द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध के कारण
(1) लार्ड वेलेजली की साम्राज्यवादी नीति
लार्ड वेलेजली भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार के लिए लालायित था और उसकी यही लालसा द्वितीय मराठा युद्ध का प्रमुख कारण बनी थी। उसने दूसरों के विचारों की पूर्ण उपेक्षा करके, हर उचित या अनुचित उपाय से अनेक प्रदेशों का अंग्रेजी साम्राज्य में विलय किया। इनमें से अनेक प्रदेश मराठों के थे। इसलिए लार्ड वेलेजली तथा मराठों के बीच युद्ध अनिवार्य होना ही था।
(2) बसीन की संधि
अंग्रेजों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय से 31 दिसंबर, 1802 को बसीन की संधि संपन्न की। पेशवा मराठा संघ का प्रमुख सदस्य और चाहे छाया मात्र ही सही उनका नेता माना जाता था। इस प्रकार उसका अंग्रेजों के प्रभाव में आने का अर्थ था सभी मराठा सरदारों की स्वतंत्रता का अंत। इस कारण यह अपमानजनक संधि मराठों को असहनीय थी।
(3) सहायक संधि
लार्ड वेलेजली द्वारा प्रतिपादित सहायक संधि का दृढ़ता के साथ पालन किया जाना भी अंग्रेजों और मराठों के पारस्परिक संघर्ष का एक प्रमुख कारण था। इस सहायक संधि ने एक अन्य प्रकार से भी मराठों को उत्तेजित किया। चौथ तथा लूटमार आदि ही आय के प्रमुख स्रोत थे। चौथा दी मराठा हैदराबाद तथा अपने अन्य निकटवर्ती प्रदेशों से वसूल करते थे, परंतु जब सहायक संधि के अनुसार इन प्रदेशों की सुरक्षा का उत्तरदायित्व अंग्रेजों ने अपने ऊपर ले लिया तो मराठों के लिए छापे मारना पूर्ण रूप से बंद हो गया। जिस कारण मराठों को अंग्रेजों से घृणा होने लगी।
(4) तत्कालीन कारण
मराठा सरदार विशेषकर भोंसले तथा सिंधिया, पेशवा बाजीराव द्वितीय को अंग्रेजों से मिल जाने के कारण उचित रूप से दंडित करना चाहते थे। वे अपनी सेनाओं सहित पुणे की ओर अग्रसर हुए। इधर अंग्रेज पेशवा की रक्षा के लिए कटिबद्ध थे। उन्होंने दोनों मराठा सरदारों से नर्मदा नदी के उस पार जाने को। मराठा सरदारों ने उनके आदेश का पालन करना अस्वीकार कर दिया। परिणाम स्वरुप अगस्त 1803 में दोनों के मध्य युद्ध आरंभ।
द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध की घटनाएं
यह युद्ध निरंतर 4 माह अगस्त 1803 से दिसंबर 1803 तक लड़ा गया। इस युद्ध में मराठों के पास विशाल सेना थी। यह सेना पूर्ण रूप से प्रशिक्षित थी। दूसरी और अंग्रेजों के पास 55000 सैनिक मात्र थे। इसी कारण बहुत सोच विचार के उपरांत ही लॉर्ड वेलेजली ने आक्रमण की योजना तैयार की थी। उसकी योजना प्रमुख रूप से इस बात पर आधारित ही की एक साथ अनेक मोर्चों पर युद्ध किया जाए। परिणाम स्वरूप यह युद्ध बुंदेलखंड, उड़ीसा, दक्षिण तथा उत्तरी भारत में प्रारंभ किया।
औरंगाबाद में युद्ध— दक्षिण में अंग्रेजी सेनाओं का नेतृत्व अपने समय का योग्यतम सेनापति तथा गवर्नर जनरल का भाई आर्थर वेलेजली कर रहा था। उसने मराठों पर अनेक स्थानों पर विजय प्राप्त की। 12 अगस्त, 1803 को अहमदनगर पर उसका अधिकार हो गया। इसके उपरांत वह आगे बढ़ा तथा भोंसले एवं सिंधिया की संयुक्त सेना को औरंगाबाद के निकट असाई नामक स्थान पर 1803 में पराजित किया। असाई के इस युद्ध में दोनों ओर से भीषण युद्ध हुआ और लगभग 1,500 अंग्रेजी सैनिक मारे गए, परंतु अंत में अच्छे नेतृत्व तथा भली-भांति प्रशिक्षित सैनिकों के कारण विजय अंग्रेजों को ही मिली।
