बौद्ध धर्म के पतन के कारण
बौद्ध धर्म का पतन; बौद्ध धर्म के उत्थान के उपरांत पतन अवश्यंभावी होता है। परंतु पता अनेक कारणों पर आधारित होता है इसी नियम के अनुसार बौद्ध धर्म का प्रचार अत्यधिक द्रुत गति के साथ संपन्न हुआं। इसके उत्थान का प्रमुख कारण था कि हिंदू धर्म के विभिन्न प्रकार की त्रुटियां एवं कुरीतियों से जनता विमुख हो गई थी परंतु उसका यह अभिप्राय कदापि ना था कि जनता हिंदू धर्म से गिरना करने लगी थी बौद्ध धर्म महत्वपूर्ण बनकर भी हिंदू धर्म का विनाश करने में असफल रहा अंततः बौद्ध धर्म का पतन हो गया। बौद्ध धर्म के पतन के कारण निम्नलिखित थे —
पतन के कारण
(1) बौद्ध संघों में अनैतिकता
कालांतर में वही बौद्ध संघ जो महात्मा बुद्ध द्वारा स्थापित किया जाकर आदर्श बना हुआ था, विविध प्रकार के दुर्गुणों का शरण स्थल बन गया। श्रद्धालु बौद्ध भक्तों ने बौद्ध विहार उनको उदारता पूर्वक मुक्त हस्त से धन दान किया था। अतः बौद्ध विहारों में अतुलित धनराशि एकत्रित हो गई थी। धन के आदित्य ने बौद्ध भिक्षु को सरल और पवित्र जीवन त्याग कर विलासिता एवं ऐश्वर्य का जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा प्रदान की। वह विलासिता में पूर्णता विलुप्त हो गए। विहारो में भी चूड़ियों की उपस्थिति ने वहां के वातावरण को पूर्ण रूप में परिवर्तित कर दिया। बौद्ध भिक्षुओं का तप त्याग और संयम का जीवन भोग विलास और इंद्रिय सुख का उपभोग करने लगा। बुद्ध जी की यह आंतरिक आकांक्षा थी कि स्त्रियों को भिक्षुणी ना बनाई जाए।
(2) आंतरिक मतभेद
बौद्ध धर्म के आंतरिक मतभेदों को इस धर्म के पतन के मुख्य कारणों के अंतर्गत प्रमुख स्थान प्राप्त है। महात्मा बुद्ध जी की मृत्यु के पश्चात उनके अनुयायियों मैं विभिन्न विषयों पर मतभेद उत्पन्न होने लगे। फल स्वरूप धर्म की एकता को गहरा आघात पहुंचा और उसका 14 प्रशाखाओं में विभाजन हो गया। बुद्ध जी के अनुयायियों में मतभेद ईर्ष्या और द्वेष की भावना इस सीमा तक बढ़ गई कि वह परस्पर एक दूसरे पर वार प्रहार करने और दूसरे को पद भ्रष्ट सिद्ध करने लगे।
(3) बौद्ध धर्म के सिद्धांतों में परिवर्तन
महात्मा बुद्ध द्वारा स्थापित किए जाने पर बौद्ध धर्म एक सरल और सत्यव्य से परिपूर्ण धर्म था। उसमें जीवन की पवित्रता पर अत्यधिक ध्यान दिया गया था। परंतु समय व्यतीत होने पर बौद्ध धर्म के सिद्धांत में अत्यधिक परिवर्तन उत्पन्न होने लगे। जो बौद्ध धर्म मूर्ति पूजा और अवतारवाद का प्रबल विरोधी था, उसी धर्म के अंतर्गत भगवान बुद्ध की प्रतिमाओं की उपासना की जाने लगी तथा इस विश्वास को मान्यता प्राप्त हुई कि तथागत लोक कल्याण के लिए बार-बार जन्म लेते हैं।
(4) दार्शनिकों का अभाव होना
बौद्ध मत को प्रारंभ में उच्च कोटि के दार्शनिकों तथा धर्म परायण भिक्षुओं का अत्यधिक सहयोग उपलब्ध हुआ था। परंतु पांचवी शताब्दी के पश्चात इस धर्म में कई ऐसा विद्वान दार्शनिक अथवा अनुभवी संगठन करता नहीं आया जो धर्म में उत्पन्न ने 200 तथा को प्रथाओं को दूर करके इसे आडंबर हीन सरल धर्म बनाए रखता। आज तू जब जरका पुणे तो हवा हो गया तो बौद्ध धर्म रूपी वृक्ष कितने दिन हरा भरा रह सकता था। इस कारण भी बौद्ध धर्म का पतन हुआ।
(5) राज्याश्रित का अभाव
