प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध - कारण और परिणाम | First Anglo-Maratha War

 प्रथम मराठा युद्ध 
प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध

सन् 1771 ई० में पेशवा माधवराव का देहांत हो गया। उसके उपरांत उसका छोटा भाई नारायण राव उसका उत्तराधिकारी बना, परंतु माधवराव के चाचा रघुनाथ उर्फ राघोबा जी ने अगस्त 1773 में अपने भतीजे नारायणराव का वध करवा दिया और स्वयं पेशवा के सिंहासन पर आसीन हो गया, परंतु नाना फड़नवीस आदि अनेक मराठा सरदारों ने राघोबा को पेशवा स्वीकार करने से इंकार कर दिया। उन्होंने बारह सदस्यों की एक समिति  ‘बारह भाई’ सभा का गठन करके राज्य कार्य का संचालन प्रारंभ कर दिया। अप्रैल, 1774 ई० में स्वर्गीय नारायण राव की विधवा पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। मराठा सरदारों ने तुरंत ही अल्प वर्ष के बालक को माधवराव नारायण उर्फ माधवराव द्वितीय के नाम से अपना पेशवा स्वीकार किया। 

प्रथम मराठा युद्ध के कारण

प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध के कारण;  राघोबा ने इस प्रकार अपने प्रयासों को असफल होते हुए देखकर मुंबई की सरकार से सहायता के लिए याचनाएं की। परिणाम स्वरूप राघोब तथा अंग्रेजों के मध्य मार्च, 1775 ई० में ‘सूरत की संधि’ हो गई। इस संधि के अनुसार अंग्रेजों ने राघोबा को पेशवा बनाना स्वीकार कर लिया तथा इसके बदले में राघोबा ने अंग्रेजों को सालसेट तथा बसीन आदि देने का आश्वासन दिया। 

(1) घरास का युद्ध 

राघोबा की सहायतार्थ मुंबई के गवर्नर ने कर्नल ईटिंग के सेनापति में एक अंग्रेजी सेना पूना के विरुद्ध भेजी। राघोबा तथा अंग्रेजों की सम्मिलित सेनाओं ने घरास के स्थान पर मराठों पर विजय प्राप्त की। दोनों ने आगे बढ़कर साल सेट पर अधिकार कर लिया।

(2) सालगांव का सम्मेलन 

इंग्लैंड से कंपनी के संचालकों द्वारा सूरत की संधि का समर्थन करने पर मुंबई की सरकार ने पुनः पूर्णा की सरकार के विरुद्ध युद्ध आरंभ कर दिया। कर्नल एजर्टन के सेनापतित्व में पूना पर आक्रमण करने के लिए एक विशाल सेना भेज दी गई। मराठों ने इस सेना को बुरी तरह पराजित किया। परिणाम स्वरूप कर्नल एजर्टन के स्थान पर कर्नल काकबर्न को सेना के नेतृत्व का उत्तर दायित्व सौंपा गया, परंतु मराठों ने पुना से‌ 20 मील दूर तेली गांव नामक स्थान पर आक्रमणकारी अंग्रेज सेना को बुरी तरह पराजित किया। अतः अंग्रेजों को संधि के लिए बाध्य होना पड़ा। यह संधि ‘बांरगाव का सम्मेलन’ के नाम से प्रसिद्ध है।

(3) वारेन हेस्टिंग्स को बांरगांव सम्मेलन अस्वीकार 

वास्तव में बार गांव सम्मेलन अंग्रेजों के लिए अत्यंत अपमानजनक था, इसी कारण वारेन हेस्टिंग्स ने उसे अस्वीकार कर दिया। उसने तुरंत ही दो सेनाएं एक जनरल गोडार्ड के नेतृत्व में पूना पर आक्रमण करने के लिए तथा दूसरी कैप्टन पोपहम के सेनापतित्व मैं ग्वालियर स्थित सिंधिया के प्रदेशों पर आक्रमण करने के लिए भेज दी। 

(4) जनरल गोडार्ड का अभियान 

गोडार्ड के नेतृत्व में सेना अपरिचित मार्गो तथा शत्रु प्रदेशों में होती हुई मध्य भारत के मार्ग से सूरत सुरक्षित पहुंच गई। सन् 1780 ई० मैं इस‌ सेना ने  अहमदाबाद पर अधिकार करने के उपरांत बसीन पर विजय प्राप्त की। इसके साथ ही जनरल गोडार्ड ने बड़ौदी के शासक गायकवाड का भी समर्थन प्राप्त किया। उस समय से गायकवाड सदैव ही अंग्रेजों का समर्थन करता रहा ।अब जनरल गोडार्ड ने पुणे की ओर प्रस्थान किया। इसी बीच मराठा राजनीतिज्ञ नाना फडणवीस ने निजाम और हैदर अली दोनों को ही अपने पक्ष में कर लिया और तीनों की सम्मिलित से 9 अप्रैल, 1781 ई० में गोडार्ड की सेना को बुरी तरह पराजित किया। 