भोंसले की पराजय
असाई के उपरांत भोसले की सेनाओं को अरगांव (Argaon) गांव नामक स्थान पर बुरी तरह पराजित होना पड़ा। अंग्रेजों ने आगे बढ़कर गाविलगढ के महत्वपूर्ण दुर्ग पर अधिकार कर लिया। अंत में बरार के इस मराठा सरदार रघु जी भोसले को अंग्रेजों से देवगांव की संधि करनी पड़ी। इस संधि के साथ दक्षिण का युद्ध समाप्त हो गया।
उत्तरीय भारत - उत्तरी भारत में लॉर्ड लेख कानपुर से चलकर अंत में अलीगढ़ पर अपना अधिकार स्थापित करने में सफल रहा। उसने अलीगढ़ से बढ़कर सितंबर 1803 में सिंधिया की सेनाओं को पराजित करके दिल्ली पर भी अपना अधिकार करके 83 वर्षीय नेत्रहीन मुगल सम्राट शाह आलम को अपने संरक्षण में ले लिया।
सिंधिया की विजय
लॉर्ड लेख ने दिल्ली पर अधिकार करने के उपरांत अक्टूबर 1803 में आगरा पर भी अपना अधिकार स्थापित कर लिया। उत्तर भारत में होने वाले युद्ध की अंतिम लड़ाई अलवर के निकट लसवाडी की स्थान पर नवंबर 1803 में हुई। इस स्थान पर अपनी पराजय से पूर्व सिंधिया की सेनाओं ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे।
बुर्जी संधि
अंग्रेजों ने दक्षिण और उत्तर के सामान गुजरात बुंदेलखंड तथा उड़ीसा में भी विजय प्राप्त की। गुजरात में अंग्रेजों ने भड़ौच तथा उड़ीसा के कटक पर अपना अधिकार कर लिया। बुंदेलखंड में भी वेलेजली की इच्छा अनुसार ही कार्य हुआ। अंत में सिंधिया और अंग्रेजों के बीच सुर्जी अर्जुन गांव की संधि हो गई।
द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध के परिणाम
अंग्रेजों तथा भोसले के मध्य देवगांव की संधि तथा अंग्रेजों और सिंधिया के बीच सुर्जी अर्जुनगांव के संधि से शांति स्थापित हुई।
(1) देवगांव की संधि 17 दिसंबर, 1803
बरार की रघुजी भोसले तथा अंग्रेजों के मध्य यह संधि 1803 के अंत में संपन्न हुई थी।
(1) भोसले ने बालसुर सहित कटक का प्रदेश अंग्रेजों को दे दिया। इसके अतिरिक्त उसे वर्धा नदी की पश्चिम के अनेक प्रदेश देश भी अंग्रेजों को देनी पड़े।
(3) निजाम और पेशवा के साथ होने वाले अपने झगड़ों में अंग्रेजों की मध्यस्थता को स्वीकार किया।
(4) उसने अंग्रेजों के किस शत्रु देशों से पत्र व्यवहार करने तथा किसी विदेशी को अपने यहां ना रखने का भी आश्वासन दिया।
(5) भोसले ने निजाम के विरुद्ध अपनी सभी प्रादेशिक दावे वापस ले लिए।
(6) भोसले ने अपने प्रदेश में सहायक सेना रखना स्वीकार नहीं किया और वेलेजली ने भी इस शर्त को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया।
(2) बुर्जी अर्जुनगांव की संधि
इस संधि की प्रमुख शर्तें—
(1) इस संधि के अनुसार सिंधिया के अहमदनगर, भड़ौच, दिल्ली तथा आगरा सहित गंगा और यमुना के मध्य के समस्त प्रदेश अंग्रेजों को सौंप दिये।
(2) सिंधिया ने भी बसीन की संधि को स्वीकार करके अपने यहां ब्रिटिश रेजिमेंट रखना स्वीकार किया।
(3) उसने मुगल सम्राट, पेशवा, निजाम तथा गायकवाड़ की प्रति अपने समस्त दावों को छोड़ दिया।
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