रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या है? विशेषताएं, गुण एवं दोष

 रैयतवाड़ी व्यवस्था (Ryotwari System)

रैयतवाड़ी भू राजस्व व्यवस्था सर्वप्रथम कैप्टन रीड तथा थॉमस मुनरो द्वारा मद्रास के बड़ा महल जिले में 1792 ई%० में लागू की गई थी वस्तुतः थॉमस मुनरो ही इस प्रणाली के प्रवर्तक थे। 1820 ई० ने जब हम मद्रास की गवर्नर बने तो उन्होंने इस प्रणाली को मद्रास (चेन्नई) के सभी प्रांतों में लागू कर दिया। सर्वप्रथम 1772 में भू राजस्व कृषि उपज का 1/2 निर्धारित किया गया था जो अत्यधिक था। अतः मुनरो ने 1807 में इसे घटाकर 1/3 रखने का प्रस्ताव रखा जो कंपनी के संचालकों द्वारा मान लिया गया था। 1820 ई० से 8827 ई० की अवधि में जब मुर्गा मद्रास प्रांत का गवर्नर रहा युवा प्रणाली मद्रास प्रांत में सर्वत्र लागू कर दी गई थी। यह प्रथा मुख्यत: तो हम मुंबई ,असम, सिंधु, चेन्नई प्रांतों प्रचलित थी। इस प्रणाली से किसानों और राज्यों के बीच प्रत्यक्ष संबंध होता है भू- धारण की सुरक्षा बनी रहती है और राज्य को भूमि सुधारों का लाभ प्राप्त होता रहता है। 

रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या है

रैयतवाड़ी व्यवस्था एक प्राचीन कृषि व्यवस्था है। जो किसानों के बीच भूमि का उपयोग और उसके वितरण से संबंधित है। रजत वाली व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य भूमिका सामाजिक और आर्थिक विकास सुनिश्चित करना था। रैयतवाड़ी व्यवस्था के जनक थाँमस मुनरो को‌ कहा जाता है।

रैयतवाड़ी व्यवस्था की विशेषता 

(1) रैयतवाड़ी व्यवस्था मैं जब तक शुष्क भूमिका लगान देता रहता है तब तक भूमि से संबंधित समस्त अधिकार उसे प्राप्त रहते हैं।

(2) रैयतवाड़ी व्यवस्था में समग्र भूमि पर राज्य का एकाधिकार होता है।

(3) इस प्रथा में राज्य एवं कृषक के बीच कोई मध्यस्थ न होने से प्रत्यक्ष संबंध होता है।

(4) इस व्यवस्था में भूमिका प्रत्येक अधिकारी (रैयत) मालगुजारी देने हेतु स्वयं ही उत्तरदाई होता है।

(5) इस व्यवस्था में 20 से 40 के अंतर के उपरांत भूमि पर मालगुजारी को निर्धारित किया जाता है।


रैयतवाड़ी व्यवस्था के गुण और दोष

रैयतवाड़ी व्यवस्था के गुण

(1) इस व्यवस्था में भूमि संबंधी रिकॉर्ड एवं प्रलेख पूर्ण होने से भूमि सुधार सहजता से किया जा सकता है।

(2) भू राजस्व देते रहने तक रेत का भूमि पर अधिकार बनाए रखने से इस प्रणाली से कुछ दायित्व आया और वह परिश्रम द्वारा कृषि को उन्नत बनाने के लिए प्रेरित हुआ।

(3) रैयतवाड़ी व्यवस्था में राज्य को भी भूमि सुधारों का लाभ मिलता रहता है।

(4) भू राजस्व का निर्धारण ग्राम स्तर पर न कर प्रत्येक खेत की उपज के आधार पर किया जिसके फलस्वरूप भूमि की उर्वरा शक्ति के अनुरूप भूमि कर देना उचित था।

(5) इस व्यवस्था में किसानों के शोषण की कोई संभावना नहीं थी।

(6) यद्यपि भू राजस्व की दर काफी ऊंची थी किंतु इसका निर्धारण लंबी अवधि के लिए किया गया था। अथवा बार-बार जांच पड़ताल द्वारा इसकी वृद्धि से कृषक को राहत मिली।

