चंद्रगुप्त मौर्य (Chandra Gupta Mourya)
चंद्रगुप्त मौर्य का प्रारंभिक जीवन
चंद्रगप्त का जीवन परिचय; चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 345 ई० पू० मौरिक अथवा मौर्य वंश के छत्रिय कुल में हुआ था। मौरिक वाक्यों की एक शाखा थी, जो पिप्लीपवन मैं राज्य करती थी। चंद्रगुप्त के माता पिता के नाम के विषय में कुछ ठीक-ठीक पता नहीं चलता, किंतु महामंत्र से पता चलता है कि चंद्रगुप्त का पिता मौर्यो का प्रधान था। जिसका वध एक शक्तिशाली राजा ने कर दिया था। इस समय चंद्रगुप्त अपनी माता के गर्भ में था। पति की हत्या के बाद उसकी माता अपने पिता के घर पाटलिपुत्र चली गई और ऐसा समझा जाता है कि पाटलिपुत्र में ही चंद्रगुप्त का जन्म हुआ। बचपन से ही वह अत्यंत प्रतिभावशाली था। अपनी आर्थिक दशा अच्छी ने देखकर चंद्रगुप्त ने नंद राजा के यहां नौकरी कर ली तथा अपनी योग्यता के आधार पर वह शीघ्र ही राजकीय सेना का सेनापति बन गया। डॉ रमाशंकर त्रिपाठी ने चंद्रगुप्त के राज्य रोहन की तिथि 321 ई० पू० स्वीकार की है।
चंद्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियां
(1) नंदों से शत्रुता
चंद्रगुप्त मौर्य नंदों की सेना में एक सेनापति था। इस पथ पर उसने अत्यधिक ख्याति प्राप्त की जिसके कारण नंद वंश का तत्कालीन राजा धनानंद उसी से निवेश करने लगा तथा उसकी बढ़ती हुई शक्ति से आतंकित होकर उसने चंद्रगुप्त की हत्या का असफल प्रयास किया। चंद्रगुप्त मौर्य मगध से भाग निकला तथा उसने अपनी जान बचाई।
(2) चाणक्य से संपर्क
मगध राज्य से पलायन करने के उपरांत चंद्रगुप्त नंद राज्य का समूल विनाश करने की सोचने लगा। किंतु उसके पास साधनों का अभाव था जिसके कारण वह इधर-उधर भटकने लगा। इसी समय उसकी भेंट चाणक्य नामक एक ब्राह्मण से हुई। चाणक्य का जन्म तक्षशिला में हुआ था। वह के उत्तर भारत की राजनीतिक दुर्लभता से पूर्व परिचित था तथा देश के समस्त छोटे छोटे राज्यों को समाप्त करके उन्हें एक शक्तिशाली साम्राज्य में परिवर्तित करना चाहता था। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने नंदराज से भेंट की। किंतु नंदराज ने चाणक्य का अपमान किया। इस पर चाणक्य नहीं हो प्रतिज्ञा की कि वह नंद वंश का नाश करके ही दम लेगा। चाणक्य अपने उद्देश्यों की सफलता के लिए इधर उधर घूमने लगा। आ जाता है कि चंद्रगुप्त चाणक्य जो कि एक ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए भटक रहे थे, विद्यांचल पर्वत के निकट मिले और अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उन्होंने एक सेना का निर्माण किया।
(3) सिकंदर से भेंट
इस समय सिकंदर पंजाब पर आक्रमण कर रहा था। चाणक्य और चंद्रगुप्त ने नंद वंश के विरुद्ध सिकंदर की सहायता प्राप्त करनी चाही। और इसी उद्देश्य से चंद्रगुप्त ने सिकंदर से भेंट की। किंतु सिकंदर चंद्रगुप्त के अभिमानी स्वभाव से अप्रसन्न हो गया तथा उसने उसकी हत्या का असफल प्रयास भी किया। लेकिन चंद्रगुप्त चालाकी से वहां से भी भाग निकला।
(4) उत्तरापथ में विद्रोह
सिकंदर के पंजाब से लौटने पर चंद्रगुप्त ने पंजाब की जनता को सिकंदर के विरुद्ध भड़का दिया। इसमें सिकंदर सिंह की वीर कर्मा जातियों के साथ युद्ध में लीन था। सिकंदर के भारत छोड़ते ही उसने यूनानी क्षत्रप फिलिप की हत्या कर दी। इधर 325 ई० पू० में सिकंदर की मृत्यु के उपरांत चंद्रगुप्त ने यूनान विजय के समस्त अवशेषों को समाप्त करके उत्तरापथ के अधिकांश राज्यों पर अधिकार कर लिया।
(5) मगध पर अधिकार (323 ई० पू०)
चंद्रगुप्त मगध पर अधिकार करना चाहता था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने चाणक्य के साथ मिलकर एक सेना का निर्माण तथा पर्वतीय प्रांत के राजा पर्वतक के साथ एक राजनीतिक संधि की। इस प्रकार अब चंद्रगुप्त के पास एक विशाल सेना एकत्रित हो गई तथा उसने अब मगध की ओर प्रस्थान कर दिया। मुद्राराक्षस, पौराणिक जैन -बौद्ध साहित्य ग्रंथों में इस युद्ध का वर्णन मिलता है। मिलिन्दपन्हो से आभास मिलता है कि दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर युद्ध हुआ जिसमें चंद्रगुप्त को विजई प्राप्त हुई। मगध के शासक से कुपित जनता ने चंद्रगुप्त का खुलकर स्वागत किया। जनता के समर्थन और सैनिक कुशलता के कारण चंद्रगुप्त तत्कालीन शासक धनानंद को परास्त करने में सफल हुआ। चंद्रगुप्त ने धनानंद एवं उसके समस्त परिवार की हत्या कर दी तथा नंदवंशी को सदैव के लिए समाप्त कर दिया। 327 ई० पू० में चंद्रगुप्त मौर्य मगध के सिंहासन पर विराजमान हुआ।
