असहयोग आंदोलन के 10 प्रमुख कारण | asahyog andolan karan

असहयोग आंदोलन

महात्मा गांधी जी को परिस्थितियों से बाध्य होकर असहयोग आंदोलन की शरण लेनी पड़ी। असहयोग आंदोलन के कारण — 

मुख्य कारण (main reason)

(1) प्रथम विश्व युद्ध का परिणाम प्रभाव

युद्ध राष्ट्रीयता के विकास में बड़ा सहायक होता है। प्रथम महायुद्ध द्वारा भी विभिन्न राष्ट्रों में इस भावना का तीव्र गति से विकास हुआ। इस महायुद्ध में आत्म निर्णय के सिद्धांत का प्रतिपादन हुआ जिसके आधार पर यूरोप में कुछ नवीन राज्यों की स्थापना की गई। इस सिद्धांत से प्रभावित होकर चीन और भूमध्य सागर के राज्यों में राष्ट्रीयता की भावना का प्रादुर्भाव होना प्रारंभ हुआ। इस प्रभाव से भारत भी नहीं बच सकता था और वहां भी इसने राष्ट्रीय आंदोलन को अपूर्व शक्ति प्रदान की। युद्ध के उपरांत भारत के राष्ट्रीय आंदोलन का स्वरूप बदल गया और उसने एक नई दिशा को अपनाया। उसकी नीति तथा कार्यक्रम में एकदम परिवर्तन हो उठा।

(2) जनता की आर्थिक सोचनीय दशा

युद्ध काल में अंग्रेजों की नीति के कारण भारतीय जनता की आर्थिक दशा बड़ी सोचनीय हो गई।

1. आवश्यक वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि— समस्त वस्तुओं की कमी हो जाने के कारण उनके मूल्यों में भी बड़े बिजी हो गई, जिसने जनता की कमर तोड़ डाली। दुकानदार वस्तुओं के अभाव के कारण बहुत अधिक मुनाफा ले रहे थे। सरकार ने दामों को निश्चित करने की ओर तनिक भी पर्याप्त नहीं किया।

2. सरकार द्वारा जनता से अत्यधिक धन वसूल करना— इसके साथ-साथ सरकार के द्वारा संभव रूप से जनता से युद्ध के लिए अत्यधिक धन प्राप्त किया गया। जनता अपने कष्टों से इतनी दुखी हो गई थी कि उसको वादे होकर सरकार की नीति का विरोध करना पड़ा और उसने अपनी विरोध का प्रदर्शन हड़ताल द्वारा किया।

(3) प्लेग और इनफ्लुएंजा के परिणाम

प्लेग और इनफ्लुएंजा के कारण भी भारत की जनता को कष्ट उठाना पड़ा। जनता तो पहले से ही अपनी सोचनीय आर्थिक दशा से बहुत परेशान थी इसने मरते हुए को और दो लात मारने वाली बात हो गई। बहुत से व्यक्तियों को उनके कारण अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। सरकार ने इसकी रोकथाम के लिए जो प्रयत्न किए हुए पर्याप्त पर्याप्त नहीं थी और उनसे भारतीयों को कोई संतोष नहीं हुआ।

(4) अकाल (1917 ई०)

1917 एचडी में पर्याप्त वर्षा न होने के कारण समझते देश में अकाल व्याप्त रूप से फैल गया। सरकार ने अकाल पीड़ित व्यक्तियों की दुखों को दूर करने के लिए विशेष प्रयत्न नहीं किए। जनता पहले ही बहुत दुखी थी, इससे और भी अधिक दुख दुखी हो गई और पर्याप्त लोग इस अकाल की आहोश में आ गये। जनता में अंग्रेजी सरकार के प्रति तीव्र गति से असंतोष की भावना फैलने लगी।

(5) सरकार का दमन चक्र

प्रथम महायुद्ध के मध्य में जहां एक और सरकार भारत की जनता से सहायता प्राप्त करने का प्रयत्न कर रही थी, उसकी सेवाओं की वह प्रशंसा कर रही थी तथा उसको राजनीतिक सुधारों के आश्वासन दे रही थी, वहां वह राष्ट्रीय आंदोलन को चाहे उसका स्वरूप किसी भी प्रकार का क्यों ना रहा हो कुचलने की ओर प्रयत्नशील थे। 

उनके प्रमुख कार्य कुछ इस प्रकार थे— 

1. वहां क्रांतिकारियों का दृश्य संगठन था और सरकार ने उसके दमन करने में किसी प्रकार की कसर नहीं छोड़ी।

