राजपूतों की पराजय के कारण - letest education

 राजपूतों की पराजय के कारण 

11 वीं और 12 वीं शताब्दी शताब्दी में मुस्लिम राजाओं को भारत में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई और राजपूत राजा उनके आक्रमणों को रोकने में असफल रही तथा उनको पराजय की सामना करनी पड़ी। राजपूतों की इस पराजय के कारण बहुत से थे। जिनमें मुख्य कारण यह है  - 

(1) राजनीतिक कारण।

(2) सामाजिक कारण।

(3) धार्मिक कारण ।

(4) सैनिक कारण ।

(5) तात्कालिक कारण।


(1) राजनीतिक कारण 

 राजपूतों की पराजय में राजनीतिक कारण मुख्य कारण रहा जिससे राजपूतों की पराजय हुई- 

(1) राजपूतों में एकता का अभाव था-

 जब तुझको कई विरुद्ध राजपूतों की पराजय का प्रमुख कारण उनमें एकता का भाव मिला तो संपूर्ण भारत उस समय अनेक छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्यों में बटा हुआ था। उस समय प्रत्येक राज्य एक दूसरे के प्रति संघर्ष करने की भावना से लड़ रहे थे। इसीलिए तुझको ने अलग-अलग और एक-एक करके सभी राज्यों पर बड़ी सुगमता से अधिकार कर लिया और अनेक राजपूत वंश ओ का अंत कर दिया।

(2) राजपूतों में परस्पर ईर्ष्या और द्वेष- 

राजपूत शासकों में पारस्परिक ईर्ष्या की भावना इतनी अधिक थी कि वह संकट के समय में भी एकजुट होकर बाहरी शत्रु से सामना न कर सके और साथ ही दूसरी राजा को नीचा दिखाने के लिए उन्होंने तुर्कों का साथ भी दिया। जिसके फल स्वरूप तुर्कों को कुछ राजपूत राजाओं का भी साथ मिला, जिससे उनकी विजय में और अधिक प्रबलता हुई।

(3) वंशों में परंपरागत शासक का बनना- 

राजपूतों में एक शासक की मृत्यु के उपरांत सिहासन के उत्तराधिकारी वंश परंपरागत होते थे। इससे अनेक बार जब राज्य योग्य शासक के हाथ में चला जाता था तब उस समय तुर्क राजा वहां के राज्य पर आक्रमण करके जीत लेते थे।

(4) राजपूतों में राष्ट्रीय  भावना का अभाव- 

उस समय प्रत्येक राजपूत शासकों मैं राष्ट्रीय भावना का भव था, और अपने राज्य की रक्षा करना है उनको समझ  आता था। वे राष्ट्रीय भावना की महत्व को नहीं समझ सके जिस कारण तुर्कों से पराजित हुए।

(2) सामाजिक कारण 

सामाजिक कारणों के कारण आते हैं जिसमें राजपूतों के समाज के प्रति दृष्टिकोण थे- 

 (1) राजपूतों में जाति प्रथा

 उस समय जाति प्रथा बहुत ही जटिल एवं दोषपूर्ण हो गई थी। समाज की शक्ति विभिन्न जातियों में बढ़ गई थी और युद्ध करने का उत्तरदाई केवल स्त्रियों पर ही रह गया था। दूसरी और राजपूत शासक समस्त वर्गों पर अपना एकाधिकार स्थापित करना चाहते थे। अन्य वर्गों के व्यक्तियों को महत्वहीन समझा जाता था। इस प्रकार तीन चौथाई जनता का युद्ध में सहयोग न देने के कारण राजपूतों की पराजय का प्रमुख कारण बना।

(2) अहंकार

 राजपूत अहंकार की भावना में लीन थे। उन्हें अपनी वीरता साहस एवं युद्ध कौशल पर बड़ा विश्वास तथा अभिमान था। वे सोचते थे कि उन्होंने स्वयं अपने बल पर अपने राज्य की स्थापना की है। और साम्राज्य खड़ा किया है। अन्य शासकों से सहायता लेना वे अपना अपमान समझते थे। जिस कारण भी राजपूतों को पराजय का सामना करना पड़ा।

