संविधानवाद की समस्याएं तथा समाधान

    संविधानवाद समस्याएं और समाधान 

आधुनिक संविधानवाद को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, क्योंकि जब तक यह इन समस्याओं को दूर नहीं कर लेता है, तब तक इस के भविष्य को सर्वथा या सुरक्षित नहीं कहा जा सकता है। 

संविधानवाद की समस्याएं तथा समाधान

संविधानवाद की समस्याएं 

(1) निरंकुशवाद 

प्रो० के० सी० व्हीलर के अनुसार, “संवैधानिक शासन का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि विभिन्न रूपों में निरंकुशवाद की शक्ति कितनी है। जैसे जैसे वह बढ़ता है वैसे वैसे संवैधानिक शासन पीछे हटता जाता है।” इस कथन से यह तथ्य सोते हैं सिद्ध होता है कि निरंकुशवाद अभी भी किसी न किसी रूप में अस्तित्व में है और यह अवसर पाकर कभी भी अधिक भयंकर अथवा निकल रूप में विकसित हो सकता है और संविधानवाद की परंपरा को खतरा उत्पन्न कर सकता है।

(2) युद्ध (युद्ध की संभावना) 

युद्ध युद्ध की संभावना आज के प्रत्येक राज्य के सामने एक विकट समस्या उत्पन्न हो रही है। सशक्तिकरण की दौड़ में लगे प्रत्येक राष्ट्र का अपना सामाजिक और आर्थिक विकास सही तरीके से नहीं हो पा रहा है और इसके परिणाम स्वरूप संविधानवाद के प्रति आस्था को अधिक महत्व नहीं दिया जा रहा है।

(3) संस्थागत समस्या 

संविधानवाद की संभाव्यता सबसे अधिक समस्या इसकी आधुनिक संसदीय प्रणाली की क्रियाशीलता और गतिशीलता को लेकर हो रही है। आर्थिक महत्व के विषय में आधुनिक राज्यों के लिए अधिक आवश्यक हो गए हैं, जो संसदीय प्रणाली की केंद्रीय प्रभुता के ढांचे में सफलतापूर्वक हल (समाधान) नहीं किए जा सकते हैं। इससे सामाजिक अव्यवस्था और इस प्रणाली में ही आस्था समाप्त होने तक की विचारधारा का जन्म हो सकता है।

(4) संकटकालीन व्यवस्थाओं की स्पष्टता

रघुपति देश का संविधान संकटकालीन परिस्थितियों से निपटने के लिए कुछ आपातकालीन अधिकारों की व्यवस्था करता है जो शासक के द्वारा प्रयोग किए जाने होते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि शासक इन शक्तियों के प्रयोग से संविधानवाद को खतरा उत्पन्न कर देता है। भारत में 25 जून, सन 1975 को घोषित बाद कानून स्थिति इस सिद्धांत की स्पष्ट व्याख्या है जिसमें संविधान का ही सहारा लेकर प्रधानमंत्री ने आपातकालीन स्थिति लागू कर दी और जैसा कि कुछ लोगों की मान्यता है कि इससे आधुनिक संविधानवाद किस भारत में एक रुप से समाप्ति हो गई थी।

(5) समाजवाद और अंतरराष्ट्रीयवाद की समस्या 

संविधानवाद को समाजवाद और अंतरराष्ट्रीय वाद की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। यह दोनों स्वभावत:  एक दूसरे से भिन्न है। समाजवाद में योजना हित है और योजना अंतरराष्ट्रीय वाद की प्रगति को रोकती है। 

निष्कर्ष -  इन सभी विवेचना उसे यह स्पष्ट होता है कि आधुनिक संविधानवाद के मार्ग में संवैधानिक और अन्य प्रकार के अनेक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। वास्तव में यह समस्याएं संविधान की प्रक्रिया व्यवस्था से अधिक संबंध हैं। इस प्रकार की समस्याओं के समाधान के लिए आवश्यक है कि इस प्रकार का फार्मूला निश्चित किया जाए जिससे किसी भी प्रकार के संवैधानिक प्रतिरोध से अथवा संविधान के गलत प्रयोग से बचा जा सके। 

