हीगल के स्वतंत्रता संबंधी विचार तथा आलोचनाएं

 हीगल के स्वतंत्रता संबंधी विचार 

हीगल के सम्मुख जर्मनी के एकीकरण और पुनरुत्थान की समस्या थी और हीगल का विचार था कि उग्र व्यक्तिवाद जर्मन राष्ट्रीय चरित्र का एक प्रमुख दोष है। अतः उनका स्वतंत्रता संबंधी विचार इस उग्र व्यक्तिवाद पर अंकुश लगाने से संबंधित है।

(1) स्वतंत्रता का महत्व 

हीगल के राजनीतिक दर्शन में स्वतंत्रता के महत्व को स्वीकार किया गया है। हीगल के मतानुसार स्वतंत्रता मनुष्य का सबसे विशेष गुण और मानवता का सबसे अच्छा सार है। स्वतंत्रता के त्याग का अर्थ है— अपनी मानवता का परित्याग करना। इस प्रकार स्वतंत्र ना होने का अभिप्राय है— अपने मानव अधिकारों और कर्तव्यों को खोना। 

 हीगल की मान्यता है कि विश्वात्मा के क्रमिक विकास के साथ-साथ स्वतंत्रता का विकास हुआ है। उसने विश्वास तमा के विकास को प्राचीन युग यूनानी तथा रोमन योग तथा आधुनिक जर्मन राष्ट्रवाद में विभाजित कर कहा है कि प्राचीन युग में केवल निरंकुश शासक ही स्वतंत्र होते थे। यूनान तथा रोमन युग में कुछ लोग स्वतंत्र थे क्योंकि वहां दास प्रथा प्रचलित थी। नवोदित जर्मन राष्ट्र में व्यक्ति होने के नाते सभी व्यक्ति स्वतंत्र हैं। लेकिन अभी वह पूर्ण रुप से स्वतंत्र नहीं है;-जैसे-जैसे विश्व आत्मा का विकास होता जाएगा वैसे-वैसे स्वतंत्रता के विचार का भी विकास होता जाएगा। इसीलिए ईगल ने जो कहा है कि, “विश्व का इतिहास स्वतंत्रता की चेतना की प्रगति के सिवाय कुछ नहीं है। ” 

(2) स्वतंत्रता का अर्थ 

हीगल की स्वतंत्रता की धारणा का विश्लेषण विद्वानों ने निम्न तीन आधारों पर किया है — 

(1) तत्व मीमांसीय स्तर - तत्व मीमांसा के आधार पर हीगल स्वतंत्रता को आत्म तत्व का सार मानता है। क्योंकि आत्म तत्व, आत्म आत्म, केंद्रित आत्मनिर्भर और पूर्ण है इसलिए यह स्वतंत्र है। 

  ईगल का मत है कि “आवश्यकता की सच्चाई ही स्वतंत्रता है।” व्यक्ति प्रकृति में व्याप्त आत्म बल का ज्ञान प्राप्त करके ही आवश्यकता पर विजय प्राप्त कर दार्शनिक अर्थ में स्वतंत्र हो सकता है।

(2) राजनीति दर्शन का स्तर - राजनीति दर्शन के स्तर पर हीगल की स्वतंत्रता की अवधारणा की प्रमुख विशेषताएं यह है— 

1. सच्ची स्वतंत्रता विशुद्ध विवेक द्वारा प्रेरित होकर कार्य में निहित है।

2. स्वतंत्रता का आधार परमार्थ है। क्योंकि उत्कृष्ट तत्वों से प्रेरित होकर कार्य करना स्वतंत्रता है और निकृष्ट तत्वों के वशीभूत होकर कार्य करना दास्तां है। परमार्थ की भावना का विकास उत्कृष्ट तत्वों से होता है और स्वार्थ की भावना का विकास निकृष्ट तत्वों से होता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि स्वतंत्रता का आधार पर मारता है।

3. स्वतंत्रता की प्राप्ति कर्तव्य पालन में है ना कि अधिकारों के उपभोग में है।

4. स्वतंत्रता एक सामाजिक तथ्य है। जो व्यक्ति की एक प्रकार की स्थिति है जो उसे समाज के नैतिक और कानूनी संस्थाओं के माध्यम से प्राप्त होती है। अतः इसे व्यक्तिगत प्रवर्ती नहीं कहा जा सकता।

5. राज्य की आज्ञाओं का स्वेच्छा से पालन करना ही स्वतंत्रता है। हीगल के अनुसार- “एक पूर्ण राज्य वस्तु का वास्तविक स्वतंत्रता का प्रतिरूप होता है और राज्य के अतिरिक्त अन्य कोई भी वस्तु स्वतंत्रता को वास्तविक रूप अदा नहीं कर सकता।” 

