नादिरशाह कौन था? भारत पर नादिरशाह का आक्रमण एवं परिणाम - letest education

 नादिरशाह का परिचय 

नादिरशाह का परिचय; नादिरशाह का बचपन का नाम नादिर कुली था। नादिर शाह का जन्म 1688 में खुरासान नामक स्थान में हुआ था। उसे बाल्यकाल से कस्ट भर जीवन व्यतीत करना पड़ा था। परंतु, आरंभिक जीवन की कठिनाइयों और अभाव ने उसम आश्चर्यजनक स्फूर्ति और साहस का संचार बहुत अधिक कर दिया था। उसने खुरासान में अपना एक गिरोह संगठित करके आसपास के स्थानों में लूटमार करना शुरू कर दिया। भारत पर आक्रमण करके राजधानी इस्फहान पर अधिकार कर लिया। फारस की दुर्बलता का लाभ उठाकर 1722 में अफ़गानों ने आक्रमण किया परंतु नादिर ने अब गाना का डटकर मुकाबला किया और थोड़े समय में ही भारत को अब कानून से खाली करा लिया। 1730 तक उसने गिजलई अब गानों को भारत से मार भगाया और साथ ही खुरासान में उजबेको को भी बुरी तरह हराया। इस प्रकार उसने एक सुयोग्य सेनापति के रूप में ख्याति प्राप्त कर ली ऐसी स्थिति में उसने भारत की शान तो हम आशिकों से आसन त्यागने पर विवश कर दिया और 1732 में शाह अल्प वयस्श का पुत्र अब्बास तृतीय को गद्दी पर बिठाकर संरक्षक बन गया। 1736 में नादिरशाह ने अपने आपको फारस का शासक घोषित कर दिया।


नादिरशाह का भारत पर आक्रमण

(1) नादिर शाह की महत्वकांक्षी और धन प्राप्ति का लालचपन

 नादिरशाह महत्व कौन स था और तुर्कों के विरुद्ध युद्ध जारी रखने के लिए धन भारत पर आक्रमण करके ही प्राप्त किया जा सकता था। इसलिए भी उसने भारत पर बहुत आप मन किए।

(2) मुगल साम्राज्य की दुर्बलता

 नादिरशाह के आक्रमण के समय मुगल साम्राज्य बेकार अवस्था में था। औरंगजेब के जीवन के अंतिम काल से ही मुगल साम्राज्य की अवनति प्रारंभ हुई थी। औरंगजेब के उत्तराधिकारी अयोग्य थे, उत्तराधिकार कि संघर्ष में कई योग्य सेनापति काम आ गए थे दक्षिण में मराठों के विरुद्ध एक लड़ाइयों मैं बुरी तरह पराजित होने के कारण पृथक तावादी तत्वों को प्रसाद मिला जिसके फल स्वरुप बंगाल अवध तथा दक्षिण के प्रान्त लगभग स्वतंत्र हो चुके थे। इसके अतिरिक्त सिक्के जाट बुंदेला दी मुगल साम्राज्य की कमजोरी का लाभ उठा रहे थे और विभिन्न क्षेत्रों में अशांति था अराजकता फैली हुई थी। तत्कालीन मुगल सम्राट मोहम्मद शाह विलास प्रिय आलसी और राजनीतिक कर्तव्यों के प्रति उदासीन था। मुगल दरबार में दल बंदी चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी और सभी अमीर अपनी स्वार्थ सिद्धि एवं एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हुए थे। अतः इन परिस्थितियों में नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण करने का निश्चय कर लिया।

(3) आरक्षित सीमा

 भारत में प्रवेश करने का रास्ता अफगानिस्तान वह पंजाब से होकर था और यह दोनों सीमावर्ती प्रांत उस समय पूर्ण रूप से अस्त-व्यस्त थे। सीमावर्ती प्रांत पंजाब आरक्षित अवस्था में था।

(4) विद्रोही अफगानों को शरण देना

कंधार से भागे हुए अफगान मुगल साम्राज्य में शरण ने चुके थे मुगल बादशाह उनका का ब्लू प्रवेश रोकने में असमर्थ रहा।


नादिरशाह का आक्रमण 

10 मई, 1738 को नादिरशाह ने उत्तर अफगानिस्तान में प्रवेश किया और 31 मई को उसने गजनी पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात उसने काबुल पर चलाए की और 19 जून को काबुल पर ईरानियों ने अधिकार कर लिया। फिर वह काबुल से 19 जुलाई को रवाना हुआ और 7 दिसंबर, 1738 को जलालाबाद पर अधिकार कर लिया। वहां सब आदमियों को कत्ल कर दिया गया और स्त्रियों को बंदी बना लिया गया फिर उसने पंजाब की ओर कूच किया। 18 नवंबर, 1738 को नादिरशाह ने बिना रोक-टोक पेशावर में प्रवेश किया। उसके पश्चात उसने पुरानी सूबेदार जकरिया खान ने आत्मसमर्पण कर लिया।

