औचित्यपूर्णता या वैधता
औचित्यपूर्णता का अर्थ; औचित्यपूर्णता शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के (Legitumus) से हुई है और मध्यकाल में इसे Legitimitas या आंग्ल भाषा में Lawful अर्थात वैधानिक कहा गया। औचित्यपूर्णता हमारे लिए कोई नया नहीं है क्योंकि अरस्तु, प्लेटो, सिसरो, लॉक आदि विचारकों के विचार में इसकी झलक दिखाई देती है जैसे— प्लेटो के न्याय भावना में, अरस्तु के संवैधानिक शासन व्यवस्था में तथा सिसरो के द्वारा Legitimum शब्द का प्रयोग व विधि द्वारा गणित न्यायाधीशों के लिए लांक की समझौता सिद्धांत के माध्यम से इसका प्रयोग किया गया।
औचित्य पूर्णता की एक दीर्घकालीन विकास परंपरा है, लेकिन इसका विस्तृत विवेचन वेबर से ही प्रारंभ हुआ है। उसके अनुसार औचित्य पूर्णता विश्वास पर आधारित होती है और राजनीतिक व्यवस्था के लिए आज्ञा पालन की स्थिति प्राप्त करती है।
समीक्षा — इस प्रकार स्पष्ट है कि राजनीतिक विज्ञान में औचित्यता काव्य काहे सामान्य स्वीकृति नियमों एवं क्रिया विधियों पर सत्ता का उपयोग या शक्ति का प्रयोग।
औचित्यपूर्णता या वैधता की परिभाषाएं
विभिन्न विचारकों ने वैधता के बारे में अपने मत प्रस्तुत किए हैं जिनमें से कुछ परिभाषा में है —
1. रॉबर्ट ए० डहल के अनुसार औचित्य पूर्णता का अर्थ ही यह विश्वास है कि संरचना प्रक्रियाएं कार्य निर्णय निधियां पदाधिकारी या शासन के नेताओं में न्याय संगत का औचित्य और नैतिक अच्छाई के गुण हैं।
2. गोल्फ स्टर्नवर्जर के अनुसार “यह शासकीय शक्ति की न्यू है जिसके अनुसार सरकार को यह चेतना रहती है कि उसे शासन करने का अधिकार है।
तथा दूसरी ओर शासकों द्वारा उस अधिकार को स्वीकार किया जाता है।”
समीक्षा - औचित्यपूर्णता का अर्थ उस समय वित्तीय स्वीकृति से है जो लोगों द्वारा राजनीतिक व्यवस्था के संदर्भ में दी जाती है। लोगों की यह स्वीकृति उनके इस विश्वास पर आधारित होनी चाहिए कि वह राजनीतिक व्यवस्था अन्य व्यवस्थाओं की अपेक्षा अधिक उचित एवं समीचीन है। यह राजनीति व्यवस्था लोगों के मानसिक मूल्यों के अनुसार है और उस राजनीतिक व्यवस्था के द्वारा लोगों की उचित आवश्यकताएं वैद्य रूप में पूर्ण होती है। इस प्रकार औचित्य पूर्णता का स्रोत भैया प्रलोभन के आधार पर प्राप्त की गई लोगों की स्वीकृति नहीं; अपितु उनके विश्वासों एवं मूल्यों पर आधारित उनकी ऐच्छिक स्वीकृति है।
औचित्यपूर्णता या वैधता की विशेषताएं
(1) सामाजिक स्वीकृति पर आधारित
औचित्य पूर्णता की प्रमुख विशेषताएं हो है कि यह विशाल जनसहमति पर आधारित होता है। वैधता विशेष व्यक्तियों या अभिजन पर निर्भर नहीं करती बल्कि इसमें समाज के अधिक से अधिक लोगों की स्वीकृति होती है।
(2) विशेष विश्वास विकसित करने की व्यवस्था की क्षमता
