हैदर अली का जीवन परिचय
हैदर अली का जीवन चरित्र; सन 1721 ई० में बुदीकोट में हैदर अली का जन्म हुआ था। सनी 1728 ई० में उसके पिता का देहांत हो गया, जिसके कारण उसकी शिक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। परिणाम स्वरूप हैदर अली अशिक्षित ही रह गया। उसकी इन प्रारंभिक कठिनाइयों ने उसमें दृढ़ निश्चय की भावना उत्साह कूट-कूट कर भर दिया तथा प्रखर बुद्धि वाला बना दिया। उसने शीघ्र ही मैसूर के प्रभावशाली प्रधानमंत्री नंजराज के यहां सैनिक के रूप में नौकरी कर ली। यथार्थ में नंजराज ही मैसूर का सर्वे सर्वा था तथा मैसूर का शासक उसके हाथ में एक खिलौना मात्र था। हैदर अली के पूर्वज दिल्ली प्रदेश के निवासी थे। परंतु वे बाद में दक्षिण की ओर चले गए थे। उनका दादा मोहम्मद अली एक साधारण कृषक था। उसका पिता फतह मुहम्मद मैसूर राज्य की सेनाओं में फौजदार (सेना में छोटे अधिकारी) के पद पर थे।
हैदर अली और अंग्रेजों के मध्य संघर्ष
हैदर अली को अनेक कारणों से अंग्रेजों के साथ युद्ध करना पड़ा था। उसने अंग्रेजों से मैसूर का प्रथम (1767-69) तथा मैसूर का दूसरा (1780-84) दो युद्ध लड़े। अंग्रेजों से उसका संघर्ष होने का प्रमुख कारण यह था कि दोनों ही अपने प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि करने को उत्सुक रहते थे। हैदर अली की प्रत्येक सफलता तथा प्रत्येक कार्य अंग्रेजों के लिए चिंता का विषय होती थी, उसी प्रकार से अंग्रेजों का मराठों अथवा हैदराबाद के निजाम से सांठगांठ हैदर अली की आंखों में खटकता था।
(1) समुद्र तट सीमा के लिए संघर्ष
अंग्रेजों और हैदर अली की पारस्परिक संघर्षों का एक अन्य कारण यह भी था कि हैदर अली अंग्रेजों के प्रबल शत्रु फ्रांसीसीयों की ओर अधिक आकर्षित था। उसने अपनी सेना को परीक्षण देने के लिए फ्रांसीसी अधिकारियों की नियुक्ति कर रखी थी। अंग्रेजों को यह सब असहनीय होता था। इसके अतिरिक्त हैदर अली अपनी सीमा का समुद्र तट तक विस्तार करने को प्रयत्नशील रहता था, अंग्रेजों को इस तथ्य का ज्ञान था और इसी कारण उन्होंने हैदर अली के समुद्र तट तक विस्तार करने के हर प्रयास को असफल बनाने का प्रयास किया।
(2) मैसूर का युद्ध
सन् 1769 ई० में हैदर अली तथा अंग्रेजों के मध्य मैसूर का प्रथम युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध में हैदर अली को ही सफलता मिली तथा चेन्नई की संधि पत्र के अनुसार दोनों पक्षों ने एक दूसरे के जीते हुए प्रदेशों तथा युद्ध में बनाए गए बंदी यों को वापस कर दिया। दोनों ही पक्षों ने रक्षात्मक युद्धो में एक दूसरे की सहायता करने का भी आश्वासन दिया। अंग्रेजों ने अपने आश्वासनों का पालन नहीं किया और उन्होंने हैदर अली को मराठों के विरुद्ध किसी प्रकार की सहायता नहीं दी। हैदर अली अंग्रेजों से कुरूद हो गया और जब उसने अंग्रेजों को मराठों के साथ युद्ध में व्यस्तता संकट में पाया तो उसने अवसर का लाभ उठाकर 1780 ई० में अंग्रेजों के विरुद्ध एक और युद्ध का आरंभ कर दिया। शुद्ध में हैदर अली ने अपने शौर्य साहस और पराक्रम का परिचय दिया, परंतु अभी युद्ध चल ही रहा था कि दिसंबर 1782 ई० में उसका देहांत हो गया।
हैदर अली की उपलब्धियां
हैदर अली की गणना भारत के कुछ अत्यंत योग्य व्यक्तियों में की जाती है। एक साधारण व्यक्ति से उन्नति करता हुआ मैसूर का स्वतंत्र शासक बन जाना उसकी सफलता का एक स्पष्ट प्रमाण है।
(1) राज्य व प्रजा के प्रति उदासीनता