  26 जनवरी, 1739 को लाहौर से चला और 5 फरवरी को सरहिंद पहुंच गया और 13 फरवरी, 1739 को करनाल में मुगलों और नादिर शाह के बीच घमासान युद्ध हुआ और मुग़ल पराजित हुए। दोनों पक्षों में संधि हुई और निजामुल्मुल्क ने नादिरशाह को 50 लाख रुपए देने का स्वीकार कर लिया। परंतु स्वार्थ वॉइस शहादत खाने नादिर शाह को उकसा दिया कि वह दिल्ली पर अधिकार कर अधिक राशि प्राप्त कर सकता है उसका यह परिणाम हुआ कि दिल्ली तहस- नहस हो गई भारी नर- संहार हुआ। अंत में मोहम्मद शाह वजीर कमरुद्दीन व निजाम की प्रार्थना प्रणाली सामने रक्तपात को रोका और 5 मई, 1739 को उसने ईरान की ओर प्रस्थान किया।

नादिरशाह कौन था? भारत पर नादिरशाह का आक्रमण एवं परिणाम - letest education


नादिरशाह का आक्रमण के परिणाम 

1. जन और धन की अपार हानि

 आक्रमण में अनेक लोग मारे गए। बहुत अच्छी तक गलियों में मुर्दे पड़े रहे। सारे नगर बेकार हो गया। किले में जो भी सही जवाहरात संपत्ति और कोष मिला सब इरानी विजेता ने हथिया लिया। करीब 60 लाख और कई अशरफिया उसके बाद आई 1 करोड़ रुपए का सोना और 50 करोड़ के जवाहरात थे जिसकी तुलना संसार में किसी से नहीं हो सकती थी लगभग 348 वर्ष का संग्रह एक ही शरण में एक हाथ से दूसरे हाथ में चला गया था। इस प्रकार नादिर के आक्रमण का मुगल साम्राज्य की आर्थिक स्थिति पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा नादिरशाह की लूट का खसोट के कारण उद्योग तथा व्यवहर को प्रबल आघात पहुंचा।

2. मुगल साम्राज्य की प्रतिष्ठा को धक्का लगना 

नादिरशाह के आक्रमण मुगल साम्राज्य की प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिला दिया। उसने मुगलों की सैनिक शक्ति की दुर्बलता को प्रकट कर दिया। मजूमदार तथा दंत का कथन है कि मुगल साम्राज्य की अब की बची कुची प्रतिष्ठा भी नष्ट हो गई तथा अब इसका पतन संसार के समक्ष स्पष्ट हो गया। 

3. उत्तर पश्चिमी सीमा का आरक्षित होना

काबुल की मुगल साम्राज्य से अलग हो जाने तथा सिंधु नदी के चार प्रदेश निकल जाने से भारत के लिए उत्तर पश्चिम सीमा की रक्षा का प्रश्न पुनः महत्वपूर्ण हो गया। अगले 50 वर्षों से अधिक तक उत्तर पश्चिम की ओर से बराबर भारत पर आक्रमण हुए इन आक्रमणों के फल स्वरुप किसी ने राजवंशी की न्यू भारत में नहीं पड़ी किंतु राजनीति पर उनका विशिष्ट प्रभाव पड़ा। इस प्रकार नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण का द्वार खोल दिया तथा भारत की लूटमार कितनी आसान है यह दिखा दिया।

4. मराठों एवं सिखों के प्रभुत्व वृद्धि

नादिर शाह की दिल्ली से लौट जाने के बाद मराठों ने मुगल साम्राज्य की कमजोरी का लाभ उठाते हुए दक्षिण मालवा एवं गुजरात में अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। उन्होंने बंगाल बिहार और उड़ीसा पर भी अपनी दावेदारी प्रकट कर ली। इस प्रकार मुगल साम्राज्य का दक्षिणी पश्चिमी और पूर्वी भाग पूर्ण रूप से मराठों के अधिकार में आ गया। इसके अतिरिक्त उत्तर भारत में सिखों ने पुनः उपद्रव करना शुरू कर दिया। उन्होंने पंजाब के साथ दिल्ली के आसपास के प्रदेशों पर छापे मारकर मुगलों को परेशान कर दिया। इस प्रकार मुगल साम्राज्य अपने विनाश की ओर बढ़ता चला गया।

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