औचित्य पूर्ण की धारणा में राजनीतिक व्यवस्था की यह योग्यता सम्मिलित है कि वह लोगों में इस विश्वास को उत्पन्न करें और बनाए रखें कि यह राजनीतिक व्यवस्था और उसके अंतर्गत स्थापित की गई संस्थाएं उनके हितों की दृष्टि से सर्वाधिक उपयुक्त हैं। उदाहरण के लिए, यदि कुछ व्यक्तियों ने अपने संकुचित हितों को सामने रखकर रक्त क्रांति या अन्य किसी अवैधानिक साधन द्वारा शासन शक्ति को अपने हाथ में ले लिया है तो ऐसे व्यक्तियों की शक्ति को लोगों की स्वाभाविक स्वीकृति प्राप्त नहीं हो सकती। परंतु संभव है कि कुछ समय पश्चात लोग यह स्वीकार करने लगे कि सभी सरकार उनके हितों के अनुकूल है। यदि लोगों में ऐसा विश्वास उत्पन्न हो जाए तो उस राजनीतिक व्यवस्था को वैधता प्राप्त हो जाती है।
(3) यह धारणा प्रभावकता से सम्बद्ध है
प्रभावपूर्ण दृष्टिकोण के नाते सत्ताधारी उपयोगिता को बड़ी संख्या में पूर्ण विश्वास रखते हैं तथा उसके करिश्माई स्वभाव के कारण जनता उसके कार्यों को उचित समझती है। वैधता की स्थिति प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि राजनीतिक व्यवस्था केवल कहने भर के लिए नहीं है, बल्कि उसके द्वारा नागरिकों के जीवन पर आवश्यक प्रभावी नियंत्रण रखा जा सके।
(4) संबंधित लोगों के मूल्यों पर निर्भर
किसी व्यवस्था की वैधता तभी प्राप्त होती है, जबकि बहुत देश की शर्म आनी जनता की मूल्य और विश्वासों पर आधारित होती है। उदाहरण के लिए यदि किसी देश में लोकतंत्र की जड़ें गहरी जमी हुई है तो ऐसे सरकार को वैधता प्राप्त करने में कठिनाई होती है। जिसने गैर लोकतांत्रिक तथा गैर संवैधानिक तरीके से सत्ता की है। किसी व्यवस्था को वैधता तभी प्राप्त होती है जब तक कि वह नागरिकों की इच्छा व मूल्यों और विश्वासों पर आधारित हो।
(5) वैधता में विशेष विश्वास की भावना निहित होती है
वैधता मैया विश्वास दिलाना होता है कि और राजनीतिक व्यवस्था व संस्थाएं जनहित की दृष्टि से उचित है और किसी राजनीतिक व्यवस्था की वैधता इसी बात पर निर्भर करती है कि वहां कि नागरिक अपने विश्वास के आधार पर उस राजनीतिक व्यवस्था को कहां तक उचित समझते हैं।
(6) सत्य को सत्ता में परिवर्तित करने का गुण
उचित शक्ति ही सत्ता होती है अर्थात शक्ति को सत्ता की स्थिति तभी प्राप्त होती है जब उसने जन सामान्य की दृष्टि से वैधता प्राप्त कर ली हो। यदि किसी व्यक्ति या संस्था के पास शक्ति का अस्तित्व है और उसके द्वारा दबाव या भाई के आधार पर अपने आदेशों का पालन करवाया जाता है तो वह या संस्था केवल शक्ति संपन्न है, सत्ता संपन्न नहीं।
अतः स्पष्ट है कि वैधता ही एक ऐसा गुण है जो शक्ति को सत्ता में परिवर्तित करता है।
(7) विशाल सामाजिक स्वीकृति पर आधारित
किसी व्यवस्था की वैधता विशाल सहमति या स्वीकृति किसी बाहरी दबाव या प्रभाव के कारण नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसका आधार संबंधित लोगों की विशेषता और उनके अपने विचार या विश्वास होने चाहिए।
समीक्षा — इस प्रकार स्पष्ट है कि वैधता कुछ विशेष लोगों पर निर्भर नहीं करती, वरन् विशाल सामाजिक स्वीकृति पर आधारित होती है। यह धारणा मूलतः उस योग्यता पर आधारित है। जिस योग्यता द्वारा लोगों को
राजनीतिक व्यवस्था के अच्छे होने के प्रति विश्वास कराया जाता या जा सकता है।
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