मुहम्मद-बिन-तुगलक की विदेश नीति का वर्णन | Mohammed bin tuglak

 मुहम्मद बिन तुगलक की विदेश नीति

मुहम्मद बिन तुगलक की विदेश नीति; मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली सल्तनत में तुगलक वंश का एक महत्वकांक्षी सुल्तान था। मुहम्मद-बिन तुगलक का वास्तविक नाम उलूग खां था। उसने साम्राज्य विस्तार के अनेक विजय योजनाएं क्रियान्वित कीं, उसकी विदेशी नीति पूर्णतया विफल रही और उसे अनेक भीषण विद्रोह का सामना भी करना पड़ा।  

मुहम्मद-बिन-तुगलक की विदेश नीति | Mohammed bin tuglak

विदेश नीति (foreign policy)

(1) खुरासान विजय की योजना 

सन 1337 ई० मैं मोहम्मद बिन तुगलक को यह सूचना मिली कि खुरासान की वजीर और भाषा में आपसी मतभेद के कारण उसकी राजनीति की स्थिति काफी दुर्लभ हो गई है। जिसका लाभ उठाकर मध्य एशिया का मंगोल सरदार तरमाशीरीन और मिस्र का बादशाह दोनों मिलकर खुरासान पर आक्रमण करने की योजना बना रहे हैं। उसने भी इस अवसर का लाभ उठाकर खुरासान पर विजय प्राप्त करने की योजना बनाई। उसने तीन लाख से अधिक सैनिकों की एक विशाल सेना तैयार की और सैनिकों को 1 वर्ष का वेतन राजकोष से पहले ही दिलवा दिया। लेकिन यह योजना क्रियान्वित ना की जा सकी और सीना भी भंग करनी पड़ी, क्योंकि इसी बीच मिस्र के सुल्तान से संधि कर ली और तरमाशीरीन का राज्य उनके सरदारों ने हड़प लिया। इस योजना की विफलता से राजकोष को भारी क्षति पहुंची।  

(2) नगरकोट की विजय

पंजाब के कांडला जिले में स्थित नगरकोट का दुर्ग अभेद्य और शक्तिशाली माना जाता था। महमूद गजनबी के समय से दुर्ग सरदार दुर्ग पर अधिकार करने में असफल रहे थे। अलाउद्दीन खिलजी भी इस दुर्गे को जीतने में विफल रहा था। इस दुर्ग पर एक हिंदू राजा का प्रभुत्व था। अतः 1337 ई० में मुहम्मद बिन तुगलक ने नगरकोट पर आक्रमण किया, दुर्ग पति ने बड़ी वीरता के साथ उसका सामना किया किंतु अंत में उसे सन्धि करने के लिए विवश होना पड़ा। फिर भी सुल्तान ने दुर्ग राजा के अधिकार में ही रहने दिया।

(3) कराजल अभियान (Karajal campaign) 

नगरकोट की विजय के उपरांत सुल्तान ने कुमायूं की पहाड़ियों में स्थित कराजल राज्य को जीतने की योजना बनाई क्योंकि वहां के शासक ने साम्राज्य के कुछ दुर्गों पर अधिकार कर लिया था। कुछ विद्वानों का मत है कि सुल्तान इस राज्य को जीतकर साम्राज्य की उत्तरी सीमा को सुरक्षित रखना चाहता था। 

★   कराजल अभियान का कारण कुछ भी रहा हो, इस अभियान में सुल्तान को भारी क्षति उठानी पड़ी। समकालीन इतिहासकारों के मत‌ अनुसार शाही सेनाओं ने इस प्रदेश में भयंकर लूटमार की, परंतु वर्षा आरंभ होने पर उन्हें विचित्र कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सेना में महामारी फैल गई और लौटती हुई सेनाओं पर कराजल के लोगों ने एकाएक आक्रमण किए। उनकी यह आक्रमण इतने विनाशकारी सिद्ध हुए कि एक लाख की फौज में से मात्र केवल 300 सैनिक ही बचकर दिल्ली वापस पहुंच पाए। 

★ कुछ आधुनिक विद्वानों ने लिखा है कि “कराजल आक्रमण चीन तथा पश्चिम तिब्बत विजय की असफल योजना थी।” यह मत सर्वथा गलत है, क्योंकि किसी भी समकालीन इतिहासकार ने मुहम्मद बिन तुगलक की चीन विजय का वर्णन नहीं किया है।

