इतिहास लेखन
इतिहास मनुष्य के अनुभवों की कहानी है। अनुभव को सक्रिय और निष्क्रिय दो प्रकार के होते हैं। जीवन में एक मनुष्य के साथ जो कुछ जटिल होता है और परिस्थिति आने पर वह स्वयं उसका सामना करता है तो उसकी समझ और ज्ञान में वृद्धि होती है। इतिहास का संबंध समाज में रहने वाले व्यक्ति से ही नहीं है बल्कि उसे समाज से भी है जिसमें व्यक्ति अपना जीवन व्यतीत करता है। व्यक्ति का प्रत्येक कार्य समाज के अन्य लोगों से भी संबंध रखता है।
इतिहास लेखन की विशेषताएं
(1) मानवीय अध्ययन
इतिहास लेखन स्वयं के बारे में जानने की मनुष्य जाति के आंतरिक इच्छा की प्रतिक्रिया है। इस कारण यह मौलिक रूप से एक मानवीय अध्ययन है जो लोगों के महत्व, उनकी व्यक्तिगत पसंद, उनके मूल्य तथा स्वयं के साथ-साथ विश्व को देखने के उनके दृष्टिकोण पर जोर देता है।
(2) व्यक्ति और समाज का अध्ययन
इतिहास लेखन का संबंध व्यक्ति और समाज दोनों से रहता है। अन्य समाज विज्ञानों की भांति इतिहासकारों की रुचि इस बात से रहती है कि स्त्री और पुरुष सामाजिक प्राणी के रूप में साथ-साथ क्यों तथा कैसे कार्य करते हैं? समाज विज्ञान के साथ अपने संपर्क सूत्रों के कारण इतिहास लेखन समान परिकल्पना और निष्कर्षों का प्रयोग करते हुए यह जानकारी प्राप्त करता है कि लोगों ने अपनी संस्थाओं का विकास किस प्रकार किया है? इन संस्थाओं का प्रयोग किस प्रकार किया गया तथा राजनीतिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक संरचना में इन्होंने कैसे कार्य किया? इतिहासकार का उद्देश्य उपन्यासकार की भांति उस वास्तविकता की पुनः खोज करना, ग्रहण करना तथा हमारे समक्ष प्रस्तुत करना है जो समय के कारण हमसे दूर हो चुकी हैं।
(3) अतीत का अध्ययन
इतिहास लेखन अन्य शास्त्रों का कार्य अनुभवों की रक्षा, संचरण एवं व्याख्या करना है लेकिन इतिहास लेखन का विशेष दायित्व अतीत का स्मरण कराना, पुनः मूल्यांकन करना एवं पूर्ण व्याख्या करना है। यह अतीत को वर्तमान की समझ के योग्य बनाता है तथा उसकी इस प्रकार व्याख्या करता है कि प्रत्येक पीढ़ी उसका प्रयोग कर सकें।
(4) इतिहास लेखन मार्गदर्शक होता है
इतिहास लेखन की रूचि कारणों में निहित होती है अथवा सामाजिक प्रक्रिया के हमारे विचारों को आगे बढ़ाता है और स्पष्ट करता है। जो हमारे समूह को सामाजिक समस्याओं के बारे में अधिक अनुशासित दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। सन्तयाना के अनुसार — “जो लोग इतिहास को नहीं जानते वह निश्चित रूप से इसे दोहराते हैं।” जब हम यह जान लेते हैं कि अतीत काल में समाज का संचरण किस प्रकार हुआ था तो हम वर्तमान में अंतर्निहित संभावनाओं तथा विकल्पों को भी जान लेते हैं। इस प्रकार इतिहास लेखन हमारा मार्गदर्शन करता है।
(5) अनुभव की विलक्षणता
इतिहास लेखन व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों प्रकार के मानवीय अनुभवों की विलक्षणता पर जोर देता है। जीवन विशिष्ट है और परिवर्तनशील है तथा प्रत्येक भाग की अपनी एकाग्रता है। अतीत और वर्तमान के मध्य चाहे कितनी भी आकर्षक एकरूपता क्यों ना विद्यमान हो हमें शीघ्र ही हो ज्ञात हो जाता है कि अतीत को वास्तव में दोहराया नहीं जा सकता। इतिहास पूर्ण रूप से अपने आप को कभी नहीं दोहराता। इतिहास में यह चेतावनी देता है कि हम पुनरावृति पर विश्वास नहीं कर सकते हैं। हम यह नहीं मान सकते कि जो एक बार सफल या असफल रहा है वह पुनः भी ऐसा ही रहेगा। इतिहास में आत्मविश्वास तथा सरल उत्तरों के प्रति चेतावनी देता है। यह हमेशा हमें स्मरण दिलाता है कि हम मानव है।