(7) इस व्यवस्था में राजीव को किसानों के मध्य प्रत्यक्ष होने से सरकार उनकी समस्याओं को सहजता से समझ सकती है।

(8) इस प्रणाली के अनुसार ब्रिटिश सरकार ने यह सिद्धांत स्वीकार किया कि भूमि के किराए की राशि पर नहीं बल्कि इसके एक अंश पर भू राजस्व के रूप में सरकार का अधिकार होना चाहिए।

रैयतवाड़ी व्यवस्था के दोष 

रैयतवाड़ी व्यवस्था के दोष- 

(1) रैयतवाड़ी व्यवस्था में भू राजस्व के निर्धारण एवं उसकी वसूली में ग्राम पंचायतों की सर्वथा उपेक्षा की गई जिसके कारण सरकारी कर्मचारियों द्वारा भू राजस्व वसूल करते समय रैयत पर अत्याचार किए गए तथा उसके परिणाम का आधार भी न्यायोचित नहीं था क्योंकि राजेश से कृषि उपज के संबंध में नहीं पूछा गया।

(2) रैयतवाड़ी प्रथा के अंतर्गत छोटी कृषकों को अपनी भूमि के हस्तांतरण का भय सदैव बना रहता है।

(3) भू राजस्व की कारण रही है तो निर्धन होते गए और वह अकाल का सामना करने में असमर्थ रहे।

(4) यह व्यवस्था अत्यंत खर्चीली  है क्योंकि इसमें सरकार को लगान वसूल करने हेतु अनेक कर्मचारियों को नियुक्त करना पड़ता है।

(5) भले ही मुनरो के प्रयास से भू राजस्व 1/2 से घटकर 1/3 कर दिया गया था फिर भी वो काफी ऊंची धनराशि थी जो रेत की सामर्थ्य से बाहर थी फल स्वरुप रैयत निर्धन होते गए। 

(6) कृषक लगान बढ़ने के भय से अपनी भूमि में सुधार करने में संकोच करते हैं।

(7) 30 वर्ष की लंबी अवधि तक अनुबंध किए जाने से रैयत को कुछ राहत मिली किंतु भू राजस्व में स्थायित्व नहीं आया। भू राजस्व में वृद्धि होने के भय से रेत को अपनी भूमि से अधिक परिश्रम कर लाभान्वित करने की प्रेरणा नहीं मिली।

(8) सरकारी अधिकारी मनचाहा लगान कृषकों से वसूल करते थे।


मुख्य बिंदु -

★ रैयतवाड़ी व्यवस्था में समग्र भूमि पर राज्य का अधिकार होता है, लेकिन वास्तव में रयत उस भूमि इकाई का स्वामी होता है। उस भूमि पर रेत का अधिकार उस समय तक रहता है। जब तक वह सरकार को लगान देता रहता है। भूमि का प्रयोग करने उसका हस्तांतरण करने उसे बेचने आदि कार्य को अधिकार होता है। भूमि की उर्वरा शक्ति के माध्यम से भूमि पर मालगुजारी का निर्धारण प्रति 20 से 40 वर्ष उपरांत किया जाता है। 

★‌ थॉमस मुनरो ने रैयतवाड़ी भू राजस्व प्रणाली को स्थाई बनाने हेतु 1824 में अपनी कार्यवाही में कंपनी के संचालकों से अनुरोध किया। किंतु यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया इस प्रकार मद्रास की कृषक भूमि कर की अनिश्चितता के कारण दुखी रहे।

★ गवर्नर जनरल लॉर्ड रिपन ने भी भूमि कर में कोई वृद्धि न करने का सुझाव दिया किंतु इसे भी स्वीकृत कर दिया। गया मद्रास में 1830, 31,33 के अकाल 1835, 40 अनावृष्टि के कारण रैयत की दशा और भी दयनीय हो गई। वह निर्धनता और ऋण के भार से पीड़ित ही रहे।


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