हैदर अली एक महान प्रशासक था। उसमें जातीयता की भावना तनिक भी नहीं थी। उसने अनेक हिंदुओं को उच्च पद प्रदान किए थे तभी तो अनेक इतिहासकारों से “समस्त मुसलमान शहजादे में सर्वाधिक सहनशील” कहते हैं। वह अपनी प्रजा से बहुत स्नेहा करता था और सदा उसके कल्याण के कार्य करने को तत्पर रहता था। इसी कारण डॉ० दत्त ने यह कहा है- “वह प्रशासनिक मामलों में अत्यंत चतुर्थ तथा यशस्वी था, और समस्त राज कार्य अपनी आंखों के सामने नियमित रूप तथा शीघ्रता से करता था। वह प्रत्येक व्यक्ति की पहुंच के अंदर था।
(2) एक राजनीतिक के रूप में उपलब्धियां
हैदर अली एक महान योद्धा ही नहीं बल्कि वह एक कुशल राजनीतिज्ञ भी था। वह परिस्थितियों से लाभ उठा सकता था। सन 1767 ई० में मैसूर के प्रथम युद्ध के समय ना केवल अंग्रेज ही नहीं बल्कि मराठे और निजाम भी उसके विरोधी थे। उसने एक कुशल राजनीतिज्ञ के समान अपनी कूटनीति से शत्रुओं की एकता को तोड़कर मराठा तथा निजाम को अपना समर्थक बना लिया। इसके अतिरिक्त सन 1769 ई० में अंग्रेजों को चेन्नई की संधि को स्वीकार करने को बाध्य करना उसके कुशल राजनीतिज्ञ होने का ही प्रमाण है।
हैदर अली एक दस्यु अथवा स्वार्थी सैनिक अभिनायक कर्ता करता नहीं था। उसमें असाधारण योग्यता के अतिरिक्त रचनात्मक राजनीतिक के गुण भी विद्यमान थे।
(3) सैनिक के रूप में उपलब्धियां
हैदर अली एक वीर सैनिक तथा महान योद्धा था। अपने जीवन प्रयत्न वह अंग्रेजों के लिए भय का कारण बना रहा। अनिका अवसरों पर बहुत अधिक भीषण हो जाता था। मैसूर के प्रथम युद्ध में हैदराबाद के निजाम द्वारा साथ छोड़ने पर भी उसने साहस नहीं छोड़ा बल्कि उसने अपने युद्ध चातुर्य से अंग्रेजों की मुंबई की सेना को छिन्न-भिन्न करके मंगलौर पर पुनः अधिकार कर लिया। आगे बढ़ता हुआ वह चेन्नई के बिल्कुल समीप पहुंच गया था और अंग्रेजों ने उससे भयभीत होकर उससे संधि कर ली। यह हैदर अली की महान सफलता थी। मैसूर के दूसरे युद्ध में कर्नल वाली तथा बक्सर के युद्ध की विजेता और मेजर मुनरो को भी हैदर अली के सामने से भाग जाना पड़ा।
(4) एक महान योद्धा के रूप में उपलब्धियां
निसंदेह कालांतर में सेनापति सर आयरकूट के आ जाने से कर्नल ब्रेसलेट ने तंजौर के पास उसे हराकर अपने खोए हुए सम्मान को पुनः प्राप्त कर लिया। सर आयरकूट ने उससे अर्नी का महत्वपूर्ण स्थान लेने का प्रयास किया परंतु हैदर अली के सामने असफल रहा। हैदर अली ने अपनी मृत्यु के पूर्व अंग्रेजों से अपने अनेक जीते हुए प्रदेश वापस ले लिए थे। इस प्रकार हैदर अली ने अपने को एक महान योद्धा प्रमाणित किया।
हैदर अली एक निर्भय, उदीयमान तथा साहसी सेनापति था। सैन्य विन्यास में चतुर्थ था चातुर्य में वास्तविक, शक्ति में निर्भय तथा पराजय से कभी निराश ना होने वाले व्यक्ति था।
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हैदर अली का जन्म कब और कहां हुआ था?
सन 1721 ई० में बुदीकोट में हैदर अली का जन्म हुआ था।
हैदर अली का जीवन परिचय?
सन 1721 ई० में बुदीकोट में हैदर अली का जन्म हुआ था। सनी 1728 ई० में उसके पिता का देहांत हो गया, जिसके कारण उसकी शिक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। परिणाम स्वरूप हैदर अली अशिक्षित ही रह गया। उसकी इन प्रारंभिक कठिनाइयों ने उसमें दृढ़ निश्चय की भावना उत्साह कूट-कूट कर भर दिया तथा प्रखर बुद्धि वाला बना दिया।
हैदर अली की उपलब्धियों का वर्णन करें?
हैदर अली की उपलब्धियां - (1) राज्य व प्रजा के प्रति उदासीनता (2) एक राजनीतिक के रूप में उपलब्धियां (3) सैनिक के रूप में उपलब्धियां (4) एक महान योद्धा के रूप में उपलब्धियां
हैदर अली का पुत्र कौन था?
हैदर अली का पुत्र टीपू सुल्तान था।
हैदर अली की मृत्यु कब हुई?
हैदर अली की मृत्यु 7 दिसंबर 1782 में हुई।
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