(3) राजपूतों का नैतिक पतन

 उस समय राजपूत अपने कर्तव्यों से उन्मुख हो गए थे। उनका चारित्रिक पतन प्रारंभ हो ही गया था। विनाश गाने तथा खाने पीने में व्यस्त रहते थे और अपने राज्य की सुरक्षा का ध्यान भी ठीक तरह से नहीं देते थे। इस स्थिति का महमूद गजनबी और मोहम्मद गौरी जैसी चतुर आक्रमणकारियों ने लाभ उठाया और वे अपनी प्रभुता स्थापित करने में सफल हुए।

धार्मिक कारण

 राजपूतों के पतन में धार्मिक कार्य में हुए कारण आते हैं जिनमें वीर आजाए अंधविश्वास और श्रद्धा पर विश्वासी थे- 

(1) हिंदुओं का अंधविश्वास

 राजपूतानी देवी देवताओं की आराधना करते थे। अवश्य करेंगे इस विश्वास के कारण विश्वरी शक्ति पर अधिक विश्वास करते थे और अपनी सैन्य शक्ति की ओर अधिक ध्यान नहीं देते थे। इतना ही नहीं अपनी असीम भक्ति भावना के कारण भी मंदिरों का निर्माण करवाते थे और वहां पर असीम धन एकत्र करके रखते थे। सोमनाथ के मंदिर पर महमूद गजनवी ने आक्रमण करके उसे खूब लूटा था सोमनाथ मंदिर के पुजारियों का विश्वास था कि भगवान स्वयं ही आकर उनकी रक्षा करेंगे।

(2) युद्ध के सिद्धांत की प्रमुखता

राजपूत धार्मिक युद्ध के पक्षपाती थे अर्थात जी युद्ध के सिद्धांत में विश्वास रखते थे। जिस कारण में शत्रु को धोखा देकर मारना या शनि यंत्र की हत्या करना अपने धर्म के विरुद्ध समझते थे। विश्व की और दया की पक्ष पाती थी किंतु तुर्क आक्रमणकारी अवसरवादी थे उनका सिद्धांत था कि युद्ध में किसी भी प्रकार की विजय प्राप्त करनी ही विजय ही उनका एकमात्र धर्म है।

(3) सैनिक कारण

 सैनिक कारण राजपूतों की सैनिक शक्ति मैं जिस कमी के कारण पराजय हुई , वे कारण - 

(1) सैनिकों की संख्या कम होना

राजपूतों की पराजय का एक प्रमुख कारण यह भी है। कि उनके पास सैनिक शक्ति अट्ठारह सैनिकों की संख्या तुर्कों व मुसलमानों की तुलना में बहुत ही कम थी। जिसका कारण यह था कि वर्ण व्यवस्था के अनुसार केवल राजपूत जाति को ही युद्ध करने का अधिकार प्राप्त था। लेकिन इसके विपरीत मुसलमानों में कोई भी जाते युद्ध में भाग ले सकता था।

(2) आधुनिक शास्त्रों का अभाव

 मुसलमानों के पास युद्ध में अधिकतर एवं नवीनतम अस्त्र-शस्त्र होते थे क्योंकि मुसलमानों ने युद्ध में जीते हुए और लूटे हुए शस्त्र शामिल थे। दूसरी तरफ राजपूत अपने बाहुबल पर युद्ध करने में विश्वास रखते थे। ढाल और तलवार का प्रयोग करते थे। किंतु मुसलमान तीर कमान ओं का प्रयोग भी करते थे। तुर्की लोग दूर से ही निशाना साध कर तीर कमान से ही आधे सैनिकों को मारते देते थे। किंतु राजपूतों को बिल्कुल निकट जाकर लड़ना पड़ता था। इस कमी के कारण भी राजपूतों को पराजय का सामना करना पड़ा।

(3) राजपूतों की सेनाओं का दोष पूर्ण संगठन

राजपूतों की सेना में सैनिक संगठन की श्रेष्ठता का अभाव था। राजपूतों की सेनाएं व्यवस्थित नहीं थी। उनकी सेवाओं में या तो सैनिक हाथियों पर बैठकर युद्ध स्तर में जाते थे या पैदल। दोनों ही मुसलमानों की अश्वर वहीं सेना के सामने टिक नहीं पाते थे क्योंकि भारतीय हाथी प्रयोग युधिष्ठिर पर जाकर बिगड़ जाते थे और कभी-कभी तो जिस हाथी पर सेनापति बैठा होता था वहीं हाथी बिगड़ का युद्ध स्थल से भाग जाता था इसे देखकर शेष सेना में भी भगदड़ मच जाती थी। इस स्थिति का फायदा तुर्कों को हुआ। महमूद गजनवी नेत्रालय की युद्ध हाथियों की भगदड़ का लाभ उठाकर ही जीते थे। 