संविधानवाद की समस्याओं का समाधान  

(1) योग्य शासक 

शासक को शासन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि आधुनिक संविधान बाद में संप्रभुता जनता में ही निहित होती है। अतः शासन सदैव नियम के अनुसार जनता के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए। 

(2) सुदृढ़ शासन

यह एक सार्वभौमिक सत्य है कि मनुष्य अपने स्वार्थ के समक्ष समाज और राज्य के हितों की अवहेलना करते रहते हैं। ऐसा समाज जहां प्रत्येक को स्वेच्छा अनुसार कार्य करने की स्वतंत्रता होती है, शीघ्र ही अव्यवस्था का शिकार हो जाता है। इस प्रकार के अराजकता से बचने के लिए एक सुदृढ़ संप्रभु शक्ति संयुक्त राज्य होना आवश्यक है। 

(3) प्रशासन संबंधी सुधार 

एकात्मक शासन व्यवस्था में प्रशासन की समस्याएं भी संविधानवाद के लिए एक खतरा बनती है। राज्य की विभिन्न इकाइयों को विधानमंडल के निकट लाने का प्रयास किया जाना चाहिए ताकि शासन संबंधी कोई समस्या उत्पन्न हो सके। एकात्मक राज्य को भी संघात्मक राज्य के अनुरूप अपने राजनीतिक निकायों की रचना इस प्रकार करनी चाहिए। जिससे उनके पास केंद्रीय परियोजनाओं के लिए केवल वही शक्तियां रह जाए जो सामान्य हित के लिए आवश्यक होती हैं। 

(4) विवेकपूर्ण शासन व्यवस्था 

संविधानवाद को जीवित रखने के लिए आवश्यक है कि समाज का बड़ा भाग उसमें सक्रिय रूप से भाग ले और रुचि भी ले। बुद्धिजीवियों को इस बात का एहसास कराया जाना चाहिए कि वे राजनीतिक भाग्य के स्वयं निर्माता हैं। सरकार के तीनों विभागों का गठन प्रजातांत्रिक ढंग से किया जाना चाहिए और सरकार की समस्त प्रक्रिया इस रूप में हो कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सती ना पहुंच पाए। 

(5) अंतरराष्ट्रीय संगठन का निर्माण 

स्ट्रांग का मत है कि “अंतरराष्ट्रीय संगठन राजनीतिक संविधानवाद की निरंतर सुरक्षा की अनिवार्य शर्त है। जिस अंतरराष्ट्रीय अराजकता से 2 विश्व युद्ध हुए हैं और जो अनियंत्रित होकर हमारी सभ्यता को नष्ट कर देने वाले तृतीय विश्व युद्ध का सूत्रपात करेगी, उसको दूर करने का माध्यम केवल किसी ना किसी प्रकार का विश्व संग ही होगा। किंतु इसका तात्पर्य हो नहीं है कि विशाल को राष्ट्रीय राज्य अथवा  बहुराष्ट्रीय राज्यों का निर्माण हो करना होगा। वास्तविक संघ का सफल निर्माण केवल ऐसे राज्यों के बीच हो सकता है जो संयोजन की इच्छा रखते हैं।”  

   इस मत के अनुसार इस बात की पुष्टि होती है कि आदमी संविधानवाद के अस्तित्व को बनाए रखने और इसे आगे बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है कि संयोजन की इच्छा वाले राज्यों का एक विशेष अंग हो, जो युद्ध की संभावना को दूर करने में सक्षम हो। 

निष्कर्ष - इन सभी विवेचनाओं से स्पष्ट होता है कि यद्यपि आधुनिक संविधानवाद के अनेक समस्याएं है किंतु उनका समाधान राष्ट्रों की इच्छा तथा सद्भावना से किया जा सकता है। इस संदर्भ में आधुनिक राष्ट्रीय राज्यों की क्रिया प्रणाली और संयुक्त राष्ट्र संघ का सफल संचालन पर्याप्त महत्वपूर्ण रहा है।।


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