2. सरकार में गृह शासन आंदोलन के विरुद्ध भी बड़ा असंतोष उत्पन्न हुआ और उसकी आधार पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग में समझौता हुआ कि दोनों संस्थाएं मिलकर राजनीतिक अधिकारों को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील होंगे।

3. इसमें सरकार ने प्रेस एक्ट और एडिशन एक्ट का राष्ट्रीय आंदोलन का दमन करने के लिए बहुत अधिक प्रयोग किया। इसमें बंगाल और पंजाब की दिशा विशेष रूप से खराब थी। 

(6) छंटनी की नीति

युद्ध के समय में बहुत से व्यक्तियों को नागरिक तथा सेना सेवाओं में भर्ती किया गया था, किंतु युद्ध के उपरांत बहुत अधिक मात्रा में लोगों को उनके पदों से अलग कर दिया गया। इस प्रकार बहुत से लोग बेकार हो गई और उनको बड़ी कठिनाइयों से अपना जीवन व्यतीत करना पड़ा। उनमें कथा उनकी दशा देखकर अन्य व्यक्तियों में भी असंतोष की भावना पनप गई। जनता मैं यह भावना उत्पन्न हो गई कि सरकार स्वार्थी है और अपना काम निकल जाने पर वह उनका तनिक भी ध्यान नहीं रखती। 

(7) सेना की भर्ती करने के लिए दुराग्रह पूर्ण साधनों का प्रयोग

सरकार की ओर से सेना में भर्ती के लिए जिन दुराग्रह पूर्ण साधनों का प्रयोग किया गया उनके द्वारा भी जनता में बड़ा असंतोष फैला। वह वास्तव में बड़े दोषपूर्ण और संतोषजनक थे और उनको किसी भी रूप में उचित नहीं कहा जा सकता। इन साधनों की स्मृतियां कटुता उत्पन्न कर रही थी। गांव-गांव घूम कर मनुष्य को बाध्य कर सेना में भर्ती किया गया। 

(8) माण्टफोर्ड सुधार (1919 ई०) 

भारत की जनता को बहुत आशा थी कि युद्ध की समाप्ति के उपरांत उनकी युद्ध के समान की सेवाओं के बदले में अंग्रेजी सरकार से बहुत कुछ प्राप्त होगा, किंतु माण्टफोर्ड -सुधार योजना ने उनकी आशाओं पर पानी फेर दिया। यह योजना 1919 में प्रकाशित हुई। इस योजना में भारत सरकार के वास्तविक रूप में किसी भी प्रकार का परिवर्तन करने का कहीं सुझाव नहीं था। 


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(9) खिलाफत का प्रश्न (सवाल) 

सरकार ने युद्ध के बीच में भारत का मुसलमानों को यह आश्वासन दिया कि ना तो टर्की साम्राज्य का भी गठन किया जाएगा और न खिलाफत का अंत होगा। भारत के मुसलमानों ने आश्वासन के प्राप्त होने पर अंग्रेजों की युद्ध में बहुत अधिक सहायता की, युद्ध की समाप्ति पर उनको ज्ञात हो गया कि अंग्रेजों ने उनको धोखा देकर उनका समर्थन प्राप्त किया था, क्योंकि अंग्रेज टर्की साम्राज्य का विघटन तथा खिलाफत का अंत करने के लिए कटिबद्ध थे। “सीवर्स से की संधि ने भारत के मुसलमानों की आंखें खोल दी और उनको अंग्रेजों की चाल का पता लग गया।”

(10) रोलेट एक्ट (1918 ई०) 

क्रांतिकारी आंदोलन का दमन करने के अभिप्राय से भारत सरकार द्वारा सुरक्षा अधिनियम पारित किया गया था और उसकी धाराओं द्वारा क्रांतिकारी आंदोलन का दमन करने का प्रयास किया गया। इस संबंध में यह स्मरणीय है कि यह अधिनियम केवल महायुद्ध तक के लिए ही निर्मित किया गया था, किंतु युद्ध के उपरांत भी सरकार को इसी प्रकार के अधिनियम की आवश्यकता थी, क्योंकि आंदोलन का पूर्णतया अंत नहीं हो पाया था, अतः भारत सरकार ने सारे जस्टिस सिडनी रौलट की अध्यक्षता में एक समिति का निर्माण इस उद्देश्य से किया कि वह भारत सरकार को बताएं कि भारत में किस सीमा तक क्रांतिकारी आंदोलन का विस्तार है और हिंदू उपायों द्वारा उसका अंत किया जाना संभव है।

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