(4) मंगोलों के आक्रमण

सुल्तान के राजधानी परिवर्तन के उपरांत सल्तनत की उत्तर -पश्चिमी सीमा पर मंगोलों ने अनेक आक्रमण किए। मंगोल नेता तरमा शिरीन सीमांत प्रदेशों को लूटता हुआ दिल्ली तक पहुंच गया। “सुल्तान मुहम्मद-बिन तुगलक उस समय आक्रमणकारीयों का सामना करने की स्थिति में नहीं थे। अतः सुल्तान मुहम्मद-बिन तुगलक ने मंगोलों को बहुत सा धन देकर वापस भेज दिया।” 

(5) मेवाड़ से संघर्ष (conflict with mewar)

डॉक्टर गौरीशंकर ओझा का मत है कि, सुल्तान मोहम्मद शाह ने मेवाड़ के राजा हम्मीर देव पर आक्रमण किया और पराजय हुआ, लेकिन कुछ विद्वानों का मत यह भी है, कि सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने ‘राजस्थान’ के मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं किया था। 

(6) चीन से संबंध (relations with china)

मुहम्मद बिन तुगलक ने एशिया के कुछ देशों से विशेषकर चीन से महत्वपूर्ण संबंध स्थापित किए थे। 1340 ई० में चीन के राजा तो बनती मूर ने अपना एक दूत दिल्ली भेजकर सुल्तान से मांग की कि उसे उन बौद्ध मंदिरों को फिर से बनाने की अनुमति दी जाए, जिन्हें सुल्तान की सेनाओं ने कराजल अभियान में नष्ट कर दिया था। सुल्तान ने चीन के राजा को उत्तर भेजा कि इस्लाम के अनुसार उन मंदिरों के जीर्णोद्धार की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती जब तक कि उस पर देश की जनता जजिया कर ना दे। 

मोहम्मद बिन तुगलक ने चीन के मंगोल शासक के दरबार में जुलाई 1342 ई० में इब्नबतूता को अपने राजदूत के रूप में भेजा, जो लगभग 5 वर्ष तक चीन में रहा और 1347 ई० में भारत लौट आया। 

समीक्षा (Review ) — इस प्रकार मोहम्मद बिन तुगलक की विदेश नीति बुरी तरह विफल रही थी। वह दिल्ली साम्राज्य का विस्तार करने में सफल न हो सका। उसकी अप्रिय कार्यों के परिणाम स्वरूप संपूर्ण देश में विद्रोह उत्पन्न हो गए और सल्तनत का विघटन प्रारंभ हो गया। इसमें लेनपूल के अनुसार - “सर्वोत्तम इरादों और सर्वश्रेष्ठ विचारों वाला मोहम्मद बिन तुगलक अपनी सन्तुलन हीन नीति अथवा अव्यावहारिक बुद्धि के कारण असफल रहा।”


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मुहम्मद-बिन-तुगलक का जन्म कब हुआ था?

मुहम्मद-बिन-तुगलक का जन्म 1290 ई० में हुआ था।

मुहम्मद-बिन-तुगलक कहा का शासक था?

मुहम्मद-बिन-तुगलक दिल्ली सल्तनत का तुगलक वंश का शासक था।

मुहम्मद-बिन-तुगलक की विदेश नीति बताइए?

मुहम्मद-बिन-तुगलक की विदेश नीति - (1) खुरासान विजय की योजना (2) नगरकोट की विजय (3) कराजल अभियान (Karajal campaign) (4) मंगोलों के आक्रमण (5) मेवाड़ से संघर्ष (conflict with mewar) (6) चीन से संबंध

मुहम्मद-बिन-तुगलक का वास्तविक नाम क्या था?

मुहम्मद-बिन तुगलक का वास्तविक नाम उलूग खां था। उसने साम्राज्य विस्तार के अनेक विजय योजनाएं क्रियान्वित कीं, उसकी विदेशी नीति पूर्णतया विफल रही और उसे अनेक भीषण विद्रोह का सामना भी करना पड़ा।

मुहम्मद-बिन-तुगलक की मृत्यु कब हुई थी?

मुहम्मद-बिन-तुगलक की मृत्यु 20 मार्च, 1351 को पाकिस्तान में हुई थी।

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