(5) कैप्टन फैंपहम की ग्वालियर विजय 

कोलकाता से कैप्टन परफॉर्म के नेतृत्व में भेजी गई अंग्रेजी सेना अपने अभियान में पर्याप्त रूप से सफल रही और अपनी विजयों में गोडार्ड की पराजय की पर्याप्त सीमा तक पूर्ति कर दी। इस सेना के ग्वालियर के किले पर अधिकार करके संपूर्ण भारत में एक हलचल से उत्पन्न कर दी। ग्वालियर मराठा सरदार महादा जी सिंधिया की राजधानी थी और उस पर विजय प्राप्त करना अंग्रेजों की महान सफलता थी। कुछ समय उपरांत सिपरी के स्थान पर जनरल कामक ने सिंधिया पर विजय प्राप्त की। विवश हो सिंधिया ने अंग्रेजों से संधि कर ली। कालांतर में उसी ने मध्यस्था करके अंग्रेजी तथा मराठों के बीच शांति स्थापित कर दी।

प्रथम मराठा युद्ध के परिणाम 

प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध के परिणाम

(1) सालबाई की संधि (17 मई, 1782) 

17 मई, 1782 ई० को ग्वालियर के समीप सालबाई नामक स्थान पर मराठों और अंग्रेजों के बीच यह संधि संपन्न हुई। इस संधि में लगभग 17 धाराएं थी, जिनमें कुछ मुख्य धाराएं यह थी — 

1. माधवराव नारायण अर्थात माधवराव द्वितीय को मराठों का वैध पेशवा स्वीकार किया गया।

2. राघोबा को तीन लाख वार्षिक पेंशन देना निश्चय करके अलग कर दिया गया। 

3. साल सैट पर अंग्रेजों का अधिकार स्वीकार किया गया। अंग्रेजों द्वारा मराठों के विजित प्रदेश उन्हें वापस कर दिया गये। इस प्रकार सिंधिया को यमुना के पश्चिम के प्रदेश प्राप्त हो गए।

4. फतेह सिंह गायकवाड को बड़ौदा का स्वतंत्र शासक स्वीकार करके इनके सभी प्रदेश उसे दे दिए गए।

(2) पुरंदर की संधि (1776)

जब गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स को सूरत की संधि का पता चला तो उसने इसे स्वीकार कर लिया तथा उसने मुंबई के गवर्नर को युद्ध रोकने के लिए कहा तथा दूसरी ओर उसने अपने एक विशेष प्रतिनिधि कर्नल अपटन को पूना की राजसभा में संधि की वार्ता करने के लिए कह दिया। परिणाम स्वरूप दोनों पक्षों के बीच एक संधि हो गई जो कि इतिहास में पुरंदर की संधि के नाम से विख्यात है। इस संधि के अनुसार— 

1. सालसेट पर अंग्रेजों का ही अधिकार रहा

2. अंग्रेजों ने राघोबा की सहायता ना करने का निश्चय किया

3. पेशवा सरकार ने राघोबा को 25000 मासिक देना स्वीकार किया 

4. 12 भाई सभा को पेशवा माधवराव नारायण की वैध संरक्षिका एवं प्रतिनिधि स्वीकार किया गया। 


महत्वपूर्ण जानकारी 


प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध कब हुआ?

प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध 1775 ई० से 1785 ई० तक हुआ।

प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध के कारणों की विवेचना कीजिए?

प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध के कारण - (1) घरास का युद्ध (war of the ghras) (2) सालगांव का सम्मेलन (conference of salgao (3) वारेन हेस्टिंग्स को बांरगांव सम्मेलन अस्वीकार (4) जनरल गोडार्ड का अभियान (5) कैप्टन फैंपहम की ग्वालियर विजय

प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध के परिणाम?

प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध के परिणाम - (1) सालबाई की संधि (17 मई, 1782) - 17 मई, 1782 ई० को ग्वालियर के समीप सालबाई नामक स्थान पर मराठों और अंग्रेजों के बीच यह संधि संपन्न हुई। (2) पुरंदर की संधि (1776)

प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध किस किसके बीच हुआ था।

प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध अंग्रेजों और मराठों के बीच हुआ था।

प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध में किसकी विजय हुई?

प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध में दोनों पक्षों का पलड़ा बराबरी का रहा। इसमें सालबाई की संधि तथा पुरंदर की संधि के तहत युद्ध की समाप्त हो गई थी।

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