शिवाजी का शासन प्रबंध
Shivaji ke prashasan ka varnan karen ; शिवाजी एक कुशल शासक थे। उनके इस गुण के विषय में एक विद्वान ने कहा था- “लगभग अन्य सभी सेनापतियों की भांति शिवाजी भी एक महान प्रशासक थे। क्योंकि वह गुण जो सेनापति में पाए जाते हैं, वही गुण एक योग्य प्रबंधक व राजनीतिज्ञ के लिए भी आवश्यक होते हैं।” शिवाजी ने शासन प्रबंध के मामले में अपने साम्राज्य में अभूतपूर्व सुधार किए थे। इसीलिए शिवाजी की तुलना शेरशाह से की जा सकती है, तथा शिवाजी का प्रशासन और उपलब्धियों या उनकी शासन व्यवस्था को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है—
शासन प्रबंध
(1) केंद्रीय शासन व्यवस्था
शिवाजी के केंद्रीय प्रशासन पर लेख -— केंद्रीय प्रशासन में राज्य की समस्त स्त शक्तियों को केंद्रीयभूत किया गया था। राजा राजा को उसमें असीम शक्तियां प्राप्त थी। वह अपनी इच्छा अनुसार किसी पद पर किसी को भी नियुक्ति कर सकता था तथा किसी को भी प्रयुक्त कर सकता था। पूर्ण अधिकार संपन्न होते हुए भी शिवाजी निरंकुश अथवा अत्याचारी नहीं थे इसलिए उन्हें उदार शासकों की श्रेणी में रखा जा सकता है राजा को परामर्श देने के लिए 8 मंत्रियों की एक समिति होती थी जिसे अष्टप्रधान कहा जाता था। प्रत्येक मंत्री अपने विभाग का संचालन करता था तथा राजा के प्रति उत्तरदाई होता था।
शिवाजी की अष्ट-प्रधान
(1) पेशवा- यह प्रधानमंत्री होता था तथा समस्त राज्य के शासन प्रबंधन का संचालन कर था। विभिन्न राजकीय विषयों पर राजा पेशवा से परामर्श लेता था।
(2) अमात्य- अर्थमंत्री को अमाती कहा जाता था जो राज्य के आई गई पर नियंत्रण रखता था। धन संबंधी कागजों पर उसके हस्ताक्षर होते थे।
(3) मंत्री- मंत्री का मुख्य कार्य राजा की दैनिक कार्यों को राज दरबार में होने वाले मुस्लिमों का लेखा-जोखा देना होता था।
(4) सचिव- राजा की पत्र व्यवहार के कार्यों को संभालना सरकारी पत्रों का पुनः परीक्षण करना तथा उनकी भाषा को शुद्ध करना सचिव का कार्य होता था।
(5) सुमंत- सुमंत को विदेश मंत्री कहां जा सकता है क्योंकि अन्य राज्यों से संबंधित कार्यों को करना विदेशी गुप्त जनों का दृष्टि रखना तथा राजपूतों की देखभाल करना इसके कार्य होते थे।
(6) सेनापति- यह सेनाओं का मुखिया होता था। सेना का संगठन अनुशासन एवं युद्धों का संचालन करना इसके मुख्य कार्य होते थे। वास्तव में सेना के सभी अधिकार अंतिम रूप में शिवाजी को भी प्राप्त थे।
(7) पंडितराव- यह धार्मिक विभाग का अध्यक्ष होता था तथा इसका मुख्य कार्य धार्मिक कृत्यों को देखना तथा प्रजा के नैतिक स्तर को ऊंचा उठाना था।
(8) न्यायाधीश- यह न्याय विभाग का उच्चतम अधिकारी होता था जो हिंदू कानून की सहायता से दीवानी व फौजदारी मुकदमों का निर्णय करता था। राज्य के छोटे न्यायालयों का निरीक्षण करना भी इसका अधिकार क्षेत्र में था।
(2) प्रांतीय शासन प्रबंध
शिवाजी का प्रशासन ने अपने साम्राज्य को चार भागों में विभाजित कर दिया था। इन प्रांतों की प्रशासन का कार्य सूबेदार के द्वारा किया जाता था एक दूरस्थ प्रांत में सुरक्षा के दृष्टिकोण से सेना भी रखी जाती थी प्रांतीय सुविधाओं की सहायता के लिए अन्य अधिकारियों की नियुक्ति की गई थी। प्रांतों को जिलों व जिलों को गांव में बांटा गया था। जिले अथवा परगने के प्रबंधन हेतु राज्य की ओर से विशेष अधिकारी नियुक्त किए जाते थे गांव का प्रबंध मुखिया या पटेल करता था। प्रांतीय स्थानीय अधिकारियों को नकद वेतन देने की व्यवस्था थी। जो प्रदेश सीधे मराठों के अधीन नहीं थे उनसे चौथ नामक कर लिया जाता था।