आरंभ में बौद्ध धर्म को बिंबिसार, अजातशत्रु, अशोक और कनिष्क जैसे शक्तिशाली महान सम्राटों का पूर्ण सहयोग तथा संरक्षण प्राप्त था, परंतु आगे चलकर धर्म को राज्याश्रय से वंचित होना पड़ा। शुंग, कण्व, आंध्र, सातवाहन आदि राजवंशों के सम्राटों ने ब्राह्मण धर्म को ग्रहण किया और उसके प्रचार और प्रसार में अपनी संपूर्ण शक्ति लगा दी। शक्ति के उपासक रण प्रिय राजपूत निवेशकों द्वारा भी अहिंसा परख बौद्ध धर्म को उपेक्षा की दृष्टि से देखा गया था। अतः राज्याश्रय के अभाव में बौद्ध धर्म का पतन होने लग गया था।
(6) ब्राह्मण धर्म का पुनर्जन्म
बौद्ध धर्म का पतन प्रारंभ हुआ, उधर ब्राह्मण धर्म की शिथिलता का अंत होने लगा। ब्राह्मण धर्म के उत्साही दार्शनिकों विचारकों और प्रचारकों ने नवीन आधा का प्रदर्शन करते हुए शुद्ध एवं पवित्र सिद्धांतों को नवीन आकर्षक आवरण में जनता के समक्ष रखा। तथा बौद्ध धर्म का पूर्ण प्रतिरोध आरंभ किया। शक्तिशाली गुप्त सम्राटों द्वारा ब्राह्मण धर्म को राजकीय संरक्षण प्रदान किया गया तथा उसके प्रचार और प्रसार की अचूक साधन एकत्रित किए गए। उस काल में हिंदू धर्म में अनेक विलक्षण विद्वानों और प्रचारकों का प्रादुर्भाव हुआ। सातवीं शताब्दी में प्रभाकर कुमारिल भट्ट और शंकराचार्य जैसे अलौकिक विधता और वाद-विवाद ओं की अतुलनीय प्रतिभा से संपन्न उद्भव विद्वानों का प्रादुर्भाव हुआ।
(7) भारत पर हुए तुर्कों का आक्रमण
भारत में बौद्ध धर्म का पतन; बौद्ध धर्म के पतन में तुर्कों के भारत पर किए गए आक्रमण उन्हें भी उल्लेखनीय योगदान दिया। तुझको आक्रमणकारी धार्मिक कट्टरता से परिपूर्ण थे। वह अपने धर्म को सर्वोपरि मानते हुए अन्य धर्मावलंबियों को नष्ट करने के लिए सदैव तत्पर रहते थे। हां तो हो भारत पर आक्रमण करते समय उन्होंने बौद्ध विहार ओं को लूटा और बौद्ध धर्म के अमूल्य ग्रंथों के विशाल पुस्तकालयों को भस्म कर डाला तथा असंख्य बौद्ध भिक्षुओं को मौत के घाट उतार दिया। उनके संहार से किसी प्रकार अपने प्राणों की रक्षा करके बौद्ध भिक्षु विदेशियों को पलायन करने लगे। बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने ब्राह्मण धर्म ग्रहण कर लिया।
(8) राजपूतों का उदय होना
राजपूतों का उदय बौद्ध धर्म के लिए पतन का कारण सिद्ध हुआ। अहिंसा का सिद्धांत आखिर प्रिय राजपूतों के लिए रुचि कर न था। अतः उनके द्वारा बौद्ध धर्म का अत्यधिक विरोध किया गया। राजपूतों की वीर जाति को हिंदू धर्म की प्रभाव पूर्व सिद्धांतों में ही आकर्षण दिखाई देता था। जिस कारण उनकी तीक्ष्ण तलवारों के लिए बौद्ध धर्म की अहिंसा में कोई स्थान न था। राजपूतों के युग का आरंभ बौद्ध धर्म के पतन का सूचक सिद्ध हुआ।
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निष्कर्ष conclusion - इस प्रकार यह ज्ञात होता है कि जितनी शीघ्रता से बौद्ध धर्म लोकप्रिय हुआ था उतनी ही शीघ्रता से इसका पतन भी हो गया। वस्तुतः जिन कारणों से यह धर्म लोकप्रिय हुआ था वही कारण इसके पतन के लिए भी सिद्ध सहायक हुए। भारत से आज बौद्ध धर्म लगभग पुणेत: लुप्त हो गया है। यद्यपि विदेशों में इसकी अब भी पर्याप्त मान्यता है, क्योंकि तुर्कों के आक्रमण से बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने विदेशों की ओर पलायन कर लिया था।
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