(6) सेल्यूकस से युद्ध
सिकंदर की मृत्यु के पश्चात 306 ई० पू० में उसका सेनापति सेल्यूकस यूनान के सिहासन पर बैठा। सेल्यूकस भी सिकंदर की भांति अत्यंत महत्व कांची था तथा वह भी भारत विजय का स्वप्न देखा करता था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने काबुल की ओर से सिंधु नदी को पार किया। सन 305 ई० पू० में चंद्रगुप्त तथा सेल्यूकस की सेनाओं के मध्य भीषण युद्ध हुआ। जिस युद्ध में सेल्यूकस की पराजय हुई तथा उसे चंद्रगुप्त मौर्य से एक संधि करनी पड़ी, जिसके अनुसार उसे काबुल, हेरात व बिलोचिस्तान के कुछ भाग चंद्रगुप्त को देने पड़े। इस संधि से दोनों के मध्य मैत्री संबंधों की स्थापना हो गई। सेल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलन का विवाह चंद्रगुप्त के साथ कर दिया तथा चंद्रगुप्त के दरबार में मेगस्थनीज नामक राजदूत को भेज दिया।
(7) पश्चिमी भारत की विजय
रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है कि सौराष्ट्र आधी प्रदेश भी चंद्रगुप्त के शासन के अंग थे। चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य पश्चिमी भारत में सौराष्ट्र तक फैला हुआ था।
(8) दक्षिण विजय
चंद्रगुप्त की दक्षिण भारत विजय के विषय में विभिन्न विद्वानों के मतों में मतभेद है। इस विषय में डॉ० राय चौधरी ने अपना मत व्यक्त करते हुए कहा, “दक्षिण भारत पर नंद राजाओं ने विजय प्राप्त की थी और कुछ समय के बाद ही नंदो ने दक्षिण भारत को फिर खो दिया था।” इसके विपरीत वृहत्कथाकोश चंद्रगुप्त का संबंध दक्षिण से मानता।
(9) चंद्रगुप्त की मृत्यु (297 ई० पू०)
बौद्ध ग्रंथ यह बताते हैं कि चंद्रगुप्त मौर्य ने 24 वर्ष तक शासन किया था। जैन ग्रंथों के अनुसार चंद्रगुप्त ने अपने जीवन के अंतिम समय में जैन धर्म स्वीकार कर लिया था तथा अपना राज्यवार अपने पुत्र बिंदुसार पर छोड़कर जैन बिग शो भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला (मैसूर) चला गया तथा वही जैन संतों की भांति जीवन व्यतीत करते हुए 297 ई० पू० में उसने अपने प्राण त्याग दिए।
इस प्रकार भारत के प्रथम स्वतंत्र सम्राट के रूप में चंद्रगुप्त मौर्य ने भारतीय इतिहास में एक नए अध्याय का मार्ग प्रशस्त किया।
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चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म कब हुआ?
चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 345 ई० पू० मौरिक अथवा मौर्य वंश के छत्रिय कुल में हुआ था।
चंद्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियां क्या थी?
चंद्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियां — (1) नंदों से शत्रुता (2) चाणक्य से संपर्क (3) सिकंदर से भेंट (4) उत्तरापथ में विद्रोह (5) मगध पर अधिकार (323 ई० पू०) (6) सेल्यूकस से युद्ध (7) पश्चिमी भारत की विजय
चंद्रगुप्त मौर्य का जीवन परिचय?
चंद्रगुप्त मौर्य का जीवन परिचय - चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 345 ई० पू० मौरिक अथवा मौर्य वंश के छत्रिय कुल में हुआ था। मौरिक वाक्यों की एक शाखा थी, जो पिप्लीपवन मैं राज्य करती थी। चंद्रगुप्त के माता पिता के नाम के विषय में कुछ ठीक-ठीक पता नहीं चलता, किंतु महामंत्र से पता चलता है कि चंद्रगुप्त का पिता मौर्यो का प्रधान था।
चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु कब और कहां हुई?
बौद्ध ग्रंथ यह बताते हैं कि चंद्रगुप्त मौर्य ने 24 वर्ष तक शासन किया था। जैन ग्रंथों के अनुसार चंद्रगुप्त ने अपने जीवन के अंतिम समय में जैन धर्म स्वीकार कर लिया था तथा अपना राज्यवार अपने पुत्र बिंदुसार पर छोड़कर जैन बिग शो भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला (मैसूर) चला गया तथा वही जैन संतों की भांति जीवन व्यतीत करते हुए 297 ई० पू० में उसने अपने प्राण त्याग दिए।
चंद्रगुप्त मौर्य की कितनी पत्नी थी?
चंद्रगुप्त मौर्य की 1 पत्नी हेलन थी।
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