(6) अधिक चयन और निर्णय
साहित्य दर्शन एवं कला की अपेक्षा इतिहास लेखन चयन तथा निर्णय अधिक करता है। यह बार-बार मानवीय संस्कृति को बदल देता है। जिस अनुभव को पूर्ण संतति ने अस्वीकार कर दिया था उसमें यह नई संगति तलाश करता है। यह ऐसे अतीत को संजोए रखता है जो वर्तमान में तो अपनी उपयोगिता खो चुका है लेकिन जिसे भावी संतति नया अर्थ दे सकती है।
(7) कठोर नियतिवादी नहीं
इतिहासकार कठोर नियती वादी नहीं होते अर्थात में यह नहीं सोचते कि निश्चित कारकों का एक सेट मानवीय व्यवहार को निर्धारित करता है तथा उनके कार्यों को संपन्न कराता है। ऐसी स्थिति में अतीत कालीन मानव व्यवहार को पढ़ने का महत्व संदिग्ध हो जाता है क्योंकि तब इसे बदला नहीं जा सकता है। लोग अपने अतीत की भूलों से सीखने में असमर्थ रहते हैं। इसके अतिरिक्त इतिहासकार किसी एक व्यक्ति या घटना को अलग-अलग नहीं रख सकते। मानवी घटनाएं 0 में घटित नहीं होती और इसलिए वे व्यक्तियों को प्रभावित करती हैं तथा इस प्रकार अन्य घटनाओं को भी प्रभावित करती हैं। परिणाम स्वरूप सभी ऐतिहासिक घटनाएं व्यापक परिपेक्ष में देखी जानी चाहिए।
(8) मूल्यातमक निर्णय
इतिहासकार को अपनी भी चारणीय ऐतिहासिक विषय के बारे में ठोस मूल्यांत्मक निर्णय देने चाहिए अन्यथा किसी घटना के दीर्घकालीन महत्व को निर्धारित करने में असफल रहने तथा मात्र तात्कालिक घटना पर ही सीमित रहने से वे अपने महत्वपूर्ण कार्य से वंचित रह जाएंगे।
(9) अनुशासनात्मक उपागम
अपने विकास के दौरान इतिहास लेखन अन्य सभी अनुशासन को याद तो आंकड़े देता है या प्रभावित करता है। शब्द व्युत्पत्ति की दृष्टि से यूनानी शब्द ‘हिस्टोरिया’ (Historia) का अर्थ पूछताछ अथवा पूछताछ से प्राप्त ज्ञान है। प्रारंभिक इतिहास ज्ञात तथ्यों का संग्रह मात्र होता है। उदाहरण के लिए- अरस्तु ने पशुओं के इतिहास में पशुओं के कार्यों तथा गुणों के वर्गीकरण द्वारा प्राकृतिक जीवन के सर्वेक्षण का प्रयास किया था। अपने व्यापक रूप से इतिहास मूर्त रूप से विशेष चीजों के ज्ञान के रूप में विकसित हुआ है और इस प्रकार समस्त ज्ञान तक व्याप्त हो गया है। विभिन्न कालों के इतिहास को दर्शन शास्त्र, मनोविज्ञान, जीव विज्ञान, समाज विज्ञान, कला तथा इतिहास को इतिहास के समकक्ष माना गया है।
(10) घटनाओं की व्याख्या
इतिहासकार अभिलेखों के चयन और संगठन में पर्याप्त संक्षिप्तीकरण और सावधानी का प्रयोग करते हैं। वह इसी उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हैं जिसके लिए जांच की जा रही है। वे तद अनुसार घटनाओं की व्याख्या करते हैं। अतीत निश्चय ही वर्तमान का रूप निर्धारित करता है। जैसे — इतिहासकार इस बात पर सहमत हैं कि वर्साय की संधि की सर तो ने ऐसा वातावरण बनाया था जिसके फलस्वरूप नाजी जर्मनी का विकास हो सका। इसके अतिरिक्त वर्तमान अतीत की अपनी व्याख्या के माध्यम से आती है इसका रूप निर्धारित करता है ताकि वर्तमान अतीत को समझ सके।
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