धिमान वह महान शिक्षकों में स्थान दिया जाना चाहिए, क्योंकि उसने मानव को शाश्वत मूल्य के विचार प्रदान किए हैं।” बिंतन के विचारों से विश्व उसका सदैव ऋणी रहेगा।
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