(4) सैनिक कारण

(1) राजपूतों की सेनाओं का दोषपूर्ण संगठन

राजपूतों की सेना में सैनिक संगठन का श्रेष्ठता का अभाव था। उनकी सेनाएं और व्यवस्थित होती थी। उनकी सेवाओं में या तो सैनिक हथियारों पर बैठकर युद्ध स्थल में आते थे या पैदल। दोनों ही मुसलमान की असवार वही सुना के सामने टिक नहीं पाते थे, क्योंकि भारतीय हाथी प्राय: युद्ध स्थल पर बिगड़ जाता था और कभी-कभी तो जी हाथी पर सेनापति बैठा होता था वही बिगड़कर युद्ध स्थल से भाग जाता था।

(2) सुरक्षित सेना का अभाव

राजपूत सेवा में आजकल की तरह रक्षा सेना की व्यवस्था नहीं थी। समस्त सेना एक साथ ही युद्ध क्षेत्र में पहुंच जाती थी, किंतु तुर्क सेनाओं की व्यवस्था बहुत अच्छी थी। वह एक पृथक सेना सुरक्षित सेना के रूप में भी रखते थे। जब राजपूती योद्धा थक जाते थे, तब तुर्क लोग अपनी सुरक्षित सेना को युद्ध स्थल में उतार देते थे जिसका सामना थके राजपूत सैनिक नहीं कर पाते थे और लड़खड़ाकर वही पराजित हो जाते थे।

(5) धार्मिक कारण

(1) हिंदुओं का ईश्वरीय शक्ति में अंधविश्वास 

राजपूत अनेक देवी देवताओं की आराधना करते थे। संकट की समय उनके आराध्य देवता उनकी सहायता अवश्य करेंगे, इस विश्वास के कारण में ईश्वरी शक्ति पर अधिक विश्वास करते थे और अपने सैन्य शक्ति की और अधिक ध्यान नहीं देते थे। इतना ही नहीं अपनी असीम भक्ति भावना के कारण कोई मंदिरों का निर्माण करवाते थे और वहां पर असीम धन एकत्र करके रखते थे। इसलिए सोमनाथ के मंदिर पर महमूद गजनबी ने आक्रमण करके उसे लूट लिया था।

(2) युद्ध के सिद्धांत की प्रमुखता

राजपूत धार्मिक युद्ध के पक्षपाती थे अर्थात् युद्ध के सिद्धांतों में विश्वास रखते थे। इस कारण में शत्रु को धोखे से मारना या शरणागत की हत्या करना अपने धर्म की विरुद्ध समझते थे। वह शक्ति और दया के पक्षपाती थे, किंतु तुर्क आक्रमणकारी अवसरवादी थे। उनके सिद्धांत था कि युद्ध में किसी भी प्रकार मुझे प्राप्त करनी ही है, विजय ही उनका एकमात्र धर्म है।

(3) जेहाद भावना

मुसलमान सैनिक किसी भी युद्ध को इस्लाम धर्म की रक्षा के लिए लड़ते थे। युद्ध में अपनी जान देकर वही समझते थे कि हमने धर्म, अल्लाह या खुदा के लिए अपनी जान दी है। यह जेहाद की भावना ही उनकी विजय का प्रमुख कारण थी।

तात्कालिक कारण 

कुछ तात्कालिक कारण भी थे जिन कारणों ने भी राजपूतों की विजय को पराजय में बदल दिया। उदाहरण के तौर पर जब पृथ्वीराज चौहान हाथी से उतरकर घोड़ी पर चढ़ा तो सेना ने समझा कि वह मारा गया और वह भाग खड़ी हुई। राजा जयचंद की आंख में अचानक दिल लग गया और राजपूत सेना में भगदड़ मच गई इस प्रकार के कुछ अन्य कारण भी राजपूतों की पराजय मैं सहायक हुए।

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