भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान
bhartiya arthvyavastha me krishi ka yogdan;अनादि काल से ही भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान रही है। कृषि जीविका का प्रमुख साधन रही है। ब्रिटिश काल में कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी रही है। आर्थिक इतिहास के अध्ययन से यह स्पष्ट हो चुका है कि लगभग औद्योगिक देश की प्रारंभिक अवस्था में उद्योगों का विकास कृषकों की शक्ति पर निर्भर रहा है।
योगदान (Contribution)
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्वता (योगदान) को निम्नलिखित रूप में दर्शाया जा सकता है— भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका —
(1) राष्ट्रीय आय का आधार
भारत की जीडीपी में कृषि का योगदान, देश की राष्ट्रीय आय का अधिकतर भाग कृषि से प्राप्त होता था। डॉ बीके आरबी राव ने 1930 में राष्ट्रीय आय का जो अनुमान लगाया, उसमें बताया कि देश का कृषि व्यवसाय प्रमुख उद्योग होने के बावजूद किसी का राष्ट्रीय आय में 38% हिस्सा था। जबकि उद्योगों से केवल 19% आय प्राप्त होती थी। इससे यह स्पष्ट है कि कृषि का देश की राष्ट्रीय आय मैं महत्वपूर्ण स्थान था।
(2) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति
कृषि का देश में न केवल आंतरिक अर्थव्यवस्था में महत्व है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। उदाहरण के तौर पर— भारत का गन्ने तथा पटसन उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान है। कपास तिलहन आदि कृषि उत्पादन का भी भारत का विश्व में प्रमुख स्थान रहा है।
(3) भारतीय संस्कृति की रक्षा
ब्रिटिश शासन में पाश्चात्य कृषि का भारतीय संस्कृति पर आक्रमण हुआ था, किंतु देश की संस्कृति तथा रीति-रिवाजों को सुरक्षा प्रदान करने में कृषि महत्वपूर्ण रही है। कृषि का व्यवसाय अधिकतर ग्रामीण लोगी करते हैं, स्थानीय लोग कृषि कार्य में संलग्न नहीं होते हैं। भारत की संस्कृति परिवर्तनों को रोकने के लिए अधिक प्रयास ग्रामीण जनता ही करती है।
(4) जीविकोपार्जन (आजीविका) का प्रमुख साधन
प्राचीन काल से ही कृषि लोगों की आजीविका का मुख्य साधन रही है। ब्रिटिश काल में अधिकतर जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी। एक अनुमान के अनुसार 75 से 82% जनसंख्या कृषि तथा कृषि पर निर्भर व्यवसाय में संलग्न थी। इस प्रकार भारत में अधिकांश जनता की आजीविका का एकमात्र साधन है। भारत के अधिकांश जनता का रोजगार कृषि पर आधारित है। भले ही वह कृषि नहीं करते हो लेकिन उनका व्यवसाय को जो कच्चा माल लगता है वह कृषि क्षेत्र से ही आता है। और भारत के अधिकतर पहाड़ी राज्यों में जैसे गांव एरिया में कृषि आजीविका का मुख्य साधन है।
(5) सरकारी आय का प्रमुख स्रोत
सरकार का वित्तीय ढांचा भी बहुत अंशों तक खेती पर निर्भर रहता है। सरकार को मालगुजारी से काफी राजस्व प्राप्त होता था। इसके अतिरिक्त कृषि पदार्थों पर निर्यात कर तथा तंबाकू चाय आदि पर लगाए गए कर्मों से सरकार को आय प्राप्त होती थी। सरकारी आई का भी प्रमुख स्रोत है कृषि क्योंकि भारत कृषि संबंधित चाय, कपास, जूट, तंबाकू आदि अन्य कृषि उत्पादक माल जो ् विदेशों को निर्यात करता है, उसी से भी राष्ट्रीय आय चलती है।
(6) विदेशी व्यापार
कृषि में वाणिज्य करण होने के पश्चात भारत के विदेशी व्यापार में कृषि का महत्व और अधिक बढ़ गया है। विदेशी व्यापार में कृषि निर्यात वस्तुओं में कपास, जूट, तिलहन, खाद्यान्न, चाय, तंबाकू, मसाले आदि प्रमुख हैं। इस प्रकार कृषि पदार्थों के निर्यात से देश को विदेशी विनिमय प्राप्त होता था, जो देश के भुगतान संतुलन में मददगार साबित होता है। कृषि का वाणिज्य करण होने से देश का व्यापार देश में ही सीमित नहीं रहा गया बल्कि विदेशों की ओर भी बढ़ गया है, जिससे माल का आयात निर्यात होने लगा। और देश की अर्थव्यवस्था पर काफी अच्छा प्रभाव पड़ा।
(7) परिवहन के लिए महत्व
परिवहन के साधनों जैसे— रेल, बैल गाड़ियां, मोटर जहाज, हवाई जहाज, ट्रक आदि के द्वारा खाद्यान्न एवं कृषि उत्पादित वस्तुओं का एक क्षेत्र में आदान-प्रदान होता था। इस प्रकार कृषि इन परिवहन साधनों का मुख्य अथवा प्रमुख आधार था। परिवहन के साधनों के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि व्यापार में जो आयात निर्यात का साधन है वह परिवहन ही है।
(8) पशुओं का चारा
भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुधन बहुत महत्वपूर्ण है जिंदगी ना केवल दूध मानसून प्राप्त होता है बल्कि खेत जोतने में भी काम में लाए जाते हैं। ब्रिटिश काल में तो इनकी महत्ता और अधिक थी। पीसी में इन पशुओं को चारा प्राप्त पर्याप्त मात्रा में मिल जाता था। भारत की अर्थव्यवस्था मैं पशुओं का भी काफी हद तक योगदान रहा है, क्योंकि आजकल जो सामग्री बाजार में उपलब्ध हैं उनमें अधिकांश सामग्रियों में पशुओं का योगदान रहता है जैसे— पशुओं के दूध से निर्मित सामग्री, पशुओं के गोबर से निर्मित खाद और गाय के गोमूत्र से निर्मित। और पशुओं को जीने के लिए चाहिए होता है चारा जोकि उनका स्रोत कृषि है। पशुओं का अधिकतर चारा कृषि से ही प्राप्त होता है।
(9) उद्योगों के लिए कच्चा माल
भारत में जो छोटे-बड़े उद्योग धंधे होते हैं, जैसे — चीनी, जूट, सूती वस्त्र, चाय, कॉफी, रबड़ आदि या अन्य उद्योग जिनमें कच्चा माल की पूर्ति कृषि से ही होती है। इससे भी हो पता चलता है कि भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का क्या योगदान है।
निष्कर्ष — इन शब्द से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का भी एक महत्वपूर्ण योगदान रहता आ रहा है। कृषि हर राष्ट्र के लिए एक महत्वपूर्ण व्यवसाय है क्योंकि इंसान हो या जानवर सभी को जीवन जीने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। और भोजन की आवश्यकता की पूर्ति कृषि से ही होती है। जिस देश की जनता स्वस्थ्य और बलवान हो वह देश हर क्षेत्र में उन्नति करता है। इसलिए कृषि कोई महत्वपूर्ण स्थान देना चाहिए। जिससे लोग कृषि की ओर अग्रसर हो।
एक टिप्पणी भेजें