  राज्य के कानूनों में राज्य का विवेक निहित होता है और राज्य के विवेक के अनुकूल आचरण करना है स्वतंत्रता है, क्योंकि व्यक्ति का विवेक व्यक्तिगत स्वार्थों के कारण त्रुटिपूर्ण होता है। इसलिए हीगल का यह मान्यता है कि- “मनुष्य के वास्तविक स्वतंत्रता राज्य एवं कानून के उच्चतर विवेक की अधीनता स्वीकार करने और उनसे अपना एकाकार करने में है।” हीगल इसे और अधिक स्पष्ट करते हुए लिखते हैं, जब मनुष्य की व्यक्तिगत इच्छा राज्य के कानूनों के समक्ष आत्मसमर्पण करती है तब स्वतंत्रता और आवश्यकता का अंतर्विरोध मिट जाता है। 

इस प्रकार हीगल के अनुसार राज्य की आज्ञा का पालन करना ही संपूर्ण स्वतंत्रता है। यहां हीगल ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सत्ता के मध्य समन्वय स्थापित कर जर्मन लोगों के उग्र व्यक्तिवाद को समाप्त किया है और व्यक्ति को राज्य के अधीन करके भी उसे पूर्ण स्वतंत्र कर दिया है।

3. व्यवहारिक राजनीतिक स्तर - व्यावहारिक राजनीतिक स्तर पर हीगल की मान्यता है कि यदि व्यक्ति को व्यक्तिगत विचार की स्वतंत्रता होनी चाहिए और व्यक्ति के क्षेत्र में राज्य को तटस्थ होना चाहिए। लेकिन यदि व्यक्ति के विचार की स्वतंत्रता व्यक्तियों को संगठित कर आंदोलन और अशांति को बढ़ावा दें तो राज्य को उसे दबाना चाहिए। इसी अर्थ में ही गर्ल चर्च क अमर्यादित स्वतंत्रता का भी विरोधी है। ईगल के अनुसार राज्य का कानून ही स्वतंत्रता का मूर्त रूप है।

  हीगल राज्य को सर्वोच्च सर्वथा सही और विवेकशील सामान्य इच्छा का प्रतीक मानता है। इसलिए उसका विरोध कभी भी न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है। इसलिए हीगल नागरिकों को राज्य के विरुद्ध विद्रोह करने का अधिकार प्रदान नहीं करता है।

 

हीगल के स्वतंत्रता संबंधी विचारों की आलोचना  

(1) व्यक्ति को राज्य का दास बना दिया है

ईगल ने राज्य को असीमित सर्वोच्च और अमर्यादित मानकर व्यक्ति की स्वतंत्रता को समाप्त कर उसे राज्य का पूर्ण दास बना दिया है।

(2) अप्रजातांत्रिक- ईवेन्स्टीन 

ईगल की स्वतंत्रता की धारणा और प्रजातांत्रिक है। जहां प्रजातांत्रिक सिद्धांत के अनुसार विभिन्न विकल्पों में किसी एक को चुनने या पसंद करने के अधिकार का नाम स्वतंत्रता है, वही फिगर की अनुसार राज्य के अधीनता को स्वीकार करना ही स्वतंत्रता है। महान राजनीतिज्ञ वेपर ने लिखा है — यद्यपि हीगल ने राज्य को मशीन के समान समझने वालों की तुलना में स्वतंत्रता का श्रेष्ठ परिभाषा देने का प्रयास किया है यद्यपि अंत में उसने भी व्यक्ति को एक महान व्यक्ति के मुंह में डाल दिया है।”

(3) अधिकारों की उपेक्षा 

ईगल के स्वतंत्रता के विचारों में आज्ञा पालन और कर्तव्य पालन पर जोर दिया गया है तथा व्यक्ति के अधिकारों की धारणा को उपेक्षित कर दिया है। इस प्रकार उसने राज्य की वेदी पर व्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की बलि चढ़ा दी है।

(4) राजनीतिज्ञ नागरिक स्वतंत्रता का अभाव

सेवाइन के अनुसार हीगल ने आत्मिक स्वतंत्रता का तो वर्णन किया है लेकिन राजनैतिक एवं नागरिक स्वतंत्रता की उपेक्षा कर दी है।


impo-Short questions and answers 


हीगल का जन्म कब हुआ था?

हीगल का जन्म 27 अगस्त, 1770 ई० हुआ था।

हीगल के स्वतंत्रता संबंधी विचार क्या थे?

हीगल के राजनीतिक दर्शन में स्वतंत्रता के महत्व को स्वीकार किया गया है। हीगल के मतानुसार स्वतंत्रता मनुष्य का सबसे विशेष गुण और मानवता का सबसे अच्छा सार है। स्वतंत्रता के त्याग का अर्थ है— अपनी मानवता का परित्याग करना। इस प्रकार स्वतंत्र ना होने का अभिप्राय है— अपने मानव अधिकारों और कर्तव्यों को खोना।

हीगल का पूर्ण नाम क्या है?

हीगल का पूर्ण नाम ‘जॉर्ज विल्हम फ्रेडरिक‌‌ हीगल’ है।

हीगल के स्वतंत्रता संबंधी विचार की आलोचना?

(1) व्यक्ति को राज्य का दास बना दिया है (2) अप्रजातांत्रिक- ईवेन्स्टीन (3) अधिकारों की उपेक्षा (4) राजनीतिज्ञ नागरिक स्वतंत्रता का अभाव

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