(3) राजस्व प्रशासन प्रबंध
शिवाजी का शासन ने संपूर्ण भूमि को राज्य की भूमि घोषित कर दिया था। तथा रैयतवाड़ी व्यवस्था शुरू की। किसानों को बीज एवं पशु खरीदने के लिए राज्य की ओर से धन दिया जाता था। राजकोष की पूर्ति के लिए किसानों से उपज का 30% लगान लिया जाता था। विजिट प्रदेशों से चौथ ली जाती थी। शिवाजी की आय का एक अन्य मुख्य साधन सरदेशमुखी था। यह एक प्रकार का कर था जो राज्य की व्यक्तियों से उनकी आय पर वसूल किया जाता था। यह कर कुल आय का 1/10 भाग तक लिया जाता था। लूट का माल आय का सबसे बड़ा साधन था।
(4) सैनिक प्रबंध
शिवाजी ने सैनिक शक्ति एवं कूटनीति के बल पर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी। अतः उन्होंने सैनिक संगठन पर अधिक बल दिया। शिवाजी ने सर्वप्रथम एक स्थाई सेना का निर्माण किया जो हर समय सेवा के लिए तैयार रहती थी। शिवाजी का प्रशासन ने आजसू सेना में सुधार करने के लिए गौरव को दागने की प्रथा एवं हुलिया लिखने की पद्धति का अनुसरण किया। सैनिकों को नगद वेतन देने की व्यवस्था भी थी। सैनिकों व पदाधिकारियों की नियुक्ति के लिए योग्यता मुख्य आधार था और सेना में हिंदू और मुसलमानों की भर्ती भेदभाव रहित होती थी। घुड़सवार पैदल व जल सेना शिवाजी की सेना के प्रमुख अंग थे। युद्ध काल में स्त्रियों दासियों वह दासों को साथ ले जाने की आज्ञा नहीं थी। युद्ध छापामार प्रणाली से होती थे। शिवाजी ने अनेक अभेद्य दुर्गों का निर्माण भी कराया था। दुर्गा की रक्षा के लिए एक मराठा हवलदार एक ब्राह्मण सूबेदार वह एक कायस्थ किलेदार नियुक्त किया जाता था। मराठा लोग किले की रक्षा करना अपना आदर्श समझते थे।
(5) न्याय प्रबंध
न्याय के प्रधान अधिकारी कोई न्यायाधीश कहा जाता था। न्याय हिंदू धर्म के नियमों पर आधारित है। ग्रामों में फौजदारी के मुकदमों को तय करने के लिए एक अधिकारी होता था, जिसे पटेल कहते थे। ग्रामों के झगड़े ग्राम पंचायतों द्वारा ही निपटाए जाते थे तथा कानून की व्याख्या हेतु कानून पंडित की नियुक्ति की जाती थी।
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महत्वपूर्ण अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर
शिवाजी का शासन प्रबंध ?
शिवाजी एक कुशल शासक थे। उनके इस गुण के विषय में एक विद्वान ने कहा था- “लगभग अन्य सभी सेनापतियों की भांति शिवाजी भी एक महान प्रशासक थे। क्योंकि वह गुण जो सेनापति में पाए जाते हैं, वही गुण एक योग्य प्रबंधक व राजनीतिज्ञ के लिए भी आवश्यक होते हैं।” शिवाजी ने शासन प्रबंध के मामले में अपने साम्राज्य में अभूतपूर्व सुधार किए थे। इसीलिए शिवाजी की तुलना शेरशाह से की जा सकती है ।
शिवाजी के प्रशासन में अमात्य का क्या कार्य था?
अमात्य- अर्थमंत्री को अमाती कहा जाता था जो राज्य के आई गई पर नियंत्रण रखता था। धन संबंधी कागजों पर उसके हस्ताक्षर होते थे।
छत्रपति शिवाजी को किसने हराया था?
औरंगजेब द्वारा छत्रपति शिवाजी को अहमदनगर में हराया था?
शिवाजी का जन्म कब हुआ था?
शिवाजी का जन्म 19 फरवरी, 1930 को हुआ था।
शिवाजी की मृत्यु कब हुई?
शिवाजी की मृत्यु 3 अप्रेल 1680 को हुई थी।
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